व्यंग्य – सट्टे बाजों के लिए
एक कमरा| घर के भीतर | बंद कमरे में वे दोनों
बैठे हैं |कुछ करते से लग रहे हैं |बल्ब के उजाले में व्यस्त |दोनों के बीच चार्ट
नुमा अखबार फैला है |अखबार में छपे अंक से भरे चौखाने | दोनों अंक पर नजरें दौड़ा रहें हैं | कभी इस
खाने पर कभी उस चौखाने पर |गणित पर गणित लगा रहें हैं |
‘’यार देख, ये अंक अभी तक नहीं आया |’’ एक
सट्टे बाज |
‘’ जरुरी है का येई अंक आयेगा |’’ दूसरा
सट्टेबाज ने कहा |
‘’ अबे रमलू बता रहा था , क्लोज में आ सकता
है वो छोटा सट्टेबाज है का ?आए दिन चुकारा( भुगतान) लेता है |’’
‘’ चल तेरे ही मान लेते हैं | पर यार...अपना
लक रमलू जैसा नहीं है | साला वो तो हमेशा फायदे में रहता है |अपन तो ठगे जाते हैं
|साली अपनी किस्मत जाने कब लखपति बनाएगी
|’’
‘’येई सपना अपन भी देख रहें हैं |येई से तो
इसमें लगे हैं बॉस |’’
‘’अंक निकालने का कोई तरीका हाथ लग जाता न बॉस तो का कहने ...|’’ वह जबरन चेहरे
पर ख़ुशी लादते हुए कहा |
‘’ सच्ची , अगर एक बार लंबा सट्टा लग जाता न
हम तो सबसे पहले लक्ष्मी मैया के मंदिर में दो किलो का प्रसाद चढ़ाते |’’
‘’ अबे लाख रुपया पाने की ख़ुशी में भगवान को दो किलो का प्रसाद ...भगवान को ऊल्लू
बनाएगा |’’
दोनों हंस पड़े |
‘’ का है.. भगवान को प्रसाद की क्या जरुरत
|अबे उनको ज्यादा खिलायेंगे न तो तेरी तरह
उनका भी पेट खराब रहने लगेगा |’’ और दोनों मजाक के मूड में खिलखिला दिए |
सट्टा
और अंधविश्वास का गहरा सम्बन्ध है | जैसे सावन में बूंदों की झड़ी |
परसों की बात है | वे चाय की दुकान में बैठे थे
| तभी उनकी नजर आपस में टकराई मोटर साइकिल पर पड़ी |एक सवार तो वहीँ लुढ़क गया
|दूसरा सवार गाडी पर बैठा रहा |
एक सट्टेबाज ने कहा –‘’ देख बे ! वो जो मोटर
साइकिल खड़ी हैं उसका नंबर देख के आ |’’
‘’ अबे गाड़ी का नंबर का करेगा | थाने में रपट
लिखाना है का |’’
‘’ अबे रपट वपट नही... आज उसी से सट्टा नंबर निकालेंगे ..और का
|’’
दूसरा उठा और गाड़ी का नंबर नोट कर लाया |
‘’ अब बता इसका का करें |’’
‘’ देख चार अंक हैं न ...इसकी जोड़ी बना लें
|और लगा दें |’’
‘’ये अंक आ सकते है |’’
‘’ यार तुम रहोगे बुद्धू के बुद्धू | कई बार
ऐसी घटनाओं के अंक ही फलित होते हैं | परसों का नहीं मालूम | अपन आम के पेड़ के
नीचे से गुजरे थे | चार आम टपक कर गिरे थे | अपन ने उसी आधार पर डबल चौका लगाया था
| आया था न वह अंक |
‘’ तुम बड़े दिमाग वाले हो बॉस |’’दूसरा खुश
होकर बोला |
आजकल सट्टाबाजों के लिए हमारे लेखक भाई भी मदद में जुटे हैं | तरह तरह की किताबें
लिख रहे हैं | मसलन सट्टा अंक कैसे निकालें | सट्टा अंक निकालने के एक सौ एक गुर
|सट्टा अंक की सटीक जोडियाँ राशी व दिन के अनुसार |वगैरह|
सट्टाबाजों को ये किताबें कितना लाभ पहुंचा रही हैं ये तो सट्टेबाज का दिल जानता है |हाँ मगर किताब
लेखक अपनी कृति का मार्केट में सट्टा लगाकर जरुर लखपति बन गए |
हमारे पड़ोस में एक सयाने दादा हैं |वे सट्टा
अंक निकालने के लिए अदभूत तरीका अपनाते
हैं |रास्ता चलते उन्हें यदि नई छोटी लकड़ी
(छड़ी ) मिल जाए तो उसे अंगुली से नापकर फिर सट्टा अंक निकालते हैं | वहीँ दीनदयाल जी आसमान में उड़ते
पक्षियों के झुण्ड देखकर निकालते हैं
पिछले दिनों हमने एक सटोरिये से पूछा –“क्या
बात है की अधिकाँश सट्टे बाजों के अंक फेल हो जाते हैं |
वह हंसा | बोला –‘ मेरे भाई यह सट्टेबाज भाइयों को
साक्षात् में करोडपति बनाने वाला धंधा नहीं है | बल्कि सपने में करोडपति बनाने
वाला धंधा है | अगर सटोरिया सबको करोडपति बनाने लगा तो फिर देश में धंधा कहाँ रह
जाएगा |’
सट्टेबाजों व् सटोरियों की दुनिया पूरी तरह अलग
होती है उनमें मित्रता , प्यार इतना अधिक
होता है | मानो वे एक दूसरे के पागल प्रेमी हैं | खबरिया चैनलों की तरह सुबह दोपहर
शाम व रात में खबर शेयर करते नजर आते हैं
|’’ आज किस अंक की जोड़ी बनी ? कल के लिए
अंक तो बता | यार आज हजार रुपये का चूना लग गया | कल देखता हूँ कैसे नहीं
आती जोड़ी ? भगवान् भी न कई बार परीक्षा लेता है |भाई जी मैंने कल के लिए जबलपुर व
रायपुर से जोड़ी मंगवाया है | इत्यादि |
खैर छोडिये दोपहर के तीन बज रहे हैं | आता होगा फोन से आज
का सट्टा अंक सटोरियों की नगरी से | चलो
देखते हैं कल्लू सटोरिया के घर के पास
सट्टेबाजों में कैसी हलचल है |
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