रविवार, 14 जून 2015

न्यूड फिल्मी सीन पर बहस



न्यूड फिल्मी सीन पर बहस


‘  हम तो इतना जानते हैं साब। हर पुरुष की तरक्की के पीछे नारी का हाथ होता है। नारी हर क्षेत्र में अग्रणी है। फिर इत्ता तो समझ गए होंगे की फ़िल्मी दुनियाँ हीरोइन के बगैर नहीं चल सकती।
हीरो अकेला क्या कर लेगा। कुछ भी नहीं न। हमें आजकल के अखबार वालों की बुद्धि पर तरस आता है। अखबार की हैडलाइन होती है ,फलां हीरोइन ने फलां पत्रिका के लिए या फिल्म के लिए न्यूड सीन दिए। कोई खबर है। आप तो ऐसे छाप दिए जैसे नग्नता किसी न देखी हो या फिर कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति सड़क पर नग्न रोमांस करते नजर आये हों। हीरोइन है। नए जमाने की। इस समय पश्चिमी संस्कृति देश पर हावी है। ऐसे वक्त पर आधुनिक हीरोइन क्या मुगले- आजम जमाने की बनकर सीन देगी।
प्रतिष्ठा व धन के लिए लोग क्या नहीं करते। केचुए ,साँप खाते हैं। सड़को पर नंगा प्रदर्शन करते हैं। फिर तो वह कलाकार है। कलाकार तो वहीं प्रदर्शित करता जिससे उसकी कला का मूल्य बढे। साब वह इत्ता भी न्यूड न हुई होगी।जिससे बदन पर इंच मात्र भी कपड़ा न बचा हो। कपड़े तो रहे होंगे। रखना पड़ेगा उसे कपड़ा। सेंसर बोर्ड के डर से नहीं। बल्कि सभ्यता विकास के लिए। जिसके लिए मानव समाज ने कपड़े धारण किये थे।
प्रश्न यह है कि किस तरह हीरोइनों की मांग है फ़िल्मी दुनियाँ में। सीधी सी बात है जो दिखता है वही बिकता है। फिर हीरोइनों को भी दिखना है न। और चलना भी है इंडस्ट्री में। वरन क्या करेगा निर्माता शालीनता व मर्यादा का कबाड़ फिल्मों में डालकर। साब ,आपको भरोसा न हो तो किसी हीरोइन से पूछ लो। जो फिल्म में जगह पाने के लिए संघर्ष कर रही हो।” क्या आप अंग प्रदर्शन को महत्व देती हैं। ”’ उसकी ना नुकुर के पीछे शर्मीली अदा में जवाब ”हाँ ” होगा। यारों आजकल गरम ही बिकता है। बासी व उबाऊ क्या आप पसंद करेंगे।
साब जी ,फिल्म वही सुपर होती है जिसमे हीरोइन की चोली व कमर का नाड़ा जितना खुलता है। दर्शक उसी फिल्म के मुट्ठियाँ व जेब खोलता है जिसमें मॉर्डन सेक्स की अदा हो। हीरोइन में न्यूड सीन देने की होड़ मची है साब। जैसे चुनाव में नेताओं के मुख से उगले जाने वाले आश्वासनों की मचती है। किसी हीरोइन से पत्रकार साक्षात्कार ले रहा था। कहा -”आपका फ़िल्मी दुनियाँ में पहला कदम न्यूड सीन के साथ था। आपको शर्मो -हया की तनिक भी चिंता नहीं रही। इत्ते सालों में दर्शक भी आपका खुला बदन देखकर ऊब गए होंगे। ” वह हंसी। जैसे बच्चों की बातों की बातों पर हम लोग हँसते हैं। बोली ”आप पत्रकार हैं। इसलिए आपकी सोच भी समाचारों की लाइन जैसी है। जो दो – चार घंटे बाद पढने लायक नहीं रहती। जनाब ,बदन से हर बार मिली मीटर के बराबर कपड़ा घटता है। दर्शक जिज्ञासा में उतना ही उत्तेजित होता है। वह सोचता रहता है। तो और भी.…। पर कपड़ा उतना ही रहता है। बस,दायें -बाएँ सरका कर दर्शक को बेवकूफ़ बना देते हैं। जिज्ञासा उसे ही चकमा दे जाती है।
”’आप जब धार्मिक फिल्मों में होती है। मर्यादशील होती हैं। मगर मसाला फिल्मों में अश्लीलता की हदें नदी में बाढ़ की तरह तोड़ जाती हैं। ” ”इंसान होने का अर्थ क्या है ?वह कई रूप में दिखे। वह तो वही दिखायेगा जिसकी मांग बाजार करेगा। देवालयों में खजुराहों या एलोरा के चित्रांकन रूपों की पूजा करेंगे। ”” हमारी समझ तो यह कहती है यारों। शालीनता वा शर्म के लिबास में देश पिछड़ा लगा है। इसलिए गरम दृश्यों की मांग बढ़ी। नतीजा रेव पार्टी , छेड़छाड़ ,रेप व कबूतर बाजी वेश्यावृति की शिक्षा फिल्मों रही है।
इधर कुछ घटनाओं को सुनकर भेजा खिसकता है। ये एन.जी.ओ.टाइप लोगों को समझाओ। बेवजह अश्लीलता के खिलाफ जंग छेड़कर वाह -वाही लूटने का दुस्साहस करते हैं। ऐसे ही एक सामाजिक कार्यकर्ता के हाथ में हमने ”ए ” सर्टिफ़िकेट वाली फिल्म की डी.वी.डी. देखि।कहा-”यार आप लोग अश्लीलता यूँ देखते हो जैसे चूहे को बाज। आज खुद ऐसी फिल्म देखेगो। ” वह बोला – ‘यार लगता है। एक तुम्ही बेवकूफ़ हो। सरकार हमारी संस्था को अनुदान क्यों देती है ?इत्ता तो जानते हो। यह भी जानो सरकार एक तरफ शराब की दुकानों का ठेका देती है। दूसरी तरफ नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाती है। जब उसके दो चेहरे हैं। तो हमारे भी समझो। आखिर हम भी आपकी तरह इंसान हैं। दिमाग में हिलकोरे लाने के लिए टॉनिक चाहिए कि नहीं। बोलो …

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