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गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

लघुकथा – शान्ति

लघुकथा – शान्ति

चिकित्सकों द्वारा मरीज को बचाने के सारे प्रयास विफल होते नजर आने लगे तो एक डाक्टर ने आकर मरीज के बेटे से कहा ,- ‘’ अब तो आपके पिताजी को भगवान ही बचा सकते हैं | हमारे सारे प्रयास विफल होते नजर आ रहे हैं , इसलिए आप अब भगवान से ही विनती कीजिए | शायद उनकी कृपा से...|’’
‘’ अब उनको बचाने के लिए भगवान से क्या विनती करें डाक्टर साब ...? वैसे भी वे अब पचहत्तर वर्ष के हो चुके हैं ..हम तो भगवान से सिर्फ इस बात कि ही विनती कर सकते हैं कि उन्हें शीघ्र ही इस दुनिया से उठा ले ताकि इस उम्र में उन्हें भी शान्ति मिले और हमें भी .....|’’
बेटे का सहजता से दिया गया जवाब सुनकर डाक्टर सन्न भाव से से खड़े उसका मुंह ताकते रह गए |

सुनील कुमार सजल 

बुधवार, 25 नवंबर 2015

लघुव्यंग्य कथा – किराया

लघुव्यंग्य कथा – किराया


पिछले दो माह से वेतन नहीं मिला था |पत्नी कहने लगी | ऐसा कैसा दफ्तर है और अफसर वेतन का भुगतान नहीं करा सके | ‘’
मैंने कहा –‘’ कभी-कभी दफ्तर में काम का बोझ इतना बढ़ जाता है कि ऐसी स्थिति बनना स्वाभाविक हो जाता है |
‘’ राम जाने लोग तो पहले पैसे को महत्त्व देते हैं , पर आप लोग ...?पत्नी में कहा |
मैंने कहा-‘’ तुम नहीं समझोगी रीता ....| काम अपनी जगह पर...|
पत्नी बीच में बोल पड़ी ... खैर छोडो भी ...कहो तो मायके खबर भेजकर भाई साब के हस्ते कुछ रुपये बुलावा लूं ...|
मैंने कहा – ‘ तुम रुपये तो बुलावा लो मगर आदत के अनुसार फिर कहोगी उन्हीं रुपयों में से उन्हें आने जाने का किराया भी दे दो...| पत्नी मेरी बातों पर कुछ खीझ सी गई ... ‘’किराया ... किराया देना आपको चुभ रहा हैं ... और अगर किसी साहूकार से कर्ज पर रुपये उठाओगे तो वह अपना रिश्तेदार तो है नहीं जो बिना ब्याज के रुपये दे दे | भाई को किराया दे दिया तो कम से कम भविष्य में आपके हमारे प्रति उसकी आत्मीयता व सहायता कि इच्छा तो बनी रहेगी .... मगर साहूकार ? जब तक उसके धंधे के सहयोगी रहोगे , तब तक आत्मीयता दिखाएगा इसके बाद दुत्कार देगा ....? ‘’
पत्नी कि समझाइश भरी बातें अपनी जगह पर शत-प्रतिशत ठीक तो थी पर जानें क्यों किराया देने वाली बात मुझे चूकवश अंगुली में गड़ी हुई सुई की भाँती चुभती महसूस हो रही थी |

     सुनील कुमार सजल 

गुरुवार, 12 नवंबर 2015

लघुकथा – लक्ष्मी प्रतिष्ठा

लघुकथा – लक्ष्मी प्रतिष्ठा

महेश की शादी को तीन-चार दिन ही बचे थे कि अचानक उसके घर वालों को खबर मिली | उसकी मंगेतर दो-तीन पूर्व ही अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गयी | अत: शादी निरस्त ही समझी जा रही थी |
यह खबर सुनकर महेश बहुत उदास था, साथ ही उसकी मां भी | लेकिन उसके पिताजी के चहरे पर उदासी का कोई भाव नजर नहीं आ रहा था | वे लान में बैठे महेश को समझाते हुए कह रहे थे |’’ सुनो बेटा , जो हुआ , अच्छा ही हुआ | अगर लड़की शादी के बाद घर छोड़कर अपने प्रेमी के साथ भाग जाती तो क्या समाज में हमारी नाक सेफ रहती ?’’
    महेश को पिताजी की बात समझ में आ गयी | वह इसे एक बुरा हादसा मानकर सामान्य हो गया  |
      अब महेश के पिता जी अपनी समझाइश का मस्का उसकी मां को लगाया , ‘’ देखो शीला , लड़की भागी तो भागने दो | महेश के लग्न में मिली मोटरसाईकिल ,रुपया और गहने , ये सब कुछ तो अपना ही हो गया न ! लड़की का बाप अब किस मुंह से अपने से बात करेगा .....|’’
   पिताजी की बातों ने मां के घावों पर भी मरहम का काम किया | वह अपने अन्दर से फूटे ख़ुशी के झरने को रोक नहीं पायी  , ‘’ काश! ऐसा रिश्ता अपने छोटे बेटे को भी मिल जाए तो अपने समाज में ‘’ लक्ष्मी प्रतिष्ठा ‘’ के मामलों में हम एक पायदान और ऊपर.......|

     सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

लघुकथा – जानवर

लघुकथा – जानवर



‘’ ऐ सुखिया, जा ज़रा इन बकरियों को मैदान में चरा ला |’’ मां ने अपनी किशोर बेटी से कहा |
‘’ नहीं मां , मैं नहीं ले जाऊंगीं ! बेटी ने मुंह बनाते हुए कहा तो मां चिढते हुए पूछ बैठी ,
‘’ क्यों.... अरे क्यों नहीं ले जाएगी ... क्या इनकों दिनभर भूखा रखना है ?’’
‘’नहीं मां ...! वहां दूसरे चरवाहे लडके इन जानवरों की ‘’ मर्यादाहीन ‘’ हरकतों पर मुझे देखकर मुझे सुनाते हुए जानबूझकर गन्दी-गन्दी बातें करते हैं |’’ बेटी ने कारण बताते हुए कहा |
‘’ अरे .... जानवर तो जानवर ठहरे... इनकी हरकतों से तुझे और उन लड़कों को क्या लेना-देना ?’’ मां अपनी बातों पर जोर देते हुए कहा |
‘’ मुझे अगर जानवरों की ऐसी हरकतों से कुछ नहीं लेना-देना मां तो क्या हुआ मगर उन लड़कों की नीयत में तो मुझसे लेना-देना है ना ...?’’
  बेटी की बात सुनकर मां अब गहन सोच में...पड़ा गयी |

       सुनील कुमार ‘’सजल ‘’ 

रविवार, 25 अक्तूबर 2015

लघुकथा – आधुनिक पत्नी

लघुकथा – आधुनिक पत्नी


उसकी दोनों किडनी खराब हो चुकी थी | महीनों से बिस्तर पर पड़े-पड़े बस अपनी जिंदगी के दिन गुजार रहा था | एक दिन बड़ा निराश और चिन्ता ग्रस्त होकर पलंग पर बैठी पत्नी के सर पर हाथ फेरते हुए बोला-‘’ शीला , मेरी जिंदगी के दिन अब ज्यादा नहीं बचे हैं | मेरे जाने के बाद तुम इन दो मासूम बच्चों के साथ अपना शेष जीवन कैसे काटोगी ? ‘’ पूछते ही उसकी आँखों में आंसुओं का समंदर उमड़ पडा | ‘’
‘’ तुम इसकी तनिक भी चिन्ता मत करो | मैं वही करूँगीं , जो एक आधुनिक पत्नी करती है |’’ पति का इलाज कराते-कराते ऊब चुकी पत्नी ने कर्कश आवाज में कहा|
‘’ मतलब ?’’
‘’ ‘’ मतलब क्या .... तुम्हारे इलाज के चलते इस घर में बचा ही क्या है ...इसलिए मैंने फैसला कर लिया है ... अपनी जवानी और बच्चों के संरक्षण के लिए दूसरा विवाह करूँगीं |’’
‘’ क्या? ‘’ पति की आवाज में पीड़ा और बढ़ गयी , ‘’ इसका मतलब मेरी इस हालत का ....|’’’
‘’हाँ, मुझे ज़रा भी गम नहीं है...|’’ बीच में ही पति की बात काटकर वह वहां से उठकर चली गई |
पति को एक पल के लिए लगा जैसे पत्नी के पीछे-पीछे देह छोड़कर उसकी धड़कनें भी जा रही हैं |

            सुनील कुमार ‘’ सजल’’ 

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

लघुकथा –पति

लघुकथा –पति

उसकी उम्र पचास को छू चुकी थी |महीना भर पहले ही उसे लकवा मार गया था | सो वह अपंग बना खाट पर पडा दिन गुजार रहा था परन्तु पत्नी को उसकी पीड़ा पर तनिक भी दुःख न था |
 लोग उसे समझाने आते , ‘’ पति है, ऐसे वक्त पर उसकी सेवा करो | पति तो देवता तुल्य होता है |’’
 लोंगो की समझाइश सुनते –सुनते लंबे समय तक पति के जुल्म से दबी – कुचली पत्नी के अन्दर की चीख एक दिन मुंह से बाहर निकल आई , ‘’ जब यह स्वस्थ था, जवान था , तब इसने मुझ पर जानवरों की तरह जुल्म ढाए | मुझे टुकड़ा भर रोटी के लिए भी इसने तरसा – तरसाकर  रहा | तब आप लोग कहते थे कि पति तो देवता है , जैसा भी है , उसके साथ निबाहकर जीवन गुजारो और अब यह अपने कर्मों का दंड भुगत रहा है तो आप लोग कह रहे है कि इसकी सेवा करो क्योंकि पति देवता तुल्य होता है | मैं आप लोगों से पूछती हूँ कि पति देवता तुल्य होता है तो मैं उसकी पत्नी हूँ , ऐसे में मैं क्या हूँ ? गुलाम या देवी ?’’
 उस दिन से लोग खामोश होकर उसे समझाइश देना भूल गए |

                 सुनील कुमार ‘’सजल’’

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

लघुव्यंग्य- गम

लघुव्यंग्य- गम

‘’ इतनी छोटी उम्र में नशा करते हुए तुझे शर्म नहीं आती |’’ थानेदार  ने उसके गाल पर थप्पड़ जमाते हुए पूछा |
‘’ का करूँ साब मजबूरी है |’’ उसने मिमियाती आवाज में कहा |’
‘’ काहे की मजबूरी बे |’’
‘’ गम भुलाने की |’’
‘’ किस बात  का गम बे | किसी छोरी का |’’
‘’ जी नहीं साब ! मां बाप का |’’
‘’ का वे मर गए .....|’
जी नहीं.....|’
‘’ तो काहे का गम बे ....|’
‘’ साब वे खुदअपना गम भुलाने के  लिए नशे में डूबे रहते हैं | मेरा ख्याल नहीं रखते | इसलिए मैं भी उनका गम भुलाने के लिए...|’
 थानेदार  के उसके शरीर पर चलते हाथ वहीँ ठहर गए |

      सुनील कुमार ‘’सजल’ 

मंगलवार, 28 जुलाई 2015

लघुकथा- हार


लघुकथा- हार

पंचायत चुनाव में उनकी हार हुई तो किसी सज्जन ने उनसे पूछा ,’’ वर्मा जी , आपकी हार पर मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है | लोग तो आपके व्यक्तित्व का गुणगान करते ही नहीं थकते थे | फिर भी आप...?’’
‘’ दोस्त , आजकल के मतदाता किसी के व्यक्तित्व पर नहीं बल्कि उसके धन और बल पर विशवास रखते हैं और यही दोनों चीजें मेरे पास नहीं थी ....|’’
वह सज्जन उनका उत्तर सुनकर गहन सोच की मुद्रा में पद गए |
 सुनील कुमार सजल  

शनिवार, 25 जुलाई 2015

लघुकथा – फर्ज


लघुकथा – फर्ज

रेशमा और पिताजी के बीच सुबह-सुबह ही काफी बहस हो गई थी | पिताजी के बाजार चले जाने के बाद मां ने रेशमा को समझाने के अंदाज में डांटते हुए कहा- ‘रेशमा तुझे कितनी बार समझाया कि अपने पापा से जुबान मत लड़ाया कर | पर तू तो मानने से रही | मैं देख रही हूँ कि तमीज के नाम पर तू दिनोंदिन मर्यादा को लांघती जा रही है |’’
‘’ मम्मी , पहले पापा को समझाओ , वो मुझसे कैसे-कैसे प्रश्न करते हैं |’’ रेशमा गुस्से में पैर पटकते हुए बोली |
‘ भला ऐसा कौन सा प्रश्न कर दिया उन्होंने तुझसे ?””
“ यही कि तू कल कॉलेज में जिस लडके के साथ घूम रही थी < वो कौन है ? रोजाना प[आर्क में क्यों जाती है ? और कई उलटे-सीधे सवाल ?’’
‘ तो क्या हुआ ... वो तेरे पिताजी हैं | तुझ जैसी जवान-कुंवारी लड़की की खोज-खबर रखना उनका फर्ज है | ज़माना ठीक नहीं है |’’
‘’ तो क्या केवल कुंवारी लड़की की ही खोज-खबर रखना उनका फर्ज है ? अगर शादी-शुदा होती और गलत कदम उठाती तो क्या वे मुझसे नजरें चुरा लेते ? क्या केवल कुँवारी लड़कियां ही गलत रास्ते पर जा सकती हैं , शादीशुदा नहीं ?’’
   रेशमा ने मां के सामने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी | प्रश्नों के बोझ टेल वह झुक चुकी थी | आखिर वे भी एक प्राइवेट कंपनी में क्लर्क हैं , जहां पुरुष कर्मचारियों की  भीड़ अधिक है ....|’’
         सुनील कुमार ‘सजल’

रविवार, 19 जुलाई 2015

लघुकथा – धन


लघुकथा – धन

‘’ आपने अभी तक शादी नहीं की क्या ?’’ दफ्तर में स्थानान्तरित होकर आए सहकर्मी को लंबेसमय से अकेले जीवन गुजारते देख सहकर्मी मित्र ने पूछा |
‘’ की थी पर..?’’
‘’ मैं समझा नहीं !’’ मित्र ने प्रश्न किया |
‘’ हम दोनों के बीच पटरी नहीं बैठी , सो तलाक हो गया |’’ उसने सामान्य लहजे में कहा |
‘’ तो फिर दोबारा ...?’’
‘’ नहीं की ... शादी की तरफ से मन ही विरक्त  हो गया है |’’ उसने कहा |
‘’ आपकी बीबी है, न बच्चे हैं तो फिर इतना धन किसके लिए जोड़ रहे हो , साधारण जीवनशैली छोड़कर हमारी तरह खूब खाओ पीओ , मौजमस्ती करो, एन्जॉय इज लाइफ !’’ मित्र ने समझाने के अंदाज में चहकते हुए कहा |
 ‘’ यह धन मैं अपने सुखद बुढापे के लिए जोड़ रहा हूँ | तुम्हें मालूम ही होगा  कि धन तो अच्छे-अच्छों  को उँगलियों पर नचाता है | अगर बुढापे के समय मेरे पास धन होगा तो शिथिल होते हुए भी मैं अपने भाई-बंधुओं को पूरी ताकत से नचाने की क्षमता रखूंगा और वे लालचवश ही सही, पूरी लग्न से मेरी सेवा करेंगे | आज मौजमस्ती करके कल नरक का द्वार नहीं देखना चाहता | ठीक कहा न....!
     सुनील कुमार ‘’ सजल’’

शनिवार, 18 जुलाई 2015

लघुकथा – डर


लघुकथा – डर

‘तुम तो स्कूली दौड़ प्रतियोगिता में राज्य स्तर के लिए चयनित हो गए थे , फिर भी वहां भाग लेने नहीं गए ?’’ रोमेश के मित्र ने उससे पूछा तो वह बोला- ‘’ क्या करता मजबूरी थी|’’
‘’मजबूरी ? कैसी मजबूरी ? पैसे की कमी थी क्या ?’’ मित्र ने प्रश्न पर प्रश्न दोहराया |
 ‘’ नहीं , वो अपने वर्मा सर हैं न , उन्होंने मुझे अकेले में बुलाकर चेतावनी दी थी कि तुम प्रतियोगिता में भाग लेने का इरादा छोड़ दो अगर बोर्ड की प्रैक्टिकल परीक्षा में अच्छे अंक चाहिए तो वरना....|’’
‘’ मगर तुम्हारे सर ने तुम्हें इस तरह धमकाया क्यों ?’’
 ‘’ उनके पुत्र ने स्थानीय प्रतियोगिता में तीसरा स्थान प्राप्त किया था | मेरे हटाने से उसका सलेक्शन निश्चित था | सर के लिए उसका सलेक्शन जरुरी था तो मेरे लिए बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण होना |’’
‘’ अरे तुम सर की इतनी सी धमकी से डर गए |’’
‘’ डरना जरुरी था क्योंकि भविष्य में मुझे अच्छे कालेज में एडमिशन लेकर आगे बढ़ना है | मेहनत  करके दौड़ में स्थान तो मैं कालेज में भी बना सकता हूँ मगर बोर्ड परीक्षा में अंक .....!’’’
मित्र चुप था |
सुनील कुमार ''सजल'' 

रविवार, 21 जून 2015

तीन लघुकथाएं


                   तीन लघुकथाएं 

                लघुकथा – कर्मफल


बुढ़ापे के दौर में उसे बेटे ने लतियाकर घर से निकाल दिया |उसकी पीड़ा देख साथी ने कहा-‘ भैया जी कर्मफल यहीं भोगना पड़ता है | सब ईश्वर की माया है |’’
वह बोला-‘’ तुम ठीक कहते हो | मैंने दो कन्या भ्रूण का गर्भपात कराकर इसे पैदा किया था |यह उसी का कर्मफल है |’’

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                     लघुकथा- समझौता


‘’तुम्हारी पत्नी नौकरी करती है और तुम निकम्मे बने घूमते रहते हो |ऊपर से नशे का ऐब भी पाल रखा है खुद में |वह तुम्हारे इन सब ऐब को झेलकर कैसे खुश रहती होगी |’ एक ने उससे कहा |
‘’  शादी से पहले उसमें भी कई ऐसे ऐब थे जिसे लोग विवाह के मामलों में स्वीकारने से कतरा रहे थे |मैंने उन सबको अनदेखा कर उससे शादी की |इसलिए वह भी मेरे ऐब को देखकर भी मेरे संग ख़ुशी-ख़ुशी जीवन जी रही है |’
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                      लघुकथा-न सही


वे चुनाव जीत गए | जीत की ख़ुशी में उन्होंने कैलेण्डर बंटवाये |कैलेण्डर में भगवान् राम के साथ उनका भी चित्र भी सन्देश सहित छापा था | किसी ने प्रति कार्यकर्ता से पूछा –‘भगवान् राम तो अपने कर्म-धर्म से मर्यादा पुरुषोत्तम बन गए |मगर  क्या ये सत्ता में रहकर बन पाएंगे |’’
‘’ वह बोला-‘’ मर्यादा पुरुषोत्तम न सहीं | नेताओं में उत्तम तो बन जाएंगे |’’

शुक्रवार, 29 मई 2015

लघुव्यंग्य – पहुँच


                      लघुव्यंग्य – पहुँच



दफ्तर में आज अधिकारी नहीं थे | अत: कर्मचारीगण भी फाइलों को दरकिनार कर्र बरामदा में बैठे गप्पबाजी में अपना टाइम पास कर रहे थे |अचानक उनकी चर्चा में ‘चरित्र’ आ गया | उसी विषय पर चर्चा होने लगी |
 इतने में एक भिखारी आया | भीख में उसे तो-तीन रुपये मिल गए | धुप तेज थी , इसलिए कुछ देर सुस्ताने के मकसद से वहां बैठकर वह उनकी बातें सुनाने लगा |

शर्मा जी ने विषय को आगे बढ़ाते हुए कहा – ‘’ भाई !  रिया को ही देख लो | पूरे क्षेत्र के लोग जानते हैं कि नेता व् अफसरों से किस तरह के संबंध हैं उसके | अपनी देह का सब कुछ अर्पित कर देती है ...| पिछली बार बड़े कार्यालय से गाँव के लिए कितने सारे विकास कार्य लेकर आई थी .... और यह सब अपनी ‘’ त्रिया चरित्र’’ का फार्मूला अपनाकर किया था |’’ सारे  कर्मचारी हाँ में हाँ मिलाकर बातों का मजा ले रहे थे | शर्माजी आगे बोले ‘’ अभी हाल की बात है सरपंच जिस राहत कार्य की मांग को लेकर बड़े कार्यालय के दो माह से चक्कर काट रहा था , उस रिया ने उनका साथ देकर दो दिन में गाँव में राहत कार्य खुलवा दिए | जबकि सब जानते हैं उसके पास कोई राजनैतिक पद नहीं है | फिर भी इतनी पहुँच....|’’
बीच में ही मलिककह उठा- ‘’ साली बड़ी हस्तियों के बिस्तर पर....खेलती होगी |’’
 ‘’ और नहीं तो क्या..... |’’ शर्मा अपनी बात स्पष्ट नहीं कर पाया कि बहुत देर से सुन रहा वहीँ खडा भिखारी नुमा व्यक्ति बोल पडा –‘’ साब जी !आप भूल  रहे हैं बात छोटे स्तर कि या बड़े स्तर की हर जगह की राजनैतिक व् प्रशासनिक व्यवस्थाएं ‘’ पामेला’ व् मोनिका जैसी औरतों के इशारों पर नाच रहीं हैं | जिनके बदन से उड़ाते मधुर पसीने की नशीली गंध से मदमस्त हो चुका है ‘’पहुँच’ का पूरा वातावरण तो फिर अधिकारी कौन से खेत कि मूली हैं ? आखिर हैं तो साधारण इंसान न | सबकी प्रश्नात्मक दृष्टि अब भिकारी की ओर....थी |
 सुनील कुमार’’सजल’’