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मंगलवार, 4 जून 2019

लघुकथा


शनिवार, 22 दिसंबर 2018

लघुकथा

लघुकथा

लघुकथा

लघुकथा

लघुकथा

लघुकथा

लघुकथा

लघुकथा

रविवार, 16 दिसंबर 2018

लघुकथा

लघुकथा 

लघुकथा

लघुकथा 

लघुकथा

लघुकथा

दो लघुकथा

दो लघुकथा

रविवार, 11 फ़रवरी 2018

लघुकथा -संतुष्ट सोच

लघुकथा - संतुष्ट सोच 
नगर के करीब ही सड़क से सटे पेड़ पर एक व्यक्ति की लटकती लाश मिली । देखने वालों की भीड़ लग गयी ।लोगों की जुबान पर तर्कों का सिलसिला शुरू हो गया ।
किसी ने कहा-"लगता है साला प्यार- व्यार  के चक्कर में लटक गया ।"
"मुझे तो गरीब दिखता है ।आर्थिक परेशानी के चलते....।" 
"किसी ने मारकर  लटका दिया ,लगता है ।"
"अरे यार कहाँ की बकवास में लगे हो ।किसान होगा ।कर्ज के बोझ से परेशान होकर लगा लिया फांसी ..।अखबारों में नहीं पढते क्या ...आजकल यही लोग ज्यादातर आत्महत्या कर रहे हैं ।"
भीड़ में खड़े एक शख्स ने एक ही तर्क से सबको संतुष्ट कर दिया ।
-सुनील कुमार "सजल"

रविवार, 28 जनवरी 2018

लघुकथा - सोच

लघु कथा - सोच
" रमेश सुना है ,आजकल तुम गरीब बस्ती बहुत दिख रहे हो । धनाढय पिता का प्रश्न  ।
"हाँ ,मैं गरीबों की मदद करने जाता हूँ ।उन्हें मुफ्त शिक्षा दे रहा हूँ ।"
" क्या मुफ्त शिक्षा ?"पिता आश्चर्य से। "नालायक मैंने इसी काम के लिए  तुझ पर  लाखों रुपये खर्च कर डिग्रियां दिलाया । अपनी चिंता कर ।कोई विशाल कान्वेंट स्कूल खोल जहां लाखो रुपये हाथ आएंगे । उन गरीबों की चिंता सरकार करे ।उसकी जिम्मेदारी है । समझा । "

गुरुवार, 12 मई 2016

लघुकथा- इज्जत

लघुकथा- इज्जत

पिछले साल वर्मा परिवार की नौकरानी सुखिया की बेटी कल्लो ने पड़ोस के विजातीय युवक माधो से प्रेम विवाह कर लिया था | वर्मा जी ने उन्हें काफी ऊटपटांग तरीके से बुरी तरह से अपमानित करते हुए कहा था |’’ तुम गरीब लोगो को वाकई में इज्जत की ज़रा भी परवाह नहीं रहती | अरे तुम्हारी लड़की को कुछ तो सोचना चाहिए था न ....कम से कम तेरी इज्जत की ही खातिर  ....! क्या तुम्हारे समाज में लड़कों का अकाल पड़ गया है जो परजात को...|’’
गरीबी और उनके यहाँ काम करने के कारण भला क्या कहती सुखिया उन्हें | सो मन मसोसकर चुप रह गई |
 आज वर्मा परिवार की लाडली बिटिया सुमिता का वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न हो रहा है | पिछले माह सुमिता ने राजधानी में रहते हुए अपने लिए खुद वर तलाश लिया था | लड़का विजातीय और पिछड़ी जाती का होते हुए भी यहाँ ‘’ निम्न जाति’’ शब्द आड़े नहीं आ रहा है | और न ही वर्मा परिवार की नाक कट रही है | बल्कि आए हुए मेहमानों के सामने उनके मुख से लडके का जमकर गुणगान किया जा रहा है | दरअसल वह अमेरिका की किसी कम्पनी में उच्च पद पर आसीन है |


सुनील कुमार ‘’सजल’ 

बुधवार, 11 मई 2016

लघुकथा- सूत्र

लघुकथा- सूत्र

आँगन में रखी कुर्सी में धंसे नेताजी ध्यानपूर्वक देख रहे थे कि दानों के लिए चिड़िया आपस में किस तरह लड़ रही थी | वे एक दूसरे पर चोंच व पंजों से हमला कर रही थी |
 पास खड़े चमचे ने उनकी ध्यान-तन्द्रा तोड़ते हुए कहा-‘’ दादा , इन चिड़ियों को आप बड़े गौर से देख रहे हैं ? कोई चुनावी सूत्र ढूंढ रहे है क्या ?’’
‘’ हाँ .... मिलगया ... हमें सूत्र मिल गया |’’नेताजी मुस्करा उठे |
‘’ काहे का सूत्र मिल गया दादा? हमें भी तो बताओ |’’ चमचे कि जिज्ञासा भरी नजरें उन पर टिक गई |
‘’ आवास तोला के लोग इन चिड़ियों की भाँती ही भूख से मर रहे है | पूरी बस्ती में मात्र 3 -4 बोरी चावल ही बांटने हेतु पहुँचाओ | अनाज देखकर अगर वे टूट पड़े तो उन्हें आपस में लूटपाट करने हेतु लड़ने-मरने दो | तब तुम लोग चुपचाप वहां से खिसक लेना | वैसे भी वो लोग अब हमें ‘’ भूतपूर्व ‘’ बनाने के मूड में हैं , इसलिए उन सालों को ऎसी ही सजा मिलने दो कि वो अगर अपने काम न आ सके तो विपक्षियों के भी किसी काम न आ सके | और हाँ , सुनो ! अपने इलाके में आवास तोला जैसे ही दो-चार गाँवों का और पता लगाओ ताकि वहां भी....!’’
नेताजी ने कठिन समीकरण का जो सूत्र निकाला था, वह करीब आती चुनाव तारीखों के लिए किसी पवित्र स्थल पर आंतकी बम विस्फोट से कम न था |
सुनील कुमार ‘’सजल’’

  सुनील कुमार सजल


रविवार, 8 मई 2016

लघुकथा- डायन

लघुकथा- डायन

विधवा अहरिन गाँव की पाचवीं औरत थी , जो डायन होने के शक में गाँव की भारी पंचायत में अपमानित होने के बाद नग्न घुमाए जाने का संत्रास भुगत रही थी |इसके पहले रौबदार सरपंच राम कृपाल ने अपने अन्दर चैत की धुप - सी दहकती वासना पर सहयोग की आषाढी फुहार करने का प्रस्ताव रखा था | परन्तु विधवा होते हुए भी अपनी मर्यादा पर गर्व करने वाली अहरिन ने उसे भद्दी गाली देकर उसकी नीयत को सबके सामने उजागर करने की धमकी देते हुए सरपंच के घिनौने प्रस्ताव पर जोरदार तमाचा जड़ दिया था | तभी से वह सरपंच की आँखों में फंसे  तिनके की भाँती खटक रही थी |
गाँव में राजनीतिक रौब और सरपंच जैसे रुतबेदार पद पर आसीन होने के साथ रामकृपाल की सोच में अब अहरिन को किसी भी तरह मात देने के अलावा कोई चारा नजर नहीं आ रहा था | उसे लगने लगा था कि अगर उसकी करतूत की पोल खुल गयी तो वह लोगो के सामने मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह जाएगा |
  उस दिन मौसम अनमना था | सर्द हवाओं का जोर | सूरज भी चमकते हुए अपना मुंह चुरा लेता | ऐसे दौर में सरपंच का पुत्र बीमार पड़ गया था | इसी मौके का लाभ उठाकर सरपंच ने पूरे गाँव में अफवाह फैला दी ,’’ अहरिन डायन है , चुड़ैल है | अगर आप में से किसी को मेरी बात का विशवास न हो तो भूलैया ओझा से पूछ लो |
भूलैया गाँव का नामी ओझा था | उसने जो कह दिया , वह पत्थर की लकीर के सामान होता | लेकिन पैसों की चकाचौंध ने भोलैया को सरपंच की आवाज में बोलने को मजबूर कर दिया था | ऐसे में लोगों को उसकी बात का विशवास न हो, यह कैसे हो सकता था |
  अहरिन इस घोर अपमान भरी घटना के बाद अंत:स्थल पर प्रतिशोध व अपमान की आग में चूल्हे में दहकते अंगारों सी दाहक रही थी | बेचारी अन्दर ही अन्दर जल रही थी | कभी सोचती कि आत्महत्या कर ले तो कभी अन्दर का सोया साहस जाग उठाता | कभी वह बुदबुदाती रह जाती ,’’ अगर यूँ ही मौत को गले लगा लेगी तो इस गाँव में न जाने उस जैसी कितनी ही डायनें पैदा होती रहेंगीं | तू ऐसा कर डायन घोषित करने वाले नराधार्मों का ही अंत कर दाल...| नहीं ...नहीं ... फिर तो लोग मुझे हत्यारिन ठहराएंगे | लोग मेरे खिलाफ कोई षड्यंत्र रचेंगें ...| पर अब षड्यंत्र रचे भी तो क्या , अब मेरे पास छिपाने को रह ही क्या गया है , जो गाँव वाले....?’’
  विचारों के भंवर से जूझते उसे दिन, हफ्ता व महीना गुजर गए | अत: एक दिन उसके नारीत्व ने उसे ललकारा और उसके अन्दर सोया हुआ साहस जाग उठा |
   अगले ही दिन एक के बाद एक पांच लहुलुहान लाशें बिछ  गयी |छठी लाश के रूप में वह स्वयं थी , जो लाश होकर भी रणक्षेत्र में जीत की प्रसन्न मुद्रा में नजर आ रही थी , मानो माटी की मूरत में किसी ललकार ने मुस्कान को बड़ी खूबसूरती से गढ़ा हो |

  सुनील कुमार सजल



शनिवार, 7 मई 2016

लघुकथा -प्रतिष्ठा

लघुकथा  -प्रतिष्ठा

‘’ सरकारी स्कूल....! हूं....!मैं तो भूलकर भी तुम्हारी तरह अपने बच्चों का एडमिशन किसी सरकारी स्कूल में नहीं करा सकती |’’ शीला ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए अपनी सहेली से कहा |
‘’ पर शीला एक बार ज़रा उस स्कूल के रिजल्ट की तरफ भी तो देखो...| बोर्ड परीक्षा में पांच छात्रों ने मेरिट में स्थान बनाया है और दर्जन भर फर्स्ट डिविजन हैं ...|’’ राधा ने शीला को समझाते हुए कहा |
‘’ तो क्या हुआ...? अरे लोग पूछेंगे तो हम पर हसेंगे ही ना... कि हर तरह से सक्षम होते हुए भी हम गरीबों की तरह अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे हैं ....| सक्षम होते हुए भी हम अपने बच्चों का एडमिशन किसी अच्छे स्कूल में नहीं करा सकते थे ...| यहाँ तो समाज में प्रतिष्ठा का सवाल है ......आखिर हम कमाते किसके लिए हैं ....?’’
शीला के इस तर्क पर आखिर राधा को चुप रहना ही पड़ा |


   सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

शुक्रवार, 6 मई 2016

लघुकथा -बल्कि

लघुकथा  -बल्कि

वह शादी के दस साल बाद मां बनने जा रही थी | पड़ोसनों ने उससे से कहा –‘’ अगर लड़की हुई तो क्या करोगी ...|वैसे भी आजकल लड़की का जन्म होना माता-पिता के सिर पर पहाड़ टूटने के समान है |’’
‘’लड़की हो या लड़का......हमें तो संतान होने से मतलब है |’’ उसने सहजता से उत्तर दिया |
‘’ शायद इसलिए न कि इतने साल बाद मां बनने जा रही हो ...|’’एक ने कटाक्ष शैली में कहा |
‘’ इसलिए नहीं ...|’’ ‘ उसने भी उसी लहजे में जवाब दिया –‘’ ‘’ बल्कि इसलिए कि अगर लड़की हुई तो तुम्हारे लडके की तरह समाज का एक लड़का अधेड़ कुंवारा नहीं बना बैठा रहेगा और लड़का हुआ तो तुम्हारी लड़की की तरह ढलती उम्र में वर के लिए नहीं इंतज़ार करेगी .....| ‘’ उसका चुभता जवाब सुनकर बाकी महिलाएं एक –दूसरे का मुंह देखती रह गयीं |

   सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

बुधवार, 4 मई 2016

लघुकथा – फर्ज

लघुकथा  फर्ज

रेशमा और पिताजी के बीच सुबह-सुबह ही काफी बहस हो गई थी | पिताजी के बाजार चले जाने के बाद मां ने रेशमा को समझाने के अंदाज में डांटते हुए कहा- ‘’ रेशमा तुझे कितनी बार समझाया कि अपने पापा से जुबान मत लड़ाया कर | पर तू मानने से रही | मैं देख रही हूँ कि तमीज के नाम पर तू दिनों-दिन मर्यादा को लांघती जा रही है |’’
‘’ मम्मी पहले पापा को समझाओ वो मुझसे कैसे – कैसे सवाल करते हैं |’’रेशमा पैर पटकते हुए बोली |
‘’ भला ऐसा कौन –सा प्रश्न कर दिया उन्होंने तुझसे ?’’
‘’ यही कि तू कल कॉलेज में जिस लडके के साथ घूम रही थी , वो कौन है ?रोजाना पार्क में क्यों जाती है ?और भी कई उलटे-सीधे सवाल ?’’
‘’ तो क्या हुआ....वो तेरे पिटा हैं | तुझ जैसी जवान कुँवारी लड़की की खोज-खबर रखना उनका फर्ज है | ज़माना ठीक नहीं है |’’
‘’ तो क्या केवल कुँवारी लड़की की ही खोज-खबर रखना उनका फर्ज है ? अगर शादी-शुदा होती और गलत कदम उठाती तो क्या मुझसे नजरें चुरा लेते ?क्या केवल कुंवारी लड़कियां ही गलत रास्ते पर जा सकती हैं | शादी-शुदा नहीं ?’’
रेशमा ने मां के सामने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी | प्रश्नों के बोझ तले झुक  चुकी थी | आखिर वे भी एक प्राइवेट कम्पनी में क्लर्क हैं , जहां पुरुष कर्मचारियों की भीड़ अधिक है .....|


सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

शनिवार, 16 अप्रैल 2016

लघुकथा – आखिर

लघुकथा – आखिर

उनके तम्बाखू  खाकर थूकने की आदत पर उंगली उठाते हुए ये बोले –‘’ क्या यार अभी साफ़ – सुथरा किया और तुमने आँगन में पिच्च से थूक दिया .... कम से कम साफ़-सुथरी जगह पर गन्दगी फैलाने पर बाज आया करो |’’
‘’ का ... बोले ..हम गन्दगी फैलाते हैं.... अरे भई हमारे पार्टी के मंत्री आदव(यादव ) जी जब अधिकारियों को साफ़ सफाई रखने की चेतावनी देकर पिच्च से वाही थूक देते हैं तो हम उनके गुणों का अनुकरंज कर , का बुरा करते  हैं ...आखिर वे हमारी पार्टी के गुरु जो ठहरे ....|

सुनील कुमार ‘सजल’


शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

लघुकथा – परिभाषा

लघुकथा – परिभाषा

दोनों एक पत्रिका में छपी किसी महिला मॉडल की नग्न तस्वीर देखकर खुश हो रहे थे |तभी जंगलों में रहने वाली एक नौजवान आदिवासी युवती अर्ध्दनग्न पोशाक में सर पर लकड़ी का गट्ठर उठाए वहां से गुजारी |
उसे देखते ही राकेश बोला ,’’ अबे उस औरत को देख! क्या चीज है अरे , उसके उभार तो देख...!’’
 रम्मू ने एक नजर उठाकर उस लड़की की और देखा और बोला , ‘’ क्या बे , तू भी क्या कुत्ते की तरह जहां चाहे नजरें गडाने लगता है | अरे, इसे देख इसे...|’’ और इतना कहकर पत्रिका के चित्र की और पुन: उसका ध्यान खीचतें हुए स्वयं उस युवती पर नजर गड़ाकर बैठ गया |
राकेश समझ नहीं पा रहा था कि ‘’कुत्ते ‘’ की परिभाषा के प्रति दोनों में से किसका नजरिया सही है |
  सुनील कुमार ‘सज