बात की बात – वो ज़माना था सीटीबाजों का...
अब तो सीटी बजाने का समय गया साब |अब लोग मोबाइल पर
ही फुसफुसा लेते हैं अपनों से .| दोस्तों
यारों को घर वालों के डर से सीटी बजा कर बुलाते थे |एक युग था जब कुछ सड़क छाप टाइप
के प्रेमी लोग भी लड़कियों के हॉस्टल ,
महाविद्यालय, या फिर उसके घर के सामने से सीटी बजाते हुए निकलते थे | तो लगता था कोई पागल प्रेमी
प्यार की तड़प को अपनी सीटी के माध्यम से सुनाते हुए गुजर रहा है | सीटियाँ भी तरह
तरह से बजायी जाती थी | कभी बांसुरी नुमा तो कभी ट्रेन इंजिन के हार्न की धुन में | तब लोग सीटी
बजाने की प्रैक्टिस किया करते थे ‘’ यार बताना तू इतनी सुरीली सीटी
कैसे बजा लेता है |अबे मैं तो बजाकर परेशान हूँ , जब भी बजाने का प्रयास करता हूँ
सड़क पर घिसटते टायर की तरह आवाज निकलती है या फिर फूस की आवाज आती |
कुछ प्रेमिकाएं टाइप की लड़कियां अपनी अटारी पर आकर अपने प्रेमी की सीटीनुमा आवाज सुनने के
लिए तड़पती थी |शाम ढलने की बेला में वे छत पर आ जाती थी या फिर आँगन में|प्रेमी भी
साइकिल पर सवार होकर किसी गाने की लाइन को
अपने सीटी नुमा स्वर में ढालकर प्रेमिका
के घर की तरफ देखते हुए गुजरता था | तब वह खुद को कृष्ण व अपनी प्रेमिका को राधा
से कम समझने की भूल नहीं करता था |
कुछ एक एक तरफा प्यार में पागल प्रेमी अपनी पसंदीदा
छोकरी को पटाने के लिए अपना काम छोड़ सीटी के अभ्यास में लगा रहता था | वह किस धुन
पर सीटी बजाये की उसके तरफ न देखने वाली लड़की भी मुस्कुराकर उसकी तरफ देखती रह जाए
| छेड़छाड़ भी सीटी की धुन पर होती थी | फिल्मों में लड़की पटाने वाला हीरो भी लगभग
सीटी बजाकर प्रेमिका से छेड़छाड़ करता , गीत गाता था |
उस समय अगर
घर में कभी पति सीटी बाजाकर मन बहलाने की कोशिश करते | पत्नियां सवालों के तीर छोड़ने लगतीं ,’’ क्या
बात है आजकल बहुत सीटी बजाने लगे हैं , कहीं कोई चक्कर-वक्कर या फिर सौतन लाने का
इरादा है क्या |’’
उस समय सीटी बजाना सिर्फ लड़की पटाने का साधन मात्र
नहीं समझा जाता था| बल्कि टाइम पास साधन भी था | कुछ लोग अपनी बोरियत को दूर करने
के लिए शाम के समय नदी या तालाब किनारे बैठकर सीटी की धुन बजाकर अकेले होने का
टाइम पास करते थे | या फिर टहलते हुए सीटी
बजाते थे|
तब पुलिस वाले ज्यादा ध्यान नहीं देते थे | बजाने दे
यार साला पागल होगा |बस परिचालक भी मुंह से सीटी बजाकर बस रुकवा देते थे | क्योंकि बसों में
आधुनिक टाइप बेल नहीं लगी होती थी |
मगर आज वो
ज़माना नहीं रहा | सीटी पर से धुन निकालने वाले लोग भी नहीं रह गए |सीटी
बजाकर किसी छोरी के घर के तरफ देखते हुए निकल जाइए | फिर देखिये अपनी नौबत लाने का
तमाशा | जूते तो पड़ेगें और 100 डायल पुलिस
वाहन भी आ जाएगा | आपको उठाने के लिए| इसलिए कभी सीटी बजाकर गुनगुनाने का मन हो तो
सूनसान जगह चुनी या फिर बंद कमरे में गुनगुनाइएगा साब ....|
सुनील कुमार ‘’सजल’’