सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

लघुकथा – जानवर

लघुकथा – जानवर



‘’ ऐ सुखिया, जा ज़रा इन बकरियों को मैदान में चरा ला |’’ मां ने अपनी किशोर बेटी से कहा |
‘’ नहीं मां , मैं नहीं ले जाऊंगीं ! बेटी ने मुंह बनाते हुए कहा तो मां चिढते हुए पूछ बैठी ,
‘’ क्यों.... अरे क्यों नहीं ले जाएगी ... क्या इनकों दिनभर भूखा रखना है ?’’
‘’नहीं मां ...! वहां दूसरे चरवाहे लडके इन जानवरों की ‘’ मर्यादाहीन ‘’ हरकतों पर मुझे देखकर मुझे सुनाते हुए जानबूझकर गन्दी-गन्दी बातें करते हैं |’’ बेटी ने कारण बताते हुए कहा |
‘’ अरे .... जानवर तो जानवर ठहरे... इनकी हरकतों से तुझे और उन लड़कों को क्या लेना-देना ?’’ मां अपनी बातों पर जोर देते हुए कहा |
‘’ मुझे अगर जानवरों की ऐसी हरकतों से कुछ नहीं लेना-देना मां तो क्या हुआ मगर उन लड़कों की नीयत में तो मुझसे लेना-देना है ना ...?’’
  बेटी की बात सुनकर मां अब गहन सोच में...पड़ा गयी |

       सुनील कुमार ‘’सजल ‘’ 

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