व्यंग्य – अपने-अपने गणित
गणित के मामलों में कमजोर रहा हूँ | पढाई के दिनों में गणित मेरे लिए
मेरी बेवफा प्रेमिका सी रही | परीक्षा उत्तीर्ण करने में नक़ल ने अवश्य ही वफादारी
निभायी | कहते हैं न हर पुरुष की सफलता के पीछे स्त्री का हाथ होता है ठीक उसी तरह
|
अब नौकरी में आ गया हूँ |
गणित की जरुरत तो यहाँ भी होती है | पर वह गणित जो मुझे स्कूल के दिनों में रुलाती
थी | जिसके कारण गुरुजनों की ठुकाई पड़ने के उपरांत मेरा शारीरिक आयतन बढ़ाती थी |
यहाँ मात्र आंकड़ों के जोड़-तोड़ से फायदे का हिसाब – किताब हो जाता है | सो यह
जोड़-तोड़ अपने बड़े भाइयों ने मुझे सिखा दिया , जो इस खेल के महान खिलाड़ी हैं | वे
अंतरराष्ट्रीय पदक प्राप्त नहीं रहे परन्तु साहब कि नज़रों में पदक प्राप्त हैं |
यारों, मुझे गणित की
आवश्यकता का रहस्य उस वक्त समझ में आया | मैंने पाठ्यक्रम की गणित के अलावा लोगों
के अपने – अपने ईजाद किए गणित देखे | इस युग में ऐसे ही गणित की सख्त आवश्यकता है
| ऐसा मैंने महसूस किया |
आज गणित का विकास जारी है |
शून्य के ईजाद से लेकर आज तक में अनोखे गणित सामने आये | इस वैज्ञानिकी कार्य में
शालीन से लेकर शातिर खोपाड़ियाँ जुटी हैं |
देश के विकास में गणित का हाथ, विकास के आंकड़ों का
खेलमें गणित का हाथ | भ्रष्टाचार की मिजान बिठा लें, या सत्ता हथियाने प्रपंच रचें
| आवश्यकता गणित की पड़ती है |
खेल प्राधिकरणों का घोटाला
यूँ ही सामने नहीं आ गया | पहले गणित के सहारे घोटाले के अंक बिठाए गए | फिर पोल
खोलने वालों ने आंकड़ों की सेटिंग पर सवाल उठाये | इस तरह गणितीय आंकड़ों ने आंकड़ों की पोल
खोली |
पिछले दिनों एक सर्वे संस्था
ने अपने आंकड़े के आधार पर कहा कि देश के सरकारी स्कूलों का स्तर गिरा है | इसके पहले भी कई सर्वे संस्थाएं यही
कहती रही हैं | हमें तो शक होता है इनकी रपटों
पर | वर्षों से सरकारी स्कूलों को बदनाम करने की साजिश आंकड़ों के सहारे
चलती रही है | फिर भी लोगों की गणित मजबूत होती रही | हमने अपने शिक्षकीय जीवन के
अनुभव में यह पाया , जो हाई स्कूल की परीक्षा में चार साल तक कुलटनी खाए और अंत
में स्कूली जीवन से विरक्ति ले लिया | वे राजनीति में जोड़-तोड़ का गणित बिठाकर ,
भैया जी बन गए | आज वे भ्रष्टाचार , कमीशनखोरी ,घोटाले,ठगी,गबन की गणित में अच्छे –अच्छे
गणितज्ञों को पानी पिला रहे हैं |उन्हें कोई चैलेन्ज कर यह नहीं कह सकता कि वे
गणित के मामलों में पहले कभी फिसड्डी रहें हैं |
हमारे पड़ोसी रामलाल सट्टे के महान खिलाड़ी हैं | वे कहते हैं – ‘’ लोग
सट्टेबाजी में बरबाद होते हैं | हम आबाद हुए हैं | हमारे खुला खर्च करने का जो
गणित है न वह सट्टे से प्राप्त लाभ है
|’’ वे तिर्यक ,सीधे,आड़े,त्रिभुजीय व् चतुर्भुजीय
तरीके से ‘’ सट्टा अंक चार्ट ‘ से ऐसा अंक निकालते हैं | अच्छे –अच्छे सट्टेबाज व्
सटोरिये दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं | प्रतिदिन वे चुकारा ( भुगतान) लेते हैं
|
एक दिन तो सटोरिये ने कह
दिया –‘’ गुरुदेव, अब हम आपकी अंक जोड़ी नहीं लेंगे | अब खुद तो लगाते हो , औरो का
भी भला करते हो | साब आपके इस हितार्थ से
हम नंगे हुए जा रहे हैं | कृपया यह नैतिकता न अपनायें | कहते हैं जो जिस क्षेत्र
में भीड़ कर कार्य करता है, उसमें लाभ का मक्खन निकालने का ट्रिक्स भी सीख जाता है
| साब हमारे सरपंच जी के पास पन्द्रहवां हिस्सा पहुंचता है | ( ऐसा नेता कह गए | )
अब .. सरपंच जी क्या करें | पन्द्रहवें हिस्से में से वे कैसे खाते कैसे विकास
दिखाते | सो उन्होंने कागजों में विकास का गणितीय स्वरूप चतुर अफसरों से सीख लिया
| अब पन्द्रहवें हिस्से में भी फायदे का ‘’ कमीशन’’ सेट कर लेते हैं | और जनता ?
विकास के सपने में खोयी विकासीय गणित के अंकों को समेत रही हैं |
इधर पड़ोसन भाभी जी का गृहस्थ गणित अलग तरह का है | उसमें उसने शुरू
से ही कंजूसी का फार्मूला एड कर रखा है | जिससे जिससे उनकी गृहस्थी के विकास का ग्राफ ऊपर चढ़ता रहा है |
भाभीजी का फार्मूला है ‘’ खाना उतना ही
बनेगा जितना आम दिनों का औसत है | किसी दिन मेहमान आने की स्थिति में भूखा रहने की
नौबत आयी तो रहना पडेगा | इस’ बचत चक्र ‘ के गणित से भय खाकर उनके घर में मेहमानों के पधारने का गणित बेहद कमजोर
है |
आज हम दुखी हैं | कैसे भी हो हमें गणित में पारंगत होना था | काश गणित
के खिलाड़ी होते तो हम भी आंकड़ेबाजी के बादशाह होते हैं | यूँ ही हमें प्रजा की भाँती ‘ जी हूजूरी’ न करना पड़ता |
सुनील कुमार ‘सजल’’