लघुव्यंग्य
– बाजार मूल्य
रमिया
अपनी मां के साथ उसी डाक्टर के पास दूसरी बार गर्भपात कराने पहुंची तो डाक्टर से
रहा नहीं गया | ‘’ इस तरह कब तक इसका गर्भपात कराकर इज्जत बचाती रहोगी .....इससे
अच्छा इसकी शादी क्यों नहीं कर देती |’’ उसने रमिया की मां को सलाह देते हुए कहा |
‘’
दक्ताएर साब....हम लोग देह धंधे वाले ठहरे | हमें इज्जत की नहीं ग्राहक की जरुरत
होती है | इसकी शादी करा दूंगी तो वर्त्तमान बाजार मूल्य कहाँ रह जाएगा .. जो आज
लोग बिना मोल-भाव किए नोटों की गद्दिया फेंक जाते हैं |’’
डाक्टर
की चकित नजरें अब कलम के साथ दवा पर्ची पर घिसटती चली जा रही थी |
सुनील कुमार ‘’सजल’’
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