व्यंग्य – कहते तो हैं ....
वह आदमी है या मुखौटेबाज | कुछ समझ में नहीं आता | कभी असली आदमी लगता , कभी नकली | मुखौटे में वह बड़ा दयावान होता है | देशप्रेम उसली जुबान से टपकता है | आदमियत उसी पहचान होती है | उसके मौसम की तरह बदलते रूप पर टिपण्णी पर कहता है –‘’ यार दुनिया में वर्चास्व्पूर्वक जीना है तो रूप बदलना पड़ता है | बहुरुपिया बनना पड़ता है | वरना दुनिया में जीना बेकार है |
वह वर्षो से यही करता आ रहा है | समाज में बड़ा सम्मान है उसका | हर कोई नमस्कार करता है उसे | जब वह पावरफुल होता है \ राजनैतिक पॉवर के साथ वह मुखौटा उतार फेंकता है | वह जानता है पॉवर का इस्तेमाल कर आदमियत पेश नहीं किया जा सकता | वरना दुनिया उसे पावरफुल उसे पावरफुल नहीं मां सकती | पॉवर प्रस्तुति हेतु वह आतंक , अपहरण , लूटमार , दगाबाजी , बलात्कार जैसी विधाओं का इस्तेमाल करता है ताकि लोगों को लगे उसके पास भी पॉवर है | उसकी पहचान इसी पॉवर के दम पर है |
उसके साथ राजनैतिक , अंडरवर्ल्ड के लोग आतंक फैलाने वाले हथियार बंद लोग हैं | सूना है यह भी है कि हथियारों का वैश्विक व्यापारी भी है | वाही इसी के दम पर लोगों के दिलों पर राज करता है | देश उसका मोहताज है | राजनीती उसके इशारे पर हंसती – रोटी है |
कहते तो है लोकतंत्र का महाकर्णधार है | जनता भेड को हकालने के लिए इनके पास लाठियों भरा गोदाम है | लाठियां हाथ में संभालने के लिए खूंखार जल्लाद है | लाठियां इन्हें खरीदना नहीं पड़ती | कमीशन में मिल जाती है |
अगर वह डरता है तो विपक्षियों , जो अक्सर उसकी शुरुआत योजनाओं की पोल खोलते रहते हैं , मगर वह भी कम नहीं है |
इप्छाले माह किसी महिला ने उस पर उसकी प्रेमिका बनाम रखैल होने का आरोप लगाया | पत्रकारों के प्रश्नों के जवाब में वह हंसकर बोला –‘’ यारो , ये भी कोई सवाल हुआ | अपनी कितनी प्रेमिकाएं व रखैल हैं अपन को खुद पता नही मालूम | चार रात इसके साथ , चार रात उसके साथ बिता ली है हमने | इतने में अगर वह हमसे जुड़े होने का हो हल्ला मचा रही है तो मचाने दो | ‘
आठ- दस दिन पहले किसी बड़े घोटाले में उसका नाम आया | वह खुश था | चलो कुछ दिन इसी पर सारे देश का ध्यान अपनी और आकर्षित करें |
वह खुश इसलिए भी है कि विपक्षी उसे जितना बदनाम करते हैं , उसका उतना बड़ा नाम होता है |
घूसकांड में फंसने के बाद भी ऐसा ही कुछ बयान था उसका | बोला- ‘’ घूस लेना हमारा धर्म है | घूस लेने के बाद मामलों में हम अपने बाप को भी नहो छोड़ते | व्यवसाय में दोस्ती या रिश्तेदारी नहीं चलती | घोस्खोरी हमारे लिए एक उद्योग की भांति है | यानी दाम दो, काम लो |
बढ़ती महंगाई के सन्दर्भ में उसका तर्क है | पूरा देश विकास व स्तरीय आय की राह पर है | आय के साथ व्यय होना आवश्यक है , तभी आर्थिक समायोजन बना रहता है | सिर्फ आय बढ़ा दी जाए | खर्च कोने में रख दिया जाए तो पूंजी सुप्त हो जाएगी | उसे चलायमान होना आवश्यक है | वह जितना चलायमान होगी , उतनी फुर्तीली होगी | फुर्ती बनी रहे , इसलिए उसे महंगाई का टॉनिक आवश्यक है , जो उसे इस वक्त मिल रहा है |
बेरोजगारी , भुखमरी, कुपोषण ये सब उसकी नजर में कीटाणु हैं , जो महामारी की तरह पनप रहे हैं | इसकी चिन्ता वह नहीं करता | वह कहता है –‘’ प्रकृति अपना इलाज स्वयं ढूँढ लेती है | बस उसी सिद्धांत पर हमने भी इन्हें छोड़ दिया है |
हो- हल्ला दबाने के लिए थोडा बहुत सहयोग करना पड़ता है | सो, कर देते हैं | यह मुखौटेबाजी का फर्ज है \
सुनील कुमार ‘सजल’
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