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शनिवार, 30 मई 2015

व्यंग्य – अपने-अपने गणित


व्यंग्य – अपने-अपने गणित


गणित के मामलों में कमजोर रहा हूँ | पढाई के दिनों में गणित मेरे लिए मेरी बेवफा प्रेमिका सी रही | परीक्षा उत्तीर्ण करने में नक़ल ने अवश्य ही वफादारी निभायी | कहते हैं न हर पुरुष की सफलता के पीछे स्त्री का हाथ होता है ठीक उसी तरह |
  अब नौकरी में आ गया हूँ | गणित की जरुरत तो यहाँ भी होती है | पर वह गणित जो मुझे स्कूल के दिनों में रुलाती थी | जिसके कारण गुरुजनों की ठुकाई पड़ने के उपरांत मेरा शारीरिक आयतन बढ़ाती थी | यहाँ मात्र आंकड़ों के जोड़-तोड़ से फायदे का हिसाब – किताब हो जाता है | सो यह जोड़-तोड़ अपने बड़े भाइयों ने मुझे सिखा दिया , जो इस खेल के महान खिलाड़ी हैं | वे अंतरराष्ट्रीय पदक प्राप्त नहीं रहे परन्तु साहब कि नज़रों में पदक प्राप्त हैं |
  यारों, मुझे गणित की आवश्यकता का रहस्य उस वक्त समझ में आया | मैंने पाठ्यक्रम की गणित के अलावा लोगों के अपने – अपने ईजाद किए गणित देखे | इस युग में ऐसे ही गणित की सख्त आवश्यकता है | ऐसा मैंने महसूस किया |
   आज गणित का विकास जारी है | शून्य के ईजाद से लेकर आज तक में अनोखे गणित सामने आये | इस वैज्ञानिकी कार्य में शालीन से लेकर शातिर खोपाड़ियाँ जुटी हैं |
 देश के विकास में गणित का हाथ, विकास के आंकड़ों का खेलमें गणित का हाथ | भ्रष्टाचार की मिजान बिठा लें, या सत्ता हथियाने प्रपंच रचें | आवश्यकता गणित की पड़ती है |
  खेल प्राधिकरणों का घोटाला यूँ ही सामने नहीं आ गया | पहले गणित के सहारे घोटाले के अंक बिठाए गए | फिर पोल खोलने वालों ने आंकड़ों की सेटिंग पर सवाल  उठाये | इस तरह गणितीय आंकड़ों ने आंकड़ों की पोल खोली |
  पिछले दिनों एक सर्वे संस्था ने अपने आंकड़े के आधार पर कहा कि देश के सरकारी स्कूलों का स्तर  गिरा है | इसके पहले भी कई सर्वे संस्थाएं यही कहती रही हैं | हमें तो शक होता है इनकी रपटों  पर | वर्षों से सरकारी स्कूलों को बदनाम करने की साजिश आंकड़ों के सहारे चलती रही है | फिर भी लोगों की गणित मजबूत होती रही | हमने अपने शिक्षकीय जीवन के अनुभव में यह पाया , जो हाई स्कूल की परीक्षा में चार साल तक कुलटनी खाए और अंत में स्कूली जीवन से विरक्ति ले लिया | वे राजनीति में जोड़-तोड़ का गणित बिठाकर , भैया जी बन गए | आज वे भ्रष्टाचार , कमीशनखोरी ,घोटाले,ठगी,गबन की गणित में अच्छे –अच्छे गणितज्ञों को पानी पिला रहे हैं |उन्हें कोई चैलेन्ज कर यह नहीं कह सकता कि वे गणित के मामलों में पहले कभी फिसड्डी रहें हैं |
हमारे पड़ोसी रामलाल सट्टे के महान खिलाड़ी हैं | वे कहते हैं – ‘’ लोग सट्टेबाजी में बरबाद होते हैं | हम आबाद हुए हैं | हमारे खुला खर्च करने का जो गणित है न वह सट्टे से  प्राप्त लाभ है |’’  वे तिर्यक ,सीधे,आड़े,त्रिभुजीय व् चतुर्भुजीय तरीके से ‘’ सट्टा अंक चार्ट ‘ से ऐसा अंक निकालते हैं | अच्छे –अच्छे सट्टेबाज व् सटोरिये दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं | प्रतिदिन वे चुकारा ( भुगतान) लेते हैं |
  एक दिन तो सटोरिये ने कह दिया –‘’ गुरुदेव, अब हम आपकी अंक जोड़ी नहीं लेंगे | अब खुद तो लगाते हो , औरो का भी भला करते हो | साब आपके  इस हितार्थ से हम नंगे हुए जा रहे हैं | कृपया यह नैतिकता न अपनायें | कहते हैं जो जिस क्षेत्र में भीड़ कर कार्य करता है, उसमें लाभ का मक्खन निकालने का ट्रिक्स भी सीख जाता है | साब हमारे सरपंच जी के पास पन्द्रहवां हिस्सा पहुंचता है | ( ऐसा नेता कह गए | ) अब .. सरपंच जी क्या करें | पन्द्रहवें हिस्से में से वे कैसे खाते कैसे विकास दिखाते | सो उन्होंने कागजों में विकास का गणितीय स्वरूप चतुर अफसरों से सीख लिया | अब पन्द्रहवें हिस्से में भी फायदे का ‘’ कमीशन’’ सेट कर लेते हैं | और जनता ? विकास के सपने में खोयी विकासीय गणित के अंकों को समेत रही हैं |
  इधर पड़ोसन भाभी जी  का गृहस्थ गणित अलग तरह का है | उसमें उसने शुरू से ही कंजूसी का फार्मूला एड कर रखा है | जिससे जिससे उनकी  गृहस्थी के विकास का ग्राफ ऊपर चढ़ता रहा है | भाभीजी  का फार्मूला है ‘’ खाना उतना ही बनेगा जितना आम दिनों का औसत है | किसी दिन मेहमान आने की स्थिति में भूखा रहने की नौबत आयी तो रहना पडेगा | इस’ बचत चक्र ‘ के गणित से भय खाकर उनके  घर में मेहमानों के पधारने का गणित बेहद कमजोर है |
आज हम दुखी हैं | कैसे भी हो हमें गणित में पारंगत होना था | काश गणित के खिलाड़ी होते तो हम भी आंकड़ेबाजी के बादशाह होते हैं | यूँ ही हमें प्रजा  की भाँती ‘ जी हूजूरी’ न करना पड़ता |
           सुनील कुमार ‘सजल’’