सोमवार, 25 मई 2015

व्यंग्य – अच्छा वर पाने के लिए


व्यंग्य – अच्छा वर पाने के लिए

अच्छा वर मिले ... इस ईच्छा से एक भीड़ –सी लगी है आज के दिन ...मंदिर में कुँवारी व् जवान लड़कियों की | कहते तो हैं | आज मन्नत माँगने का पर्व है |
बेचारी भी क्या करें ? अबला जो होती हैं | अच्छे वर प्राप्ति के लिए बेचारियों ने दिनभर का उपवास रखा है | कुछ न खाने-पीने वाला उपवास | बिलकुल निराहार | माँ  की जिद के आगे थोड़ा झुक गयीं हैं | बस चार- छ: घूँट चाय पी हैं |
 माँ  भी चिंतित है | एक अच्छा वर मिले उसकी बिटिया को | इसलिए मंदिर के सभी देवी- देवताओं को अपने सामने भोग लगवाया है बिटिया से | पूजा- पाठ में कोई गलती न हो |
यूँ तो घर में भी धार्मिक शिक्षा देती रहती हैं-ऐसा उपवास हर कुँवारी व् युवतियों को रखना चाहिए , इससे सुयोग्य वर मिलता है |
कुछ समझदार लड़कियां अवश्य ही प्रश्न  कर बैठती हैं- ‘’माँ  आप भी कुछ का कुछ कहती हैं | भला उपवास करने से अच्छा वर मिले , जरुरी है क्या? जो किस्मत में लिखा होता है, वही होता है |’
माँ  तो माँ  होती है | वह नाना प्रकार की शिक्षा व् उदाहरण देती है , धार्मिक ग्रंथों से, जो सुयोग्य वर-प्राप्ति के लिए उस युगाकालीन युवतियों ने किया था |
बिटिया भी करे तो क्या ? क्या स्वीकारे , क्या नहीं ? उसे भी तो अच्छा जीवनसाथी चाहिए , इसलिए माँ  की बात को स्वीकार कर, रखती है उपवास |
मंदिर काफी चहल- पहल है | कुँवारी युवतियों की भीड़ सी है | सजी-धजी युवातियाँ | हाथ में पूजा का थाल | धक्का – मुक्की, फिर सभी सहज |
मंदिर में बैठी मूर्ती मुस्काती सी | पंडा – पुजारी भी व्यस्त | पूजन कराने में, दक्षिणा वसूलने में | फुर्सत तनिक भी नहीं| व्यस्तता | बीच-भीच में कुछ आक्रोश | संयम भी टूटता सा | धंधा जेब भरने का | अच्छा स्वांग, पंडा –पुजारियों का | वर्षों की परम्पराओं का व्यावसायिक रूप | वर मिलना ,न मिलना किस्मत की बात , पर धंधा है किपरम्पराओं के कंधे पर बैठकर ऐश करता है |
बिटिया खुश है | व्रत में लीं है | व्रत हेतु निराहार रहना बड़ा कठिन काम होता है | मां कहती है – पी ले कुछ चाय-जूस | साबूदाना, मूंगफली की खिचड़ी खा ले | मन- मसोसकर खाना पड़ता है |
आधुनिक महिलाएं तो व्रत रखने की परम्परा को किती पार्टी से सेलिब्रेट कराती हैं | नए-नए किस्म के फलाहार | किसी पेड़ तले या मंदिर परिसर में या फिर आलिशान घर के कक्ष में डिस्को या पॉप थीम वाले भजन सुनते हुए फलाहार ग्रहण करने की ऐश | हंसी- मजाक , वर को लेकर तरह-तरह की चर्चा और छेड़छाड़...|
 हमें  तो आजतक यह समझ में नहीं आया कि सुयोग्य वर-प्राप्ति के उपवास क्यों रहे जाते हैं ?
वर्षों से उपवास ,पूजन ..फिर भी इस देश में नारी के साथ तलाक –प्रताड़ना,दबंगई, उपेक्षा ...| कहाँ सो रहे वर-प्राप्ति के धर्म-अनुष्ठान कराने वाले धर्म के ठेकेदार ? क्या ईश्वर अंधे हैं ? या स्वार्थी ? या फिर है ही नहीं ?
लोग केवल परम्पराओं को निभा रहे है ? शक ही शक ? एक अंधविश्वास –सा कायम है ? प्रपंचो का शिकार हैं परम्पराएं |कथा परम्पराओं को बनाए रखने के लिए बनायी गयी हैं ?ताकि विशवास अंधा बना रहे और ढोतारहे लंगड़ी परम्पराओं को | क्या कहते हैं आप ?






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