शनिवार, 2 मई 2015

व्यंग्य -अभियान

व्यंग्य -अभियान 
एक स्वयंसेवी संस्था ने नशे के विरोध में  जागरूकता लाने  के लिए अभियान  चलाने हेतु शासन से सहायता राशि प्राप्त ली  । गाँव दर गाँव अभियान प्रारंभ हुआ। 
  रात के लौटते समय एक ढाबे में खाना खाने बैठे संस्था के अध्यक्ष सहित ८-१० लोग आपस में  कर रहे थे , ''चलो इस क्षेत्र के आठ गाँवों के लोंगो  कसम खाकर दारू से मुंह मोड़ लिया है  । अब कल से उत्तरी क्षेत्र के गाँवों में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर सफलता पानी है । ''
    '' सफलता तो मिलेगी पर मैं आज कुछ ज्यादा ही थक गया हूँ । '' एक सदस्य  कहा । 
  '' तो क्यों न अध्यक्ष जी.....  !''  दूसरे ने कहा । 
  '' हाँ ! ठीक है । आखिर इतनी मेहनत कर  हैं  रात को चैन से खाएं - पीएं भी नहीं तो क्या करें । ''
    अध्यक्ष महोदय का आदेश मिलते ही बैरा सभी सदस्यों  सामने गोश्त की प्लेटें और इंग्लिश वाइन की बोतलें लगाने लगा । 
कट -कट  की आवाज के साथ वाइन  की बोतलें के ढक्कन खुलने लगे ।  गुलाबी स्वाद के साथ अगली रणनीति  चर्चा  लोग प्लेट  पर प्लेट सरका  रहे थे ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें