रविवार, 1 नवंबर 2015

व्यंग्य – कलियुग में लक्ष्मी प्राप्ति का ‘’ बीज मंत्र’

व्यंग्य – कलियुग में लक्ष्मी प्राप्ति का ‘’ बीज मंत्र’



लक्ष्मी किसे नहीं सुहाती ..... हर कोई चाहता है लक्ष्मी जी उसके घर में हमेशा विराजी रहें | मगर अफ़सोस इस बात का है कि इस कलियुग में वह वहीँ विराजती हैं जहां दिखावे की चकाचौंध हो, जहां देसी संसकृति को कूदा- करकट की भांति नालियों या कचरे के डिब्बे में फेंककर पश्चिमी सभ्यता से सजी जगमग सजावट हो, जिस घर में रहन-सहन , बोलचाल , खानपान सब कुछ आधुनिक हो गया हो , जहां भ्रष्ट, लुटेरे, घोटालेबाज ,रिश्वतखोर बसते हों |
 झोपडपट्टी , मिट्टी के घरौंदे आज भी पुरातन संसकृति को बोझ की तरह ढो रहे हैं , जैसे उल्लू लक्ष्मी जी को सवारी देता है | लक्ष्मी जी को ऐसे घरों से विरक्ति है , इसलिए यहाँ गरीबी की भिनभिनाती मक्खियाँ बसती हैं ,’’ अमीरी’’ की खुश्बूनुमा हवा शायद ही इन्हें नसीब होती है |
 हम भी चाहते थे कि हमारी भी गरीबी दूर हो | हम भी बड़े लोगों की तरह सपने देखें | अभी मूंगफली के दानों पर टूट पड़ते हैं , लक्ष्मी जी की कृपा से अमीरों की तरह काजू – किसमिस , बादाम , पिस्ते की प्लेट सरकाएं | इसी तारतम्य में हमने सुन रखा था , कि ‘’ लक्ष्मी यज्ञ ‘’ या ‘’ लक्ष्मी-जाप’’ करवाने पर लक्ष्मी जी की कृपा श्रद्धालु  पर बरसने लगती है | श्रद्धालु कंगाल से मालामाल हो जाता है |
हालांकि टी.वी. में तरह –तरह के ‘’ तेली शापिंग के विज्ञापनों में सुनते रहते हैं अमुक लक्ष्मी यन्त्र , सिक्का कैसेट मंगवाने पर घर में धन की वर्षा शुरू हो जाती है,पर अपनी औकात कहाँ जो पांच-हजार , दस हजार के विज्ञापनों में दिखाई गयी सामग्री बुला सकें | अगर अपनी उन सामग्रियों को बुलाने की औकात होती तो अपन गरीब ही क्यों कहलाते ? खैर छोडिए , धन की चाह में चासनी में रस्गुल्ले  की भांति डूबते – उतराते हम एक पंडित जी से मिले | सुन रखा था वेलक्ष्मी प्राप्ति तंत्र – मन्त्र के ज्ञाता है | हमने पंडित जी से कहा- ‘’ पंडित जी, दीपावली आ रही है | कुछ ऐसे उपाय बताइये , जिससे हमारी औकात अमावस की काली रात से जगमग दीपावली हो जाए | उन्होंने हमारे माथे की रेखाओं को निहारा | हाथ खुलवाकर हथेली में कुछ देखा , नाखूनों को अँगुलियों से दबाया | उन्हें जाने क्या दिखा और एक पल को आँख मूंदकर ‘’ दूरदर्शी की भाँती कुछ जानने का प्रयास किया | फिर पलकें हौले से खोली और बोले- ‘’ तुम्हारे दिन प[अलाट सकते हैं , जैसे कूड़े के दिन बदलते हैं , ठीक वैसा ही समझो |
‘’ मुझे क्या करना होगा पंडित जी ?’’
हमने दोनों हाथ जोड़ लिए जैसे भक्त मूर्ति के समक्ष खड़े होकर सावधान की मुद्रा में भक्तिमय हो जाता है |
‘’ ज्यादा कुछ नहीं , पूजा-पाठ करवाकर हमें गौदान करना होगा |’ उन्होंने इतने सहज भाव से कह दिया जैसे किसी बच्चे ने चाकलेट-टॉफी मांगी और अपन ने दिलाने को कह दिया |
‘’ मगर पंडित जी , न हमारे पास गाय है न बछड़े | और न ही अपने पास इतना धन है कि गौ खरीदकर दान कर सकें | इसलिए ऐसा कोई उपाय बताइये जिसमें हर्रा लगे न फिटकरी और रंग चोखा हो जाए |’’
वे हमारी बात सुनकर ऐसे हँसे जैसे कोई पागल को देखकर हंसता है –‘’ बेटा , लक्ष्मी खर्च किए बगैर हाथ में आती क्या ?’’
‘’ ठीक है पंडित जी, चलो हमने कहीं से उधार लेखर पूजा पाठ व गौदान की व्यवस्था कर भी ली, और अगर धन नहीं मिला तो |’’ हमने कुछ शंकाओं को व्यक्त किया तो वे झट से प्रत्युतर में बोले – ‘ बच्चा भगवान विश्वाशी पर कृपा करते हैं , और तुम्हारे कर्म-धर्म दान पुण्य के लेखा के आधार पर ‘लक्ष्मी वर्षा , लक्ष्मी जी की प्रसन्नता पर निर्भर है | प्रसन्न हुई तो चंद महीने में कृपा से धन ही धन हो जाएगा घर में | वरना पुन: मनाने के प्रयास करने होंगे |’’
‘’ पंडित जी , आप तो सट्टे के खेल की भांतिआर-पार की बातें कह रहे हैं यानी धन लगाओ , नंबर लग गया तो हो गए मालामाल वरना जैसे पहले थे वैसे आज भी कंगाल |’’
पंडित जी की घुमाने – फिराने वाली बातों से जब हमें संतुष्टि नहीं मिली तो हमने उनसे पल्ला झाड़ते हुए उनको नमस्कार कर लिया | मगर वे भी कम गुरु नहीं थे | वे अंत तक बोलते रहे- -‘’ बेटा , हमारी बात मां लो वरना पछताओगे ....|’
पर हम क्या पछताते , हम उनसे छुटकारा पाकर एक संत जी श्री-श्री विभूति महाराज के पास पहुंचे | वे पास के मंदिर में शरण लिए हुए थे |हमने उनके चरण स्पर्श कर उन्हें प्रणाम किया | इस समय वे अकेले गांजे के धुएँ से तन-मन को नहला रहे थे | भोले के प्रसाद मदमस्त होते हुए वे हमें देखकर मुस्कुराए और एक ओर बैठने का ईशारा करते हुए बोले-‘’ बोलो बच्चा , कैसे आना हुआ ?’’
    हमने दोनों हाथ जोड़े उनसे कहा – ‘’ बाबा जी, आप तो जगत उद्धारक हैं.... हमने कई बार आपको भक्ति चैनलों में देखा है | आप हर समस्या का निदान जानते हैं .... इसी क्रम में हम भी आपके पास एक समस्या लेकर आए हैं यदि आपकी कृपा हो तो कहूं |’’
‘’ कहो न बच्चा , क्या कष्ट है...हमने तो कष्ट हरने  के लिए ही संन्यास धारण किया है, भगवा वस्त्र अपनाए हैं |’’
‘’ बाबा , इन दिनों हम गरीबी लाचारी से परेशान हैं ... मेहनत करते हैं पर वह धन प्राप्त नहीं होता जिससे कुछ बचत हो सके ... हमने दर्जनों पंडितों ज्योतिषियों के उपाय आजमाए पर गरीबी से छुटकारा नहीं मिला |’’
‘’ तुम क्या करते हो बच्चा |’’उन्होंने हमसे पूछा और एक पात्र में राखी कंडे की राख ( भभूति ) , एक चुटकी लेकर हमारी ओर बढ़ायी | बातों ही बातों में खाने का ईशारा किया |
‘’ सरकारी दफ्तर की कुरसी पर बैठता हूँ ... पर धेला भी ऊपरी आमदानी नहीं होती ... सूखी तनख्वाह से भला इस जमाने में गुजारा कहाँ होता है ?’’
‘’ बच्चा कुछ न कुछ अवश्य ही कमी है तुम्हारी करनी व कुव्वत में |’’
‘’ मगर संत जी हमने ढेरों उपाय किये पर सफलता नहीं मिली .... और अब क्या कमी हो सकती है |’’
‘’ तुम ईमानदारी से नौकरी करते हो बेईमानी से |’’
‘’ जी, बेईमानी तो मेरे संस्कार में नहीं है |’
‘’ समझ गया, तेरे अफसर तुझे खाने के मौके क्यों नहीं देते | बच्चा तुझे आज एक बीज मन्त्र बताता हूँ .... इस कलियुग में इसी का बोलबाला है धरती से लेकर आसमान तक के देवता इससे खुश होकर कृपा करते हैं |’’
‘’ जी...जी बताइये... जैसा आप कहेंगे वैसा ही करूंगा इसके लिए मुझे कुछ भी कष्ट सहना पड़े |’’
‘’ बच्चा तुझे कष्ट उठाने की जरुरत नहीं बल्कि हमारे चित्र के सम्मुख बैठकर एक माला हमारे दिए मन्त्र की जपना है और मनन करते हुए कहना अपने मन को मन्त्र के अनुरूप बनने के विचार करना है |’’
‘’ जी....| ‘’ कहकर हमने उनके चरण पकड़ लिए |
‘’ बच्चा इतने उतावले न बनो...बताता हूँ|’’ कहकर संत जी कहने लगे ‘’ ईश्वर मुझे बेईमान , बना दो .... मैं बेईमान बन गया... भविष्य में भी बेईमान बनाता चला जाउंगा | ऐसा कहते हुए 108 बार इस मन्त्र को जपते हुए स्वयं को ढालना है |’’
‘’ संत जी ये क्या कह रहे हो ?’’
‘’ बच्चा तू अभी नासमझ है.... तू जानता है लक्ष्मी जी की सवारी उल्लू क्यों है ? नहीं न .....तो जान ले लक्ष्मी यानी धनवान गरीबों मजबूरों इमानदारों पर राज करते हैं जो उल्लू के प्रतिक हैं और लक्ष्मी उनके पास है जो बेईमान , रिश्वतखोर , घोटालेबाज हैं | अब तो समझ गया होगा |’
‘’जी बाबा जी ‘’ कहकर हमने पुन: उनके चरण स्पर्श किये | बाबा जी खुश हुए | हमने आगे कहा –‘’ पर बाबा जी आप अध्यात्म ज्ञान से हटाकर यह कलयुगी ज्ञान क्यों बाँट रहे हैं ?’’
‘’ बच्चा, इस युग में जो ज्ञान मानव हित में है हम वाही ज्ञान बांटकर भलाई करते हैं | और बच्चा तुमने कुछ दिन पूर्व अखबारों व मीडिया चैनलों में ‘बाबाओं’ की करतूत ‘ स्टिंग आपरेशन से जुड़े प्रोग्राम में देखि होगी | सारे के सारे बेईमानी व बेईमानों को आश्रय देने वाले निकले | तो हम कलयुग का अदभुत ज्ञान देकर कौन सा बुरा काम कर रहे हैं | अध्यात्म व भक्ति को गेरुआ चोला तो आकर्षण का केंद्र बनाने के लिए है | मगर असली भलाई अदभुत शिक्षा देने में है | समझा बच्चा |’’
‘’ जी बाबा जी, आपके इस अदभुत ज्ञान का आभारी हूँ | अच्छा बाबा जी अब जाते-जाते ऐसा आशीर्वाद दें ताकि मैं अपने कर्म क्षेत्र में सफल रहूं |’’ जैसे ही हमने उनके चरणों में अपना माथा टिकाया उन्होंने लोहे के चिमटे से हमारी पीठ ठोंकी –‘’ खुश रहो , तरक्की करो |’ और हम भीड़ में से प्रसाद पाए बच्चे की तरह ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट आए |

                   सुनील कुमार ‘’सजल’’

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