व्यंग्य – आदमी एक सर्कस है !
सर्कस की कलाबाजियों की तरह दुनिया के
रंग-ढंग | दुनिया के भीतर है सर्कस और सर्कस के भीतर भी है दुनिया | किस्म-किस्म
के लालाकार हैं | बहुरूपिए हैं | शेर, भालू और कुत्ते जैसे हिंसक जानवर भी | मगर
वे अपनी चारित्रिक कला कि मौलिकता में खरे नहीं हैं | वैसे तो शेर जैसे जानवर अब
जंगलों में बचे नहीं | राष्ट्रिय पार्कों में हैं तो अंगुली में गिनने लायक ही |
फिर
सर्कस में शेर कहाँ से आए ? हमने पहले ही कह दिया साब ! दुनिया भी सर्कस कि तरह है
| शेर के नकाब में आदमी है शेर | हुबहू शेर लगता है | लाइट्स की चकाचौंध में नकाबपोश
आदमी नहीं लगता आदमी | इसी व्यवस्था के सहारे सर्कस में है शेर है |
शेर के नकाब में आदमी सचमुच हिंसक लगता है |
अपने रिंग मास्टर के ईशारे पर दहाड़ता है , करतब दिखाता है | इस वक्त वह ओरिजनलिटी
लाने के फेर में शेर – गुरुर धारण किए है |
सर्कस में शेर दहाड़ता है | दरअसल वह शेर तो नहीं | उसके नकाब से निकलती
महसूस होती है दहाड़ | क्या वह असली दहाड़ रहा है मुजिकलबाक्स | आधुनिक आदमी के पास
इत्ते तो उपाय आ चुके हैं | वह शेर कि दहाड़ भी सकता है , कुत्ते कि तरह भौंक सकता
है और बिल्ली कि तरह गुर्रा भी सकता है |
रिंग
मास्टर का हंटर शेर के लिए इशारा होता है | हंटर की कलाबाजी शेर के लिए कर्तव्य व्
कलाबाजियों का सूत्र है शेर समझता है ऐसे सूत्र को | उसकी दहाड़ पर ही तो भीड़
इकट्ठी होती है | अगर शेर दहाड़ना भूल जाए तो उसकी औकात के विरुद्ध बात होगी और भीड़
का रास्ता होगा विपरीत |
सरकस में शेर का करतब जारी है | ऐसे ही छोटे-मोटे जानवरों का भी | जो
नकाबनुमा इंसान में घुस आए हैं | कहते हैं जो जैसे पात्र में जीता है , उसका
स्वभाव, गुण व् चरित्र भी वैसा ही हो जाता है | किसी ने ठीक ही कहा है , दुनिया एक
सरकस है | जो सर्कस कि कला जानता है दुनिया कि भीड़ उसके पीछे होती है |
यूँ तो देखना सभी को पसंद है मुझे भी | आपको
भी | पंडया बाबू सर्कस अलग नजरिए से देखते हैं | हमारी और तुम्हारी तरह केवल
मनोरंजन वाला दृष्टिकोण नहीं रखते | वे सर्कस से सीखते है | कलाबाजियां इंसानों और
जानवरों की |
दफ्तर
में कुर्सी पर बैठते ही उनके चरित्र में सर्कस कि कलाबाजियां होती हैं| आप उनसे
दफ्तर समय के पूर्व व् बाद में मिलने के बाद चक्कर खा सकते हैं | दोनों वक्त में
उनके दो चरित्र होते हैं | दफ्तर में बैठते के बाद एक दौरा-सा /
गुर्राहट/रोबदार/दहाड़/ बातो में जोकर्पण | रिंग मास्टर कि तरह व्यवहार | प्यार के
क्षेत्र में सर्कस कला का महत्त्व हो सकता है | कुछ प्रेमिकाएं जोकर टाइप या शेर
टाइप प्रेमी की चाहत रखती हैं | उसका कारण यह है कि कुछ प्रेमिकाओं को मनोरंजन का
टॉनिक चाहिए | दूसरे प्रकरण में समाज से जूझने वाला शेर हो | जो खाप पंचायत के
हथियार बन्दों को अपने दम से दुत्कार सके |
एक
नेता जी इस बात को लेकर परेशान थे कि उनकी सभा में भीड़ इकट्ठी क्यों नहीं होती |
किसी ने समझाया – ‘’ साब आप राजनीति करें | मगर साथ में समय – समय पर सर्कस में भी
कुछ दिन ज्वाइन कर लें | दुनिया आज भी सर्कस की दीवानी है | यदि आप अपनी राजनीति
केन्द्रित क्रिया-कलापों को सर्कस की कलाबाजियों की भाँती प्रोजेक्ट करंगे |
निश्चित ही भीड़ के बादशाह बन जायेंगे |
साब इन दिनों हमारे शहर में भी सर्कस मौजूद है | अच्छी खासी भीड़ खींच रहे
हैं | पंडया बाबू रोजाना अपनी टिकट बुक करा रहें | इधर हमारी पत्नी की भी जिद है |
हम भी सप्ताह में कम से कम दो बार अवश्य ही सर्कस देखें | जब तक वह यहाँ मौजूद है
| इसका कारण जब हमने ज्ञात करने का प्रयास किया | उनका कहना था | पंडया बाबू न बन
सके तो यादव बाबू बन जाओ | जो कम से कम ऊपरी कमाई से रोजाना साग सब्जी का जुगाड़ तो
कर लेते हैं | अन्ना व् केजरीवाल का सरकसिया प्रोग्राम देखोगे तो एक वक्त कि
तम्बाकू-छूना कि फांक के लिए तरस जाओगे |
अत: पत्नी कि इच्छा के साथ हम भी सर्कस प्रेमी हो गए हैं | वो कहते हैं न |
हर पति कि सफलता के पीछे पत्नी का हाथ होता है | सफलता किसे पसंद नहीं है ?
सुनील कुमार ‘’सजल’’