व्यंग्य- अच्छे दिन की जप क्रिया
यार, भैया हम तो अजब संकट से
गुजर रहें हैं | मोहल्ले पड़ोस मीडिया गाँव –घर के नेता , ये मोहल्ले वाले वो मोहल्ले वाले ,
आयोजन गोष्ठी , भाषण वालों ने हमें बताया है कि कक्का अब निश्चिन्त हो जाओ | अच्छे
दिन आ रहे हैं | हम तो येई सोचकर परेशान है कि कैसे अच्छे दिन ? अच्छे दिन का अर्थ
तो कोई बताता नहीं | कहते भर हैं अच्छे दिन आ रहे हैं | कहीं ऐसा तो नहीं शनि की
अढ़ैया कटने वाली हो हमारे ऊपर से | काहे
की गाँव के दीनदयाल महाराज हमें आज से दो
साल पहले कहे थे – ललुआ , बेटा जा शनि तुम्हे और सताएगा | काहे की तुम्हारे
ऊपर शनि कि अढ़ैया चल रही है | फिर शनि की साढ़े साती चलन कि उम्मीद है | ‘
हम जब से किसान के घर में जनम लिए हैं , तब से हर ज्योतिषी के मुख से
अपने ऊपर शनि का प्रकोप सुनते आ रहें हैं | सारे जाप हवन करा डाले फिर भी ... जहां के तहां |
अच्छे दिन की बात सुन के हम
बड़े टेंशन में हैं साब | एक दिन हमने उनसे पूछा था | ‘’ दादा , अच्छे दिन का अर्थ
तनिक हमें भी समझा दो |’’
वे बोले –‘ देखते जाओ खुद आ
जायेंगे तुम्हारे पास | ‘’
हम तो यही सोच कर परेशान हैं
काहे से आयेंगे ? बैलगाड़ी,/ मोटरगाड़ी, /ट्रक,/ रेलगाड़ी / नेताजी कि गाडी /भाषण /
आश्वासन/ रैलियों / गोष्ठियों/में लदकर या
उसके सहारे आयेंगे ?
ज्यादा पूछो तो वे सीधे मुंह बात नहीं करते | उलटे फटकारते हैं –‘’
यार कक्का अभी हमाव दिमाग मत खाओ | हम अभी बड़े व्यस्त हैं | तुमाव लाने अच्छे दिन
लाने में लगे हैं | तनिक तुम भी सांस लो,
हमें भी लेन दो |
कहीं ऐसा तो नहीं ,यह हों अच्छे दिन? सरकार मुफ्त में राशन बांटने
वाली हो |फिर का कि बाढ़ वाले इलाके में
जैसे अनाज के पैकेट टपकाते हैं वैसी हमारी झोपड़ी के ऊपर टपकायें | भैया हमारे लिए
तो तब भी वेई दिन थे आज भी वैसई हैं |
सरकार के आश्वासन/ सुविधाओं मिलने के झांसे में आकर हमाव
बेटा कंगलू आज भी आधार कार्ड , वोटर आई.डी,परिवार आई.डी नम्बर हाथ में धरे ये
दफ्तर से वो दफ्तर चक्कर कट रहा है |
हम सोचे चलो विराझा
भैया से ‘ अच्छे दिन का मतलब ‘’ पूछ आते |वे सांसद के लेफ्ट हैण्ड कहाते हैं | मगर
जेब में नई है धेला | तीन माह से हमारी वृद्धा
पेंशन भी नहीं मिली है | नई तो उन्हें गोवर्धन कि होटल में कट चाय पीवा के
पुटियाते और पूछते कैसे अच्छे दिन आने
वाले हैं |
टी.वी.समाचार वाले इत्ता घुमा
फिरा के बताते है कि कछु समझ में नहीं आता | हाँ इत्ता जरुर है नेताओं के अच्छे
भाषण जरुर आ रहे हैं |
बहस वाले कार्यक्रम देख के
ऐसा लगता है कि ये लड़ रहे हैं कि योजना समझा रहे हैं | जुबानी लड़ाई के वक्त ऐसे लगते जैसे मोहल्ला के छुटके बच्चे चुक्कल (एक तरह का ग्रामीण खेल जिसमें एक
वस्तु को थोड़ी दूर फेंककर उस पर किसी अन्य वस्तु से निशाना लगाना )खेलते खेलते लड़ पड़ते हैं
|
भैया हमारे बाप- दादाओं ने अच्छे दिन का मतलब कुछ और समझाये थे |
सरकार कछु और समझा रही है |बाप-दादा कहते थे सप्ताह में सोमवार ,गुरुवार और
शुक्रवार सबसे अच्छे दिन होते हैं | पूजा-पाठ, व्यापार, व् लेनदेन कछु भी करो शुभ
होता है | आज भी हम वही मानते आ रहे हैं |
मगर सरकार तो एक नई बहस छेड़ दी है अच्छे दिन की | का आठवां
दिन भी जुड़ गया सरकार के पंचांग में ? येई बात तो हमाई समझ में नई आ रही है |
परसों रामलू भी कह रहा था |
‘’ काका, ये कैसे अच्छे दिन आ रहे तनिक हमें भी समझाओ | तुमने बाल सफ़ेद करो है
लोकतंत्र कि आवोहवा में | बस जा दफ्तर से बा दफ्तर चक्कर काटने अलावा कछु नई है ये
अच्छे दिन में | ओला वृष्टि के मुआवजा पाने के लिए ओला पीड़ित हकरू गोंड दफ्तर ,बैंक के चक्कर
काटते-काटते थक गया |कर्जा न पटा सकने के कारण फांसी में लटक कर मर गया.... | ‘’
‘’अरे यार तुम भी नेता की संगत करने लगे का |’’
‘काहे काका का बात हो गयी |’’
‘’ तुम ऐसे भाषण पेल रहे हो जैसे नए-नवेले बैल को हल में फांदकर खेत
में उतारने से या तो वो अड़ी कर बैठ जाता है या फिर रोके नहीं रुकता | जा बताओ
पढ़े-लिखे तुम हो कि हम | जब तुम्हारी समझ में नहीं आ रहे हैं ‘’अच्छे दिन’’ तो हम
जैसे गरीब , महंगाई के मारे मजबूर, मजदूरन जिंदगी को ख़ाक समझ में आएगा | येई से
कहते बेटा इस लोकतंत्र में सिर्फ दिन गिनो | आजादी के बाद से हम दिन गिनते आ रहें
| अब भी गिनते रहेंगे ‘’अच्छे दिन सोमवार,गुरु.... ,बुरे दिन मंगलवार शनि ......| बस येसई
...समझे |
सुनील कुमार ‘’सजल’
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