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मंगलवार, 16 जून 2015

व्यंग्य-भोले बाबा का त्रिशूल



व्यंग्य -भोले बाबा का त्रिशूल 

देश में चमत्कारों की जड़ें बहुत गहरी हैं चमत्कारों को नमस्कार है। जहाँ चमत्कार है ,वहीँ नमस्कार करने वालों की भीड़ है भीड़ चाहिए तो चमत्कार करिए। वरना भीड़ तो भीड़ होती है जिसकी सोच में दिशा का कोई स्थान नहीं। बस जहाँ चमकदार चीज दिखी दौड़ पड़ी उसी ओर। 
कस्बे का एक एक मंदिर। खंडहर नुमा। भक्तों को यूँ भी फ़ुरसत नहीं कि मरम्मत करा दें। चंदा वसूलने वाले भी बेसुध हैं उस ओर से। 
वह मंदिर भोले बाबा का है। खंडहर नुमा। साल में सावन के महीने व महाशिवरात्रि तथा ऐसे ही एक दो आयोजनों में। वहां फूल-प्रसाद ,पानी इत्यादि चढ़ा देते हैं। वरना बेचारे भोले बाबा भोले लोगों की तरह ही भोले बने पड़े रहते हैं। काहे न पड़े रहें। लोगो के जब जी में आता है। नदी नदी -तालाब से अंडा कार अंडा कार पत्थर है। और गली -चौराहे व में बिठा देते हैं। इत्ते सारे स्थापित शंकर जी की अगर पूजन करने बैठे तो दिन भर भोले शंकर के स्थापित स्थानों से ही उन्हें फ़ुरसत न मिले। वैसे भोले भंडारी के साजो- सज्जा वाले दो तीन मंदिर हैं कस्बे में। वहां भक्तों की भीड़ होती है। इधर खंडहर में बिराजे मूर्तिवत भोले को कौन पूछता है। 
उस दिन चमत्कार हो गया साब। जब खंडहर नुमा मंदिर में विराजे भोले का त्रिशूल हल्का कंपन कर हिलने लगा। देखने में लग रहा था कि हिल रहा है। 
इसी बीच एक भोले भक्त की नजर पड़ गयी। पास जाकर देखा हिलते त्रिशूल को। भक्तों की नजर अक्सर ऐसे ही चमत्कारों पर पड़ती है। चारो तरफ खबर आग की तरह फैलती सी। टूटती भीड़। भेड़चाल वाली भीड़। धक्का -मुक्की।मान -मर्यादा की चिंता नहीं। बस दर्शन हो जायें हिलते त्रिशूल के। इसी में अहो -भाग्य है। त्रिशूल का हिलना भी अजीब पहेली था। रुक -रुककर हिलता। 
मंदिर स्थल पर 'जयकारा 'शुरू। पत्रकार। मोबाईल / वीडियो रिकॉर्डिंग। हिलते त्रिशूल पर सबकी मुर्गी की एक टाँग वाली मनगढ़ंत कहानियां। 
जो अभी तक भोले बाबा को अपनी शक्ल भी न दिखाते थे वे मंदिर के स्वयंभू भक्त बन कर बैठ गए बाबा के भजन -कीर्तन में। प्रसाद वितरण। ढोलक -मंजीरे। चारो तरफ गूंजती भक्ति मय धुन। भक्ति में डूबी भक्त मंडली। चढ़ती चढ़ोतरियां। गांजा-तम्बाकू की चिलम जल कर तैयार है। दूसरे कोने में भांग तैयार हो रही है। भक्तों की और से की जा रही चढ़ोतरी ऐसी व्यवस्था के लिए आबाद रहती है। 
भोले बाबा भी सोचते रहे होंगे कितने स्वार्थी भक्त हैं। मामूली से कंपन के सहारे भक्ति के प्रपंच से लूटने का बाजार विकसित करने में लगे हैं मगर बेचारे करें भी क्या?
मूर्तिवत बने रहने में ही भलाईहै। साक्षात हुए तो तथाकथित भक्त आशीर्वाद प्राप्त करने की मुद्रा में उनके तन पर लटका चर्म दुशाला ही लूट कर न भाग जायें। 
लोगो में विकसित हुई अंधभक्ति पर एक बुद्धिजीवी ने प्रसंग -उठाया ''यारों चमत्कार की सच्चाई को जरा समझने का प्रयास करो। ऐसा भी हो सकता है। आसपास गल्ला किरन स्टोर्स हैं। चूहे बिल बनाकर मंदिर तक खोद दिए हो। सुरंग नुमा जगह में वे उछल -कूद करते हों। मंदिर वैसे भी कमजोर है। उनकी हरकत से त्रिशूल हिलता हो। 
एक तथाकथित भक्त उनकी अच्छी नहीं लगी। वह बोला -''ज्यादा होशियार आदमी की बुद्धि भी न घास चराने चली जाती है। देखते नहीं त्रिशूल साक्षात हिल रहा है,उसे ज़माने भर के मामलों से जोड़ कर देख रहे। भक्तों को बहकाना चाहते हो। ''
''यार विज्ञान का है। ऐसे कई चमत्कारों से पर्दा उठ चुका है। '
''अपनी विज्ञान गिरी यहाँ न झाड़ो। तुम्हें विश्वास नहीं है न। मत मानों। हम भक्तों की आस्था खंडित न करो। ''इसी बीच उसके समर्थन में दो तीन भक्त और आ गए। सबका तथाकथित स्वर। 
भगवान खुश हैं। भक्त खुश हैं। तथाकथित भक्त भी खुश हैं। ईश्वर उन्हें कभी बेरोजगार बनाकर नहीं छोड़ता।
'हिलता त्रिशूल ' तथाकथित लोगो के हित में भक्तों संग मज़ाक है या अंध विश्वास को बढावा देकर अपनी भक्ति करवाना। यह तो ईश्वर ही जाने। 
सुनील कुमार ''सजल ''