व्यंग्य
- गांधी जी की दाल –रोटी और हम
किसी ने कहा था- ‘’ दाल-रोटी खाओ, प्रभु के
गुण गाओ |’’ लेकिन साब अब तो अपन बड़े कन्फ्यूजन के दौर से गुजर रहे हैं |
कन्फ्यूजन इस बात का है साब किक्या दाल रोटी मात्र खाकर स्वस्थ रहा जा सकता है ?
क्या दाल-रोटी में शारीर के लिए आव्बश्यक तत्व मौजूद होते हैं ?भई, इस जमाने में
भला दाल-रोटी अकेले से पेट भरता है क्या | आजकल पेट पिज्जा , बर्गर चायनीज जैसे
भोज्य उत्पादों से भरता है | ये गांधी युग नहीं बल्कि इक्कसवीं सदी है | इसलिए तो
दाल-रोटी जैसी रेसिपी पुरातन हो गयी है |
साब आधुनिक रेसिपी के आगे दाल-रोटी स्वयं
कन्फ्यूज है कि उसके गांधी वाले दिनों का क्या होगा | अब देखो न हमारे सयाने भी
दाल-रोटी मात्र से कतराने लगे हैं | कहते हैं उनके दांत झड चुके हैं | इसलिए अक्सर
खाना खाते वक्त चिढचिढाते हुए बोल- उठाते हैं –‘’ रोटी न ही खाओ तो अच्छा है |’’
‘’दादा क्या नूडल्स लाएं या बर्गर या पिज्जा ‘ क्या है कि ये गेहूं की रोटी
से नरम होते हैं | दादाजी भी अगल बगल देखकर कह देते हैं ‘ ले आओ ... दाल चावल
सब्जी खाते-खाते मन ऊब जाता है |’’
अब
क्या है कि दादा जी को रोजाना रसगुल्ले , गुलाबजामुन या जलेबी आलूबड़ा तो खिला नहीं
सकते | वरना वे बीमार होकर अस्पताल में भारती हो जाएंगे |
हम तो यह भी सुनते रहते हैंज उन्हें गांधी जी
के सपने आते हैं ..... हमने पूछा- गांधी जी की दाल रोटी |’’ वे चुप |
‘’ यार ज़माना बदल गया है दाल- रोटी से काम
नहीं चलता | सब कुछ खाओ | सब कुछ पचाव| वैसे पचाने के भी उत्पाद मार्केट में
उपलब्ध हैं | पाचन ठीक-ठाक रहेगा तो बदन बनेगा | तभी जी सकोगे | वरना कुपोषण के
शिकार होकर समय से पहले परलोक थोड़ी न सिधारना है |
इधर डाक्टर ममें कहते हैं –‘’ देखी हरी शाक
के अलावा अंडा –मांस , दूध भी लेना शुरू करें | बहुत कमजोर हो गए हो |’’
मैंने उन्हें वेजेटेरियन होने का परिचय दिया –
‘’ सर मैं अंडा-मांस की तरफ देखता भी नहीं | खाना तो दूर की बात है | मैं गांधी जी
की दाल-रोटी का शौक़ीन हूँ |’’ उन्होंने समझाया –‘’ यह इक्कीसवीं सदी है | सदी के
हिसाब से शारीर को भोज्य पदार्थ दो | तभी आधुनिक आवो-हवा में जी सकोगे | गांधी युग
की दाल-रोटी उस युग में ही अनुकूल थी | यही युग देशी-विदेशी डिश का युग है इसलिए
यह खाना अनिवार्य है |’
‘’ सर मैं गांधीवादी हूँ | इसलिए उनकी सुझाई
गयी डिश ‘’ दाल-रोटी ‘ को नकार नहीं सकता | इसी डिश मात्र के सहारे ही जीना चाहता हूँ | स्वस्थ रहना चाहता हूँ | इससे
हल्का भोजन कुछ भी नहीं है | ‘’ हल्का भोजन लेते हो | इसलिए हल्का शारीर लेकर मेरे
पास आए हो | मेरी सलाह मानो |’’
‘’ नो सर ! मैं तो दाल-रोटी ....|’’
‘’ देखो बहस न करो | मैं एक डाक्टर हूँ |
तुमसे ज्यादा जानता हूँ | बार गांधी जी का नाम लेकर जी रहो न | जीओ | एक दिन गांधी
जी की तरह दुबले – पतले होकर हाथ में लाठी लिए चौराहे पर ही अटके रह जाओगे | सोच
भी नहीं पाओगे कि किधर से सड़क पार कर चला जाऊं | जैसे गांधीजी दुबले – पतले शारीर
के साथ हाथ में लाठी लिए आज भी सड़क पर खड़े हैं वैसे ही खड़े रहोगे , बेटा सुधर जाओ
| अभी भी वक्त है |’ इधर इस बात का भी
कन्फ्यूजन दिमाग में ट्राफिक मचाया है | गांधी जी की दाल- रोटी वाली सलाह गलत है
या आधुनिक डाक्टर की | या फिर डिब्बा बंद पौष्टिक उत्पाद बनाने वाली देशी- विदेशी
कम्पनियां |
एक
दिन पत्नी ने हमसे कहा-‘’ सुनो जी , आजकल आप बहुत कमजोर लग रहे हैं |खान-पान बदली
| मात्र हरी सब्जी , दाल –रोटी के दम पर
शारीर कैसा मरियल टैटू के जैसा दिखने लगा है | उम्र में बड़े अलग दिख रहे हो |
परसों श्रीमती जौहर भी कह रही थी |’’ क्या बात है भाई साब आजकल पहले से ज्यादा
कमजोर व सुस्त दिखाते हैं इन्हें च्यवन प्राश खिलाया करो | भारी जवानी में बूढ़े
दिखने से बाख जाएंगे | अच्छा लगता है ऐसा दिखाना |’’
‘’ यार मैं जैसा भी दिखता रहूँ | आखिर मैं ,
मैं हूँ | मैं ठहरा सात्विक व्यक्ति | वैसा ही खाऊंगा वैसा ही रहूँगा |’’ सात्विक,
सात्विकता की माला जपते – जपते....समय के पहले बूढ़े जांचने लगे | ‘’ पत्नी ने मुझ
पर और भी कई सवाल उठाए | जो मैं सार्वजनिक नहीं कर सकता आखिर मुझे पहाड़ के नीचे लाकर पत्नी ने ऊंटत्व
होने का एहसास करा दिया |
मैनें कहा- ‘’ चलो तुम्हारी ही बात मानता हूँ | मैं
क्या- क्या खाना शुरूं करूँ |’ ‘’ पोषक आहार विशेषज्ञ से पोषक चार्ट बनवाकर लाइए
और उसी के अनुसार भोजन करिए |’’
‘ मगर इस मंहगाई व मिलावटी युग में उनका पोषक
चार्ट तो मेरी जेब का भट्ठा बिठा देगा |’’
‘’ गई जरूरी बात मत करो | आप नहीं बाजार में
उनके चार्ट के अनुसार उपलब्ध भोज्य पदार्थ मिलावटी रहें या नकली उसमें भी कुछ न
कुछ पोषक तत्व तो होते हैं और ये तत्व शरीर की जरुरत हैं | पत्नी को क्या समझाता |
वह तो ठहरी आधुनिक भोज्य की शौक़ीन|’[‘
सुनील कुमार ‘’ सजल’’