suneel kumar ''sajal c/o sunil kumar namdeo, sheetlaa ward no.09, near mandla-sioni road, bamhani banjar distt-mandla (m.p.) sunilnamdeo69@gmail.com
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शनिवार, 22 दिसंबर 2018
रविवार, 16 दिसंबर 2018
शुक्रवार, 5 मई 2017
लघुव्यंग्य- शहर की सड़क
लघुव्यंग्य- शहर की सड़क
शहर की सड़क पर महीनों से काम चल रहा था |काम में ठेकेदार
की लापरवाही से हफ़्तों का काम महीनों में संपन्न नहीं हो सका | जगह-जगह गड्डे ,
उबड़-खाबड़ तल |इस दौरान कई एक्सीडेंट भी हुए | पर प्रशासन के कान में जूं तक नहीं
रेंगी | उस दिन पी.डब्लू. डी के बड़े साब
उसी सड़क से गुजरे | उनकी वेन सड़क के गड्डे
में फंस गयी | साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर |विभाग सकते में आकर पूरी सहानुभूति
जताने में लग गया |पर साब गुस्सा यूं नहीं उतरा |उतारा तब जब उस क्षेत्र का
उपयंत्री निलंबित हुआ | आधुनिक परिभाषा में इसी को कहते प्रशासन का जागना |
सुनील
कुमार ‘’सजल’’
गुरुवार, 4 मई 2017
लघुव्यंग्य- गधापन
लघुव्यंग्य- गधापन
चलते-चलते मैं रुक गया | मैंने देखा कि एक गधा सड़क
किनारे मरा पड़ा है |उसका एक साथी गधा गर्दन झुकाए उसके शव के पास खड़ा है | पास से
गुजरने वाले लोग यह दृश्य देखकर हंसते हुए नहीं रहते | मुझे हँसी नहीं आती |
दोपहर को लौटते हुए मैं पुन: वहां से गुजरा तो देखा
वह गधा अब भी उस मरे गधे के पास सुबह वाली मुद्रा में खडा है , मैं फिर रुक गया | तभी अचानक मेरा ध्यान उन दो
आदमियों की ओर गया , जो आसपास से बेखबर साइकिलों पर सवार र्होकर जा रहे थे |
उनमें से एक आदमी दूसरे को कह रहा था ,’’ तुम तो बिलकुल गधे हो | भला इतनी देर
पांडे के घर रुकने की क्या जरुरत थी ? तुम वहां उसके भाई की मातमपुर्सी करने गए थे
या कुम्भ स्नान करने ?’’
सुनील
कुमार ‘’सजल’’
बुधवार, 3 मई 2017
लघुव्यंग्य- यार की बात ......
लघुव्यंग्य- यार की बात ......
उनकी ओर से डाली गयी यूट्यूब में एक ही तरह की
वीडियो सामग्री मसलन ‘’ औरत को संतुष्ट करने के तरीके , यह नुस्खा आपको बिस्तर पर
घोडा –सा ताकतवर बनाकर छोड़ेगा ,यह नुस्खा
आजमाकर औरत के मुख से चीख निकालें’’ वगैरह
वगैरह |
‘’ आपको
औरत ही को संतुष्ट करने की चिंता क्यों है
? कहीं आपके जीवन में भी ...|’’
‘’ क्या बकवास बात कर रहा है ,मैं तो घोडा हूँ घोड़ा
|’’
‘’ फिर ये फालतू की सामग्री .. कोई ज्ञान की बातें
डालो |और क्या भरोसा तुम्हारे ये नुस्खे कितने काम के हैं , नीम हाकिम खतरे की
.... वाली कहावत तो नहीं है |“’’
‘’येभी ज्ञान की बात है दोस्त उनके लिए जिन्हें खुद
पर भरोसा नहीं हैं | फिर आप भी जानते हैं फेयरनेस क्रीम से कितने कौएं बगुले की
रंगत पा सके |
लघुव्यंग्य- मन
लघुव्यंग्य- मन
मुझे माध्यमिक शिक्षा मंडल की ओर से हाई स्कूल की
प्रायोगिक विज्ञान परीक्षा संपन्न कराने हेतु बाह्य परीक्षक के रूप में जंगल के
बीच बसे हाई स्कूल में जाने का आदेश प्राप्त हुआ था, जहां मात्र दो शिक्षक थे और
जिस गाँव में घर भी बामुश्किल भी आठ- दस ही थे |
परीक्षा संपन्न कराने के उपरांत मैंने एक शिक्षक से
पूछ ही लिया- ‘’ भाई , आप लोग इस घनघोर जंगल के बीच बने स्कूल में बड़े कष्ट में
जीवन गुजारते होंगें ...जहां मात्र ८-१० घर ही हैं और जहां के लोग रोटी की तलाश
में दिनभर जंगलों में भटकते रहते हैं| कैसे मन लगता होगा आप लोगों का ऎसी जगह
....? आपकी जगह अगर हम होते तो दूसरे दिन यहाँ से रवाना हो गए होते ....!’’
मेरी बात सुनकर वह मुस्कराते हुए बोले ,’’ जहां
आसानी से शराब , शबाब और मुर्गे की उपलब्धता हो जाए तो जंगल के बीच बने इस स्कूल
में तो क्या , इससे भी बदतर जगह में भी हमारा मन आसानी से रम जाता है सर !’’
बुधवार, 5 अप्रैल 2017
लघुव्यंग्य –प्रत्युत्तर
लघुव्यंग्य
–प्रत्युत्तर
एक बाप
महाविद्यालय की राजनीति में लिप्त अपने बेटे को हिदायत देते हुए कहा-बेटे अब तुम
राजनीति करना छोडो और पढाई में मन लगाओ |इसी में तुम्हारा भला है |’’
‘’
नहीं पापा.. मैं राजनीति नहीं छोड़ सकता ... कालेज में दाखिला लेना तो मेरे लिए
मात्र पढाई का बहाना रहा है | मैं करूंगा तो राजनीति ही ...|’’
‘’
क्या बक रहे हो ... देखते नहीं राजनीतिज्ञों को लोग कैसी –कैसी गालियाँ और बददुआयें
देते हैं |’’
अभी पिताजी की डपट पूरी भी नहीं हो पायी थी की
बेटे ने बात काटते हुए कहा –‘’लेकिन वक्त आने पर लोग उनके ही पैर टेल गिरते हैं
... फिर भी बुरे....?
गुस्से
तमतमाया पिटा खामोश होकर रह गया |
सोमवार, 31 अक्तूबर 2016
लघुव्यंग्य - आदेश
लघुव्यंग्य - आदेश
सरदार के सामने वे तीनो सर झुकाए खड़े थे || सरदार ने एक-एक के चहरे पर नजर दौडाते हुए कड़क आवाज में प्रश्न किया – ‘’ आज कितनों को लुढ़काकर आए हो |’’
‘’सरदार आठ को |’
‘’क्यों? मैंने तुम्हें तेरह के लिए कहा था न बेवकूफों |’’
‘’ उनमें से पांच तो वैसे भी गंभीर बीमारी से ग्रस्त होने के कारण मरने योग्य हैं सरदार ....आखिर उनको मारने से फ़ायदा क्या है |’’
‘’ अरे हरामजादों |’’ सरदार चीखा –‘’ आतंक फैलाने के लिए बीमार व चुस्तों के बीच विभाजन नहीं किया जाता कुत्तों ... अभी जाओ उन्हें भी लुढ़काकर आओ ...वरना उनकी किस्मत की गोली में तुम लोग होगे ....|’’
वे तीनो बिना देरी किये झटपट हथियार उठाकर किसी पालतू कुत्ते को मिले ‘’आदेश’ की तरह चल पड़े उन लोगों की झोपड़ियों की ओर....|
सुनील कुमार ‘’सजल’’
गुरुवार, 15 सितंबर 2016
लघुव्यंग्य – दर्शन
लघुव्यंग्य
– दर्शन
वे
प्रतिदिन मंदिर में देवी-दर्शन के लिए जाते , लेकिन ‘’ देवी-दर्शन’ के बहाने वहां
आने वाली महिलाओं के दर्शन में ज्यादा रुचि दिखाते |
अक्सर
उनके साथ रहने वाले एक मित्र ने एक दिन उनकी इस हरकत पर अंगुली उठाते हुए कहा-‘
क्यों भाई मैं अक्सर देखता हूँ कि तुम मंदिर में देवी-दर्शन के बहाने महिलाओं को
घूरते रहते हो .. क्या यह अच्छी बात है .. इससे तुम्हारी अध्यात्मिक भावना भंग
नहीं होती ...|’’
उन्होंने
अपनी चोरी पकडाते हुए देख कर अपने जवाब में वजन लाने के प्रयास से कहा – ‘’ क्या महिलायें ‘’ देवी’’ का रूप नहीं
हैं ?अगर उनमें देवी रूप सौन्दर्य का दर्शन कर आत्मिक शान्ति पाटा हूँ तो क्या
बुरा करता हूँ |’’
सुनील
कुमार ‘सजल’’
शनिवार, 14 मई 2016
लघुव्यंग्य – अभीतक
लघुव्यंग्य
– अभीतक
एक पुलिस
कर्मी ने पटाखों की दुकान से पटाखा पैक कराया और बिना भुगतान किये चल दिया | उसके
जाने के बाद विक्रेता बुरी गालियाँ देते हुए बोला- ‘’ इन हरामखोरों के कारण धंधा
ढंग से नहीं कर सकते |’’
साथ खड़े
साथी ने उससे कहा-‘’ आपने बिल भुगतान करने को क्यों नहीं कहा ?
‘’ साला
लायसेंस माँगने लगता तो कहाँ से दिखाता ....जो अभी तक मैंने बनवाया नहीं है |’’
सुनील
कुमार ‘’सजल’’
रविवार, 8 मई 2016
लघुव्यंग्य - पानी और ....?
लघुव्यंग्य - पानी और ....?
जिले की स्वच्छता
अभियान से जुडी एक अधिकारी महोदया
सुबह-सुबह एक गाँव की तरफ अपनी गाडी में सवार होकर भ्रमण को निकली | देखा पूरा गाँव शौच के लिए मैदान की
तरफ बढ़ रहा है | उन्होंने एक शौच जाते व्यक्ति को रोका |कहा- ‘’क्यों मिस्टर..! क्या घर में टायलेट
नहीं है ? पंचायत सचिव ने निर्माण नहीं
कराया ?’’ मैडम ने एक साथ चार छ: सवाल दाग दिए |
‘’ मेडम
जी काहे नाराज हो रही हो |सचिव साहब ने सब-कुछ बनवाया है हमारे घर में ....|’’
‘’ फिर
उनका इस्तेमाल क्यों नहीं करते ...|मैदान में जाते हुए शर्म नहीं आती ..|
‘’ आती
तो हो मैडम पर करें का ,,,...|’’
‘’करें
का मतलब...?क्या कहना चाहते हो ...?’’
‘’सचिव
साब को एक आदेश और दे देती ...|किस बात का आदेश...|
‘’गाँव
के हर एक परिवार के इस्तेमाल के लिए रोजाना दस-बीस बाल्टी पानी की व्यवस्था और कर
देते ...|
‘’अब
टायलेट बनवाने के बाद पानी की व्यवस्था वही करे ... क्या बेवकूफ जैसी बात करते हो
...|’’
‘’ बेवकूफ
हम नहीं ...प्रशासन है मैडम जी .. जहां
पीने के पानी के लिए लोग तीन-चार किलोमीटर
दूर जा रहे उन्हें टायलेट में फ्रेश होने की सलाह दी जा रही ...| आप ही बताइये का
हम रोज उसमे यूँ ही बैठ के आ जाया करेंगे ...|’’
मैडम की
गाड़ी तेजी से आगे बढ़ गयी |
सुनील कुमार ‘’सजल’’
मंगलवार, 3 मई 2016
लघुव्यंग्य – बाजार मूल्य
लघुव्यंग्य
– बाजार मूल्य
रमिया
अपनी मां के साथ उसी डाक्टर के पास दूसरी बार गर्भपात कराने पहुंची तो डाक्टर से
रहा नहीं गया | ‘’ इस तरह कब तक इसका गर्भपात कराकर इज्जत बचाती रहोगी .....इससे
अच्छा इसकी शादी क्यों नहीं कर देती |’’ उसने रमिया की मां को सलाह देते हुए कहा |
‘’
दक्ताएर साब....हम लोग देह धंधे वाले ठहरे | हमें इज्जत की नहीं ग्राहक की जरुरत
होती है | इसकी शादी करा दूंगी तो वर्त्तमान बाजार मूल्य कहाँ रह जाएगा .. जो आज
लोग बिना मोल-भाव किए नोटों की गद्दिया फेंक जाते हैं |’’
डाक्टर
की चकित नजरें अब कलम के साथ दवा पर्ची पर घिसटती चली जा रही थी |
सुनील कुमार ‘’सजल’’
सोमवार, 2 मई 2016
लघुव्यंग्य – पैसा
लघुव्यंग्य
– पैसा
बिजली
संकट चल रहा था |पत्नी कई दिनी से जिद कर रही थी
| इनवर्टर खरीद लाओ | लेकिन ठंडी
सिकुड़ी जेब के कारण हर माह मिलाने वाले वेतन के दौर में भी मैं सोच कर रह
जाता |
एक दिन
पत्नी मुझसे से कहा-‘’ बाबूजी के लिए हर माह सात-आठ रुपये की दवाएं तो आती होगीं
|’’
‘’हाँ
क्यों नहीं |’’
‘यहाँ कि
दुकानों में नकली दवाएं तो मिलाती होंगी |’’
‘’
हाँ...क्यों नहीं वह तो पूरे देश में बिक रहीं हैं | मगर यह सब क्यों पूंछ रही हो
?’’
‘’ मैं
सोच रही थी .. इनवर्टर किस्तों में उठा लेते और बाबूजी के लिए उतनी नकाक्ली दवाएं
ला दिया करते उनसे जो पैसे बचते उससे इनवर्टर की क़िस्त जमा हो जाती और बाबू जी को
हर माह दवा मिलाने की सांत्वना रहती |हमें इनवर्टर पाने की ख़ुशी ....|’’
सुनील कुमार ‘सजल’’
रविवार, 1 मई 2016
लघुव्यंग्य - भ्रष्ट क्यों ?
लघुव्यंग्य
01- भ्रष्ट क्यों ?
कसबे की
किसी शासकीय शाला में शिक्षकों द्वारा अवैध वसूली की जा रही थी |जो चर्चा का विषय
बनी हुई थी |
एक शाम चाय की दूकान में बैठा एक पालक उसी शाला
के शिक्षक से कटु शब्दों में कहा –आज के शिक्षक ,शिक्षक नहीं रहे नंबर एक के
भ्रष्ट |जब चाहा कभी इस बात के लिए चन्दा कभी उस बात के लिए चंदा वसूली कर ली |कहीं से कुछ नहीं मिलता तो
अभिभावकों के जेब में हाथ डालते हैं |जबकि ईश्वर तुल्य है |परन्तु उसने भ्रष्ट
आकांक्षा में डूबकर पद की गरिमा कि नारकीय गर्तों में पहुंचा दिया | क्या होगा इस
देश का और जाने क्या देते होंगे छात्रों को | जब स्वयं भ्रष्ट हैं |शिक्षक बहुत
देर से उसकी बात सुन रहा था |अत: प्रश्नात्मक अंदाज में बोला | ‘’ जब साड़ी दुनिया
ब्रष्ट है तो सिर्फ शिक्षक कि तरफ ही अंगुलिया क्यों उठायी जाती हैं | लोग अपने
गिरेबां में झांककर क्यों नहीं देखते ?और उन्हें भ्रष्ट बनाने वाले कौन हैं कभी
सोचा आपने ? इसी युग के लोग | ज़रा उच्च कार्यालयों में जाकर देखो तो वस्तुस्थिति का
पता चले |हर छोटे से छोटे , बड़े से बड़े क्लेम को पास कराने के लिए वहां के
कर्मचारी किस तरह शिक्षक कि जेब कि तरफ गिद्ध दृष्टि जमाये रहते हैं ?अपनी गिनी –चुनीतनख्वाह
के भरोसे जीविका चलाने वाला शिक्षक कहाँ से
करे इन गिद्धों की भूख की व्यवस्था ? ऐसे में वह भ्रष्ट नहीं बनेगा तो
करेगा क्या ? उस वह पद की गरिमा देखे या पेट की ज्वाला ? कोई उसके पास अलाउद्दीन
का जिन्न तो है नहीं जिससे वह व्यवस्था कराता फिरे | वह तो वाही कर रहा है जो युग
चाह रहा है | फिर वह कहाँ से भ्रष्ट हुआ ....? शिक्षक कहे जा रहा था | और वह अभिभावक
खामोशी ओढ़े निरुत्तर ..........|
सुनील कुमार ‘’सजल’’
सोमवार, 22 फ़रवरी 2016
लघुव्यंग्य – आरक्षण
लघुव्यंग्य
– आरक्षण
पिछले
दिनों एक शासकीय संस्था में ‘’आरक्षण : एक राजनैतिक एवं सामाजिक बुराई ‘’विषय पर
संगोष्ठी संपन्न हुई थी |मुख्यातिथि एवं अध्यक्ष जी स्वं आरक्षित कोटे के तहत सेवा
में आए थे |आज सीनियर हो चुके थे | परन्तु उन्होंने आरक्षण की बुराई को लेकर बड़े
तेवरदार भाषण दी थे | अध्यक्ष महोदय ने कार्यक्रम के समापन पूर्व कहा था- ‘’
आरक्षण के कारण योग्यता , बुद्धि जीविता व समाज में बंटवारा हो गया है |
जिसके
कारण एकता की अंदरूनी रूप से बड़ा धक्का लगा है आज लोग एक-दूसरे वर्ग को हीनभावना
से देखते हैं , यदि सामाजिक एकता व वर्ग में एकता का दम-ख़म लाना है तो आरक्षण की
खोदी गई राजनैतिक खाई को पाटकर समतल करना होगा | भाषण समाप्ति के उपरांत कुछ लोगों
ने उपरी मन से व कुछ लोगों ने गहरे मन से तालियाँ बजाकर उनका स्वागत किया था | एक
शाम विनोदजी के घर ( जो कार्यक्रम के अध्यक्ष रह चुके थे ) | चार-पांच लोग बैठे
गोष्ठी की सफलता पर डिस्कस कर रहे थे | तभी विनोदजी बोले – ‘’ गोष्ठी- वोश्थी तो
ठीक है ... मगर शासन ने आरक्षण समाप्त कर दिया तो समझो हमारे पढ़-लिखकर तैयार हुए
बच्चे शासकीय सेवा के लायक नहीं रह जाएंगे |
क्योंकि
हमने उन्हें ऐसे संस्कार दी ही नहीं कि वे गैर आरक्षित वर्ग के लोगों से तुलनात्मक
रूप से संघर्ष कर सकें ...| ‘’ उनकी बातें सुनकर साथ बैठे लोगों को अपनी पाँव तले जमीन
की दृढ़ता का एहसास होते ही चेहरे पर चिंताओं की लकीरे उभरने लगी थी |
सुनील कुमार ‘’सजल’’
रविवार, 21 फ़रवरी 2016
लघुव्यंग्य – गारंटी
लघुव्यंग्य
– गारंटी
‘’ तुम भी
शीला किस बुद्धि की हो ...छोटी-सी नौकरी में लगे लडके को अपनी फूल-सी बिटिया का
हाथ थमाकर ढेर सारा दहेज़ दे बैठी .... और दूसरे लडके नहीं मिल रहे थे क्या |’’
सुनीति ने कहा तो वह बोली –‘’ लडके तो बहुत मिल रहे थे .... पर इसमें बात कुछ और है |’’
‘’ क्या
बात है हमें भी तो बताओ ?’’’
‘’ दामाद
सरकारी नौकर है ... कम से कम रश्मि की रोजगार की गारंटी तो सुरक्षित है |’
‘’ मतलब
|’’
‘’ बात
सीधी-सी है कल दामाद की जिंदगी रही न रही तो रश्मि को अनुकम्पा नौकरी तो मिल जाएगी
...किसी के भरोसे तो जिंदगी नहीं काटनी पड़ेगी उसे ....अब शान्ति बहन की बिटिया
पुनीता के हाल तो मालूम है न पति व्यवसायी था | देहांत हो गया | अब पुनीता के हाल
देख रही हो न ....बच्चे मारे मारे फिर रहे हैं ... और खुद नौकर की भाँती ... कम से
कम अपनी रश्मी तो ....| शीला ने उदाहरण
सहित समझाते हुए कहा |
सुनील कुमार ‘’सजल’’
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