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मंगलवार, 10 नवंबर 2015

व्यंग्य - इनकी...उनकी...सबकी दीवाली

व्यंग्य - इनकी...उनकी...सबकी दीवाली


दीवाली की तैयारियां जोरों पर | जैसे राष्ट्रीय खेलों की तैयारियां |घर आँगन , इमारतें सब नए-नए-रंगों में रंग गए | शारदीय माहौल में धुप भी कुनकुनी हो चली है | दीवाली आने पर सबकी ख़ुशी अलग ही नजर आती है | इस बार हमने सोचा किइस मंहगाई के माहौल में दीवाली के प्रति लोंगो का नजरिया जान लिया जाए |कारण की अन्य त्यौहार तो फीके हो चले हैं |
सबसे पहले हम रमुआ मजदूर से मिले | वह कहता है , ‘’ इस बार तो बीते सालों की अपेक्षा जानदार दीवाली होगी अपनी |’’
‘’ ऐसा कौन –सा गदा धन मिल गया तुझे , जो तेरा दीवाला निकालने वाली इस बार अपार ख़ुशी प्रदान कर रही है |’’ लक्ष्मी जी सदा सहाय करे ‘’ की तर्ज पर ?’’
हमने कहा तो वह हमारी बातों पर खिलखिलाकर हंस पडा , ‘’ भैया, ग्राम पंचायत में अपना भी रोजगार गारंटी योजना के तहत जॉब कार्ड बन गया है पर अपन वहां की मजदूरी में नहीं जाते |’’
‘’ काहे ?’’ ‘
‘’ अपन सेठ के यहाँ अनाज तोलकर ज्यादा कमा लेते हैं |’’
‘’फिर मुझे जॉब कार्ड की बात क्यों बता रहा है ‘’
‘’ भैया , हमने एक चालाकी अपना ली है | वह यह कि हमारे कार्ड में सरपंच सचिव से सांठगांठ के तहत हमारी मजदूरी भर देते हैं | बदले में वह 50 परसेंट रकम अपने पास रख लेते हैं | अब आप ही बताइये , हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू है न ! फिर अबकी दीवाली काहे न दीवाली जैसी लगेगी ?’’
     इधर सेठ रायचंद जी की राय है , ‘’ देखो भाई , अपन ठहरे व्यापारी | लाभ का धंधा तो करंगे ही |इसलिए इस बार हमने गरीब आदिवासी कोसानों को पूरी बरसात नमक व मार्केटिंग सोसायटी से जुगाड़ किया हुआ नंबर दो का चावल पूरा किया | अब उनकी फसल आयी तो कर्ज चुकाने के एवज में उनकी कीमती फसल काटकर अपने गोदाम में ले आए | अब सोच रहे हैं कि इस फसल को बेचकर अपनी कालेज जाती बिटिया के लिए धनतेरस के दिन कार खरीद  दें |’’
     क्षेत्र के अधिकाँश किसान खुश हैं | उन्होंने इस बार अच्छी बरसात होने से अच्छी फसल काटी है | साथ ही एक दो बार आई बाढ़ से हुई न के बराबर क्षति का पटवारी से सांठगाँठ कर सरकार से मुआवजा भी घोषित करवा लिया है | पटवारी जी भी खुश हैं | अपनी अनाज कोठी को तरह किसानो ने इस दीवाली में उनकी जेब की कोठी भर दी है |
 ठेकेदार रामदीन कहते है, ‘’ भैया दीवाली आई तप ‘’ लक्ष्मी कृपा ‘’ बनाकर आई | हमारा मतलब आखिरी बरसात पुलिया में लगाए ‘’ चूना-रेत ‘’ को बहाकर ले गई | इस तरह अपनी अमावसी करतूत दीवाली जैसी जगमग ईमानदारी में बदल गयी |अफसर तो पहले से ही पते-पटाये हैं | नोटों की गड्डी देखकर वे हमारे पक्ष में बीन बजाने लगते हैं |’’
सूखा पीड़ित जनता भले ही दर्द वा भूख से कराह रही है मगर नेता, अफसर , कर्मचारी सूखा राहत पॅकेज से कमीशन काटकर दीवाली की तैयारी में जुटे हैं | वे यह गुना-भाग लगा रहे हैं कि ‘’ ब्लैक मनी’’  को इस दीवाली में व्हाइट मनी कैसे बनाया जाए |
   इधर हमारे कुछ लेखक मित्र पिछले 10 वेशों में ‘’सखेद वापिस ‘’ दीपावली से जुडी रचनाओं में से चुनिंदा रचना खंगालने में लगे रहे | कुछ तो सारी  रचनाओं का मुख्य अंश जोड़कर एक-दो रचना बनाने में जुटे रहे  |ताकि अब की बार सम्पादक जी की इनायत उन पर हो जाए और दीप अंक में उनकी रचना ‘दीप’’ की भांति टिमटिमाये |
हमने अरमान जी पूछा –‘’ आप ने दीप अंक’’  पर क्या लिखा हैं ?’’
‘’ क्या लिखेंगे ? पांच पहले लौटकर आई रचनाओं को पुन: भेज दिए हैं| ‘’
पुराना मेटर?’’
‘’ तिजोरी में बंद सोने की तरह बेकार पड़ी रचनाएं कब काम आती?’’
‘’ अगर पुन: अस्वीकृत होकर लौटा दी गई तो ..?’’
‘’ अबकी बार लौटकर नहीं आएंगी |’’ उन्होंने पूरे आत्मविश्वास से उत्तर दिया |
‘’ क्यों ?’’ वापसी के लिए लिफाफा नहीं भेजा है क्या ?’’ हमने प्रश्न का आतिशवाजी राकेट उनकी ओर छोड़ा तो वे थोड़ा फुलझड़ी की तरह चिढ़कर बोले ‘’ ऐसा नहीं यार , अब अपन नामी लेखक हो गए हैं | जो भी लिखते हैं सब छपता है | ‘’
‘’ लेकिन महाशय ! स्तर भी तो कोई चीज है | बिना उच्च स्तर वाली रचनाएं भला छप सकती है ?’’
 वे हमारे जवाब से तुनक सा गए , देखी, अपना काम राक्चानाएं भेजना छापना न छापना उनकी मर्जी |’’
हमने उनकी खीझ देखकर बातों का रूख बदल दिया |
  अबकी बार हम भी अपनी पत्नी के मुख से दीवाली पर टीचर बनाम फटीचर जैसा अपमानजनक शब्द सुनने से वंचित  रहे हैं |इसका कारण यह है कि हम गऊ कहलाने वाले मास्टरों ने छात्र-छात्राओं में बांटी जाने वाली साइकिलें , ड्रेस , मिड डेमील व स्टेशनरी खरीदी से कमीशन निकालना सीख लिया है | अभी तक हमारी जिंदगी ईमानदारी की उबड़-खाबड़ पगडंडी पर ही दौड़ रही थी  मगर अब भ्रष्ट कारनामों की काली पक्की सडकों पर दौड़ना शुरू कर चुकी है | इस बात का अंदाजा आप दीवाली पर किए जाने वाले खर्च से लगा सकते है |
अंत में , दीवाली की शुभकामनाएं देते हुए हम तो यही कहेंगे की अगर आप भी पूरे जश्न से दीवाली मनाना चाहते हैं तो हमारे अपनाए तौर-तरीके पर आ जाइए , फिर देखी हर काली रात भी लगेगी दीवाली |

     सुनील कुमार सजल