बुधवार, 23 सितंबर 2015

व्यंग्य – ये कृपा बांटने वाले

व्यंग्य – ये कृपा बांटने वाले

कहते तो है यार, ‘’ जो ताकत दवा में नहीं होती ,वह दुआ में होती है |’ इसलिए दुआ पाने वालों में धक्का- मुक्का मची है | जहां देखो वहां दरबारों में कतारों में खड़े लोग | एक प्रतियोगिता है इनमें सबसे पहले आशीर्वाद ग्रहण करने की |मारपीट , टांग खिचाई, उठापटक , भगदड़ , मौत | सब कुछ | कृपा बांटने वाले परिवार व्यस्त हैं | बेहद व्यस्त | देश की राजनीती से भी कहीं ज्यादा व्यस्त | उन्हें फुर्सत नहीं देश के अन्दर घटते घटनाक्रम के बारे में जानने की | सुबह से शाम तक एक सा काम | आशीर्वाद या दुआ बांटों | चढ़ोतरी तो मत पूछिए साब | लोग पेट काटकर अपनी जेबें फाड़कर उलीच रहें हैं | इन दरबारों में धन | एक बाजार सा विक्सित सा हो गया दुआओं का |रोज नए ग्राहक | रोज नए व्यापारी | जगह कम प-आदती दिख रही है दुकानदारी के लिए | परसों ही वर्मा जी किसी तथाकथित बाबा के दरबार से लौटे हैं | वे भी गए थे दुआ लेने | अच्छा – खासा जीवन जी रहे हैं |ईश्वर की कृपा दृष्टि बनी हुई है उन पर |  धन –धान्य से संपन्न हैं ,पर गए थे|  ‘’ आवारा बेटे की शादी करनी है | किसी बड़े घर की बिटिया से | कोई बाप लड़की नही दे रहा है | सोचा , बाबा की दुआ से कहीं उसका विवाह तय हो जाए |’
 हमने मन ही मन सोचा | काश वर्मा जी बेटे की आवारगी के खिलाफ दुआ मान्ज्गते तो कितना अच्छा रहता , पर५ वे क्यों मांगे | मांगना है तो विवाह के बाद परेशान बेटी का बाप मांगे | अपना काम है ऐन केन रिश्ता कर बेटे को खूंटी से बाँध देना | दुआ मुफ्त में थोड़ी न देते हैं बाबा लोग | रुपये लगते हैं रुपये | उनका भी पेट लगा है | वे पेट के लिए ही तो दुआ बाँट रहे हैं | उन्हें भी तो रकम चाहिए | अभी तक मुझे किसी ने सही मन से दुआ नहीं दी | पिताजी ने दी भी तो साथ में गालियां भी | क्योंकि मई उनकी के पंजों से ‘ आउट ऑफ़ कण्ट्रोल था ‘| ‘ वे चाहते थे , मैं कुछ और बनूँ , पर कुछ और बन गया | वे गालियांज देने में अब्बल रहे और मैं उसे आशीर्वाद मानकर ग्रहण करने में |उनकी गालियों को आशीर्वाद की संज्ञा इसलिए दे रहा हूँ क्योंकि हमारे इलाके में एक ऐसे संन्यासी बाबा रहे हैं , जो आशीर्वाद में मां – बहिन की गालियाँ देते | और लोग उसे आशीर्वाद मानकर उनके चरण स्पर्श करते | लोगों में उससे गालियाँ खाने का हुजूम सा लगा रहता | कहते हैं – ‘’ वे जिन्हें पुचकार कुछ कहते , मानो उनका कल्याण होने से रहा |’’
 खैर , मैंने विभिन्न दुआओं के थियेटर में टिकिट खरीदने को कतारबद्ध देखा तो मुझमें भी इच्छाएं बलवती – सी रही | मैं भी दुआएं लूं | मैं भी एक बाबा के दरबार में औरों की तरह कतारबद्ध हो गया |
तम्बूनुमा आश्रम | भारी भीड़ | बाबा श्री चार सौ बीस बनारस वाले | आशीर्वाद के वितरक | आशीर्वाद देने की मुद्रा में कीमती आश्रम में जमे थे | गेट पर आड़े-तिरछे चहरे वाले लठैत गेट पर पहरेदारी के साथ-साथ भक्तों को संभाल रहे थे | गेट पर ही एक दो गुन्दानुमा चहरे बाबा के भक्तों से दानपेटी में एक सौ इन्क्यावन रुपये दान करवाकर बाबा तक पहुँचाने का मार्ग बताते | हम भी ऐसे अनुकम्पापूर्ण रास्ते से होकर गुंडई चहरे वाले बाबा के चरणों तक पहुंचे थे |
हमने बाबा जी के चरण स्पर्श किए | बाबा के पास बैठे | उनके दबंगों ने भभूत स्वरूप राख्नुमा परसाद हमारी हथेली में रखा और चाट जाने का इशारा किया बाबा जी आशीर्वाद स्वरूप बोले-‘’ कल्याण भव:पूतो फलो |’’
दुआ लेकर हम लौट आए | परिवार नियोजन चुके हमसे और पूत क्या पैदा होते | उनके कल्याण शब्द से ही अपने कल्याण होने की उम्मीद थी हमें |
  महीनों गुजर गए | हम विपदाओं के ट्राफिक में तब की तरह अब भी फंसे हुए थे , पर विपदाओं का जाम हटाने का नाम नहीं ले रहा था | बस , माथा पीटते रहे थे | महने गुजरे तो वर्षों को भी गुजरना था | सुखी तनख्याह पर दिन गुजर रहे थे | तभी हमारे वर्तमान साहब का स्थानान्तरण हो गया | वे भी बनारस वाले बाबा से कम न थे | नए साहब आए |दिखने में शालीन थे | पर उगते सूरज को देह्दाकर यह अंदाजा तो नहीं लगाया जा सकता न कि दोपहर के मौसम में तपन कितनी रहेगी |
 खैर वक्त के झंझावातों व सरकारी नौकरी करते हुए सरकारी आबोहवा में कुछ सरकारी चमचों के आचरण को हमने भी शीख लिया था | प्रायोगिक तौर पर हमने उसे नए साब पर आजमाया | आम चमचों की तरह पूरी शालीनता व निरिह्पन के साथ उनका स्वागत किया | उनके शौक खान-पान और चरणों का ख्याल रखना शुरू कर दिया | हालांकि इससे हमारी जेब कुछ हद तक ढीली हो रही थी | पर कहते हैं न रिस्क लेने वाले ही व्यापार को बढाते हैं , पूरे तौर पर बनियागिरी से लाभ का चांस ढूंढ रहे थे | अन्नत: सफल रहे | धीरे- धीरे हम भी साहब के लेफ्टहेंड की तरफ सरकते नजर आने लगे |
 एक शाम वे खुद हमें अपने संग चाय पिलाने ले गए | चाय की चुस्कियां चल रही थी | वे बोले – ‘’ सजल , यूँ तो तुम भोले लगते हो , पर तुमने इस अनजाने दफ्तर में जितना ख्याल रखा उतना किसी ने नहीं | तुमसे इतना कहूंगा | अगर तुम मेरे यूँ ही सेवक बने रहे तो निश्चित मानो हमारी दुआ से बहुत तरक्की करोगे |’’
   साहब की दुआ का असर यह रहा है कि अगले एक दो सप्ताह बाद हमारी शाखा बदल दी गयी | जहां फर्जी बिलिंग , कमीशनखोरी का मापदंड तय होता है | यानी इस शाखा में ऐसे ही काम संपन्न होते हैं | जहां लोग बिना मांगे  भारतीय परंपरा अनुसार स्वेच्छा से जेब में घूस  ठूंस जाते |
हमारे साहब ने दुआ दी तो आप यह अर्थ न लगाए कि वे पंडा पुजारी या संत होंगे  | वे भी आम अफसरों की तरह है  जो कभी-कभी हनुमान व् दुर्गा जी के मंदिर जाते है | नियमपूर्वक हमसे अपना हिस्सा भी लेते हैं |
  आज हम साहब की कृपा से कल्याणमयी जीवन  जी रहे हैं | हम तो यही कहेंगे दोस्तों आप किसी अन्य से आशीर्वाद लें या न लें , पर अपने कार्य क्षेत्रों से जुड़े अफसरों का आशीर्वाद अपने ऊपर बनाए रखें | कारण ? इस देश की किस्मत लिखने में अफसरशाही ही सबसे बड़ी विधाता है |

    सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

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