रविवार, 24 मई 2015

व्यंग्य – लक्ष्य के लिए कुछ भी करेंगे


व्यंग्य – लक्ष्य के लिए कुछ भी करेंगे
हम अब तक लक्ष्य प्राप्ति के लिए ही लड़ते रहें हैं | जैसा भी हो , हमें लक्ष्य मिलना चाहिए | हमें आगे चिंता रहती है न पीछे की | अगल की न  बगल की |लक्ष्य प्राप्ति  का  नशा हममें कुछ इस तरह चढ़ा है | अपनों की टांग खीचकर उसे पीछे धकेल कर जश्न मनाते हैं | धुल झोंकना पड़े तो धुल झोंकते हैं | औरों की राह में कांटे बिछाना व गड्ढे खोदना हमारा नहीं है | पर दिखावे में हम अर्जुन से कम नहीं दिखाते हैं | पर हाल में हमें लक्ष्य होना चाहिए | परम्परागत गुण सो गुण में भी हम पीछे नहीं रहते भले हममें अर्जुन सी एकाग्रता नहीं है |पर दिखावे में हम अर्जुन से कम नहीं दिक्जाते | पर हर  हाल में हमें लक्ष   प्राप्त होना चाहिए |
      कथनी व करनी में हम भले फिसड्डी हैं | पर एसा करने से हमाराका या हमारे बाप का क्या जाता है | अपना नाता तो अक्षय इ है | हैवानियत , हथियार चालन , बेइज्जती करना, व एनी जो भी कृत्य नुकसान पहुंचाने के श्रेणी में आते हैं | हम सहर्ष कर सकते हैं |
लक्ष्य प्राप्ति का नशा हममें इसलिए उबाल मारता है | हम कतई नहीं चाहते कि हमारे अपने हमसे कंधा मिला सके | इसके लिए हम अश्व चरित्र अपना कर दुलत्ती भी मार सकते हैं और हिंसक पशुओं के चरित्र को धारण कर गहरा जख्म भी दे सकते हैं |
हम पाप पुन्य की परिभाषा नहीं समझते | हम सिर्फ लक्ष्य की पारी भाषा जानते हैं | वह भी एक या दो लाइन में हो | उल्लू बनाकर सीधा करना हमारा धर्म और यही हमारी जाती भी |
आप शायद अब तक लक्ष्य को मात्र लक्ष्य समझें हैं | आप नहीं जानते | जनाब हमारे देश के महारथियों से मिलिए | लक्ष्य कैसे प्राप्त किया जाता है , इस कला को उनसे सीखिए | तो हम उनकी और से बताते हैं –
  पिछले दिनों स्वास्थ विभाग के  कलाबाज कर्मचारियों ने एक छियासठ साल की बुधिया और सोलह साल के कुंवारे लडके की फुसलाकर नसबंदी कर दी | है ण कमाल की बात | भाई, लक्ष्य प्राप्त करना भी एक कला है |इस खुरापाती कला का विकास हममें जितना होता है | हम लक्ष्य के उतने ही करीब होते हैं | अब ऐसे मान्यतापूर्ण काम हमारे देश में होते रहे तो कौन कहेगा किहमारा पिवार नियोजन कार्यक्रम वास्तविक लक्ष्य से पीछे है | आखिर पुरस्कार की रेवड़ी बांटनी है तो ऐसे काम तो करने पड़ेंगे | क्या बुराई है ऐसे करने से | गीता ने कर्म पर ही तो जोर दिया है | कर्म के सहारे लक्ष्य प्राप्त करने की बात कही है | अब कर्म तो कर्म है | कैसा भी हो सकता है | साम दंड भेद जो भी हो , कर्म में शामिल करना पड़े | |पर हमें लक्ष्य प-राप्त करना था | सो प्राप्त कर लिया |
वैसे हमने भी लक्ष्य प्राप्ति के लिए | वह भी कम समय में | राजनीतिज्ञों के चरण दबाकर मन्त्र ज्ञान लेना शुरू कर दी हैं | दरअसल , हम ठेकेदारी में हाथ आजमाना शुरू कर दिए हैं | सरकारी ठेके लेकर सरकारी ईमारत , पुल इत्यादि का निर्माण करना चाहते हैं | जो भले ही दो साल में भरभरा जाए | पर अधिकारी अपने बने रहें | और ऐसा ठेका हमें देते रहें |
  अब आप बुरा न माने तो कह देते हैं | देश को छूना लगाना हर नागरिक का कर्तव्य- सा हो गया है तो फिर अपन काहे पीछे रहें ? अपन भी तो कर्तव्य के सहारे लक्ष्य की और बढ़ने  के प्रयास में हैं | 

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