लघुव्यंग्य - अर्थ की अर्थी
आदिवासी गांव में सड़क निर्माण कार्य स्वीकृत हुआ
|सड़क पूरी बन भी नहीं पायी थी कि काम बंद हो गया |पूछने पर पता चला कि धन राशी
ख़त्म हो गई |लोगों को शक हुआ | गली के कुछ छुटभैयों ने उच्चाधिकारियों से शिकायत कर
दी |
अधिकारी ने पूछा –‘’ तुमने कैसे मां लिया कि काम
में घपला हुआ है ?’’
‘स्वीकृत राशि का विवरण तो देखिये ..उतने के
अन्दर ही काम होना था |’’एक ने कहा |
‘’राशि के सामने लिखे शब्दों को पढ़ा है आपने |’’बात
को आगे बढ़ातेहुए अधिकारी ने कह |
‘’क्या |’’ एक ने कह |
‘अनुमानित लागत..|आप में से कोई हिंदी का अच्छा
जानकार हो तो उससे पूछिए कि इसका अर्थ क्या होता है |’’ शब्दों के चक्रव्यूह में
फंसाते हुए अधिकारी ने कहा |
‘’ क्या होता है?’’ किसी ने प्रशन किया | तभी
उनमें से एक व्यक्ति ने तपाक से कहा –‘’लगभग या अंदाजन|’’
‘’बस समझ गए न लगभग राशि दी गयी थी | कोई निश्चित
लागत तो मिली नहीं जो काम पूरा हो पाता
|विशवास न हो रहा हो तो हमसे बड़े अधिकारी के पास जा सकते हो ..|’’अर्थ की अर्थी
निकालते देख लोग एक दूसरे का मुंह ताकते हुए खामोश थे |
सुनील
कुमार ‘’सजल’’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें