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गुरुवार, 28 मई 2015

व्यंग्य – आदमी एक सर्कस है !


व्यंग्य – आदमी एक सर्कस है !


सर्कस की कलाबाजियों की तरह दुनिया के रंग-ढंग | दुनिया के भीतर है सर्कस और सर्कस के भीतर भी है दुनिया | किस्म-किस्म के लालाकार हैं | बहुरूपिए हैं | शेर, भालू और कुत्ते जैसे हिंसक जानवर भी | मगर वे अपनी चारित्रिक कला कि मौलिकता में खरे नहीं हैं | वैसे तो शेर जैसे जानवर अब जंगलों में बचे नहीं | राष्ट्रिय पार्कों में हैं तो अंगुली में गिनने लायक ही |
  फिर सर्कस में शेर कहाँ से आए ? हमने पहले ही कह दिया साब ! दुनिया भी सर्कस कि तरह है | शेर के नकाब में आदमी है शेर | हुबहू शेर लगता है | लाइट्स की चकाचौंध में नकाबपोश आदमी नहीं लगता आदमी | इसी व्यवस्था के सहारे सर्कस में है शेर है |
शेर के नकाब में आदमी सचमुच हिंसक लगता है | अपने रिंग मास्टर के ईशारे पर दहाड़ता है , करतब दिखाता है | इस वक्त वह ओरिजनलिटी लाने के फेर में शेर – गुरुर धारण किए है |
  सर्कस में शेर दहाड़ता है | दरअसल वह शेर तो नहीं | उसके नकाब से निकलती महसूस होती है दहाड़ | क्या वह असली दहाड़ रहा है मुजिकलबाक्स | आधुनिक आदमी के पास इत्ते तो उपाय आ चुके हैं | वह शेर कि दहाड़ भी सकता है , कुत्ते कि तरह भौंक सकता है और बिल्ली कि तरह गुर्रा भी सकता है |
 रिंग मास्टर का हंटर शेर के लिए इशारा होता है | हंटर की कलाबाजी शेर के लिए कर्तव्य व् कलाबाजियों का सूत्र है शेर समझता है ऐसे सूत्र को | उसकी दहाड़ पर ही तो भीड़ इकट्ठी होती है | अगर शेर दहाड़ना भूल जाए तो उसकी औकात के विरुद्ध बात होगी और भीड़ का रास्ता होगा विपरीत |
  सरकस में शेर का करतब जारी है | ऐसे ही छोटे-मोटे जानवरों का भी | जो नकाबनुमा इंसान में घुस आए हैं | कहते हैं जो जैसे पात्र में जीता है , उसका स्वभाव, गुण व् चरित्र भी वैसा ही हो जाता है | किसी ने ठीक ही कहा है , दुनिया एक सरकस है | जो सर्कस कि कला जानता है दुनिया कि भीड़ उसके पीछे होती है |
यूँ तो देखना सभी को पसंद है मुझे भी | आपको भी | पंडया बाबू सर्कस अलग नजरिए से देखते हैं | हमारी और तुम्हारी तरह केवल मनोरंजन वाला दृष्टिकोण नहीं रखते | वे सर्कस से सीखते है | कलाबाजियां इंसानों और जानवरों की |
    दफ्तर में कुर्सी पर बैठते ही उनके चरित्र में सर्कस कि कलाबाजियां होती हैं| आप उनसे दफ्तर समय के पूर्व व् बाद में मिलने के बाद चक्कर खा सकते हैं | दोनों वक्त में उनके दो चरित्र होते हैं | दफ्तर में बैठते के बाद एक दौरा-सा / गुर्राहट/रोबदार/दहाड़/ बातो में जोकर्पण | रिंग मास्टर कि तरह व्यवहार | प्यार के क्षेत्र में सर्कस कला का महत्त्व हो सकता है | कुछ प्रेमिकाएं जोकर टाइप या शेर टाइप प्रेमी की चाहत रखती हैं | उसका कारण यह है कि कुछ प्रेमिकाओं को मनोरंजन का टॉनिक चाहिए | दूसरे प्रकरण में समाज से जूझने वाला शेर हो | जो खाप पंचायत के हथियार बन्दों को अपने दम से दुत्कार सके |
   एक नेता जी इस बात को लेकर परेशान थे कि उनकी सभा में भीड़ इकट्ठी क्यों नहीं होती | किसी ने समझाया – ‘’ साब आप राजनीति करें | मगर साथ में समय – समय पर सर्कस में भी कुछ दिन ज्वाइन कर लें | दुनिया आज भी सर्कस की दीवानी है | यदि आप अपनी राजनीति केन्द्रित क्रिया-कलापों को सर्कस की कलाबाजियों की भाँती प्रोजेक्ट करंगे | निश्चित ही भीड़ के बादशाह बन जायेंगे |
   साब इन दिनों हमारे शहर में भी सर्कस मौजूद है | अच्छी खासी भीड़ खींच रहे हैं | पंडया बाबू रोजाना अपनी टिकट बुक करा रहें | इधर हमारी पत्नी की भी जिद है | हम भी सप्ताह में कम से कम दो बार अवश्य ही सर्कस देखें | जब तक वह यहाँ मौजूद है | इसका कारण जब हमने ज्ञात करने का प्रयास किया | उनका कहना था | पंडया बाबू न बन सके तो यादव बाबू बन जाओ | जो कम से कम ऊपरी कमाई से रोजाना साग सब्जी का जुगाड़ तो कर लेते हैं | अन्ना व् केजरीवाल का सरकसिया प्रोग्राम देखोगे तो एक वक्त कि तम्बाकू-छूना कि फांक के लिए तरस जाओगे |   
     अत: पत्नी कि इच्छा के साथ हम भी सर्कस प्रेमी हो गए हैं | वो कहते हैं न | हर पति कि सफलता के पीछे पत्नी का हाथ होता है | सफलता किसे पसंद नहीं है ?
       सुनील कुमार ‘’सजल’’

बुधवार, 27 मई 2015

व्यंग्य – अपने- अपने चरित्र


व्यंग्य – अपने- अपने चरित्र

वे बचपन में हण्ड्रेडपरसेंट  भोले थे | उनके भोलेपन को गाँव के लोग आज भी याद करते हैं | बुन्देलखंडी अंदाज में कहते हैं –‘’ काय रे सुनील , अपनों मंगलेश कछु बदलो कि नई | के वैसी की वैसी है | कह दईओ  भोलापन तो ठीक आज के युग में भंडारी बनाना भी जरुरी है | भंडारी बनन के लाने ज्यादा भोला पण ठीक नई होय |’’ वे व्वास्तव में भोले थे | उनकी नौकरी लगी | शहर आ गए | अब उन्हें नौकरी उनके भोलेपन के कारण मिली या कुछ और कारणों से, यह तो मंगलेश शर्मा जाने |
   अआधुनिक भाषा में भोलेपन’’ का दूसरा अर्थ ‘’ लल्लूपन’’ हैं | जो भोले है यानी लल्लू हैं मगर मंगलेश भाई एक चरित्र वाले भोले रहे , न लल्लू | शहर आने के बाद उनके दो चरित्र तय हो गए | यह चरित्र परिवर्तन का क्रम उनमें शहरी आबोहवा कि वजह से आया या फिर सरकारी नौकरी में आने की वजह से, यह तथ्य आज भी आधुनिक संतों के चरित्र की तरह रहस्यमयी है |
   इन दिनों वे दोहरे चरित्र में जीने वाले जीव हैं | दफ्तर में बड़े बाबू कहलाते हैं | हराम के चाय – नाश्ते व् पान- गुटखे ने उनके शारीरिक मापदंड में भी पहले की अपेक्षा दोहरापन ला दिया है | किसी समय उन्होंने एक चर्चा में मेरे एकाकी चरित्र का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि सुनील भाई यह चरित्र हमने यूँ ही नहीं पा लिया है बल्कि कड़ी मेहनत की है | ताने-बाने , उलाहने सुनकर कान पकाए हैं | अधिकारियों के कई बार कोपभाजक बने हैं | तब कहीं जाकर मंजे बर्तन की तरह निखरे हैं |
   उनका दोगला चरित्र किस तरह का है | आपको भी बता दूं | दफ्तर में रावण या दुर्योधन होते हैं | दफ्तर के बाहर भोले भंडारी |
    लोगों ने कहा है- ‘आदमी को दोहरे चरित्र में जीना चाहिए तभी उसका उद्धार है | वरना एकल चरित्र वालों की दुर्गति कैसी होती है,यह बताना हमारे लिए जरुरी नहीं हैं |
    एक दिनज मैंने उनसे कहा – ‘’ यार शर्मा आप दफ्तर में ऐसी भाषा बोलते हो , जिसकी मैं उम्मीद कतई नहीं कर सकता मगर दफ्तर के बाहर बिलकुल गऊ कि तरह मीठेपन के साथ रंभाते हो |
    वे हँसे | उनकी हंसी में दुर्योधन व् कृष्ण के मुस्कान –सी मिलावट थी | बोले – यार , सुनील लगता है अब मैं नहीं तुम भोले हो | तुम तो ऐसे प्रश्न किए जा रहे हो | मानो नन्हें-मुन्ने बच्चे हो | अरे लल्लू मैं दुर्योधन व् कृष्ण का चरित्र लेकर न चलूँ तो मेरा बेटा इंजीनियरिंग नहीं पढ़ सकता | उच्च घराने कि मेरी पत्नी मेरे साथ अपने शौक- सपाटों का क़त्ल होते नहीं देख सकती और अपनी बिटिया के प्रति दहेज़ के दानवों को धन का क्लोरोफार्म सुंघाकर बेहोश नहीं कर सकता | अब तुम ही बताओ कि मेरा चरित्र दोगला क्यों नहीं बनेगा |
    अब दफ्तर के बाहर की बात | मैं समाज के बीच आ जाता हूँ | अगर मैं वहां दुर्योधन बनाकर बैठा तो ? समाज अपने सहयोगी मापदंड के हथियार से मेरे संग का वध कर देगा | मुझे तो दफ्तर व् समाज के बीच के पहलुओं को खूबसूरत  बनाए रहना हैं साहब | ‘’
 कहते हैं- ‘यूँ तो लल्लुओं का भी दोहरा चरित्र होता है | पहला गऊ व् दूसरा शेखचिल्ली का | अन्दर की घुटन को शेखचिल्ली सपने ही थपकी देकर सहलाते हैं | गऊ चार्टर तो न बोल पाटा न किसी का कुछ बिगाड़ पाता
| गांधीजी के तीन बन्दर भी इस चरित्र से मेल नहीं खाते | कारण कि उनमें से एक को तो सुनाने की भी फुर्सत नहीं है |
   अक्सर म्रेरी पत्नी मेरी मास्टरी की नौकरी पर अंगुली उठाती है | कहती है- ‘’ एक वे मास्टर होते हैं , जो साइकिल, ड्रेस व् स्टेशनरी खरीदी से कमीशन का जुगाड़ कर लेते हैं | मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम से घर का राशन खर्च चलाते है | एक तुम हो, छात्रहित में मरे जाते हो | छात्र के लिए तो तब गुरु हो | जब तक वे तुम्हारे छात्र हैं | बाद में उनसे नमस्ते का सम्मान पाने के लिए तरसते रह जाओगे| धरे के धरे रह जाएंगे हितैषी कारनामें | सुधरो| समय के चाणक्य से कुछ सीखो |’’
   मैं अपनी पत्नी को कैसे समझाउंज कि मेरा गुरु मन आधुनिक दुष्कर्मी बनाने कि गवाही नहीं देता | कभी – कभी पत्नी के ताने – बाने सुनकर मेरी कुंडली निर्माता ज्योतिषी व् भगवान को कोस बैठता हूँ | ज्योतिषी को इसलिए कि उसने कहा था – ‘’ कुंडली में मेरा वृहस्पति प्रबल है | अत: कार्यक्षेत्र अध्यापन होगा और भगवान को इसलिए कोसता हूँ कि अगर वह मुझे धरती पर ला रहा था तो कुछ देर और ठहर जाता, ताकि मेरी गृह दशा बदल जाती | उस विभाग का नौकर बनाता , जहां हरामखोरी के पूरे अवसर होते हैं मगर तूने मेरा वृहस्पति उच्च कर गुरु बना दिया | गुरु तक बात ठीक है पर गृह चरित्र के आधार पर उसने मुझमें ‘ घंटाल’ बनाने के गुण नहीं डाले | देख मैं आज भी वही जिंदगी जी रहा हूँ ,जो बचपन अभावभरा  जिया था |
   मैं तो भगवान से आज भी यही विनती करता हूँ कि मेरी गृह दशा बदल | मुझे गुरु से घंटाल बना, ताकि मुझे अपनी पत्नी के व्यंग्यबाण न सहने पड़े , वरना व्यंग्यकार होने का मतलब ही क्या रहा | जो दूसरों को सुधारने का ठेका ले और खुद न सुधर पाया |
         सुनील कुमार ‘’सजल’

व्यंग्य- गिरोह का समाजवाद


व्यंग्य- गिरोह का समाजवाद

हम पहले ही कह चुके हैं कि गिरोहों के पीछे मत पदों , पर पुलिस वाले मानते कहाँ हैं ? गिरोह तो गिरोह हैं , साब ! सरेआम थाणे के सामने वारदात कर जाते है | पुलिस है कि अपनी पीठ थपथपाती रहती है , ‘’ इलाके में शांति है ..|’’ हम लोकतांत्रिक शैली में पहले भी कहते थे , अब भी कहते हैं और भविष्य में भी कहते रहेंगे कि गिरोहों को फलने-फूलने दो | हर दो नंबर के काम के लिए पुलिस का सहयोग जरुरी है | ऐसे सहयोगियों का भ अपना एक गिरोह है, जो गिरोहों  को असामाजिक से सामाजिक हिने का प्रमाण- पात्र देता है | साहब, गिरोह चलाना बिलकुल फैक्टरी चलाने जैसा है | आपके पास साहस और क़ानून को खरीदने के लिए धन-बल , आंतक मचाने के लिए हथियार और टार्गेट को स्कैन करने की क्षमता होनी चाहिए | इनमें भी प्रमोशन कि व्यवस्था होती है | खास बात यह है कि इनमें सामाजिक मतभेद प्रदाता आरक्षण लागू नहीं होता , जिसके लिए संसद में पक्ष और विपक्ष में घमासान मचा है |
  गिरोहबाजी बड़ा रिकी व्यवसाय है, किराने व् गल्ले का धंधा नहीं है | माल नहीं बिका तो औने- पौन किसी को भी थमा दो | साब! गिरोहों का केवल आंतक पक्ष मत देखी | आपकी औलाद परीक्षाओं में कई वर्षों तक लुढ़कती जाए , तो आप क्या करेंगे ? या तो औलाद का जीना हराम कर देंगे या सर पर हाथ रखकर बैठेंगे \ पर, आप चिंता मत कीजिए | आपकी औलाद परिखा में सफलता हासिल करके रहेगी | बस आप परीक्षा में सफलता दिलाने वाले गिरोह से मधुर सम्बन्ध बनाइये | सम्बन्ध तब बनेंगे , जब कुछ खर्च करेंगे | साब! आपको कैसी सफलता चाहिए ? फर्जी अंकसूची वाली या मुन्नाभाइयों कि सहायता से वास्तविक  अंकसूची |आजकल ऐसी ही अंकसूची , जाती प्रमाण पात्र व् एनी प्रमाण- पात्र का बोलबाला है | आप तो इतना भी जानते हैं , ऐसे प्रमाण-पत्रधारी सरकारी व् गैर सरकारी क्षेत्रों में कैसे मजे लूट रहे हैं ? इसी तरह एक गिरोह लाइसेंस व् परमिट बनाने वाला होता है | आप सरकारी दफ्तरों में दरजनों चप्पलें घिस चुके होते हैं | तब भी वहां के अधिकारी कर्मचारी आपको शक कि नजर से देखते हैं |
  अआप बेवजह के पचड़े में न पड़े | लाइसेंस परमिट निर्माता दलाल से संपर्क साधी |  हम गिरोहबाजों को समाज सेवक कहेंगे | भेदभाव व् उंच-नीच कि दीवार यहीं गिरती नजर आती है | वे समाजवाद लाने का प्रयास करते है | पिछले सालों में चड्डी – बनियान गिरोह काफी सक्रीय रहा , पर हो सकता है आधुनिकता आने से इनके ड्रेस कोड बदल गए हों | जींस – टी शर्ट गिरोह हो गए है | आखिर देश की अर्थव्यवस्था ,शिक्षा , चिकित्सा जैसे सभी खेत्रों में तो पाश्चात्य रंग बिखर रहा है | हम तो यही कहेंगे कि इन्हें कटु निगाहों से न निहारी , बल्कि सम्मान दीजिए | अगर ये न होते तो आप अपनी तरक्की के पथ पर बिखरे कांटे किससे हटवाते .. बताइये ?
    सुनील कुमार सजल 

मंगलवार, 26 मई 2015

व्यंग्य – आप तो सुपरमैंन हैं साब


व्यंग्य – आप तो सुपरमैंन हैं साब

कौन कहता है आप दबंग नहीं है | आप तो सुपरमैन हैं साब | आप ऐसे कारनामे करते हैं कि लोग दांतों तलेअंगुली दबा लेते हैं | आप क्या नहीं कर सकते | मर्यादा को टाक पर रख सकते हैं मानवता का मर्डर भी कर सकते हैं |
  साब आप ही तो हैं , जिनके सामने मानव समाज सर झुकाता है | क्यों न झुकाए | गाँव की गरीब भोली भाली लड़कियों को अपने मोह जाल में ऐसे फंसाते हैं | अगर इस युग में कृष्ण भगवान होते तो गोपियाँ उन्हें छोड़ आपके संग प्रेम लीला रचाना शुरू कर देती |
  साब आपने नारी उध्दार में जो काम किया है ,  उसे प्रदेश सदैव याद रखेगा |
  समाजसेवा आपका धर्म है और कर्म भी | इउसी कर्मकांड के तहत आपने गाँव कि कमसिन छोरियोंको रोजगार दिलाने के बहाने महानगरों, नगरों के कोठे तक पहुचाया | आखिर कोठा भी व्यवसाय का क्रन्द्र है | इस बेरोजगारी के माहेल में आप जो कार्य कर रहे हैं सदैव स्मरणीय रहेगा \ आपको इस महानता के लिए शत-शत नमन |
 विधवा उद्धार में भी आप सदैव अग्रणी रहे हैं और आज भी लगे हैं | आज आपके प्रम्जाल में फंसी सीधी- साडी कितनी ही विधवाएं आपकी रखैल का जीवन जी रही हैं और उनकी संपत्ति आपके नाम |
  यायुं कहे कि पति हमेशा परमेश्वर होता है | परमेश्वर के चरणों में अपना सबकुछ अर्पण करने पर ही दासी के जीवन का उद्धार होता है | जिसने औरों के बहकावे में आकर आपसे बगावत कि, आपने उन्हें ठिकाने लगाया | सीधे अर्थों में नरक का द्वार दिखाया | जहां सबूत के नाम पर हड्डी-पसली भी नहीं मिली |
  साब आपने मनारेगा में अफसरों , सरपंच , सचिवों को पटाकर जो घोटाले कर दिखाया , उससे तो सरकार तक को पसीना आ गया था | सड़क निर्माण में उचित सामग्री के स्थान पर सड़क से सटे खेतों कि मिटटी डलवा दी थी आपने | मुर्दों को जाब कार्ड थमाकर साड़ी राशि इस प्रकार डकारी कि उसकी आवाज तक नहीं आयी |
     शासकीय भवनों के निर्माण में तो आप सीमेंट नाम के लिए काम में लाते हैं , ताकि पक्के की सनद बनी रहे | वाह! साब वाह! छूना लगाना  कोई आपसे सीखे |
   चुनाव वगैरह में फर्जी वोटिंग व् बूथ केप्चरिंग तो आपके लिए ताश के पत्ते फेंटने जैसा खेल है |
  साब आप रईस हैं | लक्ष्मी आपके द्वार पहरा देती है पर आप बी.पी.एल. श्रेणी में आते हैं | यूँ तो कई अधिकारियों ने आपको इ,पी.एल. श्रेणी में लाने का प्रयास किया पर उनकी कलम लाल रेखा खीचने में काँप गयी |

 नए नवेले अफसर आपके रुतवे को शुरू में समझते नहीं | बाद में पछताकर आपके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं |
‘ साब, सूना है आप अपना प्राइवेट अस्पताल खोलने जा रहे हैं | नेक इरादे के लिए धन्यवाद | आपके अस्पताल गरीबों के उद्धार का सपना होगा पर परमोधर्म के तहत अमीरों का उद्धार अवस्य करेंगे | कारण नोट उन्हीं कि जेब से निकलते हैं | गरीब लोग तो फटा थैला लेकर पहुँच जाते हैं | ज्यादा हुआ तो हजार – दो हजार साथ में | इत्ते तो आपके अस्पताल में घुसते ही ठुक जायेंगे | और दवाई, गोलियां? वह उनका बाप खरीदकर देगा उन्हें |
  हाँ यह अलग बात है कि आप गरीबों के हित में अपने अस्पताल में कुछ सरकारी योजनाओं को लागू करवा लें ... पर वे सब हाथी के दांत ही रहेगीं | वैसे भी गरीब – गुरबा तो अस्पताल में टंगी आपकी फोटो देखकर मरीज सहित चम्पत ही जाएंगे इसलिए उनका अस्पताल में आने का व् उन्हें भगवाने का आपको ज़रा भी टेंशन नहीं रहेगा |
 साब आगे हम क्या कहें | अगर आपका चरित मानस लिखने बैठें तो रामचरित मानस कि मोटाई के दर्जन मानस तैयार हो जाएंगे | उपरोक्त विशेषताएं तो हमने अनजान जनता  को सनद रखने के लिए लिख मारी फिर आपकी जैसी आज्ञा ,हम वैसा करने को तैयार हैं |
          सुनील कुमार ‘’सजल’’

व्यंग्य- साध्वी या ब्यूटी क्वीन ?


व्यंग्य- साध्वी या ब्यूटी क्वीन ?

जी हाँ , वह साध्वी है | एक ख्याति प्राप्त आश्रम की साध्वी है | मैं उसमें उपस्थित साध्त्व का आदर करता हूँ | पर एक प्रश्न यह भी उठता है मेरे मन में बार-बार किवह  साध्वी होकर अपने सौन्दर्य पर क्यों सजग रहती हैं ? कहते हैं साधू हो या साध्वी इनका जीवन अत्यंत सात्विक व् साधारण होता है | मोहमाया से परे रहकर केवल ईश्वर भक्ति में लीं रहकर समाज का पथ प्रदर्शन करते हैं |
पर वह साध्वी? आधुनिक जीवन शैली , दिखावे के लिए तन पर गेरुआ वस्त्र कृत्रिम सौन्दर्य के प्रति इतनी सजगता किअभी-अभी ब्यूटी पार्लर से निकल कर आयी है | आधुनिकता का इतना आकर्षण कि आदमी देखता है तो देखता रह जाए | अदाएं भी इतनी मोहक की सज्जन की सज्जनता भी घुटने टेकने पर मजबूर हो जाए | इतना सब कुछ होते हुए भी उसके प्रवचन प्रभावकारी होते हैं | पर लोगों की दृष्टि का क्या , वे तो प्रवचन से ज्यादा सौन्दर्य रूपा को निहारते हैं |
इन दिनों वे चर्चा में हैं ? क्यों हैं यह बताकर उनके साधुत्व पर हथौड़ा ठोंकना हमारा मकसद नहीं है |
   एक दिन हम उने मिले | प्रणाम किया तो उन्होंने स्वीकारा | हमारे मिलाने का कारण पूछा , हमने अपना मंतव्य स्पष्ट किया तो वे हमारे प्रश्न का उत्तर देने को सहर्ष तैयार हो गयी | कभी-कभी ‘’ प्रसिध्दी के लिए न चाहते भी तैयार होना पड़ता है , इन साधू-संतों को |हमने कहा-‘’ देवी श्री, हम जानते हैं कि एक साध्वी का जीवन सात्विक होता है , सादा जीवन , उच्च विचार के अनुकूल होता है | पर लोग कहते हैं आपकी जीवन शैली पूर्णत: आधुनिक है ? ‘’
‘’ मैं आपका मंतव्य समझी नहीं | फिर भी लोगो को मेरी जीवन शैली से क्या तकलीफ है |’’ उन्होंने कहा |
‘’ मेरा मतलब आप साध्वी हैं | आप भटके समाज की पथ प्रदसक हैं | मगर आप पूर्ण आधुनिक मेकअप के साथ प्रवचन को उपस्थित होती हैं ? ‘’ हमने कहा |
‘’ आपका मतलब?’’ उनका संदेह भरा प्रश्न |
 हमारा मतलब आप गृहस्थ या स्वच्छंद नारी हैं या किसी फिल्म की हिरोइन | जिन्हें अपने रूप निखार , आधनिक कास्मेटिक से सजाने की अधिक चिंता होती है | मेरा मतलब एक आधुनिक अपने सौन्दर्य को आकर्षण बनाने के लिए जो भी कर सकती है ,  कराती है , वही कुछ तुलनात्मक गुण आपमें भी दिखाई देते हैं ? ‘’ हमने प्रशन किया तो वे कुछ चिढ सी गयी |
‘’ आप असलियत में कहना क्या चाहते हैं ? आपके कलयुगी विचार हमारी समझ से परे हैं ? “”
“” जी मेरा मतलब आप साध्वी हैं या आधुनिक सौन्दर्य रूपा ?
‘’ क्या एक औरत श्रृंगार नहीं कर सकती ? यह उसका अधिकार नहीं ? ‘’ उन्होंने कहा |
‘’ क्या साध्वी को आधुनिक श्रृंगार शोभा देता है ? उसके कर्म के समक्ष तो आधुनिक सौन्दर्य भी पैर की धुल है पर आप ? ‘’ हमने कहा |
‘’ कर लेते हैं तो क्या बुरा करते हैं ?””
“” एक साध्वी के प्रत्येक शब्दों में जादुई सौन्दर्य होता है तो आधुनिकता की  चमक _ दमक दिखाने कि आवश्यकता क्यों है आप में ?’’ हमने कहा |
‘’ आप औरत के अधिकारों पर हमला कर रहें हैं | आप चाहते हैं हम साध्वी होकर प्राचीन मान्यताओं को अंगीकार कर जियें | साध्वी बनाकर मूल व्यक्तित्व खो दें | ‘’ उनके शब्दों में गजब कि तिलमिलाहट थी |
‘’ साध्वी जी नाराज न हों | आपको देखकर लगता है जैसे आप अपने प्रवचन की बजे रूप सौन्दर्य से बांधकर रखना चाहती हैं | क्या यह आपके सात्विक जीवन का तोड़ नहीं है | ‘’ हमने कहा तो वे पूरी तरह आक्रोश में आ गई |
  देखी आप हमारे निजी जीवन में दखल देने आए हैं या आशीर्वाद लेने | आप यहाँ से तुरंत छू हो जाइए | हमारे आश्रम सेवी और सुरक्षा बल ... तुम्हारी हड्डी-पसली .....|
   हम उअनके वाक्य पूरे होने से पूर्व खिसक लिए | हमारे मन में आज भी प्रश्न गूँज रहे हैं कि आज कि साध्वियां ( हर किसी के सम्बन्ध में क्षमा याचना सहित ) पश्चमी संस्कृति की शिकार हैं या सात्विकता ढोंग महज प्रसिध्दी का बाजार बनाना है ? क्या आप बता सकते हैं ?
                   सुनील कुमार ‘’सजल’’

लघुव्यंग्य- सस्ते का चक्कर


लघुव्यंग्य - सस्ते का चक्कर

यूँ तो अपने यहाँ वैज्ञानिकों की कमी नहीं है |जो तरह-तरह के आविष्कार सामने लाते हैं , इसलिए अपने देश को वज्ञानिकों का देश कहने में बुराई नहीं हैं |
अपने यहाँ दो तरह के वैज्ञानिक पाए जाते हैं | एक तो वे जो बड़ी अनुसंधानशालाओं में बैठकर अरबों रुपये खर्च कर आविष्कार लाकर देश की तरक्की के मुकाम पर पहुँच रहे हैं | दूसरे वे हैं जो चाँद रुपयों में आविष्कार करते हैं | देश को तरक्की के मुकाम पर पहुंचाए न पहुचाएं | जनता के साथ ठगी कर अपनी आमदानी व् खुद को तरक्की के मुकाम पर अवश्य पहुंचाते हैं | पहले तौर के वज्ञानिक को अलग रखें | दूसरे रतार के वैज्ञानिक उत्पादों को लें \ इसके प्रचारक गली-गल सस्ते उत्पाद बेचते नजर आते हैं इनका माल चाँद घंटों में बिक जाता है| लुभावनी बातें | दिखावे का आकर्षण | सस्ता मूल्य | जादुई मेकनिज्म| उत्पादों की मुख्य वेशेशाताएं हैं |
 पिछले दिनों ऐसे उत्पादों के प्रचारक आए \ एक प्रचारक अपने उत्पाद का प्रचार कर विक्रय कर रहा था | ‘’ साब, अगर आप इस यंत्र को अपनी मोटर साईकिल में लगायेंगे तो पेट्रोल की पच्चीस प्रतिशत बचत होगी | बार-बार सर्विसिंग से बचे रहेंगे मैंने कहा – ‘’कीमत’’|
‘ प्रचार के तहत मात्र दो सौ रुपये साब | और अगर इसे एजेंसी से खरीदेंगे तो सात रुपये का है | ‘’ उसने कहा | ‘’ तुम्हारी कंपनी बड़ी रहम दिल है यार | प्रचार में दो सौ रुपये में और एजेंसी से सात सौ रुपये में बिकवाती है अपना माल |’’ मैंने चुटकी ली |
‘’ साब यह प्रचार सामग्री है | एजेंसी व्यावसायिक केंद्र है |’’
‘’ यार प्रचार सामग्री तो मुफ्त में बांटने का नियम है |’’
 मैंने इस कथन को उसे समझाने का प्रयास किया –‘’ हमार्रे इलाके में पहले लोग गुदाक्हू ( एक नहा युक्त मंजन ) नहीं जानते थे | कंपनियों ने मुफ्त में बांटकर ऐसा प्रचार किया कि अब पचास पैसे का माल दो रुपये में बिक रहा है |
 मने कहा – ‘’ अच्छा एक बात बताओ | किसी सस्ते व् घटिया माल इ दुगुनी आमदानी निकालना प्रचार सामग्री के तहत बताकर धंधे का फंदा है या नहीं | ‘ वह मुस्करा कर रह गया | मैंने आगे कहा ‘’ इस देश में बातों के मायाजाल में लपेटकर सड़क की धुल को बेचा जाए तो वह मुलतानी मिटटी के रेट पर बिक जाती है |’’
‘’ कहो ठीक कहाँ |’’
 अब वह भी मुस्करा रहा था | मैंने कहा- ‘’ मुझे तो आपकी कम्पनी कि मजबूरी समझ में नहीं आती है | यदि आपका उत्पाद इतनाकारागर होता तो बड़ी बाइककम्पनियां कब का अधिकार खरीद कर अपने नाम पेटेंट करवा लेती | गली-गली भेजकर आपसे क्यों बिकवाती ‘’| ऐसे तमाम सवालात मैंने उसके सामने रखे | वह तुरंत उठा और बढ़ लिया | गिरोह इन दिनों और सक्रीय है | जो अपनी सामग्री को चोरी का माल बताकर जनता के बीच सस्ते में बेचने का प्रयास करते हैं | सस्ता हर किसी को लुभाता है | बाद में रुलाता है | हम रोते हैं | रोते हुए पुन: ऐसी ही सामग्री के लिए टूट पड़ते हैं | यह अपनी मजबूरी है या नासमझी | खुद से पूछकर देखी साब |
     सुनील कुमार सजल 

सोमवार, 25 मई 2015

व्यंग्य –चमत्कार को नमस्कार


व्यंग्य –चमत्कार को नमस्कार

आस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि चमत्कार हो जाए | इंसान तो चमत्कार को नमस्कार करता है | जिसके पास चमत्कार नहीं है उसको क्या नमस्कार | अगर नमस्कार होता भी है तो औपचारिकता वश  या सम्मान वश बड़ों का या यारी चलती रहे | इस प्रक्रिया में कई बार घाल-मेल भी हो जाता है | नजरें फेर ली जाती है |
जब चमत्कार दमकता है,तब श्रद्धालु स्वमेव नमन कि या दंडवत मुद्रा में आ जाता है, इसलिए कुछ होशियार लोगों ने फंदा खोज निकाला | चमत्कार के चक्रव्यूह का, जिसमें आदमी न चाहकर भी जाल में पंछी कि तरह फंस जाता है |
श्रधावश वह फडफडाता नहीं , मौन भाव से स्वीकारता है | दम घुटे तो घुटे | इसमें अहो भाग्य देखता है |
चमत्कार एक ऐसा जाल है , जिसका जादू एक बार चला , फिर लम्बे  काल तक चलता है | आस्तित्वहींन होकर भी अस्तित्ववान लगता है | उन खानदानी राजघराने कि तरह, जिसकी पीढियां बाप-दादों कि बनायी कुब्बत पर तर जाती हैं |
अब वे जादूगर नहीं रहे | अब तो होते हैं तांत्रिक | जो हर काम व् मुरादों कि सम्पन्नता का दवा करते हैं | जो संतानहीन को बच्चा दिलाने से लेकर कैंसर जैसी बिमारी तक को भी ठीक करने कि ताल ठोंकते हैं | फलां अघोरी या तपस्वी का चेला होने से लेकर फलां देवी के परम भक्त तक होते हैं |
इनसे ऊपर होते हैं बाबा यानी तथाकथित संत | चमत्कारों के रजिस्टर्ड उत्पादक \ चमात्कार ही इनकी बाबागिरी का हथियार |  चंद चमत्कारों के दावे के बाद इनकी कीर्ति जैसे झुग्गी इलाके में फैली आग | बड़े-बड़े अविश्वासी भी इनके चरणों में पूरी श्रद्धा से दंडवत मुद्रा में चरण चाटते , आशीर्वाद का चिमटा पीठ पर ठुकवाते , जय-जय कर करते नजर आते हैं |
आज के दौर में तथाकथित संत भगवान से बड़े हैं | भगवान तो मंदिरों में मूर्तिवत व् चित्रों में स्टेचू कि भाँती खड़े सुनते भी हैं किसी की? क्या गारंटी ? आज के अंध श्रद्धालु को तो सबसे पहले सुनाने वाले की गारंटी चाहिए | चमत्कार बाद में पहले सुने | बाबा लोग सबकी सुनते हैं | कल्याण कि भाषा में बोलते हैं | मानो वे पर्वत को भी उठाने की क्षमता रखते हैं |
तथाकथित बाबा दुखियारों पर कंडे की राख यानी भभूत फूंककर कल्याण करते हैं | कहते हैं- ‘ जा रे तेरे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे | अंधे आदमी को क्या चाहिए ? चमत्कारों कि दो आँख | सेवा के हकदार हैं |  भक्त भले भूखा रहे पर बाबा भूखे नहीं रहते | भक्त की थाली पर उनका भी हिस्सा होता है |
ऐसे ही एक भभूति बाबा यानी भभूत फूंककर इलाज करने वाले बाबाजी \ एक अपराधी को आशीर्वाद दिया |’’ जा तेरे सारे कष्ट फूककर उड़ा दिया | ‘’ उस बाबा को कौन समझाता | जिसके लिए उन्होंने भभूत फूंकी वह नंबर वन का अपराधी है |
 उसने मर्डर छुरी  से मूली काटने जैसे किए हैं | उसके पीछे क़ानून व् पुलिस हाथ धोकर पड़ी है और अन्तर्यामी बाबाजी उसे  कष्ट हरने का आशीर्वाद दे रहे हैं |
बाबा अन्तर्यामी हैं, उसके लिए जो न समझ हैं | भोले हैं | अंधविश्वासी हैं | जबकि देश अनेक कंटकों के सामान समस्याओं से ग्रसित है | आंतक,भय बलात्कार,लूटमार घोटाले , लाचारी, बेरोजगारी , महंगाई , बीमारी | न जाने कितने कष्ट |
अन्तर्यामी बाबाओं को यह  सब क्यों नहीं दिखता है | सात्विकता का मुखौटा क्यों तामिष को छिपाता है ? क्यों यहाँ उनके चमत्कार निर्जीव बनकर रह जाते हैं ?
बाबा उन मक्कारों की तरक्की का आशीर्वाद देते हैं | जिनके पास देश की खजाने से लूटी गयी आकूत संपत्ति है | विजयी होने का आशीर्वाद इन्हें मिलता है और राज करने का आशीर्वाद भी | पाखण्ड ही चमत्कार है | जितना बड़ा पाखण्ड वह उतना ही चमत्कारों का प्रकाश , अहसास| इसी पाखण्ड के पीछे पागल आदमी | कर्म से विमुख होकर | कर्महिनता  के दम पर तरक्की का सपना देखता हुआ | दंडवत मुद्रा में चरणों पर | श्रद्धा कि जीभ टिकाये |
                       सुनील कुमार ‘सजल’

व्यंग्य – अच्छा वर पाने के लिए


व्यंग्य – अच्छा वर पाने के लिए

अच्छा वर मिले ... इस ईच्छा से एक भीड़ –सी लगी है आज के दिन ...मंदिर में कुँवारी व् जवान लड़कियों की | कहते तो हैं | आज मन्नत माँगने का पर्व है |
बेचारी भी क्या करें ? अबला जो होती हैं | अच्छे वर प्राप्ति के लिए बेचारियों ने दिनभर का उपवास रखा है | कुछ न खाने-पीने वाला उपवास | बिलकुल निराहार | माँ  की जिद के आगे थोड़ा झुक गयीं हैं | बस चार- छ: घूँट चाय पी हैं |
 माँ  भी चिंतित है | एक अच्छा वर मिले उसकी बिटिया को | इसलिए मंदिर के सभी देवी- देवताओं को अपने सामने भोग लगवाया है बिटिया से | पूजा- पाठ में कोई गलती न हो |
यूँ तो घर में भी धार्मिक शिक्षा देती रहती हैं-ऐसा उपवास हर कुँवारी व् युवतियों को रखना चाहिए , इससे सुयोग्य वर मिलता है |
कुछ समझदार लड़कियां अवश्य ही प्रश्न  कर बैठती हैं- ‘’माँ  आप भी कुछ का कुछ कहती हैं | भला उपवास करने से अच्छा वर मिले , जरुरी है क्या? जो किस्मत में लिखा होता है, वही होता है |’
माँ  तो माँ  होती है | वह नाना प्रकार की शिक्षा व् उदाहरण देती है , धार्मिक ग्रंथों से, जो सुयोग्य वर-प्राप्ति के लिए उस युगाकालीन युवतियों ने किया था |
बिटिया भी करे तो क्या ? क्या स्वीकारे , क्या नहीं ? उसे भी तो अच्छा जीवनसाथी चाहिए , इसलिए माँ  की बात को स्वीकार कर, रखती है उपवास |
मंदिर काफी चहल- पहल है | कुँवारी युवतियों की भीड़ सी है | सजी-धजी युवातियाँ | हाथ में पूजा का थाल | धक्का – मुक्की, फिर सभी सहज |
मंदिर में बैठी मूर्ती मुस्काती सी | पंडा – पुजारी भी व्यस्त | पूजन कराने में, दक्षिणा वसूलने में | फुर्सत तनिक भी नहीं| व्यस्तता | बीच-भीच में कुछ आक्रोश | संयम भी टूटता सा | धंधा जेब भरने का | अच्छा स्वांग, पंडा –पुजारियों का | वर्षों की परम्पराओं का व्यावसायिक रूप | वर मिलना ,न मिलना किस्मत की बात , पर धंधा है किपरम्पराओं के कंधे पर बैठकर ऐश करता है |
बिटिया खुश है | व्रत में लीं है | व्रत हेतु निराहार रहना बड़ा कठिन काम होता है | मां कहती है – पी ले कुछ चाय-जूस | साबूदाना, मूंगफली की खिचड़ी खा ले | मन- मसोसकर खाना पड़ता है |
आधुनिक महिलाएं तो व्रत रखने की परम्परा को किती पार्टी से सेलिब्रेट कराती हैं | नए-नए किस्म के फलाहार | किसी पेड़ तले या मंदिर परिसर में या फिर आलिशान घर के कक्ष में डिस्को या पॉप थीम वाले भजन सुनते हुए फलाहार ग्रहण करने की ऐश | हंसी- मजाक , वर को लेकर तरह-तरह की चर्चा और छेड़छाड़...|
 हमें  तो आजतक यह समझ में नहीं आया कि सुयोग्य वर-प्राप्ति के उपवास क्यों रहे जाते हैं ?
वर्षों से उपवास ,पूजन ..फिर भी इस देश में नारी के साथ तलाक –प्रताड़ना,दबंगई, उपेक्षा ...| कहाँ सो रहे वर-प्राप्ति के धर्म-अनुष्ठान कराने वाले धर्म के ठेकेदार ? क्या ईश्वर अंधे हैं ? या स्वार्थी ? या फिर है ही नहीं ?
लोग केवल परम्पराओं को निभा रहे है ? शक ही शक ? एक अंधविश्वास –सा कायम है ? प्रपंचो का शिकार हैं परम्पराएं |कथा परम्पराओं को बनाए रखने के लिए बनायी गयी हैं ?ताकि विशवास अंधा बना रहे और ढोतारहे लंगड़ी परम्पराओं को | क्या कहते हैं आप ?






व्यंग्य –बे-मौसम बरसात पर विमर्श


व्यंग्य –बे-मौसम बरसात पर विमर्श

इस बार गरमी का अजीब नजारा है | नजारा यह है किगरमी पिछले सालों का रिकार्ड नहीं तोड़ पा रही है | वे परेशान हैं | गरमी न पड़ने को लेकर | वे कोई खेती किसानी वाले नहीं हैं कि गरमी न पड़े तो वर्षा की स्थिति खराब रहेगी , और ठण्ड की भी | इस पर चिंता करें | वे आइसक्रीम ,कुल्फी कोल्डड्रिंक्स बेचने वाले कोल्ड स्पॉट के मालिक भी नहीं हैं |जिससे दुकानदारी पर असर पड़े | दरअसल वे सरकारी अधिकारी हैं | कई मामलों में सरकारी अधिकारीयों की चिंता का विषय मौसम ही होता है | उनके कारनामों की जड़ व् रहस्य मौसम ही होता है | मौसम ही उनकी जेब का थर्मामीटर होता है | उनकी जेब का तापमान का बढ़ना , न बढ़ना मौसम की हरकत पर निर्भर करता है | मौसम जितना अनुकूल होता है, उनकी जेब का तापमान व् दाब भी अनुकूल होता है |
  अधिकारी यानी हमारे साहब गरमी न पड़ने को लेकर चिंतित हैं | दफ्तर में साड़ी योजनायें शुष्क सीजन की ही आती हैं | वर्षाकालीन योजनायें हमारे सहयोगी विभाग के पास है हमारे साब को वर्षा से सख्त नफ़रत है | खासकर बे-मौसम बरसात से | जो उनके खायाबों व् योजनाओं पर पानी फेर देती है |
इन दिनों का मौसम भी बे- मौसम बरसात का ही है | वे ऐसी बरसात को तबियत से गाली बकते हैं | एक दिन तो क्रोध में ग्रीष्म की तरह तपकर यहाँ तक कह दिया | फंसाओ किसी भी मामले में इन्द्रदेव को | और भेज दो जेल | ताकि वह बरसात कराने के मामले में जेल में सड़ते हुए हाथ मलते रहें |
  जब गुस्से का पारा डाउन हुआ तो एहसास हुआ | यही काम उनके बस में नहीं है | और शर्मिन्दा भी हुए |
 साहब हमारे शुष्क एवं ग्र्रीश्मकालीन राहत योजनाओं के प्रभारी हैं | शुष्कता के दौर में आम जनता को रहत पहुंचाने हेतु उनके पा भारी-भरकम एलाटमेंट आ जाता है कभी-कभी तो इअतना आ जाता है किसाहब को पूरी रात जागकर सोचना पड़ता है | आखिर इतनी राशि कहाँ और कैसे खर्च करें |
तो साब | गरमी कुछ इस तरह पद रही है किइधर तापमान बढ़ा और बरसात हो जाती है | गरमी अपनी जवानी का एहसास नहीं कर पा रही है इधर ग्रीष्म का ठंडा होना और उधर साहब के दिमाग का गरम होना , एक सामान घटनाक्रम है | कभी-कभी तो आसमान में छाए बादलो को देखकर उनका दिमाग इतना गरम हो जाता है की मातहतों को उनके लिए ‘’ ठंडी बीयर ‘ की तत्काल व्यवस्था करनी पड़ती है |
उस दिन साहब का भेजा फिर गरम हो गया | मामला यह था कि बादल रात भर बरसे | मानो आषाढ़ का महीना हो | धरती पर आषाढीया  सांप दिखने लगे | और साहब की छाती पर लोटने लगे |
एक दिन साहब मीटिंग ले रहे थे | बोले-‘’ यार तुम लोग का बदरा वाले दिनों में भी आँख में काला चश्मा चढ़ाए बैठे हो |’
‘’क्या हुआ सर ! ‘’ एक मातहत का प्रश्न |
‘’ इत्ता कुछ हो रहा है | और तुम पूछते हो कि क्या हो गया ? साहब का अफसोस स्वर |
‘’हम समझे नहीं सर | ‘’ मातहत का म्याऊँ भरा स्वर |
‘ समझोगे कैसे? मुफ्त की चाय पानी व् बोतलों में ऐसे डूब जाते हो कि बाहर की दुनिया का हाल देखते नहीं |’’ साहब पुन: गुर्राये |
‘’का कोई राजनैतिक प्रपंच सामने आया है या फिर शो काज नोटिश सर |’
‘’ नहीं यार ....| देखते नहीं बे-मौसम बरसात को | सारे सपनों को पानी में डूबाने पर तुली है | पेय जल व्यवस्था पर खर्च करने हेतु एलोटमेंट आया है उसे कहाँ डुबाओगे| वाटर शेड स्टॉप डेम . जल रोको अभियान –वभियान  जैसी योजनाओं का क्या होगा | जब ऐसी बरसात होगी तो |’’
‘’ सर! फिलहाल अपन शांत होकर बैठ जाते हैं | जब मौसम शुष्क होगा तब इस एलोटमेंट को खर्च करेंगे |’
‘’ तुम हो बेवकूफ | तब तक तो दूसरा एलोटमेंट आ जाएगा | इधर ऊपर से प्रेसर  अलग बन रहा है कि पूरा अलाटमेंट कर्च कर हिसाब भेजो | अगर गलत तरीके से खर्च किए तो आर.टी.आई के कार्यकर्ता मीडिया व् राजनीतिज्ञ मेंढकों की तरह टर्रा- टर्रा कर शोर मचा देंगे |’’ साहब बोले |
‘’ फिर क्या करें सर!’’ एक मातहत |
‘’ ‘सोचो और उपाय निकालो |’’
‘’ कुछ तो समझ में नहीं आ रहा है सर |’’
‘’ यार इत्ता भी दिमाग नहीं लगा सकते | जब बरसात नहीं होती तो लोग खेतों में नंगे होकर हल चलाते हैं , मेंढकों की माला पहनकर घर-घर भीख माँगते हैं | साँपों को चौराहे पर लटकाते हैं मुर्गों की बलि देते हैं | ऐसे कुछ टोटके गरमी पड़ने व् बेमौसम बरसात रोकने के लिए नहीं  हैं क्या ?””
“” किन्तु सर.....!”” असमंजस्य में डूबे मातहत |
‘’ देखो यार , किसी तांत्रिक बाबा पंडा पुजारी से मिलकर एकात टोटका पूछो और अमल में  लाओ |’’
‘’ सर टोटका हमने देहातों में देखा है | कहते हैं उससे बरसात रुक जाती है |’’ एक मातहत ने थोड़ा प्रसन्न होकर बोला |
‘’ बताओ |’’
‘’ सर, जब बारात तेज अंधड़ के साथ हो रही होती है तो गाँव के लोग आँगन में मूसल फेंक देते हैं  कहते हैं इससे बरसात रुक जाती है | ‘’
‘’ या सारे उपाय बरसात शुरू होने के बाद के हैं न |’’
‘’ जी सर |’’
हमें ऐसे उपाय नहीं चाहिए | हमें वह टोटके  चाहिए जो बादलों को छाते ही गायब कर दे |’’
‘’ साब ऐसे उपाय तो सरकार व् वैज्ञानिक के पास भी नहीं हैं | तो बाबू और तांत्रिक का घंटी बजायेंगे साब |’’ एक वरिष्ठ व् दबंग मातहत चिढ़कर बोला | इसी बीच एक चमचा किस्म का मातहत अपनी चमचागिरी के साथ उचका बोला- ‘’ सूना तो है गाँवों में ऐसे तांत्रिक होते थे | जो बादलों को मन्त्रों से बाँध देते थे | फिर वे सीमा में प्रवेश नहीं कर पाते थे |’’
‘’ उन्ही का पता को |’’ साहब बोले |

‘’ सर, अब उनका पता नहीं है | और न ही अपनी पीढी को गुरु मन्त्र देकर गए | शायद उन्हें आभास था | भविष्य में जंगल नहीं बचेंगे | इसलिए कहीं उनकी पीढी बादल कैद करने का खेल खेल बैठी तो आम आदमी पेय जल संकट से घिर कर प्यास में मर जाएगी |’’
‘’ जब तुम्हारे बस में ये टोटका आने वाला नहीं है तो फिर उसे बताकर हमें किस बात से ललचा रहे हो |’’ साब ने डपट भरे अंदाज में कहा | मातहत खामोश हो गया |
 मीटिंग अभी भी चल रही है | समस्या ज्यों की त्यों अपनी अदि पर है | विचारों का मंथन जारी है |
पुन: आसमान में बादल छाने लगे हैं | साहब का दिमाग भी गुस्से से बिजली की तरह कड़कने लगा है | मीटिंग में मातहतों को आभास हो चला |साहब बरसने के मूड में आ गए हैं | अत: वे बचाव में  सावधान हो गए हैं |
                    सुनील कुमार ‘’सजल’’

रविवार, 24 मई 2015

व्यंग्य _मौक़ा


व्यंग्य _मौक़ा


पास के शहर में साहब की साली का विवाह संपन्न होने जा रहा था | साहब ने दफ्तर के सभी कर्मचारियों को निमंत्रण –पत्र बंटवाए थे |विवाह में शामिल होने  को लेकर कर्मचारयों में दो तरह के विचार उभरे थे | एक वर्ग कह रहा था- ‘’ क्या करेंगे शामिल होकर | दुनिया का नियम है वह सामने चमक रहे सूर्य को प्रणाम कराती है ,उसके प्रकाश से जो तारे चमक रहे हैं उन्हें कौन सर झुकाता है |’’दूसरा वर्ग जो पिछलग्गू था | विवाह कार्यक्रम में शामिल होने के मामले में पूर्णत: सहमत था | उपहार देने लेकर तरह-तरह की योजना बना रहा था |
दफ्तर का एक चापलूस कर्मचारी स्वाभिमानी वर्मा को समझाते हुए कह रहा था – ‘’ कार्यक्रम में हो जा शामिल .. वरना पछताएगा यार...यही मौक़ा होता है जब साहब लोग अपने कर्मचारियों में से विशवास पात्र लोगों का चयन करते हैं |’’ वह आगे बोला – सूना है तुमने ‘’ वाटर रिसोर्स स्कीम के तहत लाखों रुपये आने वाले हैं | उपहार बतौर चार-पांच हजार का पिंजरा साहब के सामने रख देने से यदि योजना क्षेत्र की एकाध बटेर हाथ लग जाती है तो क्या बुरा है ... सब कुछ उसी में एडजस्ट हो जाएगा | चल तैयार हो जा ... ज्यादा मत सोच यार....| भई, कोई शादी में शामिल हो या न हो अपन तो चले ...|’’वर्मा अभी सहमत नहीं हो पा रहा था | उधर वह कर्मचारी जाने की तैयारी के लिए दफ्तर से  घर की और निकल पड़ा था |

व्यंग्य – प्याऊ में प्यास


व्यंग्य – प्याऊ में प्यास

शीतल पेय पीने के दिन चल रहे हैं | यानी गरमी के दिन | शीतल पेयों की दुकानें सज गयी हैं | गली चौराहें बाजार में | असली नकली माल खपने लगा ‘ शीतल पेयों में ‘ ‘|
मत देखो यार क्वालिटी , बस पीये जाओ | खाए जाओ ठंडा क्रीम युक्त बर्फ | बदन को ठन्डे से टार करो | लूट लो जितना चाहो ठन्डे के नाम पर | दुकानदार या विक्रेता भी हाथ झटका कर खडा है लूटने को | स्वागत में भी ‘ ठन्डे का दौर चल रहा है |
प्यास भी कुछ इस कदर बढ़ी है , जैसे सूखती नाड़ियाँ | प्यास के बढ़ाते ग्राफ को थामने के लिए पीनी आत्माएं जाग उठी हैं | चैत,बैसाख व जेठ के दिनों की गिनती शुरू हो गई है | पुन्य कमाने के मॉस | प्याऊ केंद्र खुल गए | वही ठंडा पानी वाले प्याऊ केंद्र | पुन्य आत्माओं ने बीड़ा उठाया है पुन्य कमाने का | धर्म गुरुओं ने भी आदेश दे रखा है अपने धर्म पथिकों को, ‘ जो पुन्य गंगा स्नान में नहीं है , वह पुन्य है लोगों की प्यास बुझाने में |’ पुण्य  आकांक्षी आतुर है प्यास बुझाने को | धर्म का मामला है | किसी भी कार्य की सफलता पूर्वक करवाना हो तो उसे सबसे पहले धर्म से जोड़ दिया जाए | असफलता की मुंह खाने वाला काम भी सफल हो जाएगा | खैर छोडी , विवादित विषय को |
इधर नगर सेठ शरमा जी ने भी प्याऊ केंद्र खोला है | नगर सेठ बनाना इतना आसन नहीं है, जैसे इलाके में चर्चित नेता | जाने कितने पाप करने के बाद ऐसे प्रतिष्ठित पद मिलते हैं जो बाद में पुन्य कमाने के अवसर देते हैं | जन सेवा के नाम पर |
 सेठ जी का प्याऊ केंद्र उनकी किराना दूकान की बगल में खुला है | वे वर्षों से वाही खोलते आए हैं | ऐसा नहीं है कि उनके पास जगह की कमी हो | में मार्केट में भी खाली प्लाट है उनके पास | पर वे वहां नहीं खोलते | दूकान के बगल में ही खोलते आए हैं | सो वहीँ आज भी खुला हुआ है | वैसे भी प्याऊ केंद्र कहीं भी खाली जगह पर या सड़क पर खोल दो | सरकार आप पर कब्जियाने का जुर्माना नहीं लगाएगी | वह भी जानती है राजनैतिक या धार्मिक दृष्टिकोण से पुण्य  का काम है |
तो साब , शरमासेठ जी का प्याऊ केंद्र दो उद्देश्य का केंद्र है | वह पुण्य के साथ धंधे के मकसद को भी देखता है | धर्म के आड़ में धंधा पनपे तो क्या बुरा है | जैसा कि वर्तमान राष्ट्रीय फलसफे में कीचड़ में कमल की तरह खिल रहा है | प्याऊ केंद्र में उनकी दूकान के नाम का सौजन्य बैनर लगा है |
हमने उनसे कहा –‘ सेठ जी, पुण्य हमेशा गुप्त कर्म या दान से कमाना चाहिए | अगर सौजन्य बैनर न लगाते तो क्या बुरा था |’
‘तो क्या नाम देते ?’’ वे बोले |
‘’ सिर्फ प्याऊ केंद्र |’’
‘’ तुम गुरु लोग समझते हो तुम्ही चतुर हो | अपन भी सेठ हैं एट | गुरु धर्म में विद्या दान के नाम पर वसूलना क्या पुण्य का अंग है |’ हम चुप रहे | वे बोले –‘’ अगर इस देश में पूंजीपति बनाना हो तो धर्म की अनुकूलता को देखकर लाभ उठाना सीखो | प्यारे | जेब में पूँजी अपने आप आएगी | बिन मांगे | वह भी हंसी ख़ुशी से | बटोरते रह जाओगे | इस देश में चतुर और बदमाशों के चहरे पर दो नकाब हैं | आधा धर्म का आधा धंधे का | वे ही देश में पूज्य हैं | ‘’ सेठ जी हमें धर्म की फिलासफी समझाने में व्यस्त थे | इसी बीच उनका भांजा आ गया | ‘’मामा जी , ये क्या दूकान के आसपास पानी फैलाकर कीचड़ बढाने में तुले हैं |’’
‘’ भांजे, अभी तुम धंधे के मापदंड नहीं समझोगे | ‘ फिर सेठ शकुनी अंदाज में उसे प्याऊ केंद्र व् किराना दूकान के बीच के समबन्ध को जिस ढंग से समझाया | उससे भांजे के चहरे पर दुर्योधानी मुस्कान आना स्वाभाविक था | और गीता सार की पुन्या , मोक्ष , सत्कर्म जैसी बातें केवल हम जैसे आम आदमी के हिस्से में रह गई थी |
परसों ही एक मजेदार वाकया सामने आया | पड़ोसी राज्य में घटित ‘’ टायलेट घोटाले की तरह हमारी नगर पंचायत में मटका घोटाला हो गया | जो प्याऊ केंद्र के लिए मटके खरीदे गए थे | मिटटी के घड़ों की ऊँची कीमत दी गयी थी | लोगों की प्यास बुझाने की आड़ में पालिका कर्मचारियों की जेब की प्यास बुझी थी | किसी ने ठीक कहा है –‘’ जब तक पाप प्यास जागृत नहीं होती , पुण्य के प्याऊ खुलते नहीं |’’

व्यंग्य- बिजली कटौती के फायदे


व्यंग्य- बिजली कटौती के फायदे

गरमी के दिन आ गए | वही पसीने वाले दिन | जब आप तन से बहते पसीने को पोंछते नहीं थकते औए ग्रीष्म को कोसते हुए भी | ऐसे वक्त पर बिजली कटौती कितनी भारी पड़ती है | सभी जानते हैं शिकायतों पर शिकायतें| बिजली विभाग व् सरकार को गालियों पर गालियाँ | यही वक्त मिला है काटने का | ठण्ड या बरसात में काटते तो क्या बिगड़ता | सरकार या बिजली विभाग क्या करे उसकी बिजली का उत्पादन भी प्राकृतिक स्त्रोतों पर निर्भर है \ जिनका दोहन करना हमने अपना अधिकार समझ रखा है |
बिजली कटौती का रोना तो बारह मासी है साब | पर चुभती गरमी हमें नानी याद दिलाती है | हम ठंडक की चाहत रखते हैं | ग्लोबल वार्मिंग के दौर में | हिम क्षेत्रों सी ठंडक की चाहत |
ग्लोबल वार्मिंग को चुनौती देने के लिए हमने कूलर , पंखे, ए.सी. , रेफ्रिजरेटर अपना रखे हैं | पेड़-पौधे की जगह पर भी अपन अंगद पाँव जमा लिए | मिटटी के घड़े या सुराही को शौकिया अपनाते हैं | अपने बड़प्पन को बढाने के लिए कहना पड़ता है –‘’ अपन ने फलां क्षेत्र की प्रसिद्ध सुराही खरीदी है | सूना है किइसमें पानी ज्यादा ठंडा होता है |
खैर, छोडी | निंदा तो कभी नहीं समाप्त होने वाला विषय है | आखिर लोगो को शिकायतों से ऊब कर हमने बिजली कर्मचारी से बिजली कटौती का कारण पूछा | वह शेर छाप बीडी सुलगा कर मुंह के कोने में दबाते हुए बोला-‘’ लोंगो को बिजली बचत व चोरी न  करने की हिदायत दो और न काहू की सुनो | पर दोस्त . चिंता करने की जरुरत नहीं |’’ जैसे उसने  हमारे चहरे पर दुविधापूर्ण विचारों को भांप लिया | फिर बोला –‘’ असरकार बिजली खरीदने जा रही है | फिर पंद्रह घंटे की कटौती का मामला खत्म हो जाएगा | आपकी गरमागरम कुढ़न ठंडी हो जाएगी |
‘’कब तक खरीदेगी | देख रहे हो गरमी सरकती जा रही है | गरमी बीतने के बाद खरीदेगी |’’
‘’ धैर्य रखो | सरकारी कामकाज है | सरकारी गति से चलता है | बनिया की दुकान से किलो भर किराना खरीदने जैसा नहीं है | बिजली करीदना | बैठकें होती हैं | रेट तय होते हैं | फिर सफ्लाई मिलती है |’’ उसने हमें सरकारी क्षेत्र का अर्थशास्त्र समझाते हुए कहा |
बिजली कटौती भले लोगो के लिए कष्टों का दौर रहे , पर हमारे पहचान के एक साहब के लिए कई-कई दिनों तक बिजली गुल रहने वाला क्षेत्र कुबेर क्षेत्र साबित हुआ |
साहब जब वहां स्थान्तरित होकर गए थे | वे भी इस ट्राइवल एरिया को नरक’ समझ रहे थे | पर चाँद दिनों के बाद उनकी धारणा बदल गयी | वे इसे स्वर्ग कहने लगे | जहां कई-कई दिनों तक बिजली आती नहीं |
उस समय साहब जब अपनी बीबी जी को वहां ले गए | वह चार दिन में रात में बिन बिजली के परेशान हो उठी | उनकी नाराजगी को भांपते हुए साहब ने उसे समझाया –‘’ देखो,प्रिये ! जिसे तुम भूतों का गाँव समझती हो न | वहीँ लक्ष्मी बसती है | ज़रा सोचो , शहरी जगमगाहट में रहकर मैंने कितना कमाया | इतना न  कि मकान के लिए नींव बनवाने का सामर्थ न था मेरे पास | मगर वहां आने के बाद | एक भवन बनाने की क्षमता आ गयी | ध्यान रखो | लक्ष्मी उल्लू पर सवार होकर अँधेरे क्षेत्र में ही भ्रमण कराती है | कारण , उल्लू को रोशनी से परहेज है | आखिर जहां उल्लू जाएगा उस पर सवार लक्ष्मी भी वहीँ जाएगी |’
बीबीजी ने भले ही मुंह बिचकाकर दिखावे की नाराजगी ओढ़ी थी | पर साहब द्वारा इस विकास की रोशनी से परे क्षेत्र में की जा रही काली करतूतों की सच्चाई जानकार मन ही मन खुश थी |
आफिस के कंप्यूटर चलाने के लिए तीन लाख रुपये का जेनरेटर खरीदने का प्रस्ताव साहब ने हैड आफिस भेज दिया था | जेनरेटर आने के बाद हर रोज उसे चलता दिखाकर डीजल के पैसे बचाने का तरिका भी सुलभ हो गया था |
साहब तो चाहते थे | इस क्षेत्र में बिजली न आये तो भला है | आखिर लोगों को उल्लू बनाए रखने के लिए अन्धेरा आवश्यक है |

व्यंग्य टेंशन पालो यारों


व्यंग्य टेंशन पालो यारों

आजकल टेंशन लादे रहना आधुनिकता का प्रतिक है | जिसकी खोपड़ी  टेंशन से टेंशन से मुक्त है , या फिर बिना टेंशन पाले जिंदगी घिसटरही है , समझिए है उनके पास टेंशन है | जो कामचोर हैं या फिर ठंडी मुट्ठी में मस्त है उनके पास काहे का टेंशन |
चिकित्सक या योगी जन भले ही यह कहकरसमझाए  किटेंशन त्यागो,मस्त रहो | पर मेरा मानना है किदिमाग में टेंशन उथल-पुथल मचाये तो आदमी काम के प्रति जागरूक रहता है | समय पर अपना काम निपटाने के लिए व्याकुल रहता है |
 जैसा आदमी , उसके दिमाग मेंमें वैसा टेंशन होता है | जैसे नेता को कुर्सी हड़पने , गबन घोटाला करने का टेंशन , प्रेमी- प्रेमिका को एक दूसरे से न मिल पाने का टेंशन , सरपंच सचिव को पंचायत राशि डकारने का तो कर्मचारी को साहब का सानिध्य न पा सकने का टेंशन , जनता का देश में मचे भ्रष्टाचार , आंतक व् राजनातिक उलट फेर का तो अफसर को सचिवालय में बाबूगिरी करते या खाली पीले बैठे मक्खी- मच्छर मारते थक चुके को जिले में प्रभार न मिल पाने का टेंशन , पत्नी को पति के देर से आने घर लौटने का तेंहन और न जाने कितने ही कितने लोगों के टेंशन...|
कुछ लोग छोटी-छोटी बातों पर टेंशन धारण किए रहते हैं | और कुछ लोग खुद को व्यस्त व् चिंतनशील सो करने के लिए टेंशन में होने का रोना रोते हैं | ये अपना-अपना गणित है जो लोगों में अपनी छाप छोड़ने का अनोखा तरीका है |
टेंशन अंग्रेजी शब्द है, जिसका अर्थ तनाव यानी तना हुआ | जो ताना है वह सक्रिय है | आजकल इस अंग्रेजी शब्द का समाज में ऐसा बोलबाला है कि अनपढ़ भी तनाव को अंग्रेजी में टेंशन कहता है बात सीधी है | जब देश में अंग्रेजियत का बोलबाला है तो वह हिंदी में तनाव कहकर क्यों टेंशन  लेने चला है |
उस बेचारे का भी अपना टेंशन है | बेचारा तनाव को अंग्रेजी में टेंशन बोल लेता है पर उसे हिंदी या अंग्रेजी में लिख नहीं पाटा | क्या करे , जिले के साक्षरता आधिकारियों ने योजना राशि को डकारने के लिए दो अक्षर सिखाये बगैर उसे देश का साक्षर नागरिक घोषित कर अपने आंकड़े ठीक-थक कर लिए |
पिछले दिनों हमारे एक पुलिस मित्र कुछ ज्यादा टेंशन में दिख रहे थे | टेंशन के दबाव में आकर आत्महत्या की सोच रहे थे | ‘’ऐसा कैसा टेंशन है आपका किआत्महत्या ...?’’हमने पूछा|
‘’ स्साला नया पुलिस कप्तान आया है न.. ईमानदार की दम..पुलिस की नौकरी करता है और उसे यह नहीं मालूम किपुलिस भ्रष्टाचार का डंडा है ...अपनी ईमानदारी का रौब भरा हाथ दिखा-दिखाकर कह रहा है , अगर किसी ने अवैध वसूली की जुर्रत की तो उसकी नौकरी नाप दूंगा | अब तुम्ही बताओ हमारी जेब का क्या हाल होगा | बेचारी भूखे बंदरों के पेट की तरह पिचकी ही है ‘’ वे अपना दुखड़ा सुनाते हुए बोले |
‘’ कोयले की खदान में एक दो हीरे मिल जाते हैं | ‘’ हमने कहा |तो वे तुनक कर बोले –‘’ तुम्हे तुलना करने की पड़ी है , इधर आमदानी से तेज कदम मंहगाई के हैं | घर का खर्च पूरा करते हुए दिमाग में घुसा टेंशन जिंदगी को कबाड़ बना रहा है |
वसे तो आम आदमी बरसों से पेट-पूजा की टेंशन  से ग्रसित रहा है | इन दिनों सबसे बड़ी टेंशन  भ्रष्टाचारियों में देखने को मिल रही है | बाबा लोगों के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन उनकी खटिया खड़ी करने में तुले हैं | नरम गद्दों में आने वाली नींद भी गायब हो चुकी है | इ.सी. उपकरण की वातानुकूलित हवा भी मौसम के विपरीत लग रही है | वे बौखलाए हुए जाने कैसे –कैसे पागलों की तरह बयानबाजी कर रहे हैं | एक मंत्री महोदय में तो टेंशन में आकर यह तक कह दिया किक्यों न जन सुविधा के लिए भ्रष्टाचार को जायज ठहरा दिया जाए ताकि लोगों का काम आसानी से बन सके | जनता अच्छी तरह से जानती है कौन सी बात जायज और कौन सी नहीं | उसे सिखाने से क्या फ़ायदा ?
जब लोगों की जिंदगी में टेंशन ने असर दिखाया है, चिकित्सकों की चांदी हो गयी है | गली-गली टेंशन मुक्ति चिकित्सा की दुकानें खुल गई | झोला छाप मनोविशेषज्ञ बन गए हैं | योग से टेंशन मुक्ति दिलाने वाले ऑफर से युक्त योगा क्लासेस शुरू हो गई हैं |
कुल मिलाकर टेंशन ने रोजी-रोटी दी है | अर्थ कमाने के तरीके सुझाए हैं | वह हमारी अर्थव्यवस्था का अहम् हिस्सा है और आज के दौर में ‘’ अर्थ’’ ही सब कुछ है | फिर टेंशन पाले रही न  यार .... कहे दूर भागने की कोशिश करते हैं 

व्यंग्य – लक्ष्य के लिए कुछ भी करेंगे


व्यंग्य – लक्ष्य के लिए कुछ भी करेंगे
हम अब तक लक्ष्य प्राप्ति के लिए ही लड़ते रहें हैं | जैसा भी हो , हमें लक्ष्य मिलना चाहिए | हमें आगे चिंता रहती है न पीछे की | अगल की न  बगल की |लक्ष्य प्राप्ति  का  नशा हममें कुछ इस तरह चढ़ा है | अपनों की टांग खीचकर उसे पीछे धकेल कर जश्न मनाते हैं | धुल झोंकना पड़े तो धुल झोंकते हैं | औरों की राह में कांटे बिछाना व गड्ढे खोदना हमारा नहीं है | पर दिखावे में हम अर्जुन से कम नहीं दिखाते हैं | पर हाल में हमें लक्ष्य होना चाहिए | परम्परागत गुण सो गुण में भी हम पीछे नहीं रहते भले हममें अर्जुन सी एकाग्रता नहीं है |पर दिखावे में हम अर्जुन से कम नहीं दिक्जाते | पर हर  हाल में हमें लक्ष   प्राप्त होना चाहिए |
      कथनी व करनी में हम भले फिसड्डी हैं | पर एसा करने से हमाराका या हमारे बाप का क्या जाता है | अपना नाता तो अक्षय इ है | हैवानियत , हथियार चालन , बेइज्जती करना, व एनी जो भी कृत्य नुकसान पहुंचाने के श्रेणी में आते हैं | हम सहर्ष कर सकते हैं |
लक्ष्य प्राप्ति का नशा हममें इसलिए उबाल मारता है | हम कतई नहीं चाहते कि हमारे अपने हमसे कंधा मिला सके | इसके लिए हम अश्व चरित्र अपना कर दुलत्ती भी मार सकते हैं और हिंसक पशुओं के चरित्र को धारण कर गहरा जख्म भी दे सकते हैं |
हम पाप पुन्य की परिभाषा नहीं समझते | हम सिर्फ लक्ष्य की पारी भाषा जानते हैं | वह भी एक या दो लाइन में हो | उल्लू बनाकर सीधा करना हमारा धर्म और यही हमारी जाती भी |
आप शायद अब तक लक्ष्य को मात्र लक्ष्य समझें हैं | आप नहीं जानते | जनाब हमारे देश के महारथियों से मिलिए | लक्ष्य कैसे प्राप्त किया जाता है , इस कला को उनसे सीखिए | तो हम उनकी और से बताते हैं –
  पिछले दिनों स्वास्थ विभाग के  कलाबाज कर्मचारियों ने एक छियासठ साल की बुधिया और सोलह साल के कुंवारे लडके की फुसलाकर नसबंदी कर दी | है ण कमाल की बात | भाई, लक्ष्य प्राप्त करना भी एक कला है |इस खुरापाती कला का विकास हममें जितना होता है | हम लक्ष्य के उतने ही करीब होते हैं | अब ऐसे मान्यतापूर्ण काम हमारे देश में होते रहे तो कौन कहेगा किहमारा पिवार नियोजन कार्यक्रम वास्तविक लक्ष्य से पीछे है | आखिर पुरस्कार की रेवड़ी बांटनी है तो ऐसे काम तो करने पड़ेंगे | क्या बुराई है ऐसे करने से | गीता ने कर्म पर ही तो जोर दिया है | कर्म के सहारे लक्ष्य प्राप्त करने की बात कही है | अब कर्म तो कर्म है | कैसा भी हो सकता है | साम दंड भेद जो भी हो , कर्म में शामिल करना पड़े | |पर हमें लक्ष्य प-राप्त करना था | सो प्राप्त कर लिया |
वैसे हमने भी लक्ष्य प्राप्ति के लिए | वह भी कम समय में | राजनीतिज्ञों के चरण दबाकर मन्त्र ज्ञान लेना शुरू कर दी हैं | दरअसल , हम ठेकेदारी में हाथ आजमाना शुरू कर दिए हैं | सरकारी ठेके लेकर सरकारी ईमारत , पुल इत्यादि का निर्माण करना चाहते हैं | जो भले ही दो साल में भरभरा जाए | पर अधिकारी अपने बने रहें | और ऐसा ठेका हमें देते रहें |
  अब आप बुरा न माने तो कह देते हैं | देश को छूना लगाना हर नागरिक का कर्तव्य- सा हो गया है तो फिर अपन काहे पीछे रहें ? अपन भी तो कर्तव्य के सहारे लक्ष्य की और बढ़ने  के प्रयास में हैं |