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शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

लघुव्यंग्य - इष्ट

 लघुव्यंग्य - इष्ट वे पार्टी के छोटे कद के नेता हैं |एक शाम उन्होंने मुझे अपने घर पर बुलाया |मैंने देखा उनके घर में जहां –तहां दीवारों पर वतमान नेताओं के फोटो कीमती फ्रेम में लटके थे | दो –चार फोटो पर फूलमाला भी चढ़ी थी | ‘’ लगता है आप ईश्वर की अपेक्षा इन नेताओं को अपना ईष्ट मानते हैं |’’मैंने उनके मन की बात का पता लगाने का प्रयास किया तो वे मुस्कुरा कर बोले -=’’ अच्छा आप बताइये ....आप भी एक महान संत को अपना इष्ट मानते हैं क्यों |’’‘’ वे सच्चे संत हैं ...उनकी दी शिक्षा से जीवन सफल हुआ है |’’’ मैंने कहा |वे बोले –‘’ बस यही बात हम पर भी लागू होती है ....इन्हीं इष्ट नेताओं से मिली प्रेरणा शक्ति से हम भी राजनीति में अपना जीवन सफल बनाते जा रहे हैं ...अगर आप संतों का पूजन करते हैं तो आपकी तरह हम भी इन नेताओं की पूजा कर रहे हैं तो क्या बुरा कर रहे हैं ...कहिये |’’मैंने कुछ बोले बगैर टेबल पर आयी चाय के कप को होठों से लगा लिया था |सुनील कुमार ‘’सजल’’