शुक्रवार, 13 मई 2016

लघुकथा – कला

लघुकथा – कला

‘’ इतनी सुन्दर पेंटिंग कहाँ से खरीदी जीजाजी ....बड़ी सुन्दर लग रही है ....जी चाहता है इसे मैं ले लूं |’’बैठक कक्ष की दीवार पर टंगे चित्र की ओर इशारा करते हुए साली ने कहा |
जीजा जी का झट से जवाब था- ‘’ न..भई न ..इसे मैं किसी को नहीं दे सकता .. इसे मेरी भांजी सुषमा ने ख़ास तौर से अपने मामा को दिया है |’’
‘’ क्या सुषमा ने बनाया है...हूँ.. हो ही नहीं सकता देखने से तो नहीं लगती है वह कहीं से ...कि चित्रकार हो सकती है |’’
‘’ क्यों ? किसी कलाकार के चहरे पर उसके कला प्रेम की मुहर लगी होती है ?’’ जीजा जी ने कड़े शब्दों में कहा |
‘’ और नहीं तो क्या ... न तो कभी उसकी कला पात्र-पत्रिका के पृष्ठों पर देखने को मिली और न ही उसके चित्रों की कोई प्रदर्शनी लगी |’’साली ने कहा |
‘’ ‘’ सुनो साली साहिबा... मेरी भांजी को कम मत आंकना ....|तुम्हें बता दूं इस दुनिया में दो तरह के बलात्कार होते है एक तो वे जिन्हें थोड़ी –सी कला क्या हासिल हुई प्रदर्शन की भीड़ लगा लेते हैं और दूसरे वे जो पारंगत होने के बावजूद सिर्फ सीखते रहते हैं...समझी न |’’
जीजा जी के कथन पर साली साहिबा को गुस्सा आ रहा था |


सुनील कुमार ‘’सजल’’

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