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रविवार, 8 नवंबर 2015

व्यंग्य – दीवाली के शुभकामना सन्देश

व्यंग्य – दीवाली के शुभकामना सन्देश


जब से पर्वों पर ग्रीटिंग्स भेजने का चलन शुरू हुआ है , तभी से ग्रीटिंग्स भेजने के तरीके भी दिनोदिन बदलते रहे हैं |जैसे कोई नेता पहले समाजसेवी बना , फिर अवसरवादी और फिर डकारवादी  या घोटालावादी बनने में जित गया |
पिछले बरस दीवाली पर हमने अपने जान-पहचान वालों व सहयोगियों को डेढ़ सौ से अधिक शुभकामना सन्देश भेजकर डाक विभाग का ‘’ डकारवादी  लाल डिब्बा’ भर दिया था | उतना ही मोबाईल सन्देश भी भेजा था | परन्तु उसके एवज में हमें मात्र दस प्रतिशत शुभकामना पात्र व मोबाइल सन्देश प्राप्त हुए थे | इस पत्नी ने चिढ़कर कहा था –‘’ जिन्हें तुमने शुभकानाएं भेजे थे , उनकी नज़रों में तुम ठीक उस गाय की तरह हो , जो पालक को दूध उपलब्ध नहीं कराती या देती भी है तो छटांक पाँव ही |’’
परन्तु इस बार उसकी चेतावनी मेंमुच्छड़  या किन्तु कुख्यात थानेदार की तरह रौब था, -‘’ सुनो जी, अब की बार उन्हीं दस प्रतिशत लोंगो के पास ही शुभकामनाएं भेजना , जिनकी नजर में तुम ‘आदमी ‘’ हो | समझे...|’
  हमने भी किसी आज्ञाकारी मालिक भक्त ‘कुत्ते’ की तरह सहमति की दम हिलाकर उन्हें संतुष्ट किया |
 दीवाली बहुत करीब है | कुछ लोगो के , जिनकी नज़रों में हम आदमी हैं , शुभकामना सन्देश प्राप्त हुए हैं | मैं तो इन्हें पढ़कर खुश हूँ क्योंकि मैंने उन्हें अभी तक शुभकामना सन्देश भेजे ही नहीं हैं और इनकी नज़रों में कम से कम खुद के आदमी होने का आस्तित्व देख पा रहा हूँ | हालांकि निजी निजी डाक सेवा या मोबाइल सेवा के माध्यम से उन्हें शुभकामना सन्देश भेजने में तनिक भी कोताही नहीं बरत सकता वरना अगली बार उनकी नज़रों में आदमी होने का आस्तित्व .....?
 खैर छोडिए !कुछ ग्रीटिंग्स कार्ड व मोबाइल सन्देश  मुझे भी प्राप्त हुए हैं | उनमे उन्होंने क्या लिखा है उसकी कुछ बानगी आप भी पढ़ लें
पहली शुभकामना | उनसे प्राप्त हुई , जो किसी जमाने में हमारे लंगोटिया यार थे | जो पहले थैले में पूरा अस्पताल लेकर चलने वाले डॉक्टर बने |उससे मन ऊबा तो स्कूल के मास्टर बन गए | इसमें धन-मन का ज्यादा जुगाड़ पानी न देख तुरंत अपने को गिरगिट के सांचे में ढालते हुए ज्योतिषी बन गए | आजकल ‘’ लक्ष्मी’ प्रसाद बैकुंठ वाले बनकर लोगो को खूब उल्लू बना रहे हैं |इन्होने अपने शुभकामना सन्देश में लिखा है, ‘’ मित्र सजल , इस वर्ष दीवाली के ग्रह- नक्षत्र आपको लतखोरी , पड़ोसन से नजरें मिलाने के बाद उपजे जूतम-पैजार वाले विवाद व चोरी- चकारी जैसे कारनामों से मुक्त कर ‘’ आदर्श आदमी’ की गरिमा प्रदान करें |
अपने बारे में यह सब पढ़कर एक पल के लिए हमें ऐसा लगा, जैसे किसी ने हमें लोरोफार्म सुंघा दिया हो पर हम संभले| होश में आए और सोचने लगे कि यह क्या , हम तो उस दब्बू कुत्ते की भांति हैं , जो बंद गेट के आँगन में खड़ा होकर भौंकता है | किसी ने उसे डराने के उद्देश्य से हाथ की ज़रा भी हरकत की नहीं कि वो सीधा घर के कक्ष में दुबक जाता है | फिर ज्योतिषी ने यह कैसे लिख मारा | पर सोचा कि माफ़ कर देने में भलाई है वरना अगले साल उनकी ग्रीटिंग ......?
 दूसरा कार्ड हमें उस औरत का प्राप्त हुआ , जो पिछले दिनों ट्रेन यात्रा के दौरान कम जगह वाली सीट पर बैठकर यात्रा करते वक्त मुझसे सटते- सटते एक अजनबी से दोस्त बन गयी थी | उसने लिखा, -‘’ दोस्त , इस वर्ष दिवाली आपकी मोहब्बत की अँधेरी जिन्दगीं में प्यार की फुलझडिया रंगीन चिंगारी बनकर रोशन करे |कहें तो ‘हाथ’ में दीप लिए हम भी खड़े हैं , तुम्हें भिजवा दें |’’ कलेजा धक् से बोला | अच्छा हुआ कि सन्देश पर पत्नी की नज़रों ने दौड़ नहीं लगाई वरना हम आगे-आगे औए वह बिफरे सांड की तरह ... वह हमारे पीछे होती | हमने उस सन्देश को तुरंत ‘ कागज के दिल ‘ की तरह टुकड़े – टुकड़े कर दिए |फिर राहत की लम्बी सांस खीचकर खुद को शुक्रिया अदा किया |
तीसरा सन्देश हमें उस महान हस्ती का प्राप्त हुआ , जो सरकारी दफ्तरों के ‘ बाबू जगत’’ में काले नाग के नाम से कुख्यात हैं | जैसा नाम, वैसा ही उसका काम है यानी यदि किसी कर्मचारी ने उसे उसकी ईच्छानुसार रिश्वतरूपी दूध नहीं पिलाया तो समझ लीजिए कि उसके सारे क्लेम्स दीमकों से भरी आलमारी के मरघट में दबपचकर मिटटी होना तय है | उन्होंने लिखा, ‘’ सजल भाई, हमारी कृपा से यह दिवाली आपके रुके-फंसे क्लेम्स निकालने की अनुकूलता बनाकर आए , हार्दिक शुभकामनाएं |’’ उनका सन्देश पढ़कर हम बहुत खुश हुए , ठीक उसी तरह , जैसे किसी सुंदरी का रूप देखकर दर्पण में न समाने पर खुश होते हैं | चलो नाग हमारे लिए नाथ तो बन गया वरना हरामी ने न जाने कितनों को अपने भ्रष्ट दंतों से डसा और लोग आज तक उसका इलाज नहीं ढूंढ पाए | हम ख़ुशी से रसगुल्ले की भांति फूले पत्नी को सन्देश दिखाते हुए बोले ‘’ देखो जानी, बाबू जगदम्बा अपने ऊपर पहली बार खुश हुआ | अब अपने क्लेम्स शीघ्र निकलेंगे और तुम एक बड़ा सा लाकेट बनवा लेना | फिर तुम हमें उल्लू का पट्ठा के बजे पति परमेश्वर कहने से खुद को रोक नहीं पाओगी |’’
‘’ अच्छा ! जो लिखा है , उसे ज़रा गौर से पढो |’
पत्नी गुर्रायी और हम सकपकाए |
‘’ भाग्यवान ! पढ़ लिया है , तभी तुम्हें दिखाने लाया हूँ |
‘’ क्या पढ़ा ? पढ़ा तो कुछ समझे ....? लिखा है ‘’ हमारी कृपा से... | इसका मतलब समझते हो | बेवकूफों की तरह खुश होकर फूलकर मारे ख़ुशी के कुप्प हो गए |’’ पत्नी की भौंहे तन चुकी थी |
‘’ अरे ठीक ही लिखा है ... उसकी कृपा से ही तो क्लेम्स पास होंगे ना ! और क्या ....?’’ हमने उन्हें समखाने का प्रयास किया तो वह बोली , ‘’ आपके दिमाग में गोधन का गोबर भरा है क्या ? अच्छा यही है कि अपनी मास्टरी मेरे नाम कर दो | उसने साफ़ संकेत दिया है कि पहले परसेंट तय करो , फिर क्लेम् लो | यही है उसकी कृपा व अनुकूलता का अर्थ | अब कुछ समझे ? ‘’ हमारा दिमाग चकराया | कठिन से कठिन रचनाओं के गड़े मुर्दे की तरह अर्थ निकालने वाले हम भला आज समझ में कैसे गच्चा खा गए | खैर छोडिए , शिक्षक, विद्वान होते हुए भी जिंदगी भर छात्र ही होता है |
  चौथा शुभकामना सन्देश हमें उन नेता जी से प्राप्त हुआ जो हमारे स्कूल में पकाने वाले मध्यान्ह भोजन की गंध सूंघते हुए जब-तब चले आते हैं , यह जानने के लिए कि भोजन मीनू के अनुकूल पका है या नहीं और फिर 10- 20 किलो चावल-दाल का मूल्य ‘ प्रकरण दफ़न शुल्क ‘ के रूप में ग्रहण कर मुस्कराते हुए धन्यवाद दे जाते हैं | उन्होंने क्या लिखा है अपने शुभकामना सन्देश में ज़रा आप भी जान लें , ‘’ गुरूजी , खूब खाओ,खूब पचाव , दिवाली में मौज मनाओ | बस इतना रखना हमारा ध्यान जब पधारें शाला में आपकी , भूल न जाना कराना कमीशन का जलपान | दिवाली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आपका खटपट लाल , पंचायत चुनाव का भावी सरपंच प्रत्याशी |’’
उनके सन्देश में दो बातें दोमुहें सांप की तरह स्पष्ट थी | अत: सरकारी नौकर होने के नाते सरकारी क्षेत्र में इन दो बातों का महत्त्व हम अच्छी तरह समझते हैं | अत: गलती न होने की संभावना पर शक न करें |
पांचवा और अंतिम सन्देश उस व्यापारी से मिला था, जो ‘’ अलाटमेंट ‘ की प्रतीक्षा के वक्त दफ्तर की कई – कई योजनाओं की ऐसी-तैसी करने के लिए उधारी में स्टेशनरी , दाल , नमक, तेल, 5 परसेंट अधिक कीमत पर व फर्जी बिल उपलब्ध कराकर ‘’ गुरु सेवा ‘ कर बाकायदा सहयोग प्रदान करता रहा है | बेचारे ने शब्द तो नहीं गधे पर एक चित्रमय कार्ड के साथ उधारी के बिल अवश्य ही चिपका रखे थे , जो मैं आपको विस्तार से तो नहीं बता सकता | इज्जत का सवाल है भई | इज्जत बची रहे , इसलिए दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं |

                           सुनील कुमार ‘’ सजल’’ 

मंगलवार, 3 नवंबर 2015

व्यंग्य – मीठी वाणी का जादू

व्यंग्य – मीठी वाणी का जादू


लोग कहते है कि अधिक मिठास का अंत होता है | लेकिन अपना मानना है कि मिठास दो दिलों को जोड़ती है | सोचिए, प्रेमिका को पहले मिलन में क्या खिलायेंगे ? समोसा या नमकीन ? वह कहेगी,-‘’ समझदार है , भावनाओं का क़द्रदान है |’
अपवाद स्वरूप प्रेमिका डायबिटीज हो तो मामला अलग है | वरना वैज्ञानिक कहते हैं कि चाकलेट पर तो लड़कियां रीझती हैं | प्राचीन हो या आधुनिक संत मीठी वाणी की पहल करते हैं |फिर जाने क्यों कुछ लोग कतराते हैं मीठी वाणी से | शायद उनका मानना है कि नीम वाणी बिमारी सरीखी समस्याओं का हल है , इसलिए शायद वे खुद कड़वा बोलते हैं | हमारी जवान पड़ोसन है | मीठी वाणी की जादूगरनी है | जवान तो जवान , बूढ़े भी फ़िदा रहते हैं उसकी वाणी पर | अपनी कोयलिया कू-हूँ से अकड़ को भी कब्जे में कर लेती है | शान-सौकत प्रेमी से मजदूर की भांति काम करा लेती है
एक बार मेरे पास दूर प्रदेश से फोन काल आया | टेलीशापिंग कंपनी का कॉल था | चतुर कम्पनियां ग्राहक फंसाने के सारे गुण बखूबी जानती है | अत: वे मीठी आवाजों की अपने काल सेंटर अतैन्देंत बनाती है |
‘’ जी , मैं टॉप पोल टेलीशोप से अंशुल बोल रही हूँ | ‘’ वह बोली ‘’ जी कही |’’ मैंने कहा| ‘’ सर आपने फोन किया था |’’
जी नहीं |’’
‘’ हो सकता है, बच्चों ने या आपकी मिसेज ने किया हो |’’
‘’ हो सकता है | पता करूंगा |’’
खैर जाने दीजिए | सर एक बात कहूं...|’’
‘’ कहिए|’’
क्या मैं आपके कीमती वक्त में से कुछ समय ले सकती हूँ |’’
हाँ-हाँ क्यों नहीं |’’
‘’ आप व्यस्त नहीं हैं न सर |’’
‘’ जी नहीं, फुर्सत में हूँ |’’
हम उसकी जादुई आवाज पर ऐसे फ़िदा हुए , जैसे खूबसूरत चहरे पर कोई सिरफिरा |
‘’ सर , आप अपना नाम बता सकते हैं ...|’’
‘’हाँ बिलकुल | जी नोट कीजिए ... सुनील |’’ ‘’
‘’ सर आप किस शहर में रहते हैं ?’’
‘’ मैं म.प्र. के मण्डला जिले से |’’
‘’ जी धन्यवाद सुनील जी | हमारी कंपनी एक से बढाकर एक मार्डन प्रोडक्ट लांच करती है |सर, बच्चों के खिलोने, लेपटॉप, सस्ती दरों पर घरेलू सामग्री , मोबाईल इत्यादि , जो आपकी जिंदगी बदल देंगे सर |’’
‘’ जी |’’हमने कहा |हमें उनके प्रोडक्ट्स से कुछ लेना – देना नहीं था | हमें तो बस उसकी वाणी प्रोडक्ट बेहतरीन लग रही थी |बातों का सिलसिला न टूटे , इस पर हम पूरी तरह चौकन्ने थे |
‘’ सुनील जी, हमारे प्रोडक्ट माँगने के लिए हमारे टोल फ्री नं.०००००००००  पर आपको सिर्फ एक कॉल करनी होगी और बस, 72 घंटे के अन्दर प्रोडक्ट आपके हाथ में होगा | सर जी, आपको इस समय प्रोडक्ट की कीमत और 100 रुपये वाहक को देने होगें | सर , क्या मैं आपकी पसंद का आर्डर नोट कर सकती हूँ |’’ उसका सुरीलापन सुनकर मन हुआ कि हाँ कह दूं पर बातों को अभी लंबा खीचना था |’’
‘’ मगर मैडम ! एक बात कहें ....|’’
‘’ कहिये सर |’’
‘’हमने सुना है किआप लोग प्रोडक्ट के स्थान पर कागजी कतरनें व पत्थर भेज देते हैं |’’
‘’ जी आपकी शिकायत गलत है | आप हमारी कंपनी की वेबसाईट व टेली विज्ञापनों में भी देख सकते है | कहीं कोई फ्राडबाजीनहीं है | आप लोग हमारी कंपनी के नाम से मिलते –जुलते नाम वाली कंपनी द्वारा ठगे गए होंगे | हमारी कंपनी ‘’ आई.एस.ओ .-9001 ‘’प्रमाणित कंपनी है | अब तो विशवास करेंगे न सर | आप कोई आर्डर देना चाहेंगे सर ?’’
‘’ पर हम कैसे विशवास करें मेडम कि आप हमारे साथ ठगी नहीं करेंगी ?’’
‘’ नहीं सर ठगी नहीं हो सकती प्लीज मेरा विशवास कीजिए |’’
और ठगी हुई ति....|’’
‘’ विशवास कीजिए सर | मैं आपको कैसे विशवास दिलाऊं सर ? ‘’ उसने कहा |
‘’ ठीक है आप कहती हैं तो विश्वास करना ही होगा |पर.....|’’
‘’ पर का अर्थ नहीं समझी सर |’’
‘’ पहले अपनी घरेलू जरुरतों  को देख लूं | फिर आर्डर करूंगा |’’
‘’ लगता है सर आप अभी भी भ्रमित हैं | आपका आर्डर बताइए  न सर |’’
‘’दो दिन बाद मेडम |’’
‘’ सर क्या है कि हमारी कंपनी डिस्काउंट स्कीम चला रही है | प्रत्येक प्रोडक्ट पर 50 प्रतिशत डिस्काउंट मिलेगा | सर आपको | इसका लाभ उठा लें | बाद में 20 प्रतिसत महंगा मिलेगा | और सर हर सामग्री पर 6 माह की वारंटी भी मिलेगी |’’
‘’ ठीक है कहती हैं तो .....|
‘’ थैंक्यू सर | क्या मंगाना चाहेंगे ?’’
‘’ मोबाइल |’’
‘’ लाख-लाख थैंक्यू सर |’’
    उसने हमारा पता पूछा , मोबाइल का मॉडल पूछा और ऑर्डर नोट किया | हमें मोबाइल  प्राप्त भी हुआ | पर ये क्या | हम महीने भर बाद से ही मोबाइल को लेकर माथा पीट रहे हैं | इसी कीमत में बाजार में मोबाइल मिल जाता कम से कम साल भर माथा पीटने की नौबत तो नहीं आती | जनाब मीठी वाणी का जादू ऐसा ही होता है | शेर को भी बकरी बनाया जा सकता है , चरवाहा बनकर उसे गली-गली चराया जा सकता है , जंगल के राज उगालाये जा सकते हैं , गोपनीयता भंग कराई जा सकती है , सत्ता में विद्रोह कराया जा सकता है , विद्रोहियों को पक्ष में लिया जा सकता है | तो क्या आप इतने काम के बाद भी कहेंगे, ‘’ मिठास का अंट कड़वापन होता है |’’

              सुनील कुमार ‘’सजल’’

रविवार, 1 नवंबर 2015

व्यंग्य – कलियुग में लक्ष्मी प्राप्ति का ‘’ बीज मंत्र’

व्यंग्य – कलियुग में लक्ष्मी प्राप्ति का ‘’ बीज मंत्र’



लक्ष्मी किसे नहीं सुहाती ..... हर कोई चाहता है लक्ष्मी जी उसके घर में हमेशा विराजी रहें | मगर अफ़सोस इस बात का है कि इस कलियुग में वह वहीँ विराजती हैं जहां दिखावे की चकाचौंध हो, जहां देसी संसकृति को कूदा- करकट की भांति नालियों या कचरे के डिब्बे में फेंककर पश्चिमी सभ्यता से सजी जगमग सजावट हो, जिस घर में रहन-सहन , बोलचाल , खानपान सब कुछ आधुनिक हो गया हो , जहां भ्रष्ट, लुटेरे, घोटालेबाज ,रिश्वतखोर बसते हों |
 झोपडपट्टी , मिट्टी के घरौंदे आज भी पुरातन संसकृति को बोझ की तरह ढो रहे हैं , जैसे उल्लू लक्ष्मी जी को सवारी देता है | लक्ष्मी जी को ऐसे घरों से विरक्ति है , इसलिए यहाँ गरीबी की भिनभिनाती मक्खियाँ बसती हैं ,’’ अमीरी’’ की खुश्बूनुमा हवा शायद ही इन्हें नसीब होती है |
 हम भी चाहते थे कि हमारी भी गरीबी दूर हो | हम भी बड़े लोगों की तरह सपने देखें | अभी मूंगफली के दानों पर टूट पड़ते हैं , लक्ष्मी जी की कृपा से अमीरों की तरह काजू – किसमिस , बादाम , पिस्ते की प्लेट सरकाएं | इसी तारतम्य में हमने सुन रखा था , कि ‘’ लक्ष्मी यज्ञ ‘’ या ‘’ लक्ष्मी-जाप’’ करवाने पर लक्ष्मी जी की कृपा श्रद्धालु  पर बरसने लगती है | श्रद्धालु कंगाल से मालामाल हो जाता है |
हालांकि टी.वी. में तरह –तरह के ‘’ तेली शापिंग के विज्ञापनों में सुनते रहते हैं अमुक लक्ष्मी यन्त्र , सिक्का कैसेट मंगवाने पर घर में धन की वर्षा शुरू हो जाती है,पर अपनी औकात कहाँ जो पांच-हजार , दस हजार के विज्ञापनों में दिखाई गयी सामग्री बुला सकें | अगर अपनी उन सामग्रियों को बुलाने की औकात होती तो अपन गरीब ही क्यों कहलाते ? खैर छोडिए , धन की चाह में चासनी में रस्गुल्ले  की भांति डूबते – उतराते हम एक पंडित जी से मिले | सुन रखा था वेलक्ष्मी प्राप्ति तंत्र – मन्त्र के ज्ञाता है | हमने पंडित जी से कहा- ‘’ पंडित जी, दीपावली आ रही है | कुछ ऐसे उपाय बताइये , जिससे हमारी औकात अमावस की काली रात से जगमग दीपावली हो जाए | उन्होंने हमारे माथे की रेखाओं को निहारा | हाथ खुलवाकर हथेली में कुछ देखा , नाखूनों को अँगुलियों से दबाया | उन्हें जाने क्या दिखा और एक पल को आँख मूंदकर ‘’ दूरदर्शी की भाँती कुछ जानने का प्रयास किया | फिर पलकें हौले से खोली और बोले- ‘’ तुम्हारे दिन प[अलाट सकते हैं , जैसे कूड़े के दिन बदलते हैं , ठीक वैसा ही समझो |
‘’ मुझे क्या करना होगा पंडित जी ?’’
हमने दोनों हाथ जोड़ लिए जैसे भक्त मूर्ति के समक्ष खड़े होकर सावधान की मुद्रा में भक्तिमय हो जाता है |
‘’ ज्यादा कुछ नहीं , पूजा-पाठ करवाकर हमें गौदान करना होगा |’ उन्होंने इतने सहज भाव से कह दिया जैसे किसी बच्चे ने चाकलेट-टॉफी मांगी और अपन ने दिलाने को कह दिया |
‘’ मगर पंडित जी , न हमारे पास गाय है न बछड़े | और न ही अपने पास इतना धन है कि गौ खरीदकर दान कर सकें | इसलिए ऐसा कोई उपाय बताइये जिसमें हर्रा लगे न फिटकरी और रंग चोखा हो जाए |’’
वे हमारी बात सुनकर ऐसे हँसे जैसे कोई पागल को देखकर हंसता है –‘’ बेटा , लक्ष्मी खर्च किए बगैर हाथ में आती क्या ?’’
‘’ ठीक है पंडित जी, चलो हमने कहीं से उधार लेखर पूजा पाठ व गौदान की व्यवस्था कर भी ली, और अगर धन नहीं मिला तो |’’ हमने कुछ शंकाओं को व्यक्त किया तो वे झट से प्रत्युतर में बोले – ‘ बच्चा भगवान विश्वाशी पर कृपा करते हैं , और तुम्हारे कर्म-धर्म दान पुण्य के लेखा के आधार पर ‘लक्ष्मी वर्षा , लक्ष्मी जी की प्रसन्नता पर निर्भर है | प्रसन्न हुई तो चंद महीने में कृपा से धन ही धन हो जाएगा घर में | वरना पुन: मनाने के प्रयास करने होंगे |’’
‘’ पंडित जी , आप तो सट्टे के खेल की भांतिआर-पार की बातें कह रहे हैं यानी धन लगाओ , नंबर लग गया तो हो गए मालामाल वरना जैसे पहले थे वैसे आज भी कंगाल |’’
पंडित जी की घुमाने – फिराने वाली बातों से जब हमें संतुष्टि नहीं मिली तो हमने उनसे पल्ला झाड़ते हुए उनको नमस्कार कर लिया | मगर वे भी कम गुरु नहीं थे | वे अंत तक बोलते रहे- -‘’ बेटा , हमारी बात मां लो वरना पछताओगे ....|’
पर हम क्या पछताते , हम उनसे छुटकारा पाकर एक संत जी श्री-श्री विभूति महाराज के पास पहुंचे | वे पास के मंदिर में शरण लिए हुए थे |हमने उनके चरण स्पर्श कर उन्हें प्रणाम किया | इस समय वे अकेले गांजे के धुएँ से तन-मन को नहला रहे थे | भोले के प्रसाद मदमस्त होते हुए वे हमें देखकर मुस्कुराए और एक ओर बैठने का ईशारा करते हुए बोले-‘’ बोलो बच्चा , कैसे आना हुआ ?’’
    हमने दोनों हाथ जोड़े उनसे कहा – ‘’ बाबा जी, आप तो जगत उद्धारक हैं.... हमने कई बार आपको भक्ति चैनलों में देखा है | आप हर समस्या का निदान जानते हैं .... इसी क्रम में हम भी आपके पास एक समस्या लेकर आए हैं यदि आपकी कृपा हो तो कहूं |’’
‘’ कहो न बच्चा , क्या कष्ट है...हमने तो कष्ट हरने  के लिए ही संन्यास धारण किया है, भगवा वस्त्र अपनाए हैं |’’
‘’ बाबा , इन दिनों हम गरीबी लाचारी से परेशान हैं ... मेहनत करते हैं पर वह धन प्राप्त नहीं होता जिससे कुछ बचत हो सके ... हमने दर्जनों पंडितों ज्योतिषियों के उपाय आजमाए पर गरीबी से छुटकारा नहीं मिला |’’
‘’ तुम क्या करते हो बच्चा |’’उन्होंने हमसे पूछा और एक पात्र में राखी कंडे की राख ( भभूति ) , एक चुटकी लेकर हमारी ओर बढ़ायी | बातों ही बातों में खाने का ईशारा किया |
‘’ सरकारी दफ्तर की कुरसी पर बैठता हूँ ... पर धेला भी ऊपरी आमदानी नहीं होती ... सूखी तनख्वाह से भला इस जमाने में गुजारा कहाँ होता है ?’’
‘’ बच्चा कुछ न कुछ अवश्य ही कमी है तुम्हारी करनी व कुव्वत में |’’
‘’ मगर संत जी हमने ढेरों उपाय किये पर सफलता नहीं मिली .... और अब क्या कमी हो सकती है |’’
‘’ तुम ईमानदारी से नौकरी करते हो बेईमानी से |’’
‘’ जी, बेईमानी तो मेरे संस्कार में नहीं है |’
‘’ समझ गया, तेरे अफसर तुझे खाने के मौके क्यों नहीं देते | बच्चा तुझे आज एक बीज मन्त्र बताता हूँ .... इस कलियुग में इसी का बोलबाला है धरती से लेकर आसमान तक के देवता इससे खुश होकर कृपा करते हैं |’’
‘’ जी...जी बताइये... जैसा आप कहेंगे वैसा ही करूंगा इसके लिए मुझे कुछ भी कष्ट सहना पड़े |’’
‘’ बच्चा तुझे कष्ट उठाने की जरुरत नहीं बल्कि हमारे चित्र के सम्मुख बैठकर एक माला हमारे दिए मन्त्र की जपना है और मनन करते हुए कहना अपने मन को मन्त्र के अनुरूप बनने के विचार करना है |’’
‘’ जी....| ‘’ कहकर हमने उनके चरण पकड़ लिए |
‘’ बच्चा इतने उतावले न बनो...बताता हूँ|’’ कहकर संत जी कहने लगे ‘’ ईश्वर मुझे बेईमान , बना दो .... मैं बेईमान बन गया... भविष्य में भी बेईमान बनाता चला जाउंगा | ऐसा कहते हुए 108 बार इस मन्त्र को जपते हुए स्वयं को ढालना है |’’
‘’ संत जी ये क्या कह रहे हो ?’’
‘’ बच्चा तू अभी नासमझ है.... तू जानता है लक्ष्मी जी की सवारी उल्लू क्यों है ? नहीं न .....तो जान ले लक्ष्मी यानी धनवान गरीबों मजबूरों इमानदारों पर राज करते हैं जो उल्लू के प्रतिक हैं और लक्ष्मी उनके पास है जो बेईमान , रिश्वतखोर , घोटालेबाज हैं | अब तो समझ गया होगा |’
‘’जी बाबा जी ‘’ कहकर हमने पुन: उनके चरण स्पर्श किये | बाबा जी खुश हुए | हमने आगे कहा –‘’ पर बाबा जी आप अध्यात्म ज्ञान से हटाकर यह कलयुगी ज्ञान क्यों बाँट रहे हैं ?’’
‘’ बच्चा, इस युग में जो ज्ञान मानव हित में है हम वाही ज्ञान बांटकर भलाई करते हैं | और बच्चा तुमने कुछ दिन पूर्व अखबारों व मीडिया चैनलों में ‘बाबाओं’ की करतूत ‘ स्टिंग आपरेशन से जुड़े प्रोग्राम में देखि होगी | सारे के सारे बेईमानी व बेईमानों को आश्रय देने वाले निकले | तो हम कलयुग का अदभुत ज्ञान देकर कौन सा बुरा काम कर रहे हैं | अध्यात्म व भक्ति को गेरुआ चोला तो आकर्षण का केंद्र बनाने के लिए है | मगर असली भलाई अदभुत शिक्षा देने में है | समझा बच्चा |’’
‘’ जी बाबा जी, आपके इस अदभुत ज्ञान का आभारी हूँ | अच्छा बाबा जी अब जाते-जाते ऐसा आशीर्वाद दें ताकि मैं अपने कर्म क्षेत्र में सफल रहूं |’’ जैसे ही हमने उनके चरणों में अपना माथा टिकाया उन्होंने लोहे के चिमटे से हमारी पीठ ठोंकी –‘’ खुश रहो , तरक्की करो |’ और हम भीड़ में से प्रसाद पाए बच्चे की तरह ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट आए |

                   सुनील कुमार ‘’सजल’’

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

व्यंग्य – नुस्खों का नायक

व्यंग्य – नुस्खों का  नायक

पेट के रोग यानी गैस , कब्ज से हम कई दिनों से परेशान थे, जिसने जैसा बताया हम उस डाक्टर के पास जाकर जल्दी ठीक कर देने हेतु अपनी नाक रगड़ते रहे | रोजाना वैद्याराजो से लेकर नीम हकीमों के साथ टी.वी. प्रोग्राम देखकर उन्हें आजमाने का युद्धस्तर पर प्रयास करते रहे |अंतत: हम हार गए और गिरफ्तार सैनिक की तरह निराश हो गए परन्तु एक दिन हमारे दिमाग में ज्ञान का बल्ब पूरे वोल्टेज में जगमगाया क्यों न बच्चू तू खुद तरह तरह की किताब पढ़ नुस्खे आजमाकर विशेषज्ञ बाब जा | हमारे देश के अधिकाँश नीम हकीम ऐसा कर चिकित्सा व्यवसाय में महारथ हासिल कर रोगियों की जेब से आसानी से नोट के पुलिंदे निकालकर दुनिया में बाजी मार रहे हैं | और तू मूर्ख अभी भी डाक्टरों के डर पर बैठे पेट फुलाने पिचकाने की गोलियां मांग-मांगकर हताश हुआ जा रहा है |
 अब तो हमें  गैस कब्ज रोग विशेषज्ञ बनने का का भूत सवार था | निकल पड़े उस मार्केट की और जहां गंदे साहित्य से बजबजाती दुकानों से लेकर सात्विक साहित्य तक की दुकाने सजी थी | दुकान में पहुँच कर विभिन्न प्रकार की रोग दर्शन वाली किताबों को उलट पुलटकर देखा | कुछ पुस्तकें पसंद भी आयी | मसलन गैस कब्ज भगाओ, डा. संभारिलाल के अचूक गैस कब्ज के नुस्खे | ये सारी पुस्तके पसंद भी आयी | मसलन गैस कब्ज के नुस्खे | ये साड़ी पुस्तकें मात्र पचास रुपया खर्च कर हमारी मुट्ठी में अलाउद्दीन के चिराग की तरह आ गयी | | हम बहुत खुश हुए जैसे किसी कंजूस पेटू को बफर पार्टी में खाने का मौक़ा मिल जाए |
हमने सिलसिलेवार पुस्तक पढ़ना प्रारम्भ किया | कुछ नुस्खे समझ में आते और कुछ तो सर के ऊपर से पवन चक्रवात की तरह घूम-घूमकर हमारी समझ क्षेत्र से गायब हो जाते | कुछ ऐसी जड़ी-बूटियों का उल्लेख भी मिला, जिन्हें पूछने पर पता चला हमारे बाप दादा ने भी इनके बारे में कभी नहीं सूना था | खैर जो बात हमारी समझ में आई उसे आपको भी सुना देते  हैं | शायद आपको भी काम आ जाये |
·         एक कौर ( निवाला) भोजन से पच्चीस बार चबाइये|
·         *भोजन के बीच घूँट-घूँट कर पानी अवश्य पियें | इससे भोजन पचने में आसानी होती है |
·         *भोजन के बीच में ज़रा भी पानी न पियें | यह जहर का काम करता है | भोजनोपरांत एक दो घूँट पीकर करीबन घंटे भर बाद पानी पीजिए |
·         *दिन भर में करीबन तीन चार लीटर पानी पीजिए पर ध्यान रहे अधिक पानी पीना मोटापा बढ़ता है |
·         स्लिम बदन के लिए पानी खूब पीजिए | गैस कब्ज में लाभकारी होगा |
·         मसालेदार खान पान से दूर रहें |
·         उपवास से गैस कब्ज दूर भागत हैं |
·         गैस के रोगी खाली पेट बिलकुल न रहे |
इन निर्देशों के अलावा कुछ जड़ी बूटी ग्रहण करने की बात कही गयी थीं|जिन्हें ढूँढने में दो जोड़ी चप्पलें घिस गई | फिर भी जो प्राप्त थी उसे बाकायदा फांक रहे थे , लेकिन दिए निर्देशों के पालन में हम जगह जगह गच्चा खा जाते |एक निर्देश को आजमाते तो दूसरा निर्देश अंगुली उठाकर कहता महसूस होता, उसे आजमायेगा तो बीमारी रेल की तरह पटरी पर बढ़ेगी या भारतीय पक्की सडकों की तरह जगह जगह उखाड़कर छोटी होगी | हम ठर्रा जाते | दूसरे निर्देशों पर आ जाते तो तीसरा आँख गुरेरता | कुल मिलाकर हम खुद को संभालते हुए थे |
एक दिन पत्नी हम पर गुस्सा उतारती हुई बोली- ‘’ तुम दफ्तर पहुचने में लेट क्यों होते हो कारण बताओ |’’
‘’ बताओ इससे अच्छी बात हमारे लिए और क्या हो सकती है |’’ हमने कहा |
‘’ घंटा भर तक पशुओं की तरह भोजन की जुगाली करते हो उसमें तुम्हारा ऊओरा घंटा बर्बाद होता है | ‘’ वह गुस्से में अपने मुख मण्डल का नक्शा बिगाड़ते हुए बोली |
‘’ पेट से परेशान हूँ.....इसलिए वैद्यों के बताये निर्देशों पर खाना पीना ग्रहण करता हूँ | ‘’ हमने शांतिपूर्वक कहा |
‘’तुम पेट से प-रेशन हो...और हो भी कि नहीं मुझे तो विशवास नहीं होता, लेकिन मैं तुमसे जरूर परेशान हूँ |’
अब उनके मुख मण्डल का का नक्शा और भी ज्यादा विकृत हो गया था | हम डर गए किकहीं विभाजन रेखा न खीच जाए पर यह नौबत न लाते हुए वह थोड़ा गंभीर वाणी से बोली-‘’ऐ जी तुम्हे यह क्या हो गया .... कभी खाना खाने के बीच में लीटर भर पानी पी जाते हो ...कभी तेज मसाले
वाली सब्जी माँगते हो तो कभी पतली रोटी और बिना मसाले वाली सब्जी और मोती रोटी मांग कर मुझे रोने पर मजबूर कर देते हो |कहीं किसी ने तुम पर टोना-टोटका तो नहीं कर दिया | जो तुम इस तरह की हरकत कर रहे हो | थारो कल भीखू ओझा को बुलवाकर तुम्हारी झाड़फूंक करवाती हूँ | ‘’ वह कुछ रुंसी हुई तो हमने उन्हें सामान्य्होने को कहा –‘’ अरी भाग्यवान तो परेशान न हो | हमें कोई भूत प्रेत नहीं लगे हैं | बल्कि लायी हुई पुस्तकों का गहन अध्ययन कर गैस कब्ज विशेषज्ञ बनने का अनुभव प्राप्त कर रहे हैं ... ताकि उन नीम हकीमों की तरह खूब धन ....|’’ तभी वे बीच में बोल उठी | क्या कहा .....पहले खुद का पेट तो ठीक तो कर लो ...|’’
‘’ तुम परेशान न हो... मैं धीरे – धीरे ठीक हो जाऊंगा |
‘’ परेशान क्यों न होऊं ... तुम्हारी हरकतों ने तो मेरी नाक में दम कर रखा है ... अब तुम सुधर जाओ वरना तुम्हें सुधारने का बीड़ा उठाऊं |’’
‘’ देखो तुम मेरे मामलों में टांग न अडाओ| ‘’ उसकी दी चुनौती हमसे बर्दाश्त न हुई |
‘’ क्या मैं टांग अड़ा रही हूँ .तो फिर अब अड़ाकर रहूँगीं | ‘’ और झट से हमारी नुस्खों वाली किताबों को उठाकर ले आयी | और टुकड़े-टुकड़े करने में जुट गयी जैसे कोई पागल प्रेमी दिल के अरमानों को टुकड़े-टुकड़े कर देता है |
हम सर पर हाथ रखकर बैठ गए ||इसी बीच इनकी इस चुनौती पूर्ण कारगुजारी को ललकारने का प्रयास किया तो उन्होंने अखबार के उस पन्ने को लाकर हमारी आँख के पास टिका दिया, जिसमें लिखा था –‘’ महिलाओं की सुरक्षा हेतु घरेलू हिंसा क़ानून को सदन की सहमति मिली |’’
                     (2010 में विनायक फीचर्स से प्रकाशित)

            सुनील कुमार ‘’सजल’’ ... 

शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

व्यंग्य- आधुनिक गुरु के तर्क

व्यंग्य- आधुनिक गुरु के तर्क


पिछले दिनों सरकार ने शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए सख्त आदेश जारी किए | कारण , गिरते परीक्षा परिणाम , बदहाल शाली व्यवस्थाएं ,,लापरवाह शिक्षकों को सुधारना था | अत: दखल देने का अधिकार जनता , सरकारी अधिकारी व जनप्रतिनिधि  के हाथ में सौप दिया |
 अपने दीनदयाल मास्साब ने मास्टरी के बीस साल गुजार दिए पर ऐसी स्थिति नहीं देखि किशिक्षकों को कोल्हू का बैल बना दिया गया हो , इसलिए वे आदेश पाकर कुढ़ उठे | बोले-‘’ यार, सरकार व जनता शिक्षकों के पीछे क्यों पड़ी रहती है |
‘’ वह देश के भविष्य  का निर्माता है |’’ मित्र ने कहा |
‘’ ये तो अब पुराना नारा हो गया |’ वे बोले |
‘’ऐसे कैसे पुराना हो गया |’ मित्र का कहना था |
‘’ सही तो कह रहा हूँ | अब देश का भविष्य शिक्षक नहीं, राजनैतिक पार्टियां बनाती है | असेम्बली में अपने आदमी पहुचाती है जिसके लिए शिक्षा का कोई औचित्य नहीं है|बस बोलना व चतुर चालाकी आणि चाहिए |’’
मास्साब बोले |
‘’ फिर भी मेरा  मानना है कि शिक्षक ही देश को सुधार सकता है |’’ मित्र  बोले |
‘’ जब देश शिक्षकों से उम्मीद रखता है , फिर उसे अपना काम क्यों नहीं करने देता | उसके पीछे लाल आँख कर खडा रहता है | ‘’ मास्साब का जवाब था |
 ‘’ दरअसल , आधुनिक शिक्षक की लीलाएं अपरंपार हैं | वह आधुनिक गुरु है | उसके कारनामें भी आधुनिक हैं | मित्र बोला |
‘’ आप ठीक कहते हैं | वह भी किसी वैज्ञानिक से कम नहीं होता |’’ मास्साब ने अपने मुंह मुत्ठुबनाने की कोशिश की|
‘’ मैं यहाँ आपकी वग्यानिकता का प्रमाण नहीं देना चाहता |
‘’ तो फिर |’’
‘’ आजकल वह ऐसी करामत करता है कि देश का सर शर्म से झुक जाता है | मसलन, छात्राओं के साथ प्रेमलीला , प्रेमविवाह, रेप, अपहरण , अश्लील वीडियो क्लिपिंग का निर्माण कर अपनों को एस.एम्.एस. करता है | साईकिल , पुस्तकें , ड्रेस , नि: शुल्क वितरित की जाने वाली सामग्री में घोटाला उसका चरित्र बन गया है | आजकल वह स्कूल मास्टर न रहकर ‘’ कोचिंग मास्टर कहलाना पसंद करता है |इन सब के अलावा एक काम और करता है |’
‘’ अब उसे भी कह दो ,,.. ताकि सुन लें |’’
’’कुधन भरे स्वर में मास्साब बोले |
‘’ राजनीति|’’
‘’ काहे को बदनाम करते हो यार |
राजनीति करता तो क्या टीचर फटीचर कहलाता ? आम राजनीतिज्ञों की तरह मालामाल होकर ऐश करता ...ऐश | ‘’ मास्साब का भड़ास भरा जवाब था | तमाम प्रकार के शिक्षक संघ बनाकर राजनैतिक पार्टियों का वरदहस्त प्राप्त करता है कि नहीं | सालभर वेतन भट्टी के लिए हड़तालें , अनशन , नारेबाजी करता है कि नहीं | और इन सब से फुर्सत में रहा तो अपने शिष्यों को ‘’ एकलव्य’ आरुनी  बनाने के लिए ठुकाई |’’ मित्र ने मुस्कुराकर मास्साब को छेड़ा |
‘’ सच तो है पर | पर वह क्या करे सरकारी कर्मचारी जो ठहरा , मगर सरकार का भी दोष देखो | मास्साब ने अपना पक्ष मजबूत करने की कोशिश की | ‘’ उससे गैर शिक्षकीय कार्य करवाती है |’’
‘’ आपकी बात सच है | पर वह भी चालू चीज है | चार दिन के काम को दस दिन में निपटाता है, ताकि स्कूल में सर खपाना न पड़े |’’ मित्र बोले |
‘’ आप लोग हमेशा आदमी का बुरा पक्ष देखते हो | कभी अच्छाईयों पर भी विचार करो |’’
‘’ आखिर परीक्षाओं में अच्छा रिजल्ट देता है कि नहीं |’’
‘’ नक़ल कराकर |’
‘’ भाई, देश में भी तो यही यही चल रहा है | फैशन से लेकर राजनीति , भ्रष्टाचार , गिरोहबाजी है , हम आखिर दूसरे मुल्कों  की नक़ल कर सीख रहे है |’’
‘’ इसक्का मतलब नक़ल कराने के बहाने नक़ल करना सीख रहे हैं |’’
‘’ भई गुरु तो गुरु होता है | उसका फर्ज है , किस्म-किस्म का ज्ञान देकर शिष्य को हर क्षेत्र में परिपक्व बनाए | आप आप ही देखो | हमारे उद्योगों में डुपलीकेट सामग्री बनाने की चाहत कहा से पैदा हुई , नकलची चरित्र से | इसी बहाने जाने कितने को रोजगार मिला है |  हमारे अनुसार नक़ल करना बुरा नहीं है | आखिर नन्हा शिशु नक़ल कर बोलना , चलना व एनी क्रियाएं सीखता है | ‘’ मास्साब ने वजनदार तर्क दिया | मित्र महोदय चुप रहे |
मास्साब बोले –‘’ ‘’ अब बताइये साब | हमक कहाँ गलत हैं | ‘ मित्र महोदय अब चुप थे |

                           सुनील कुमार ‘’ सजल’’ 

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

व्यंग्य – उसका रावण अपुन के रावण से भयंकर क्यों......

व्यंग्य – उसका रावण अपुन के रावण से भयंकर क्यों......


लो साब नवरात्र भी जाने को है | दशहरा आ गया | वाही दशहरा जिसमें रावण जैसा पुतला जलाया जाता है | तथाकथित राम वेशधारी के हाथों | रावण भी खुश होता होगा | हर वर्ष इसी तरह देखता होगा | सोचता होगा ‘’ कितने मूर्ख टाइप के यार, धरती के लोग | मेरी अनुकृति को जलाकर ताली पीटते हैं | बिलकुल बबुआ टाइप की हरकत....| सरोजनी प्रीतम की कविता ‘’ इंसान गलतियों का पुतला है ‘’ इसलिए पुतले जला दिए | मूर्ख टाइप लोग |रावण तो मारा गया | युग परिवर्तन के साथ कित्ते रावण मारे जाते रहे | मगर पुतला तो उसी का जलाया है जो राम युग में था |
 साब, दशहरा करीब है |तैयारी जोरो पर है | जगाधर दुर्गा समिति , मार्डन दुर्गा समिति व तिराहा रामलीला समिति में बड़ा काम्पिटिशन सा मचा है इस बार | तीनो गुट के लोग एक-दूसरे की जासूसी में लगे हैं | गुपचुप तरीके से |
‘’ देखो उन हरामखोरों के रावण में क्या नया जुदा है | तनिक पता करना बे ...| बेवकूफ अबकी बार अपना रावण शहर की शान होना चाहिए ... समझे | स्साले पिछले बार वो लोग बाजी मार गए थे | अबकी बार अपन को जंग जीतनी है | यह जरूर पता कर लेना बबुआ .... रावण के हाथ सर में कौन सी कंपनी की आतिशबाजी लगा रहे हैं वो लोग | साइज –वाइज का भी ठीक-ठाक अंदाजा कर लेना | ताकि अपना रावण उनके रावण के आगे टिंगू न लगे | साले अपन लोग पिछली बार यहीं तो चूक गए थे | अबे पैसा जीतता लगे लगाओ रावण निर्माण में | राम समर्थक पार्टी वालों ने भी दुर्गा मां के नाम से अपने को जमकर चन्दा देकर पुण्य कमाया है | हाँ , इत्ता जरूर ध्यान रखना बे .... उअनाकी पार्टी –वार्टी का बैनर जरूर लगा देना | दहन स्थल पर | ताकि कहने को न हो कि हमने चन्दा दिया और हमें ही भूल गए चुनाव के वक्त ..... सबके लिए सोचना पड़ता है |’’ दादा टाइप लोग ऐसे ही तो समझाते हैं अधीनस्थों को | 
  दूसरी समिति में भी कुछ ऐसी ही बातें चल रही है –
‘’ अबे मल्लू , तू देखते रहना | बनते रावण पर नजर रखना | तू तो साले इंजीनियरिंग की पढाई किया है न | हर पैमाने से देखते रहना | कहीं रावण का ‘’ सेपवा’’ बिगड़ न जाए | किए कराए पर पानी फिर जाएगा बे |’’ दादा टाइप व्यक्ति अपने अधीनस्थ को समझा रहा है |
‘’ पर दादा , बरसात  होने के लक्षण वैसे भी दिख रहे हैं |’’
‘’ अबे चुप , सयाना मत बन | जीतता कहता हूँ उत्ता कर, नाप-जोख ठीक-ठाक रखना | ‘’
‘’ एक बात कहूं |’’
‘’ कह न बे ....| रावण के नाम पर सबकुछ सुनने को तैयार हैं अपन |’’
‘’ अगर मेरी बजाय हल्लू को यह काम सौपते तो बेहतर होता | काहे की ... वो मेडिकल की पढाई कर रखा है |’’
‘’ अबे का उसमें जान फूंकना है जो हल्लू को सौंप दूं |’’
‘’दादा .....|’ अभी वह कुछ कहता कि......|
‘’ चुप.... काम चोरी मुझे पसंद नहीं |’’ मल्लू खामोश हो गया |
आजकल दबंग टाइप लोगों के भरोसे रावण बनते  हैं और समिति चलती है |लल्लू टाइप लोग दूसरे काम जैसे प्रसाद वितरण , मुहल्ले की लड़कियां किस तरफ बैठी हैं ... उन्हें दादा की तरफ से ठंडा , चाय पिलाना जैसी व्यवस्था रामलीला में देखते हैं |
साब, समितियां हैं | समिति के अन्दर समिति है | मुझे इसलिए ऐसा कहना पड़ा रहा है | एक समिति जो पूरे समय दुर्गा जी की सेवा में व्यस्त रहती है भक्त टाइप लोगों की | दूसरी वसूली में लगी रहती है जो जेब खर्च का जुगाड़ कर लेती है चन्दा राशि से | तीसरी होती है दादा टाइप लोगों की | जिनका काम सिर्फ दादागिरी से लोगों से काम निकलना रहता है | इनका दिमाग वैसे भी अत: शाम होते ही चन्दा की राशि से दारू पानी के जुगाड़ में लग जाते हैं | इन दिनों मुर्गा चबाने से भी कोई परहेज नहीं होता इन्हें | किसी ने तीसरी टाइप की समिति से प्रश्न किया – ‘’ काय , भैया नवरात्रि में भी खाते पीते हो यार....|’’
दबंग टाइप लोगों का जवाब भी दबंग टाइप होता है –‘’ कल का देखा शीतला मंदिर चार बकरा की बलि चढ़ा दी गयी | और सब प्रसाद के रूप में ले गए मटन को | अरे देवी भक्त .....पहले देवी को समझा कि वह बकरा लेना बंद करे | फिर तो हम भी सुधर जायेंगे | समझ में आया के....|’’
‘’ साब , आप नाहक खुश होते हैं रावण दहन  पर | तनिक सोचिए तो आज रावण धरती पर इत्ते हो गए हैं | रावण अगर चाहता तो भी इत्ती संतान पैदा न कर पाटा | आधुनिक रावण उस युगीन रावण की पहचान की ऎसी-तैसी करने में लगे हैं | बेचारा नाहक बदनाम हो रहा है |
 मजे की बात तो यह साब, जो खुद इन्म्सान की शक्ल में रावण है , वह रावण का पुतला दहन कर ताली बजा रहा है , खुद को राम साबित करते हुए मर्यादा का प्रवचन दे रहा है | अगर सचमुच वाला रावण होता तो शायद वो इतना कष्टकारी न होता जितने आज के रावण हैं | तुलनात्मक रूप से वो रावण बेहतर था या ये रावण हैं | आप ही बताएं ....साब |
      सुनील कुमार ‘’सजल’’


व्यंग्य- सखी, प्यार और.......

व्यंग्य- सखी, प्यार और.......


इन दिनों सखी परेशान है |बेहताशा |अपनी सखी के सामने दर्द उगल नहीं पा रही है| उसकी सखी उअसे पूछ रही है |इधर से घुमाकर ,उधर सर घुमाकर |’’ बता न री , का बात है | जो तू इतनी उदास व चिंतित दिख रही है |’’ सखी चुप है |का कहे | बता नही रही | ‘’ तू इतना मुसकाती , हंसती खिलखिलाती है | मगर आज सूखे झरने की भांति खामोश है | कहीं तुझे भी प्यार का रोग तो नहीं लग गया | काहे कि तू आजकल ब्रांडेड कंपनी का फेस आइटम खूब इस्तेमाल कर रही है | ‘’ सखी ने उससे उगलाने के उद्देश्य से छेड़ा |
‘’ का पहले हम फेस आइटम इस्तेमाल नहीं करते थे |’’ वह तपाक से बोली |
‘’ वो तो तू करती थी | मगर सब लोकल मेड थर्ड क्लास |’’ सखी गंवई होते हुए भी थोड़ी बहुत अंग्रेजी बोल लेती है | वैसे ये सब शब्द कामन टाइप के हैं | सखी पुन: बोली –‘’ अच्छा तो तुझे प्यार हो गया है न |’’
वह मुस्कुरा दी | सखी समझ गयी | उम्र का असर इस पर घुमड़ रहा है | एक मुस्कान ही काफी हिती है प्यार के संकेत को स्पष्ट करने के लिए |’’ अच्छा , चल बता कौन है तेरा वो ?’’
वह खोयी –खोयी मुस्कान के साथ चुप | सखी शब्दों से झिझोंडी-‘’ बोल न री का हमसे शर्माना |’’
‘’ हैं तो वो ....पास के गाँव के |’’
‘’ कौन हैं वो ....नाम गाँव पता तो होगा उसका |’’
‘’ हम वो न बताएँगे ....|’’ वह पुन: उदास – सी खामोश बनी रही |
‘’ अच्छा.. बता तू बोलते-बोलते खामोश होकर उदास कटों हो जाती है | कहीं उसने तेरे अन्तरंग सम्बन्ध का एस.एम्.एस तो नहीं बना लिया है | और उसे सार्वजनिक करने की धमकी देकर तुझे ब्लेकमेल तो नहीं कर रहा है |’’
‘’वो ऐसा काहे करेंगे | हमें जीजान से प्यार करते हैं | पहली बात यह है कि हमारे बीच ऐसे कोई सम्बन्ध बने ही नहीं | जिसका एस.एम.एस. बनाया जा सके |’’ वह बोली |
‘’ फिर तू काहे उदास हो जाती है | कुछ छिपा रही है तू | कहीं ऐसा तो नहीं तेरा लवलेटर ...|’’
‘’ आजकल कोई लवलेटर लिखता है | फोन से काम चल जाता है जब |’’
‘’ क्या वि तुझे त्याग देने की धमकी दे रहा है ? ‘’
‘’ नहीं री , तू अपशगुन की बातें कराती है | काहे त्यागें |’’
‘’ देख री, आजकल के प्रेमी बड़े हरामी टाइप के होते हैं | इधर भी मुंह मारते हैं | उधर भी | प्रेमी यानी कुत्ता की जात |’’
‘’ नहीं , वे न कुत्ता हैं न हरामी |’’
‘’ फिर तू काहे उदास दिखाती है |’’
‘’ सच बताऊँ |’’
‘’ बता न ,,,कब से तुझसे पूछ रही हूँ | अपना प्राइवेट एफ.एम्. स्टेशन चालू कर | ‘’
‘’ ‘’ जब से हमने गाना सूना है रंग शर्बतों का तू मीठे घाट  का पानी ... वाला | तब से हमारा मन खराब हो गया है |’’
‘’ इसमें मन खराब होने वाली कौन सी बात है | वो तो गाना है |’’
‘’ तू का जाने प्यार में घाट  कित्ता महत्त्व होता है | हमें दु:ख है कि हम मीठे घाट  का पानी काहे नहीं बने | वो तो रंग शर्बतों का बनने को तैयार थे | आजकल खूब गाते हैं ये वाला गाना वो |’’
‘’अरी पगली घाट -पानी तो निर्जीव चीज है तू तो जीवित है | फिर वो शरवत बनाकर बोतल में पैक हो जायेंगे क्या ?’’
‘’ निर्जीव हुआ तो क्या हुआ | पुराने जमाने में प्रेमी लोग प्यार का इजहार करने घाट  ही जाते थे | दोनों साथ डुबकी लगाते थे | दांत साफ़ करने के बहाने नशीला मंजन दांतों पर रगड़ते हुए गप्पे मारते | प्यार की बातें करते | मुस्कराते | प्रेमिका इसी बात को पूरा करने कपडे धोने के बहाने घाट  पर जाती | कितना नेचुरल था | उस वक्त का प्यार | आजकल तो प्यार का सारा माहौल बनावटी हो गया , आधुनिकता के मध्य जीकर | हर काम जल्द्वाजी में |’’ इन सब बातों को गोली मार | असली समस्या  बता अपने प्यार की|’’
‘’ भगवान् हमें मीठे घाट  का पानी बना दे और उन्हें रंग शर्बतों का |’’
‘’ क्या पगली बोतल में पैक होकर बाजार में बिकोगे |’’
‘’ तू का जाने | प्यार में क्या- क्या नहीं बनाना पड़ता |’’
‘’ देख री तू गाने के बोल पर मत जा | आजकल ऐसे ही बिना सेंस वाले उलटे – सीधे गाने चल रहे हैं | गीतकार पानी को नानी, नानी को कानी कहकर गीत लिख देते हैं | तुकबंदी का ज़माना है | इसलिए तू रंग पानी का चक्कर छोड़ | जैसा प्यार होता है , वैसा कर | न तो तू कभी मीठे घाट का पानी बन पाएगी और वो न रंग शर्बतों का | और दोनों ख्याब देखते हुए कहीं ब्याह दिए जाओगे | फिर गाते रहना – दिल के टुकड़े-टुकड़े करके मुस्कुराते चल दिए |’’

                सुनील कुमार ‘’सजल’’

रविवार, 18 अक्तूबर 2015

व्यंग्य- यार तनिक सुधरो

व्यंग्य- यार तनिक सुधरो



यार तुम लफड़े पैदा न किया करो |तुम्हे कित्ती बार समझाए  कि तुम्हारे उलटे –सीधे बयानबाजी के कारण राजनीति में भूचाल आ जाता है | तुम तो बोलकर खिसक लेते हो , झेलना हमें पड़ता है |काहे कि हम सत्ताधीन पार्टी के मुखिया हैं | हमारी और हमारी पार्टी की ऐसी-तैसी करने में तुले हो | बच्चों की तरह कुछ भी अंट-शंट बकने के लिए मचल जाते हो |ज्यों –ज्यों बुढा रहे हो तुम्हारी बुद्धि सठियाते जा रही है |लोग कहते हैं –बुढापा अनुभव का खजाना होता है ,तुम येई खजाना अपनी खोपडिया  में भरे बैठे हो |जैसा मुंह में आया बक दिए |जानते नहीं का कि आजकल सत्ता प्राप्त करना कितना कठिन काम है |बड़ी मुश्किल से हाथ लगती है |वेश्या होती है वेश्या | बिना खर्च किये और ईमानदारी की नशीली गोली खिलाये बगैर बाहों में नहीं आती |
 पद तुम्हें का दे दिए पार्टी के बुजुर्ग समझकर ,तुम जुबान में गाँठ लगाना ही भूल गए | तुम्हें पद दिए हैं , पद का स्थायी पट्टा नहीं दिए हैं | यूँ ही अगर जुबान की लंगोट खोलते रहोगे तो एक दिन पद की लंगोट के लिए तरसते रह जाओगे | पंद्रह  दिन नहीं गुजरा  कछु भी अंट –शंट बक दिए | कित्ती आलोचना हो रही पार्टी की और सरकार की | किसिम किसिम के आरोप लगा रहे हैं विपक्षी , जनता और ,मीडिया |तुम्हारे कान में कछु असर नहीं हुआ का |
परसों की टी.वी. डिबेट में विपक्षी व एंकर ऐसे प्रश्न कर रहे थे तुम्हारी  फिसली जुबान से निकले  बयान को लेकर | हमें जवाब देते हुए पसीना छूट रहा था |पर संभाले | सौ परसेंट फर्जी बातों का जाल फेंके |हामी जानते हैं हमारी का हालत हो गई थी |एक तुम हो कि ऊंची नाक कर बकवासी बातों के कंकण उछालते रहते हो |
याद है तुम्हें |पिछली बार तुमने कितना घटिया बयान दिया था |प्रदेश के शिक्षकों को भिखारी कह दिया था | तुम्हें शर्म नहीं आयी | पांच सितम्बर को गुरूजी लोगों को अपना आदर्श बताकर, पुरुस्कृत कर उनका गुणगान करते हो |और दो दिन ऐसा बयान दे दिए , जैसे वे तुम्हारी रखैल हों | तनिक शर्म करो यार |गुरु गुरु होता है | जिस दिन महागुरु बनने का वैचारिक अमरबेल  उसके दिमाग में पनप गया न | चुनाव में सबक सिखा  देगा |  
पिछली सरकार का हालत बनायी शिक्षक समुदाय ने |सट्टा को तरस गए आज तक | भैया तनिक कर्मचारियों की इज्जत करना सीखो |तुम्हारी खोपादिया में भूसा भरा है का | पद मिला तो बुद्धि भी जब तब घास चरने चली जाती है |
माना कि अपन कर्मचारियों को मुट्ठी में कसना जानते हैं | यूँ भी आश्वाशन के दम पर जब तब उल्लू बनाते रहते हैं | सत्तामद में आकर उनकी छाती पर बैठ कर गन्दी जुबान का इतना भी भार न डालो कि वे उड़ान भरें और दन से जमीन पर पटक दें | और तुम भी उठाने लायक न रहो |
ऐसी तुमने कह दिया किसान मर रहे हैं तो हम का करें |कछु करो न करो |मगर अपनी जुबान से उनके लोगों के घावों में नमक तो न भरो |
लाफदेबाजी से कछु हल नहीं होना है | जुबान को लगाम देकर बस सट्टा काआनंद लो |जनता भी यही चाहती है ,कोई उसके जख्मों को सहलाता रहे और वह गुदगुदी की गहरी नींद में सोती रहे | येई में अपनी ऐश है मेरे भाई| अब तो समझ गए न......|

                   सुनील कुमार ‘’ सजल  ‘’

व्यंग्य- आईडी प्रूफ के घेरे में .......

व्यंग्य- आईडी प्रूफ के घेरे में .......


साहब अगर आप पूछेंगे कि मेरे सामने सबसे बड़ी समस्या क्या है | मैं कहूंगा अपना आई.दी. प्रूफ करते –करते परेशान हो चुका हूँ |
 साहब जिधर जाता हूँ मुझसे मेरी आईडी(पहचान) माँगने वाले घेर लेते हैं | क्या पुलिस क्या दूसरे अफसर |
  अफसर कहता है दफ्तर में आया करो | गले में आईडी कार्ड लटकाकर आया तो करो | ताकि पता चल सके तुम वाही हो जो तुम हो | हमें क्या मालूम कि तुम कौन हो | शर्माजी हो सकते हो , कटारे भी |
 साहब मैं तो कहता हूँ मैं वाही हूँ जो हूँ | पर इस बात को वे नहीं मानते | मेरा आईडी कार्ड प्रूफ कहता है कि मैं कौन हूँ | जैसे जीवित होने का प्रमाण पात्र चिकित्सक देते हैं | बीमार होने प्रमाण पात्र चिकित्सक के देने पर ही आप बीमार कहा सकते हैं |
  उस दिन मैं चाराहे पर कडा था | एक पुलिस वाला मेरे करीब आया | मेरे समक्ष डंडा पटकते हुए पुलिसिया अंदाज में रौबदार स्वर में बोला- ‘’ कौन है बे तू |’
‘’ इसी शहर का सभी नागरिक |’ मैंने म्याऊँ अंदाज में कहा |
 ‘’ अबे हमें क्या पता कि तू सभी है या असभ्य | ‘’ वह बोला | ‘’ सब मैं कह रहा हूँ तो वाही होउंगा भी |’’
 ‘’ अबे ऐसा तो चोर-उचक्के , आंतकवादी , भ्रष्टाचारी , लुच्चे-लफंगे और मनचले भी अपने आपको इस देश में सभी घोषित करते हैं | इस देश में सभी शब्द की बड़ी कीमत है | ‘’ वह एक लंबा सा भाषण थूक की  भाँती मेरी ओर उटचाते हुए बोला | वह आगे बोला-‘ हाँ बोल बे , सच्ची – सच्ची बता तू कौन है | ‘’
 ‘’ साहब , कहा न मैं सीधा-सरल ईमानदार व सभी नागरिक हूँ |’’
 ‘’ अबे देख टाइम खोटी मत कर | सीधी बात कर |’’
‘’ साहब मानी तो सही सही | वैसे भी आप पुलिस के आदमी हैं | आदमी की शक्ल देखकर उसकी असलियत व औकात का पता लगा लेते हैं | वैसे मुझे भी पहचान लीजिए |’’ मैंने कहा |
‘’ अबे , हम क्या आधुनिक जमाने के भविष्य दृष्टा हैं , बाबाओं की तरह हैं जो हाईटेक आश्रमों में रहकर भविष्य दृष्टा बनने की ट्रेनिंग लेकर आते हैं | जो तुझे तेरी शक्ल देखकर पहचान लें | ‘’ वह मूंछ पर हाथ फिराते हुए बोला | देख सही-सही बातकर | वरना मेरा डंडा शुरू हुआ तो तू सब उगल देगा कि कौन है | किस देश का नागरिक है | तेरा पुलिस रिकार्ड कैसा है ? ‘’
 ‘’ साहब मई छोटा मोटा रोजगारी हूँ | ‘’ मैंने मिमयाते हुए कहा | ‘’ साले तुझे समझ में नहीं आ रहा है तू इस देश में रहता है कि विदेश में | तुझे नहीं मालूम आईडी कार्ड साथ में रखे बगैर घूमना आदमी को संदिग्ध बनाता है | चल निकाल अपना आईडी प्रूफ अभी तय कर लेते हैं कि तू कौन है |
 ‘’ साहब वो तो मैं रखा नहीं हूँ |’’
 साले हमें उल्लू समझता है | पुलिस वालों को लल्लू बनाना खूब आता है | चल निकाल आईडी कार्ड बेटा वरना...|’’
 ‘’ साब आईडी कार्ड के अलावा और कोई रास्ता हो तो बताइये मैं प्रूफ करने की कोशिश करूंगा |’’
 ‘’ इसके दो रास्ते हैं |’’
‘’ कौन-कौन से साब |’’
 ‘’ पहला सर्टिफाइड आईडी कार्ड दूसरा गांधी छाप असली नोट |’’
‘’ असली नोट से मतलब साब |’’
 ‘’ असली नोट नहीं जानता | जो नकली नहीं होता उसे असली नोट कहते हैं |’’
‘’ पर मुझे यह कैसे पता चले कि जो मेरे पास हैं वह असली हैं |
‘’ अबे भारतीय नकली नहीं से डरते हैं | अगर तेरे पास नकली है तो तेरे सम्बन्ध अंतर्राष्ट्रीय गिरोह से हो सकते हैं | ‘’ साब नकली नोट तो मार्केट में भी चल रहे हैं |’’
 ‘’ तुझे कैसे पता |’’
 ‘’ अखबार में पढ़ता रहता हूँ |’’
 ‘’ पर समझदार सभी और तेरे जैसे बहस करने वाले इत्ती बड़ी गलती नहीं कर सकते कि नकली नोट लेकर चलें | अब चल छोड़ बहस करना | झट से निकाल अपना आईडी कार्ड |’’
 मैंने जेब से कड़कडाता सौ का गांधी छाप नोट निकालकर उसे थमा दिया | उसने उलट-पुलटकर देखा | आड़े देखा तिरछे देखा | हंसते बोला- ‘’ वाकई तू इस देश का सभी सरल सीधा-सादा, नागरिक है |’’
‘’ आपको कैसे पता चला सर |’’
‘’ तेरा गांधी छाप आईडी प्रूफ बिलकुल असली है |’’

        सुनील कुमार ‘’ सजल’’  

सोमवार, 12 अक्तूबर 2015

व्यंग्य- दुर्गा पूजन में

व्यंग्य- दुर्गा पूजन में


नवरात्र पर्व आ गया |देवी स्थापना हेतु चौराहे-गली में पंडाल इत्यादि सज गए हैं | जगह –जगह पंडाल | समितियां |देवी भक्तों की भीड़ | लाउड स्पीकर का शोर | चन्दा वसूलने वालों की घूमती टोली | जबरिया वसूली |
‘’ यार तुम्हें शर्म आनी चाहिए सौ रुपये चंदे में दे रहे हो |इत्ते से काम चलेगा का | कम से कम पांच सौ तो दो |देवी भक्त हो , देवी का तनिक का लिहाज करो | देवी से हजार माँगते हो , सौ देने में रो- रो मार रहे हो |पूजन - व्यवस्था में कितना खर्च आता है, हमें मालूम है | महंगाई सुरसा जैसी खिलखिला रही है | तनिक शर्म करो भाई साब पांच सौ का हरा पत्ता निकालो |’’
न देने पर तमाम छोटी-मोटी  धमकियां | मजबूर आदमी |
पंडालों की सजावट को लेकर दुर्गा समितियों में आपसी काम्पीटीशन |’’ देख इस बार हमारी मूर्ति नगर की सबसे ऊंची मूर्ति है | स्साले वो नवरत्न समिति वाले पिछले बार खूब भाव खा रहे थे | इस बार हम भी उन्हें सजावट का पैमाना दिखा देंगे | स्साले मुंह छिपाते फिरेंगे | हमारे सामने | नागपुर से  बुलाया है इस बार | देखते हैं कौन टक्कर लेता है अपन से |
लाइट हाउस वाले इस बार मोहल्ले की समिति को डेकोरेशन देने में कतरा रहे हैं |’’ कहते हैं , नफ़ा-नुकसान के लेनदेन में बनियागीरी दिखाते हैं |और ऊपर से पीकर हाथापाई करने से नहीं चूकते |भैया अपन धंधे की बलि चढाने को थोड़ी न बैठे हैं |पेट-पूजा की व्यवस्था के लिए पसीना बहा रहे हैं |’’
इधर पंडित रामदीन महाराज को मोहल्ले की समिति ने पूरे नौ दिन मां दुर्गा की सेवा हेतु अनुबंध किया है | पिछले साल गांधी चौक की समिति ने पंडित रामदीन को जमकर चूना लगाया था | बड़े हरामी निकले वह समिति के लोग  | चढ़ोतरी  की राशि डकारे सो अलग अनुबंध की राशि की में भी गोलमाल कर गए | बेचारे पंडित जी श्राप देते रह गए |’’ बताओ यार कितना कठिन होता है नौ दिन दिन तक देवी की सेवा करना |रोज सबेरे- शाम  पिचके पेट लिए आरती गाओ , मन्त्र पढो | हमई को मालूम है कैसे निकाले हैं नौ दिन  समिति के दिए थर्ड क्लास फलाहार के दम पर |
 समिति के लोग चन्दा वसूली में लगे हैं |चाय-नाश्ता , बीडी –सिगरेट , गुटका पाऊच सब चंदे की राशि से |कहते हैं –‘’ आज के समय में दूसरों की जेब से चन्दा राशि वसूलना बड़ा कठिन काम है भाईसाब |वो तो अपन अपनी दबंगई से से निकाल रहे | वरना लोग तो सवा ग्यारह या सवा इक्कीस में ही चलता कर देते हैं , आमदानी का रोना रो कर |अब इत्ती मेहनत कर हैं देवी मां के लिए तो का बीडी सिगरेट , दारू भी नहीं पी सकते का | थकान उतारने के लिए |नशा किये बगैर अपना तन वसूली के लिए गवाही भी नहीं देता | तो का करें |
  समिति में कुछ बेरोजगार टाइप , के लोग भी हैं | उनके हाथों में चन्दा रसीद बुक थमा दी गयी है | वे भी बस कंडक्टर की तरह किराया चोरी करने की तरह चन्दा चोरी करने में लगे हैं |आखिर देवी उत्सव सबका ख्याल रखता है साब |आखिर ऐसे त्यौहार इसीलिए बनाए गए हैं ताकि कोई भूखा व असंतुष्ट न रहे | देवी मां की कृपा सब पर बरसती रहे |
इधर पंडाल में मां देवी की स्थापना हो चुकी है पंडित रामदीन महाराज सेवा में लग चुके हैं | भक्त गण, समिति के लोग भक्ति में,-सेवा में भाव विभोर हैं |
   ‘’ अबे कालू, पंडित जी के लिए सिगरेट खरीद कर ला दे | कब से तलब लगी है उन्हें | साले ध्यान तक नहीं रखते पंडित जी का | हाँ बे पूछ लेना कौन सा ब्रांड पीते हैं |’’
‘’ वो तो  उपवास हैं न | फिर सिगरेट...?’’ ‘
‘’ अबे देवी सेवा में लगे हैं तो का सिगरेट पीना छोड़ दें | देखता नहीं कड़ी धुप के दिन हैं |उपवास सहन करने के लिए नशा जरुरी होता है बेटा |’’ एक अधेड़ सा व्यक्ति समिति के लडके को समझाइश दे रहा है |
   पंडित जी के लिए भक्तों व समिति की ओर से सम्पूर्ण व्यवस्थाएं हो रही हैं | वे भक्ति में पूरी तल्लीनता से लगे हैं |खाली समय में कुछ मूडी टाइप के लोगो के साथ शास्त्रोक्त बहस भी जारी रखते हैं | ताकि उनके अध्यात्मिकज्ञान का प्रभाव लोगों के बीच बना रहे |
  पूजा के वक्त वे भक्तों को उकसाते हैं – देखो बिटवा , देवी मां को जितनी ज्यादा  चढ़ोतरी चढाओगे | मां तुमका उतना ही गुना देहि |’’
   पड़ोस के एक निर्माण ठेकेदार ने इस बार चार बड़ी पुलिया बनवाया है |पुलिया कितनी मजबूत बनवाये यह तो वे ही जाने | मगर समिति की अर्थव्यवस्था मजबूत करने के लिए तगड़ा चन्दा दिया है | दुर्गा समिति मां दुर्गा से ज्यादा उनका गुणगान गा रही है |
   इधर जिले में बिजली की बड़ी खपत के चलते पॉवर लोड इतना ज्यादा है कि बिजली बार-बार ट्रिप ले रही है | बिजली विभाग की ओरसे जारी ‘’ बिजली बचाओ का नारा , करेंट खाए व्यक्ति की तरह बेहोश होकर चित्त पडा है ......|

  सुनील कुमार सजल 

व्यंग्य – भक्तों की भक्ति

व्यंग्य – भक्तों की भक्ति


मंदिर परिसर शादी के मण्डप सा सजा है | ईश्वरीय धुन गूँज रही है |  सुगन्धित धूप अगरबत्ती से सम्पूर्ण वातावरण महक रहा है | भक्त व्यस्त हैं | वे ऐसे मौकों पर व्यस्त रहते हैं | कुछ पूरी तरह व्यस्त हैं |कुछ आदेश देने के काम में खुद को व्यस्त रखे हुए हैं | 
  मंदिर परिसर में पूजन इत्यादि का कार्यक्रम चल रहा है | पंडित के मुख से निकलते मन्त्र स्पीकर पर स्पष्ट सुनाई दे रहे हैं | बीच – बीच में वे चुटकी लेकर हंसा रहे हैं | कारण वे जानते हैं , प्राचीनकालीन कथाओं को कोई अब सुनना पसंद नहीं करता | लोग देव दर्शन व प्रसाद ग्रहण में रूचि रखते हैं | भीड़ बांधे रखना है तो कथाएँ व चुटकी लेना आवश्यक है | पंडित जी पूजा के आधुनिक गुर जानते हैं | सो वे सतर्क हैं | भंडारे का भी आयोजन रखा है मंदिर समिति ने | इसलिए धूप व पकाते पकवान की सुगंध को विश्लेषित किया जा सकता है | पूरा वातावरण सात्विक है | पाप की आड़ में पुण्य की परिभाषा स्पष्ट की जा रही है | जवान मनचलों की नजर खूबसूरत चेहरों पर आ टिकती है | देव मूर्ति के दर्शन तो रोज करते हैं दोस्त | ऐसे चेहरों के दर्शन यदाकदा होते हैं | अत: दर्शन कार्यक्रम जारी है पूरे ह्रदय से |
इसी बीच व्यस्त एक जवान भक्त से एक रिक्शा चालक  पूछ बैठता है –‘’ दादा भंडारा कित्ते बजे से....|’’
‘’ अभी भगवान को भोग नहीं लगा है | भगवान को भोग लगाने दो | फिर..|’’
‘’ हम तो समझ रहे थे शुरू हो गया होगा | सो सुबह से दो समोसे पर टिके रहे | सोचा पेट पूजा भंडारे में ही करेंगे |’’
‘’ अभी समय है यार कक्का |चाहो तो दो समोसे और खाकर आ जाओ |’’ भक्त की बातों में भक्ति का गर्व था  तो सम्मान भी था |
ऐसे मौकों पर भक्त पूरे गर्व से भरे होते हैं | प्रतिक चिन्हों से लदे भक्त | जिनके कुरते में परिचय पत्र नुमा समिति सदस्य होने जैसा चिन्ह भी लगा होता है | माथे पर लाल रंग का लंबा व आकर्षक टीका | जो उनकी भक्ति व भक्त के होने को परिभाषित करता है |
पंडाल से महिलायें , पुरुष , कुंवारिया , कुंवारे सभी पधार रहे हैं | भक्ति कार्य में मस्त तथाकथित भक्तों की नजरें कुंवारियों पर टिक ही जाती है | देवदर्शन करते आँखे बोर हो जाती है | मन की तरह इन्हें भी फ्रेशनेस चाहिए सो देखना ही पड़ता है यार | किसी ने कहा- जिसे भी देखो तबियत से देखो , ताकि नज़रों को पछतावा की गुंजाइश न रहे | ‘’
‘’ वाही तो कर रहे हैं | बुराई क्या है |’
     जवां भक्त पूरी तरह व्यस्त हैं | कूद-कूदकर व्यस्त | चहरे पर व्यस्तता के पूरे भाव उभर रहे हैं | वे ऊर्जा से भरे हैं | ख़ास महिलाओं के बैठने के स्थल की तरफ तो वे व्यस्त होते हुए ज्यादा ही ऊर्जा से भर जाते हैं |
चहरे पर जबरिया मुस्कान व आदर भाव लादे महिलाओं व कुंवारियों को पंडाल स्थल में बैठने की गुजारिश कर रहे हैं , ताकि मुखड़े पर पूरी सात्विकता झलके | कहते हैं –‘ ईश्वर हमारे कर्मों पर नजर रखता है पर शायद ऐसे वक्त पर खुद में मस्त रहता है | वह भक्तों की भक्ति के गर्व से भर जाता है | भंडारे से प्रसाद वितरण शुरू हो चुका है | भक्तगण प्रसाद वितरण में व्यस्त है | बहनजी और और लें | भगवान का प्रसाद है | भगवान् के द्वार में कैसा परहेज | बहनजी नामक शब्द सभी होने का मुखौटा है | भाई साहबों के लिए अलग व्यवस्था है वहां आदर वाक्यों की आवश्यकता नहीं है | कारण वे भाईसाब हैं |
  शाम का वक्त | भक्तों ने जश्न मनाने का सोचा | आधुनिक जश्न में नृत्य आवश्यक होता है | यहाँ गीतों में सात्विकता की आवश्यकता नहीं | धूमधडाका | डी.जे. साउंड | भौंडे गीत | नशे में झूमते पाँव | धक्का-मुक्की , महिला-पुरुष एक समान | चलता हैं | देव स्थल हैं | भक्ति में पूरी मस्ती |
   प्राचीन कालीन क्लासिकल नृत्य में इतना मजा कहाँ | वहां तो भाव भंगिमा के अर्थ निकालने में सारा वक्त निकल जाता है | ऎसी मस्ती व ख़ुशी कहाँ ?
 देवता ऐसे आयोजनों से खुश हैं या नहीं | यह अपन नहीं जानते पर उनकी मुस्काती मूर्ति तो ख़ुशी बयान करती है | आखिर आधुनिक समय में आधुनिक भक्ति की क्रियाओं को तो झेलना ही पडेगा न साब |
                    सुनील कुमार ‘’सजल’’
  

 


गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

व्यंग्य –नकली बनाम असली

व्यंग्य –नकली बनाम असली

विगत दिवस सुनने को मिला कि किसी पार्टी का नकली नेता पकड़ा गया | ताज्जुब हुआ, अभी तक तो यह सुनता रहा हूँ कि नकली अफसर पकडाते रहे हैं | अब नेता भी नकली |खैर छोडिये |
वैसे यह ज़माना नकली का है | आजकल असली से ज्यादा नकली चल रहा है | असली को असली कहने में भले ही लोग सकुचाएं पर नकली को असली कहने में नहीं सकुचाते | सच कहूं अगर नकली न हो तो असली की क़द्र भी न हो |
आज देखें तो नकली ही हमारी अर्थव्यवस्था सुधारने में अहम् भूमिका निभाता है | शायद यहाँ आपका दिमाग प्रश्नों से गूँज सकता है कि नकली व अर्थव्यवस्था ? अरे भई , सस्ते में असली छाप मिल जाती है | सोने के जेवरातों को ले लो | आज तोला दो तोला सोने में अच्छे-अच्छे की हैसियत जवाब दे रही है | ऐसे में नकली स्वर्ण के जेवरात असली स्वर्ण का मजा दे रहे हैं | ऊपर से चमक जाने पर आधी कीमत में वापसी की गारंटी भी | और क्या चाहिए आपको | नक़ल संस्कृति ने असल संस्कृति को यूं लताड़ा जैसे दगाबाज नेता को पार्टी | आज आदमी नकली के पीछे भाग रहा है | क्योंकि नक़ल का रास्ता सीधा , सरल व सहज होता है |
   एक बार मैं कपड़ा खरीदने एक प्रतिष्ठित दुकान में पहुंचा | दुकानदार के कर्मचारी ने पूछा – ‘ ‘ साब, आप व्यवहार में देने के लिए खरीदना चाहते हैं या खुद के लिए |’’
‘’ व्यवहार में देने के लिए |’’ मैंने कहा |
 उसने ब्रांडेड कंपनी के नामवाला कपड़ा मेरे सामने फैला दिया |
 ‘’ इतना महँगा कपड़ा मत दिखाओ मेरे भाई , मुझे सामाजिक कार्य में व्यवहार करना है | अपनी लुटिया नहीं डुबोनी है | ‘’ मैंने कप[अदा छूकर देखते ही कहा |
वह हंसा | ‘’ ‘’ आप घबराइये नहीं साब , सस्ता है दिखने में ब्रांडेड लग रहा है मगर....|’’
‘’ मगर....?’’
‘’ डुप्लीकेट है !’’ जब उसके  मुख से कीमत सुनी तो आश्चर्य में पद गया | इतनी कम अविश्वनीय कीमत | झट से हमने कपड़ा पैक करवाया निकल पड़े घर की तरफ | अब व्यवहार में लेने वाला पहली धुलाई के बाद अपना माथा पीते तो हम क्या करें | फैशन के इस दौर में गारंटी कौन देता है |
इधर हमारे मित्र चोंगालाल जी को नकली से बेहद मोह है | इसका कारण यह है कि जमाने के चलन के साथ घाघ व्यापारी हैं | एक बार पत्नी से झगड़े पत्नी द्वारा दिए गए धक्के से वे  औंधे मुंह ऐसे गिरे कि उनके दर्जन भर दांत झड गए | आजकल वे नकली दांत से अपने पोपले मुंह को फुलाए हुए हैं , जो असली माफिक लगते हैं | हमने उनसे कहा- ‘’ आखिर आपका जी नहीं माना और नकली दांत लगवा ही आए | बिलकुल असली जैसे | महंगे होंगे |’’
‘’ अरे कहाँ यार , अपनी व्यापारी बुद्धि महंगे को इजाजत कहाँ देती है ...|’ मैं उनके जवाब के बाद चुप हो गया |
अपना तो यही कहना है  भाईसाब कि यदि असली खरीदने की हैसियत न हो तो नकली सामग्री से ही काम चलाइये | आजकल असली व नकली में फर्क करने वाले दृष्टि पारखी कहाँ रहे | आकर्षण का ज़माना है सो आप भी आकर्षण पर टूट पड़ें |

                    सुनील कुमार ‘’सजल’’

रविवार, 4 अक्तूबर 2015

व्यंग्य- दीनू के बढ़ते कदम

व्यंग्य- दीनू के बढ़ते कदम


वह शहर के गुरन्दी बाजार में मौजूद था |गुरंदी बाजार वह बाजार है जहां कबाड़ और चोरी के माल को नम्बर वन बनाया जाता है |
 उसे सुतली , कांच के तुकडे, बारूद , पालीथीन व् लोह चूर्ण खरीदता देख मैंने दुकान से दूर बुलाकर पूछा- ‘’ क्या करेगा इनको ? क्या बनाने जा रहा है ?
‘’ बम बनाउंगा | पटकनी बम बनाऊंगा साब |’’ उसने मुकराकर कहा |
‘’ बम क्या करेगा ?’ मेरी जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी |
 ‘’ बेचूंगा |’’ वह बोला |
‘’ किसे?’
‘’ अपने शहर के गुंडे-मवालियों को साब | सोलह वर्षीय दीनू ऐसे उत्तर दे रहा था , जैसे किसी बम फैक्ट्री का मालिक हो
‘’ अबे पुलिस को मालूम हुआ तो कहीं का न छोड़ेगी |’’
वह हंसा जैसे मैंने बच्चों वाली बात कही हो |’
‘’ वह भी तो हम से खरीदती है साब |’’
‘’ क्या कहा? पुलिस तुमसे बम खरीदती है | बेवकूफ |’ मैंने कहा |
‘’ फर्जी केस बनाने के लिए खरीदती है |’ वह हंस रहा था |
‘’ शहर की पुलिस इतनी गिरी नहीं है कितुझ जैसे से बम ख़रीदे |’’
‘’ आप मानते क्यों नहीं साब |’ उसने अपनी बातों पर जोर देकर कहा |
‘’ हम कैसे मां लें | मैंने कहा |
‘’ अच्छा चलो हम आपकी एक घटना बताते हैं | पर साब बहुत देर हो गयी | तम्बाकू वाला पान नहीं खाया है खिला दो न साब |’ दीनू [पर मुझे तरस आता है | वह मेरे मोहल्ले का लड़का है | जब तब मेरा काम सुन लेता है | जाने क्यों उस पर मेरा प्रेम उमड़ता है | ‘’ आज कल टू नशा भी करता है |’’
‘’ का करें साब | सीख गए हैं | पान खिला दो न साब | बम के पैसे मिलेंगे तो मैं आपको नाश्ता कराउंगा |’’ मैं उसकी तलब भरी व्याकुल विनती को स्वीकारते हुए उसे पान की दुकान की ओर ले गया | पान खिलाया |
पान खाते ही वह बोला-‘’ हाँ तो साब हम दो घटना बताने वाले थे | ‘’ मेरी हामी पर वह घटना सुनाने लगा |
‘’पिछले माह पुलिस एक आदमी को पकड़कर लायी थी |’’ वह व्यक्ति अपराधी नहीं था | उन्हें कल्लू भाई अपराधी के साथ बैठा मिल गया | कल्लू भाई का उसके इलाके में बड़ा नाम है | अत: कल्लूभाई बम काण्ड केस उस व्यक्ति के सर मढ़ना पुलिस की मजबूरी थी | मेरे पास से पुलिस ने दस बम लिए थे |’’
थाणे में उसे धमकाते हुए कह रहे थे –‘’ बेटा इन बमों के साथ तुझे अपना अपराध तो स्वीकारना पडेगा |’ वह गिडगिड़ा रहा था – ‘’ माई – बाप मुझे छोड़ दो | मैं गरीब हूँ | कल्लूभाई के बुलाने पर उन्हें बीडी देने गया था |’’
‘’ चुप स्साले , कालू का नाम लिया तो....| बोल कि यह बम मेरे पास थे |’’ तीन चार थप्पड़ उसके गाल पर जमाते हुए पुलिस वाला कदका | वह वहीँ सिटपिटा गया | अंतत: उसे थोपा गया जुर्म कुबुलना पडा | एक घटना और है साब , कल्लू की दबंगई की |’’
 मैं चुप रहा मगर वह सुनाते है बोला-‘’ होमगार्ड की बिटिया संग कालू भाई पूरी रात बलात्कार किया था मगर पुलिस ने उसे यह `कहकर गिरफ्तार नहीं किया कि जवानी के जोश में ऐसी गलतियाँ हो जाती हैं |’’
 ‘’ अच्छा  छोड़ फालतू की बातें |  बता यह काम तूने कहाँ से सीखा | मैंने कहा |
‘’ झुग्गी तोले में मेरे दो-चार दोस्त रहते हैं न साब | वे मुझे सिखाये हैं | ‘’ उसका इत्मीनान भरा जव्वाब था |
‘’ देख , अब यह काम छोड़ | दूसरा धंधा देख |’’
‘’ का है कि साब छोटा समझकर लोग सही काम की सही मजदूरी देते नहीं | ऐसे कब तक शोषित होएँगे साब | इस धंधे में अच्छी आमदानी हो जाती है | दो जून की रोटी जुटाकर हफ्ते में एकाध बार अंग्रेजी दारू-मुर्गा का स्वाद भी चख लेते हैं | आप लोग जैसा ऐश तो नहीं कर सकते न साब |’’ वह बहुत खुश होते हुए बोला |
 दीनू के सम्बन्ध अपराध की दुनिया से बनाते जा रहे हैं |उसकी पुलिस से भी दोस्ती है तो अपराधियों से भी | वह अभी इतनी समझ नहीं रखता कि उसके धंधे से देश का क्या नुकसान हो सकता है | उसकी जरुरत धन है | धन कमाने हेतु उसके लिए यह आसान रास्ता है | उसके छोटे-मोटे सपने आसान होते जा रहे हैं | इंसान की यही तो कमजोरी होती है कि वह आसान रास्ते से मंजिल पाना चाहता है
         सुनील कुमार ‘सजल’