शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

व्यंग्य – शुभचिन्तकों के कट आउट

व्यंग्य – शुभचिन्तकों के कट आउट


आप शुभचिंतक हैं ? किस तरह के शुभचिंतक ? आम आदमी जैसे या कट आउट वाले || वैसे शुभचिंतक होना ही महत्वपूर्ण बात है | आम लोगों की भीड़ में चाँद लोग ही शुभचिंतक निकलते हैं | इनमें कुछ वास्तविक जन हितैषी शुभचिंतक तो कुछ भीड़ बटोरने वाले शुभ्सिन्ताखोते है |
 मैं ऐसे ही चाँद शुभ चिंतकों को जानता हूँ जिनका चिंतन अपने आप में थोड़ा अलग किस्म का होता है | यूँ तो आम लोगों के बीच रहते हैं ,,आम लोगों को हाल चाल पूछते है | आम जनता के शुभचिंतक बने रहने का एक फायदा और होता है कि इनके कट आउट बनकर गाँव शहर के गली चौराहों में तंग जाते हैं | आदर्शमय जनहित वाक्यों के साथ इनका मुस्कुराता चेहरा आम जनता को लुभाता है |
हमारे नगर में ऐसे ही दो चार कट आउट वाले चहरे हैं जिनके कर्मों का घडा कुकर्मों से भरा पडा है |
बलात्कार, डकैती , लूटपाट अपहरण हफ्ता वसूली , सुपारी लेना , बूथ कैपचरिंग गोली चालन , ह्त्या और न जाने किन- किन अपराधों से इनके हाथ रेंज पड़े हैं मगर कट आउट पर ऐसे दयावान दिखाते हैं मानो गांधीगिरी के पोषक है एक गाल पर चांटा पड़ने पर दूसरा गाल दिखने वाले | जनता इनके बारे में सब कुछ जानती है प् यह कह कर अनदेखी कर देती है कि अगर यह सब न करें तो जन प्रतिनिधि कैसे बनेगें कुरसी कैसे हासिल करंगे ऐसा बन पाना भी  हर किसी की क्षमता में शामिल नहीं है | जो बन पाते हैं वे काफी संघर्ष कर इस ऊंचाई तक पहुंचाते हैं |
 पिछले वर्ष नगर के एक सैकड़ा अपराधों से नामजद गुंडे को एक राजनैतिक पार्टी के लोगों ने अपनी पार्टी का नेता मां लिया | हालाँकि उसका जीवन कतरों से भरा पडा है क्योंकि आदमी अपराध तो करता है पर अपने पीछे दुश्मनों की एक बड़ी भीड़ भी तैयार करता जाता है |
 नेता बनने के बाद इनमें कई परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की गई | मसलन इनकी बोली वाणी लट्ठमार थी | अब तक ये दूसरों से अपने हाथ पाँव जुद्वाते आ रहे थे , अब स्वयं को जनता के सामने जोड़ने की नौबत थी | जिसे वह इतनी आसानी से स्वीकारने में कतरा रहा था | पार्टी के लोग उन्हें समझा कर परेशान थे | काफी सोच विचार के बाद उपाय निकाला गया कि क्यों न इनका मुस्काता चहरे वाला कट आउट जगह – जगह लगाकर इनके प्रति जनता इन्हें अपना हितैषी माने कि ये अब पहले वाले आदमी नहीं रहे |बल्कि जनता के शुभचिंतक हैं | उनके कट आउट यहाँ वहां लगते ही वे मीडिया में चर्चा में आ गए |
 इसी तारतम्य में एक पत्रकार से पोछा कि एक तरफ तो आप उनके खिलाफ अखबारों में कलम चलाते हैं और वक्त आने पर उनकी तारीफ़ के पुल बाँध देते है |
 वे हंसते हुए बोले – ‘ वक्त के साथ धैर्य का धंधा फैलाना पड़ता है | सिकोड़ना भी | यानी आप भी नेता चरित्र की जीवन शैली अपनाते हैं |
 अगर सच्चे कलम के सिपाही बन बैठे तो भूखे मरने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह जाएगा इस युग में ईमानदारी पापी पेट की सबसे बड़ी दुश्मन है साब |
उनके कहने का मतलब यही था कि शुभचिंतक बनी | मगर मुखौतेबाज | तभी आप चैन की जिन्दगीं जी सकते हैं और लोगों के दिल में अपने प्यार का मंदिर बसा सकते हैं | क्या आप ऐसे शुभचिंतक बनाना पसंद करेंगे |

     सुनील कुमार ‘ सजल’ 

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