व्यंग्य –ऐतिहासिक पुल
रूढ़िवादिता आज भी कायम है|
जब नगर के करीब की नदी में पुल बन रहा था
|पुल को लेकर किस्म किस्म की चर्चाएँ व्याप्त थी | पुल तो पुल था |पर चर्चाओं के
भी पुल बनाते जा रहे थे |माताएं घबरायी-सी थी |
‘’ देखो ,पुल बन रहा है |तनिक बच्चों का
ख्याल रखना | यहाँ-वहां घूमने न देना | वरना पकड़कर ले जायेंगे पुल बनाने वाले |’’
आखिर पुल के साथ बच्चों का क्या सम्बन्ध | पर कुछ अन्धविश्वासी माताएं डरी
सी हैं |एक दूसरे को बताती-सी | अंध-विशवास जगाती |कहते हैं – ‘’पुल बनाने वाले जब
तक पुल के नींव में बलि नहीं देते | पुल नहीं बन सकता |किसी न किसी बहाने ढह जाता
है |इसलिए अपने बच्चों का ख्याल जरूर रखना |’’ इस तरह की चर्चाएँ आम है | उसी तरह
जैसे पढ़े-लिखे लोगों के बीच भी आम हो जाती हैं ‘’घर के दरवाजे पर नाग का चित्र
बनाओ | वरना आनिष्ट हो जता है ‘’ जैसी अफवाहें |
चलिए बनाते पुल की और चलते हैं | पुल बनाने की तैयारी में जुटा है ठेकेदार
|
पुल बनने के पहले कितने ही नेता आए
| शिलान्यास हुआ | किस नेता ने कितने बार शिलान्यास किया इसका पता तो है ,ऐसा लोग
कहते हैं |’’ यह एक ऐतिहासिक पुल बनेगा ‘’
कैसे?क्या नेता के नाम पर या नदी के के साथ
जुड़े इतिहास के नाम पर |’’ हमने कहा |
वे हँसे और बोले –‘’ ‘’ यार नदी का इतिहास तो
हमें भी पता नहीं तो आपको क्या बताएं |’’
‘’
फिर आप किस मसले से जुड़े इतिहास की चर्चा कर रहे हैं |
‘’ जानते हो | चाहो तो इसे गी.के. के रूप में
याद भी रख सकते हो | हो सकता किसी प्रतियोगी परीक्षा में इसके बारे में पूछ बैठे
आजकल ऐसे ही अटपटे प्रश्न पूछे जाते हैं |’’
पहले
इतिहास तो बताइये जिसे हमें याद रखने को कह रहें हैं आप |’’
‘’इस पुल को प्रदेश के चार शासन काल में कम
से कम दस मंत्रियों ने शिलान्यास किया होगा | तब जाकर ग्यारहवें मंत्री के
शिलान्यास के बाद पुल बनाना प्रारम्भ हुआ है |’’
‘’ वाकई यह तो रोचक जानकारी है | एक पुल के निर्माण
के लिए ग्यारह मंत्रियों का शिलान्यास ....| कहीं यह मजाक तो नहीं |
‘’ यार, तुम्हें तो हर बात मजाक लगती है |फलां-फलां
पार्टी के लोगो से पूछ लें | तुम्हें मालूम होना चाहिए एक पुलिया के उदघाटन के लिए
जिले के दो विधायक आपस में लड़ सकते हैं तो यह तो पुल है जिसका निर्माण करोड़ों में
होना है |
एक
दिन एक व्यक्ति ने एलान किया ‘’ जिस दिन यह पुल बनकर तैयार होगा सबसे पहले मैं इस
पुल से छलांग लगाकर दिखाउंगा |’’
‘’क्यों ?‘’
‘’ इतिहास बनाने के लिए ...|’’
‘’ छलांग लगाओगे तो मर जाओगे ...तुम खुद
ऐतिहासिक हो जाओगे |’’
‘’ नाम कमाने के लिए क्या कुछ नहीं करना पड़ता
...|’’
खैर..| पुल निर्मित होने के पहले ही उन्हें
हार्ट अटैक हो गया |और वे चल बसे | आँखों का सपना आँखों में धरा का धरा रह गया |
अब तो पुल लगभग बनकर तैयार है |
मगर
युवा पीढी समझदार है | वह उनके जैसे लोगो का सपना पूरा करने में दिलचस्पी दिखाती
है | जो इतिहास बनाने का एलान करते हैं |
कुछ युवा जोड़ो ने इस पुल से छलांग लगा कर
अपनी जान गवायीं |आजकल युवा लोग प्यार असफल होने या घर में अनबन होने के बाद मरने यहीं आते हैं | कुछ
किस्मत वाले होते जो छलांग लगाने के बाद अपनी इच्छानुकूल मर जाते हैं | कुछ बदनसीब
जो छलांग लगाने के बाद बाख निकलते हैं, पुल व पुल के ठेकेदार को गाली देते हैं कि
पुल के धरातल पर ऐसा निर्माण क्यों नहीं किया जिससे वे टकरा कर मर जाते |
आजकल यह पुल डैथ स्पॉट के नाम से प्रसिद्ध है |वहां मरने वालों की याद में
कोई मेला वगैरह तो नहीं लगता |एक अंधविश्वास जरूर व्याप्त है | ‘’ अमावस या
पूर्णिमा की रात में वहां भूतों का मेला लगता है |’’
अधिकतर पुल वैसे भी चर्चा में रहते हैं |या तो टोल टैक्स वसूली को लेकर या
फिर मनचलों के दोनों किनारों पर खड़े रहने ,पुलिस वालों की शहर इंट्री के नाम पर
अवैध वसूली को लेकर या फिर ठेकेदार व अफसर की मिलीभगत से बरसात में पुल के बह जाने
को लेकर | अभी हमारे नगर को जोड़ने वाला
पुल बहा नहीं है | बरसात भी गुजरी नहीं है | बरसात गुजरने के बाद पता चलेगा
ठेकेदार व अफसरों के कितना जोड़ हुआ है |
सुनील कुमार सजल
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