सोमवार, 8 मई 2017

बात की बात – वो ज़माना था सीटीबाजों का...

बात  की बात वो ज़माना था सीटीबाजों का...
अब तो सीटी बजाने का समय गया साब |अब लोग मोबाइल पर ही फुसफुसा लेते  हैं अपनों से .| दोस्तों यारों को घर वालों के डर से सीटी बजा कर बुलाते थे |एक युग था जब कुछ सड़क छाप टाइप के प्रेमी लोग भी लड़कियों के हॉस्टल  , महाविद्यालय, या फिर उसके घर के सामने से सीटी  बजाते हुए निकलते थे | तो लगता था कोई पागल प्रेमी प्यार की तड़प को अपनी सीटी के माध्यम से सुनाते हुए गुजर रहा है | सीटियाँ भी तरह तरह से बजायी जाती थी | कभी बांसुरी नुमा तो कभी ट्रेन  इंजिन के हार्न की धुन में  | तब लोग सीटी  बजाने  की प्रैक्टिस  किया करते थे ‘’ यार बताना तू इतनी सुरीली सीटी कैसे बजा लेता है |अबे मैं तो बजाकर परेशान हूँ , जब भी बजाने का प्रयास करता हूँ सड़क पर घिसटते टायर की तरह आवाज निकलती है या फिर फूस की आवाज आती |
कुछ प्रेमिकाएं टाइप की लड़कियां अपनी अटारी  पर आकर अपने प्रेमी की सीटीनुमा आवाज सुनने के लिए तड़पती थी |शाम ढलने की बेला में वे छत पर आ जाती थी या फिर आँगन में|प्रेमी भी साइकिल पर सवार होकर किसी गाने की लाइन  को अपने सीटी नुमा स्वर  में ढालकर प्रेमिका के घर की तरफ देखते हुए गुजरता था | तब वह खुद को कृष्ण व अपनी प्रेमिका को राधा से कम समझने की भूल नहीं करता था |
कुछ एक एक तरफा प्यार में पागल प्रेमी अपनी पसंदीदा छोकरी को पटाने के लिए अपना काम छोड़ सीटी के अभ्यास में लगा रहता था | वह किस धुन पर सीटी बजाये की उसके तरफ न देखने वाली लड़की भी मुस्कुराकर उसकी तरफ देखती रह जाए | छेड़छाड़ भी सीटी की धुन पर होती थी | फिल्मों में लड़की पटाने वाला हीरो भी लगभग सीटी बजाकर प्रेमिका से छेड़छाड़ करता , गीत गाता था |
  उस समय अगर घर में कभी पति सीटी बाजाकर मन बहलाने की कोशिश करते  | पत्नियां सवालों के तीर छोड़ने लगतीं ,’’ क्या बात है आजकल बहुत सीटी बजाने लगे हैं , कहीं कोई चक्कर-वक्कर या फिर सौतन लाने का इरादा है क्या |’’
उस समय सीटी बजाना सिर्फ लड़की पटाने का साधन मात्र नहीं समझा जाता था| बल्कि टाइम पास साधन भी था | कुछ लोग अपनी बोरियत को दूर करने के लिए शाम के समय नदी या तालाब किनारे बैठकर सीटी की धुन बजाकर अकेले होने का टाइम पास  करते थे | या फिर टहलते हुए सीटी बजाते थे|
तब पुलिस वाले ज्यादा ध्यान नहीं देते थे | बजाने दे यार साला पागल होगा |बस परिचालक भी मुंह से सीटी  बजाकर बस रुकवा देते थे | क्योंकि बसों में आधुनिक टाइप बेल नहीं लगी होती थी |
मगर आज वो  ज़माना नहीं रहा | सीटी पर से धुन निकालने वाले लोग भी नहीं रह गए |सीटी बजाकर किसी छोरी के घर के तरफ देखते हुए निकल जाइए | फिर देखिये अपनी नौबत लाने का तमाशा | जूते तो  पड़ेगें और 100 डायल पुलिस वाहन भी आ जाएगा | आपको उठाने के लिए| इसलिए कभी सीटी बजाकर गुनगुनाने का मन हो तो सूनसान जगह चुनी या फिर बंद कमरे में गुनगुनाइएगा साब  ....|
                  सुनील कुमार ‘’सजल’’

                                            

रविवार, 7 मई 2017

बात की बात – शादी में ...दारु

बात  की बात शादी में ...दारु
यारों शादी अगर दारू का दौर न चले तो सारा मजा किरकिरा हो जाता | दोस्त लोग होने वाले दुल्हे से कहते हैं अबे कित्ती की मंगा रहा है भाई अपन तो फलां ब्रांड  की पियेंगे तो जाएंगे बारात में नहीं तो तू जा |दुल्हे को भी पता होता है शादी में किसिम किसिम के डांस वही कर सकता जिसके बदन पर दारू देवी सवार होती है |वरना बिना पिए दोस्त बारात में ऐसे चलते मानो मैयत में जा रहे हों |उतरेहुए चेहरे ,होठों से मुस्कान भी ऐसे गायब जैसे होठों पे कीड़े ने काट लिया हो |इसलिए पीना -पिलाना पड़ता है | उधर लड़की वाले कहते दारूखोरों को बारात में मत लाना | तो फिर दुल्हे का बाप किसे ले जाए ,शवयात्रा के अनुभवशील पदयात्रियों को और किस्से डांस करवाए |
दोस्तों शादी के अवसर पर डांस का राज दारू  ही में छिपा है |बिना पिए आदमी से ज़रा डांस कराकर देखो | ऐसे डांस करता है जैसे घोड़ी उछल रही है | किसी पेड़ की शाखा हवा में हिल रही है |
इसलिए भैया दुल्हे के दोस्त पीकर  तो जाएंगे ही | दुल्हे का बाप  न भी बुलाये  तो भी वे बस में लटक आ जाएंगे | लड़की का बाप हाथ उठाकर कह भी दे भैया तुम्हारे बाराती पिटे तो अपन नहीं जानते काहे की वे पियेंगे तो डांस को लेकर लड़ेंगें |दरअसल स्थानीय नशे में द्युत दारूखोर भी डांस करने मूड में बारात के बीच में  घुस आते है और वे भी डांस करने लगते | इसी बीच धक्का-मुक्की ,हाथापाई शुरू होती है |इधर पीटने वाले पीटते रहते हैं | पिटने वाले पिटते रहते है |वैसे जब तक बाराती या घराती शादी में नहीं पिटते , शादी यादगार नहीं रह जाती |पीटने या पिटने के बाद दोस्तों के बीच कई दिनों तक फलां की बारात चर्चा का विषय बनी रहती हैं |
वैसे बरात में पीने वाले बड़े अजीब जीव होते हैं | कुछ चोरी –छिपे पीने वाले ऐसे ही अवसर ढूँढते हैं |और जब पीते हैं तो ऐसा पीते हैं कि उन्हें ढूँढना पड़ता है की भाईसाब नाली में पड़े है कि सड़क किनारे ऊगे बेशरम की झाड़ियों के बीच | दूसरे किस्म के वे होते हैं जो पीते हुए अपने गुट के साथ किस गाने पर कौन सा डांस करना है का मूड बनाते हैं |तीसरी किस्म उन लोगो की होती है जो पीते तो है मगर थोडा कम मगर सामने वाले को उनके पीने का अहसास न हो इसलिए रात में भी आँखों में रंगीन चश्मा चढ़ाकर रखते हैं |या तो बात पर मुस्कराते हैं या फिर दुनिया का गम अपने ऊपर लादे नजर आते हैं |
 भाईसाब देखा जाए तो अवसर के हिसाब से शराब बुरी चीज नहीं है |आजकल बिना शराब के रातें,बातें,व शरारते रंगीन होती हैं क्या |
                  सुनील कुमार ‘’सजल’’
       

शनिवार, 6 मई 2017

बात की बात – गम

बात  की बात गम
‘’ साले इतनी छोटी उम्र में नशा करते तुझे शर्म नहीं आती |’’ थानेदार ने उसके गाल पर थप्पड़ जमाते हुए पूछा |
‘’का करें साब मजबूरी है |उसने मिमियाती आवाज में कहा |
‘’काहे की मजबूरी बे ?’’
‘’ गम भुलाने की |’’
‘’किस बात का गम बे किसी छोरी का |’’
‘’जी नहीं साब | मां-बाप का |’’
‘’ का वे मर गए हैं....|’’
जी नहीं |’’
‘’तो काहे का गम बे |’’
‘’ साब वे खुद अपना गम भुलाने के लिए नशे में डूबे रहते हैं | मेरा ख्याल तक नहीं रखते |इसलिए मैं भी उनका गम भुलाने के लिए....|’’
‘’
               सुनील कुमार ‘’सजल’’


बात की बात – प्रत्युत्तर

बात  की बात – प्रत्युत्तर
‘’ तुम एक सभ्य  व संस्कारित  घराने के लडके होकर भी हमेशा दूसरों की आलोचना करते व झूठी बातों  को महत्व  देते हुए मिलते हो | तुम्हारी यह आदत ठीक नहीं है | अपनी आदत में सुधार लाओ | ‘’ एक अधेड़ से व्यक्ति ने १८-१९ वर्षीय युवक को डपटते हुए कहा  |
‘’नहीं ला सकता अंकल|’’ उसने मुस्कराकर जवाब दिया |
‘’ क्यों ? ऐसी क्या मजबूरी है ?’’
‘’ मुझे एक सफल राजनीतिज्ञ जो बनाना है |’’
               सुनील कुमार ‘’सजल’’

शुक्रवार, 5 मई 2017

बात की बात – ज्योतिष

बात  की बात – ज्योतिष
 कहते हैं ज्योतिष एक विज्ञान है |पर उल्लू बनने-बनाने के चांस भी इसी में ज्यादा हैं |एकज्योतिषी ने तो यहाँ तक कह दिया था | जब तक अन्धविश्वासी इस धरती पर रहेंगें तब तक कोई माई  का लाल हमारा धंधा चौपट नहीं कर सकता | अब आप ही देख लीजिए | बनारस से शिक्षा प्राप्त ज्योतिषाचार्य एवं कथावाचक  पंडित पकड़ चंद जी ने मोहल्ले की तीन बेटियों की शादी के लिए आए  रिश्ते हेतु कुंडली मिलन की | तीनों की शादी भी संपन्न करवायी |तीन में में से दो का वैवाहिक जीवन असफल रहा | वे शादी के दो माह बाद ही घर आकर बैठ गयी |हमने इस पर उनसे सवाल किया – ‘’ आप तो ज्योतिष के बड़े अंधभक्त हैं , कहतें हैं ज्योतिष कभी गलत नहीं होता , फिर ये दो बेटियाँ ....|’
‘’ सब प्रभु की माया है ,उसके आगे किसकी चली है |’’
‘’ जब सब प्रभु की माया है उसके आगे किसी की नहीं चलती तो ज्योतिष की माया का जाल दूसरे पर फेंक कर आप लोग अपनी क्यों चलाते हैं  ....|
‘’पेट चलाने के लिए प्रभु की दी माया है , और का कहें |


     सुनील कुमार ‘’सजल’’

लघुव्यंग्य- शहर की सड़क

लघुव्यंग्य- शहर की सड़क
शहर की सड़क पर महीनों से काम चल रहा था |काम में ठेकेदार की लापरवाही से हफ़्तों का काम महीनों में संपन्न नहीं हो सका | जगह-जगह गड्डे , उबड़-खाबड़ तल |इस दौरान कई एक्सीडेंट भी हुए | पर प्रशासन के कान में जूं तक नहीं रेंगी |  उस दिन पी.डब्लू. डी के बड़े साब उसी सड़क से गुजरे | उनकी  वेन सड़क के गड्डे में फंस गयी | साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर |विभाग सकते में आकर पूरी सहानुभूति जताने में लग गया |पर साब गुस्सा यूं नहीं उतरा |उतारा तब जब उस क्षेत्र का उपयंत्री निलंबित हुआ | आधुनिक परिभाषा में इसी को कहते प्रशासन का जागना |
     सुनील कुमार ‘’सजल’’


गुरुवार, 4 मई 2017

लघुव्यंग्य- गधापन

लघुव्यंग्य- गधापन
चलते-चलते मैं रुक गया | मैंने देखा कि एक गधा सड़क किनारे मरा पड़ा है |उसका एक साथी गधा गर्दन झुकाए उसके शव के पास खड़ा है | पास से गुजरने वाले लोग यह दृश्य देखकर हंसते हुए नहीं रहते | मुझे हँसी नहीं आती |
दोपहर को लौटते हुए मैं पुन: वहां से गुजरा तो देखा वह गधा अब भी उस मरे गधे के पास सुबह वाली मुद्रा में खडा है , मैं  फिर रुक गया | तभी अचानक मेरा ध्यान उन दो आदमियों की ओर गया , जो आसपास से बेखबर साइकिलों पर सवार र्होकर जा रहे थे |
उनमें से एक आदमी दूसरे को कह रहा  था ,’’ तुम तो बिलकुल गधे हो | भला इतनी देर पांडे के घर रुकने की क्या जरुरत थी ? तुम वहां उसके भाई की मातमपुर्सी करने गए थे या कुम्भ स्नान करने ?’’

     सुनील कुमार ‘’सजल’’