लघुकथा- समर्पण
वह छः माह बाद अपने गाँव लौटा था । मजदूरी के चक्कर में पूरे परिवार सहित पलायन कर जबलपुर चला गया था ।
" रमलू कब लौटा ?" किसी ने उससे पूछा ।
" आज ही गुरूजी ।" उसका उत्तर ।
"एक बात पूछ सकता हूँ "। गुरूजी का प्रश्न ।
"क्यों नहीं गुरूजी ।बेशक पूछिए ।"रमलू चहकते हुए बोला ।
"यार तूने परिवार नियोजन अपनाया था । पर कल मैंने देखा तेरी पत्नी फिर भी गर्भ से है ।"
"का करें गुरूजी । बाहर जाने के बाद हम मजदूरों का यही हाल होता है । ज्यादा मजदुरी पाने के चक्कर में ठेकेदार को मेहनत के साथ-साथ अपनी इज्जत भी समर्पित करना पड़ता है ।"
वह छः माह बाद अपने गाँव लौटा था । मजदूरी के चक्कर में पूरे परिवार सहित पलायन कर जबलपुर चला गया था ।
" रमलू कब लौटा ?" किसी ने उससे पूछा ।
" आज ही गुरूजी ।" उसका उत्तर ।
"एक बात पूछ सकता हूँ "। गुरूजी का प्रश्न ।
"क्यों नहीं गुरूजी ।बेशक पूछिए ।"रमलू चहकते हुए बोला ।
"यार तूने परिवार नियोजन अपनाया था । पर कल मैंने देखा तेरी पत्नी फिर भी गर्भ से है ।"
"का करें गुरूजी । बाहर जाने के बाद हम मजदूरों का यही हाल होता है । ज्यादा मजदुरी पाने के चक्कर में ठेकेदार को मेहनत के साथ-साथ अपनी इज्जत भी समर्पित करना पड़ता है ।"
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