व्यंग्य – नुस्खों का नायक
पेट के रोग यानी गैस , कब्ज से हम कई दिनों से परेशान थे, जिसने जैसा
बताया हम उस डाक्टर के पास जाकर जल्दी ठीक कर देने हेतु अपनी नाक रगड़ते रहे |
रोजाना वैद्याराजो से लेकर नीम हकीमों के साथ टी.वी. प्रोग्राम देखकर उन्हें
आजमाने का युद्धस्तर पर प्रयास करते रहे |अंतत: हम हार गए और गिरफ्तार सैनिक की
तरह निराश हो गए परन्तु एक दिन हमारे दिमाग में ज्ञान का बल्ब पूरे वोल्टेज में
जगमगाया क्यों न बच्चू तू खुद तरह तरह की किताब पढ़ नुस्खे आजमाकर विशेषज्ञ बाब जा
| हमारे देश के अधिकाँश नीम हकीम ऐसा कर चिकित्सा व्यवसाय में महारथ हासिल कर
रोगियों की जेब से आसानी से नोट के पुलिंदे निकालकर दुनिया में बाजी मार रहे हैं |
और तू मूर्ख अभी भी डाक्टरों के डर पर बैठे पेट फुलाने पिचकाने की गोलियां
मांग-मांगकर हताश हुआ जा रहा है |
अब तो हमें गैस कब्ज रोग विशेषज्ञ बनने का का भूत सवार था |
निकल पड़े उस मार्केट की और जहां गंदे साहित्य से बजबजाती दुकानों से लेकर सात्विक
साहित्य तक की दुकाने सजी थी | दुकान में पहुँच कर विभिन्न प्रकार की रोग दर्शन
वाली किताबों को उलट पुलटकर देखा | कुछ पुस्तकें पसंद भी आयी | मसलन गैस कब्ज
भगाओ, डा. संभारिलाल के अचूक गैस कब्ज के नुस्खे | ये सारी पुस्तके पसंद भी आयी |
मसलन गैस कब्ज के नुस्खे | ये साड़ी पुस्तकें मात्र पचास रुपया खर्च कर हमारी
मुट्ठी में अलाउद्दीन के चिराग की तरह आ गयी | | हम बहुत खुश हुए जैसे किसी कंजूस
पेटू को बफर पार्टी में खाने का मौक़ा मिल जाए |
हमने सिलसिलेवार पुस्तक पढ़ना प्रारम्भ किया | कुछ नुस्खे समझ में आते
और कुछ तो सर के ऊपर से पवन चक्रवात की तरह घूम-घूमकर हमारी समझ क्षेत्र से गायब
हो जाते | कुछ ऐसी जड़ी-बूटियों का उल्लेख भी मिला, जिन्हें पूछने पर पता चला हमारे
बाप दादा ने भी इनके बारे में कभी नहीं सूना था | खैर जो बात हमारी समझ में आई उसे
आपको भी सुना देते हैं | शायद आपको भी काम
आ जाये |
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एक कौर ( निवाला) भोजन से पच्चीस बार चबाइये|
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*भोजन के बीच घूँट-घूँट कर पानी अवश्य पियें |
इससे भोजन पचने में आसानी होती है |
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*भोजन के बीच में ज़रा भी पानी न पियें | यह जहर
का काम करता है | भोजनोपरांत एक दो घूँट पीकर करीबन घंटे भर बाद पानी पीजिए |
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*दिन भर में करीबन तीन चार लीटर पानी पीजिए पर
ध्यान रहे अधिक पानी पीना मोटापा बढ़ता है |
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स्लिम बदन के लिए पानी खूब पीजिए | गैस कब्ज में
लाभकारी होगा |
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मसालेदार खान पान से दूर रहें |
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उपवास से गैस कब्ज दूर भागत हैं |
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गैस के रोगी खाली पेट बिलकुल न रहे |
इन निर्देशों के अलावा कुछ जड़ी बूटी ग्रहण करने
की बात कही गयी थीं|जिन्हें ढूँढने में दो जोड़ी चप्पलें घिस गई | फिर भी जो
प्राप्त थी उसे बाकायदा फांक रहे थे , लेकिन दिए निर्देशों के पालन में हम जगह जगह
गच्चा खा जाते |एक निर्देश को आजमाते तो दूसरा निर्देश अंगुली उठाकर कहता महसूस
होता, उसे आजमायेगा तो बीमारी रेल की तरह पटरी पर बढ़ेगी या भारतीय पक्की सडकों की
तरह जगह जगह उखाड़कर छोटी होगी | हम ठर्रा जाते | दूसरे निर्देशों पर आ जाते तो
तीसरा आँख गुरेरता | कुल मिलाकर हम खुद को संभालते हुए थे |
एक दिन पत्नी हम पर गुस्सा उतारती हुई बोली- ‘’
तुम दफ्तर पहुचने में लेट क्यों होते हो कारण बताओ |’’
‘’ बताओ इससे अच्छी बात हमारे लिए और क्या हो
सकती है |’’ हमने कहा |
‘’ घंटा भर तक पशुओं की तरह भोजन की जुगाली करते
हो उसमें तुम्हारा ऊओरा घंटा बर्बाद होता है | ‘’ वह गुस्से में अपने मुख मण्डल का
नक्शा बिगाड़ते हुए बोली |
‘’ पेट से परेशान हूँ.....इसलिए वैद्यों के बताये
निर्देशों पर खाना पीना ग्रहण करता हूँ | ‘’ हमने शांतिपूर्वक कहा |
‘’तुम पेट से प-रेशन हो...और हो भी कि नहीं मुझे
तो विशवास नहीं होता, लेकिन मैं तुमसे जरूर परेशान हूँ |’
अब उनके मुख मण्डल का का नक्शा और भी ज्यादा
विकृत हो गया था | हम डर गए किकहीं विभाजन रेखा न खीच जाए पर यह नौबत न लाते हुए
वह थोड़ा गंभीर वाणी से बोली-‘’ऐ जी तुम्हे यह क्या हो गया .... कभी खाना खाने के
बीच में लीटर भर पानी पी जाते हो ...कभी तेज मसाले
वाली सब्जी माँगते हो तो कभी पतली रोटी और बिना
मसाले वाली सब्जी और मोती रोटी मांग कर मुझे रोने पर मजबूर कर देते हो |कहीं किसी
ने तुम पर टोना-टोटका तो नहीं कर दिया | जो तुम इस तरह की हरकत कर रहे हो |
थारो कल भीखू ओझा को
बुलवाकर तुम्हारी झाड़फूंक करवाती हूँ | ‘’ वह कुछ रुंसी हुई तो हमने उन्हें
सामान्य्होने को कहा –‘’ अरी भाग्यवान तो परेशान न हो | हमें कोई भूत प्रेत नहीं
लगे हैं | बल्कि लायी हुई पुस्तकों का गहन अध्ययन कर गैस कब्ज विशेषज्ञ बनने का
अनुभव प्राप्त कर रहे हैं ... ताकि उन नीम हकीमों की तरह खूब धन ....|’’ तभी वे
बीच में बोल उठी | क्या कहा .....पहले खुद का पेट तो ठीक तो कर लो ...|’’
‘’ तुम परेशान न हो... मैं धीरे – धीरे ठीक हो
जाऊंगा |
‘’ परेशान क्यों न होऊं ... तुम्हारी हरकतों ने
तो मेरी नाक में दम कर रखा है ... अब तुम सुधर जाओ वरना तुम्हें सुधारने का बीड़ा
उठाऊं |’’
‘’ देखो तुम मेरे मामलों में टांग न अडाओ| ‘’
उसकी दी चुनौती हमसे बर्दाश्त न हुई |
‘’ क्या मैं टांग अड़ा रही हूँ .तो फिर अब अड़ाकर
रहूँगीं | ‘’ और झट से हमारी नुस्खों वाली किताबों को उठाकर ले आयी | और
टुकड़े-टुकड़े करने में जुट गयी जैसे कोई पागल प्रेमी दिल के अरमानों को टुकड़े-टुकड़े
कर देता है |
हम सर पर हाथ रखकर बैठ गए ||इसी बीच इनकी इस
चुनौती पूर्ण कारगुजारी को ललकारने का प्रयास किया तो उन्होंने अखबार के उस पन्ने
को लाकर हमारी आँख के पास टिका दिया, जिसमें लिखा था –‘’ महिलाओं की सुरक्षा हेतु
घरेलू हिंसा क़ानून को सदन की सहमति मिली |’’
(2010 में विनायक फीचर्स से
प्रकाशित)
सुनील कुमार ‘’सजल’’ ...