लघुकथा – संतुष्टि
एक सुनसान जगह पर जुआ चल
रहा था | पुलिस को भनक लगी, अत: पूरी तैयारी के साथ छापा मारा गया किन्तु जुआरी
सारे रुपये पैसे वहीं छोडकर भाग खडे हुए |
थाना प्रभारी ने अपने मातहतों को कुछ इशारा
किया | वे जुआरियों के पीछे भागने के बजाय रुपये- पैसे बटोरने में लग गए |
थाना प्रभारी को उनके भाग जाने का जरा भी गम
नहीं था | वे तो इस बातसे आश्वत थे कि हाथ लगी इस बडी रकम से कुछ बचत पत्र खरीद
लेंगे , साथ ही अपने उच्चाधिकारियों को भी खुश कर देंगे और अधीनस्थ कर्मचारी भी
अपनी इस माह की पूरी तनख्वाह बचा लेंगे |
उधर जुआरी यह सोचकर
आश्वस्त नजर आ रहे थे कि वे पुलिसिया पचडे में फ़ंसने से बच गए|
सुनील कुमार ‘सजल”
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