सोमवार, 18 मई 2015

व्यंग्य –संकल्पों के सनकी


व्यंग्य –संकल्पों के सनकी
इन दिनों हमारा शहर अनोखे दौर में शामिल है | जहां देखो वहीँ आयोजन हो रहे है |आपका सवाल हो सकता है कि आयोजन काहे के ? अजी! आयोजन हो रहे हैं, संकल्प लेने के | किस्म- किस्म के लोग किस्म –किस्म के संकल्प ले रहे है | शहर में लिए जा रहे संकल्पों को देखा और लिखा जाए तो संकल्पों के संग्रह की एक कृति तैयार हो सकती है |
पिछले दिनों एक राजनैतिक दल के नेता ने हमसे कह डाला किअबकी चुनाव में शहर को ‘संकल्पधानी’ नाम दिलाना हमारा असली मुद्दा होगा | हमारे शहर के लोगो पर संकल्प लेने की सनक सवार है | अब लोग गुण व धर्म के विपरीत किस तरह के संकल्प ले रहे हैं ,आप भी देखें | बेटी बचाने का संकल्प, नशा त्यागने का संकल्प , ईमानदारी अपनाने का संकल्प ,जनहित में कार्य करने का संकल्प , बिजली न चुराने का संकल्प ,घूसखोरी व कमीशनखोरी जड़ से मिटाने का संकल्प ,सफाई करने का संकल्प और भी न जाने कितने व कैसे कैसे संकल्प | परसों ही एक ने हमसे कहा ,-‘’ अपन ने धमाकेदार संकल्प लिया है |’’
‘’ क्या व कैसा?’’
‘’बेटी बचाने का संकल्प |’’
‘’तीन बार कन्या भ्रूण का गर्भपात कराने के बाद अचानक आपका मन इस संकल्प की ओर .. कहीं ऐसा तो नहीं किभ्रूण ह्त्या में पाप वा श्राप का आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हो गया हो ?’’
‘’नहीं.. !ऐसी बात पर अपना विशवास नहीं है |’’ ‘’ वे हमारे प्रश्नों का एक संक्षिप्त –सा उत्तर देकर चले गए | पर आज ही पता चला है  कि उनको पिछले दिनों पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है |
  इसी तरह चुनाव देखकर नेताओं ने ईमानदारी अपनाने का असंकल्प वाला मुखौटा लगा लिया है | हमने भी अच्छी बातों को अपनाने का संकल्प लेने की सोची | संकल्प लेने के पीछे कारण यह था किहमारी पत्नी की नजर में हमारी कुछ आदतें ठीक नहीं थी |यूँ तो उन आदतों पर न तो पड़ोसनों ने कभी अंगुली उठाई और न हमारे पड़ोसी दोस्तों ने, पर पत्नी की नजर में अगर वे आदतें बुरी थी तो बुरी थी |
हममें बुराई यह थी किहम रंगीन व पावर्लेंस चश्में से ख़ूबसूरत महिलाओं को ताकते रहते थे, जो हमारे घर के ठीक सामने रहती हैं | यह बात पत्नी की खुफिया नज़रों को नागवार गुजराती थी | दूसरी बुराई हममें यह रही है किहम चूनायुक्त तंबाखू – सुपारी खाने के आदी थे | पत्नी को आपत्ति इसा बात पर थी कितम्बाखू खाने से कैंसर होता है या बार –बार पिच्च –पिच्च हम थूकते रहते थे | आपत्ति थी ,उन लंगोटिया मुखौटेबाज मित्रों को घर में मुफ्त में सुपारी वा तम्बाखू खिलाने में | वेजेब का हर्र लगे न फिटकरी ..की तर्ज पर हमारे घर सुबह – शाम व रात्री में भोजन उपरांत तम्बाकू फांकने आ जाते थे | पत्नी का साफ़ कहना था या तो अपना नशा त्यागो या फिर मुफ्त तम्बाकूखोरों से कट्टीकर लो |
हमें तीसरी बुराई यह थी किसरकारी पद पर रहते हुए हमें कमीशन खोरी व घूसखोरी की आदत –सी पद गयी थी | जिसे त्यागने का मन बनाया तो पत्नी ने फटकारा ,’’क्या तुम महाराणा प्रताप बनकर हम सबको इस महंगाई में घास भूसे की रोटी खिलाना हो |’’
पत्नी की इच्छानुकूल हमने पहली दो बुराईयों के विरुध्द संकल्प लिया | कहते हैं, सब संकल्प होली के दिन टूट जाते हैं, इस बार न टूटे , इसलिए हमने पत्नी के समक्ष लिखित रूप में दिया कि एक तो किसी ख़ूबसूरत युवती को आँख पर चश्मा चढ़ाकर नहीं देखेंगे | ( हलांकि वह जानती है , हम दूर दृष्टि पर अंधे हैं), दूसरा यह कि हम तम्बाखू नहीं खायेंगे | तीसरे के बारे में हुए संवाद को आप जानते हैं |
यह देख – सुनकर पत्नी खूह हुई | उसकी ख़ुशी हमारे संकल्पों से मूल्यवान ठी | एक दिन हमने पत्नी के सामने बहाना बनाते हुए कहा,’’ देखो! चश्मा बार- बार उतारकर रखने से हमारी आँखों में जलन व सर में दर्द होने लगा है |
’’ पानीदार लेंस का चश्मा बनवा लो|’’पत्नी ने सुझाव दिया
‘’ परेशानी तो धुप से है, न ! रंगीन चश्मा तो पहनना पडेगा ‘’| रोज की हमारी शिकायतों से पत्नी का स्त्रीत्व पिघल गया | बोली ,’’ ठीक है  ! पहनी रखा करो चश्मा , पर कसम खाओ कि पराई स्त्रियों को नहीं घूरोगे |’’ हमने भी हां में जवाब दे दिया |
इस तरह आम लोगों की तरह हम भी संकल्प्धारी लोगों में शामिल हो गए | इधर सुनाने में आया है किसंकल्प्धारी लोग एक क्लब का गठन करने जा रहे हैं,-‘’ संकल्प्धारक क्लब | इनके सदस्य वे ही होंगे , जो संकल्प लेने के नशेडी हों |ख़ुशी इस बात की है किलोगों की इच्छा है कि किसी संस्था की तरह क्लब का नाम भी गिनिजबुक में शामिल हो | रिकार्ड तैयार किया जा रहा है किसंस्था के प्रत्येक सदस्य ने कितने दहाई , सैकड़ा या हजार प्रकार के संकल्प लिए ?
 क्या आप भी चाहेंगे किइसमें आपका नाम भी दर्ज हो ? घबराइये नहीं | सिर्फ संकल्प लीजिए और नाम दर्ज कराइए | इस क्लब के संविधान में संकल्प पालन करने की अनिवार्यता नहीं है |
                    सुनील कुमार ‘’सजल’’

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