तीन लघुकथाएं
लघुकथा
– कर्मफल
बुढ़ापे के दौर में उसे बेटे ने लतियाकर घर से
निकाल दिया |उसकी पीड़ा देख साथी ने कहा-‘ भैया जी कर्मफल यहीं भोगना पड़ता है | सब ईश्वर की माया है |’’
वह बोला-‘’ तुम ठीक कहते हो | मैंने दो कन्या
भ्रूण का गर्भपात कराकर इसे पैदा किया था |यह उसी का कर्मफल है |’’
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लघुकथा- समझौता
‘’तुम्हारी पत्नी नौकरी करती है और तुम
निकम्मे बने घूमते रहते हो |ऊपर से नशे का ऐब भी पाल रखा है खुद में |वह तुम्हारे
इन सब ऐब को झेलकर कैसे खुश रहती होगी |’ एक ने उससे कहा |
‘’
शादी से पहले उसमें भी कई ऐसे ऐब थे जिसे लोग विवाह के मामलों में
स्वीकारने से कतरा रहे थे |मैंने उन सबको अनदेखा कर उससे शादी की |इसलिए वह भी
मेरे ऐब को देखकर भी मेरे संग ख़ुशी-ख़ुशी जीवन जी रही है |’
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लघुकथा-न सही
वे चुनाव जीत गए | जीत की ख़ुशी में उन्होंने
कैलेण्डर बंटवाये |कैलेण्डर में भगवान् राम के साथ उनका भी चित्र भी सन्देश सहित
छापा था | किसी ने प्रति कार्यकर्ता से पूछा –‘भगवान् राम तो अपने कर्म-धर्म से
मर्यादा पुरुषोत्तम बन गए |मगर क्या ये
सत्ता में रहकर बन पाएंगे |’’
‘’ वह बोला-‘’ मर्यादा पुरुषोत्तम न सहीं |
नेताओं में उत्तम तो बन जाएंगे |’’
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