व्यंग्य – दीवाली के
शुभकामना सन्देश
जब से पर्वों पर
ग्रीटिंग्स भेजने का चलन शुरू हुआ है , तभी से ग्रीटिंग्स भेजने के तरीके भी
दिनोदिन बदलते रहे हैं |जैसे कोई नेता पहले समाजसेवी बना , फिर अवसरवादी और फिर
डकारवादी या घोटालावादी बनने में जित गया
|
पिछले बरस दीवाली पर
हमने अपने जान-पहचान वालों व सहयोगियों को डेढ़ सौ से अधिक शुभकामना सन्देश भेजकर
डाक विभाग का ‘’ डकारवादी लाल डिब्बा’ भर
दिया था | उतना ही मोबाईल सन्देश भी भेजा था | परन्तु उसके एवज में हमें मात्र दस
प्रतिशत शुभकामना पात्र व मोबाइल सन्देश प्राप्त हुए थे | इस पत्नी ने चिढ़कर कहा
था –‘’ जिन्हें तुमने शुभकानाएं भेजे थे , उनकी नज़रों में तुम ठीक उस गाय की तरह
हो , जो पालक को दूध उपलब्ध नहीं कराती या देती भी है तो छटांक पाँव ही |’’
परन्तु इस बार उसकी
चेतावनी मेंमुच्छड़ या किन्तु कुख्यात
थानेदार की तरह रौब था, -‘’ सुनो जी, अब की बार उन्हीं दस प्रतिशत लोंगो के पास ही
शुभकामनाएं भेजना , जिनकी नजर में तुम ‘आदमी ‘’ हो | समझे...|’
हमने भी किसी आज्ञाकारी मालिक भक्त ‘कुत्ते’ की
तरह सहमति की दम हिलाकर उन्हें संतुष्ट किया |
दीवाली बहुत करीब है | कुछ लोगो के , जिनकी
नज़रों में हम आदमी हैं , शुभकामना सन्देश प्राप्त हुए हैं | मैं तो इन्हें पढ़कर
खुश हूँ क्योंकि मैंने उन्हें अभी तक शुभकामना सन्देश भेजे ही नहीं हैं और इनकी
नज़रों में कम से कम खुद के आदमी होने का आस्तित्व देख पा रहा हूँ | हालांकि निजी
निजी डाक सेवा या मोबाइल सेवा के माध्यम से उन्हें शुभकामना सन्देश भेजने में तनिक
भी कोताही नहीं बरत सकता वरना अगली बार उनकी नज़रों में आदमी होने का आस्तित्व
.....?
खैर छोडिए !कुछ ग्रीटिंग्स कार्ड व मोबाइल
सन्देश मुझे भी प्राप्त हुए हैं | उनमे
उन्होंने क्या लिखा है उसकी कुछ बानगी आप भी पढ़ लें
पहली शुभकामना | उनसे
प्राप्त हुई , जो किसी जमाने में हमारे लंगोटिया यार थे | जो पहले थैले में पूरा
अस्पताल लेकर चलने वाले डॉक्टर बने |उससे मन ऊबा तो स्कूल के मास्टर बन गए | इसमें
धन-मन का ज्यादा जुगाड़ पानी न देख तुरंत अपने को गिरगिट के सांचे में ढालते हुए
ज्योतिषी बन गए | आजकल ‘’ लक्ष्मी’ प्रसाद बैकुंठ वाले बनकर लोगो को खूब उल्लू बना
रहे हैं |इन्होने अपने शुभकामना सन्देश में लिखा है, ‘’ मित्र सजल , इस वर्ष
दीवाली के ग्रह- नक्षत्र आपको लतखोरी , पड़ोसन से नजरें मिलाने के बाद उपजे जूतम-पैजार
वाले विवाद व चोरी- चकारी जैसे कारनामों से मुक्त कर ‘’ आदर्श आदमी’ की गरिमा
प्रदान करें |
अपने बारे में यह सब
पढ़कर एक पल के लिए हमें ऐसा लगा, जैसे किसी ने हमें लोरोफार्म सुंघा दिया हो पर हम
संभले| होश में आए और सोचने लगे कि यह क्या , हम तो उस दब्बू कुत्ते की भांति हैं
, जो बंद गेट के आँगन में खड़ा होकर भौंकता है | किसी ने उसे डराने के उद्देश्य से
हाथ की ज़रा भी हरकत की नहीं कि वो सीधा घर के कक्ष में दुबक जाता है | फिर
ज्योतिषी ने यह कैसे लिख मारा | पर सोचा कि माफ़ कर देने में भलाई है वरना अगले साल
उनकी ग्रीटिंग ......?
दूसरा कार्ड हमें उस औरत का प्राप्त हुआ , जो
पिछले दिनों ट्रेन यात्रा के दौरान कम जगह वाली सीट पर बैठकर यात्रा करते वक्त
मुझसे सटते- सटते एक अजनबी से दोस्त बन गयी थी | उसने लिखा, -‘’ दोस्त , इस वर्ष
दिवाली आपकी मोहब्बत की अँधेरी जिन्दगीं में प्यार की फुलझडिया रंगीन चिंगारी बनकर
रोशन करे |कहें तो ‘हाथ’ में दीप लिए हम भी खड़े हैं , तुम्हें भिजवा दें |’’ कलेजा
धक् से बोला | अच्छा हुआ कि सन्देश पर पत्नी की नज़रों ने दौड़ नहीं लगाई वरना हम
आगे-आगे औए वह बिफरे सांड की तरह ... वह हमारे पीछे होती | हमने उस सन्देश को
तुरंत ‘ कागज के दिल ‘ की तरह टुकड़े – टुकड़े कर दिए |फिर राहत की लम्बी सांस खीचकर
खुद को शुक्रिया अदा किया |
तीसरा सन्देश हमें उस
महान हस्ती का प्राप्त हुआ , जो सरकारी दफ्तरों के ‘ बाबू जगत’’ में काले नाग के
नाम से कुख्यात हैं | जैसा नाम, वैसा ही उसका काम है यानी यदि किसी कर्मचारी ने
उसे उसकी ईच्छानुसार रिश्वतरूपी दूध नहीं पिलाया तो समझ लीजिए कि उसके सारे
क्लेम्स दीमकों से भरी आलमारी के मरघट में दबपचकर मिटटी होना तय है | उन्होंने
लिखा, ‘’ सजल भाई, हमारी कृपा से यह दिवाली आपके रुके-फंसे क्लेम्स निकालने की
अनुकूलता बनाकर आए , हार्दिक शुभकामनाएं |’’ उनका सन्देश पढ़कर हम बहुत खुश हुए ,
ठीक उसी तरह , जैसे किसी सुंदरी का रूप देखकर दर्पण में न समाने पर खुश होते हैं |
चलो नाग हमारे लिए नाथ तो बन गया वरना हरामी ने न जाने कितनों को अपने भ्रष्ट
दंतों से डसा और लोग आज तक उसका इलाज नहीं ढूंढ पाए | हम ख़ुशी से रसगुल्ले की
भांति फूले पत्नी को सन्देश दिखाते हुए बोले ‘’ देखो जानी, बाबू जगदम्बा अपने ऊपर
पहली बार खुश हुआ | अब अपने क्लेम्स शीघ्र निकलेंगे और तुम एक बड़ा सा लाकेट बनवा
लेना | फिर तुम हमें उल्लू का पट्ठा के बजे पति परमेश्वर कहने से खुद को रोक नहीं
पाओगी |’’
‘’ अच्छा ! जो लिखा है ,
उसे ज़रा गौर से पढो |’
पत्नी गुर्रायी और हम
सकपकाए |
‘’ भाग्यवान ! पढ़ लिया
है , तभी तुम्हें दिखाने लाया हूँ |
‘’ क्या पढ़ा ? पढ़ा तो
कुछ समझे ....? लिखा है ‘’ हमारी कृपा से... | इसका मतलब समझते हो | बेवकूफों की
तरह खुश होकर फूलकर मारे ख़ुशी के कुप्प हो गए |’’ पत्नी की भौंहे तन चुकी थी |
‘’ अरे ठीक ही लिखा है
... उसकी कृपा से ही तो क्लेम्स पास होंगे ना ! और क्या ....?’’ हमने उन्हें
समखाने का प्रयास किया तो वह बोली , ‘’ आपके दिमाग में गोधन का गोबर भरा है क्या ?
अच्छा यही है कि अपनी मास्टरी मेरे नाम कर दो | उसने साफ़ संकेत दिया है कि पहले
परसेंट तय करो , फिर क्लेम् लो | यही है उसकी कृपा व अनुकूलता का अर्थ | अब कुछ
समझे ? ‘’ हमारा दिमाग चकराया | कठिन से कठिन रचनाओं के गड़े मुर्दे की तरह अर्थ
निकालने वाले हम भला आज समझ में कैसे गच्चा खा गए | खैर छोडिए , शिक्षक, विद्वान
होते हुए भी जिंदगी भर छात्र ही होता है |
चौथा शुभकामना सन्देश हमें उन नेता जी से
प्राप्त हुआ जो हमारे स्कूल में पकाने वाले मध्यान्ह भोजन की गंध सूंघते हुए जब-तब
चले आते हैं , यह जानने के लिए कि भोजन मीनू के अनुकूल पका है या नहीं और फिर 10-
20 किलो चावल-दाल का मूल्य ‘ प्रकरण दफ़न शुल्क ‘ के रूप में ग्रहण कर मुस्कराते
हुए धन्यवाद दे जाते हैं | उन्होंने क्या लिखा है अपने शुभकामना सन्देश में ज़रा आप
भी जान लें , ‘’ गुरूजी , खूब खाओ,खूब पचाव , दिवाली में मौज मनाओ | बस इतना रखना
हमारा ध्यान जब पधारें शाला में आपकी , भूल न जाना कराना कमीशन का जलपान | दिवाली
की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आपका खटपट लाल , पंचायत चुनाव का भावी सरपंच
प्रत्याशी |’’
उनके सन्देश में दो
बातें दोमुहें सांप की तरह स्पष्ट थी | अत: सरकारी नौकर होने के नाते सरकारी
क्षेत्र में इन दो बातों का महत्त्व हम अच्छी तरह समझते हैं | अत: गलती न होने की
संभावना पर शक न करें |
पांचवा और अंतिम सन्देश
उस व्यापारी से मिला था, जो ‘’ अलाटमेंट ‘ की प्रतीक्षा के वक्त दफ्तर की कई – कई
योजनाओं की ऐसी-तैसी करने के लिए उधारी में स्टेशनरी , दाल , नमक, तेल, 5 परसेंट
अधिक कीमत पर व फर्जी बिल उपलब्ध कराकर ‘’ गुरु सेवा ‘ कर बाकायदा सहयोग प्रदान
करता रहा है | बेचारे ने शब्द तो नहीं गधे पर एक चित्रमय कार्ड के साथ उधारी के
बिल अवश्य ही चिपका रखे थे , जो मैं आपको विस्तार से तो नहीं बता सकता | इज्जत का
सवाल है भई | इज्जत बची रहे , इसलिए दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं |
सुनील कुमार ‘’ सजल’’