व्यंग्य – खूबसूरती के पुजारी
खूबसूरती हर किसी को फ़िदा कर देती है |
खूबसूरती के दीवानों से उनकी दीवानगी पुछिए| ऐसे खिल उठाते हैं जैसे ताल में कमल |
बदन में गुदगुदी , ‘ होठों पर मुस्कान से लबरेज होकर अतिश्योक्ति पूर्ण बखान करते
हैं | यदि खूबसूरती के फ्रेम में प्रेमिका हो तो क्या कहने उनके
वे भी खूबसूरती के पुजारी हैं | वे इसके
पुजारी क्यों बने | इसका पता तो बाद में चलेगा | फिलहाल यह जान लें कि ख़ूबसूरत
सूरतों ने उन्हें कवि बना दिया | कभी-कभार शायरी भी मार लेते हैं वे | शायरी वाही
गांव की बोली वाली |चाँद का टुकड़ा , गुलाब का फूल , खुशबू भरा ख़त , तारों के झुमके
वाले प्रतीकों से युक्त छान्द्विहींन | शायरी मात्र तुकबंदी |
वे कहते हैं –‘’ शायरी या कविता तो हम लिखते
हैं यार | इत्तई है कि तुम छंद शास्त्र लिखते हो | अपने को यह सब बकवास पसंद नहीं
|’’
वे चरस गांजा व दारू तो लेते नहीं | हां बीडी
सिगरेट फूंक लेते हैं | कहते हैं- ‘’ जीवन में एकात नशा होना जरूरी है |’’ पर असली
नशा उन्हें खूबसूरती का | यूँ तो ख़ूबसूरत है | मगर कृत्रिम नशा उन्हें खूबसूरती के
लिए चहरे पर ब्यूटी पार्लर में पॉलिश करवाते हैं |
एक दिन वे बता रहे थे | एक ख़ूबसूरत लड़की को
उन्होंने पहली बार छेदा | पर वह भी गुंडे की छोरी निकली | जमकर ठुकाई हुई | साब वे
तो बाख गए कि बाप ने कट्टा नहीं ताना | वे बताते हैं –‘’ हमारे शयन कक्ष में कभी
आकर देखें | कैसे – कैसे पोस्टर लगे हैं | कैसी-कैसी ख़ूबसूरत लड़कियां | यार लगता
है | खूबसूरती की दुनिया में हामी बादशाह हैं |’’
एक दिन ख़ूबसूरत लड़की दिख गयी | साली आँखों से
दिल तक उतर गयी | रातों की नींद गायब हो गयी | ऐसा लगता काश वह हमारी किस्मत में
होती | पर हमारी किस्मत ने हमें झोपड़ी में पैदा किया | वो महलों की रानी , हम
झोपड़ी के राजा कैसे तालमेल बैठे |
काश! हमें रिक्शा चलाना आता | उनसे विनती करते मैडमजी आप
प्रतिदिन कॉलेज जाती हैं | हमारे रिक्शे पे जाया करें | हम मुफ्त में पहुंचा दिया
करेंगे | या फिर आप जीतता देंगी उत्ते ही रख लेंगे | पर अपनी फूटी किस्मत को क्या
कहें | एक पुरानी साइकिल भी नसीब नहीं हुई | तो रिक्शा क्या चलाएंगे |
एक सयाने हमारे रोग को भांप कर समझा रहे थे |
नश्वर संसार की खूबसूरती पर विश्वास न करना | वरना पछताओगे | सयाने को कैसे समझाते
| बुढऊ अनुभव लेने के पहले आप भजी डूबे होंगे | इस नश्वर संसार की खूबसूरती में |
ऐसे थोड़े ही सीख मिली होगी | सयाने उसे समझा रहे थे | खूबसूरती से प्रेम करना हो
तो नदी ,पहाड़ , जंगल की खूबसूरती से प्यार करो | बुढऊ को कौन समझाता , ये सब चीजें
सिर्फ दूर से अच्छी लगाती हैं | पास से
देखो तो जैसे हम | वे कह गए कर्म ही पूजा है | हम भी तो वाही कर रहे हैं | कर्म की
पूजा कर उस ख़ूबसूरत को पाना चाहते हैं | पर डर लगता है | साहस बढाने वाली कोई दवा
बाजार में नहीं बिकती | दवा बनाने वाली कंपनियाँ हम जैसे प्रेमी की तरफ क्यों नहीं
देखती | यार उन्हें जब से देखा है | खाया-पीया अंग नहीं लगता | सांस-सांस में उनकी
याद बसी है | प्रभु दर्शन के वक्त उनकी सूरत दर्शन देती है | सच्ची | पर कहते हैं
न सोचो वह सदैव हासिल नहीं होता | यही तो बेरहम वक्त की रीत है | वे तो तड़प की रीत
जी रहे हैं | परन्तु पड़ोस के एक दादा का कहना है | खूबसूरती पर कीड़े लगते हैं |
उनका यह दर्शन कृषि आधारित था | जिंदगी भर खेती बाडी में उलझे रहे | दादा का दर्शन
अपने खेत बगीचों में लहलहाती ख़ूबसूरत फसलों से प्रभावित रहा है |मगर दर्द का दूसरा
पहलू यह भी था | ‘’ यार वैज्ञानिक कृत्रिम हाथ-पैर बना रहे हैं | क्रित्रम कोख
क्यों नहीं बनाते |’’ जिसमें खूबसूरती की पूरी क्षमता हो |
हमने कहा –‘’ मूल्य तो उसी चीज का होता है न
जिसकी मात्रा या संख्या कम होती है | यदि सभी ख़ूबसूरत पैदा हिने लगे तो ख़ूबसूरती
का मूल्य ही क्या रह जाएगा |उनका क्या होगा जो ब्यूटी फुल या हैण्डसम बनाने के
पार्लर , चिकित्सालय व दुकानदारी खोल बैठे हैं | वे बोले- -‘’ यार भूलो मत |
धंधेबाज धंधा जमाने के सारे फंदे निकाल लेते हैं | कल वे ख़ूबसूरत बनाने की नई होड़
पैदा करलेंगे | और दुनिया इसी होड़ में फंसकर खुद को अब्वल महसूस कराती रहेगी |
ख़ूबसूरत बनने को होड़ तो यूँ भी मची है | तरह –तरह
के चेहरों पर तरह- तरह की छाप | कभी – कभी
तो बदसूरत व ख़ूबसूरत में फर्क करना टेढ़ी खीर हो जाता है |
सुनील कुमार ‘सजल’