रविवार, 28 अगस्त 2016

लघुव्यंग्य – धंधा

लघुव्यंग्य – धंधा

चमन भाई को अपने धंधे में अचानक काफी नुकसान उठाना पडा |धंधे में लगी साड़ी पूंजी मटियामेट हो गयी |थोड़ा बहुत जो पास में था वह साहूकारों के कर्ज पटाने में चला गया |चमन को कुछ नहीं सूझ रहा था कि वे क्या करें ? घर की माली हालत पर तनाव भरे आंसू बहाते उन्हें जाने क्या सूझा कि वे अपनों से थोड़ा सा कर्ज लेकर अवैध शराब बनवा कर बेचना शुरू कर दिया | इस पर प्रतिक्रया करते हुए उनके एक करीबी मित्र ने उनसे कहा –‘’ यार भई आप तो एक इज्जतदार आदमी हैं अपनी इज्जत को दांव पर लगाते हुए यह क्या अवैध थर्रा बेच रहे है हैं | कम से कम धंधा तो ऐसा करते जिसमें इज्जत की भले ही एक ही रोटी मिलती | यह काम तो ...?’’
‘’भाई अगर यह इज्जतदार लोगों का धंधा नहीं है तो आप जैसे इज्जतदार लोग रोजाना शाम को कल्लू के घर हलक में गिलास दो गिलास वही ठर्रा उदालने क्यों जाते हैं ? कही ?””

   सुनील कुमार ‘’सजल’’


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