लघुव्यंग्य- गधापन
चलते-चलते मैं रुक गया | मैंने देखा कि एक गधा सड़क
किनारे मरा पड़ा है |उसका एक साथी गधा गर्दन झुकाए उसके शव के पास खड़ा है | पास से
गुजरने वाले लोग यह दृश्य देखकर हंसते हुए नहीं रहते | मुझे हँसी नहीं आती |
दोपहर को लौटते हुए मैं पुन: वहां से गुजरा तो देखा
वह गधा अब भी उस मरे गधे के पास सुबह वाली मुद्रा में खडा है , मैं फिर रुक गया | तभी अचानक मेरा ध्यान उन दो
आदमियों की ओर गया , जो आसपास से बेखबर साइकिलों पर सवार र्होकर जा रहे थे |
उनमें से एक आदमी दूसरे को कह रहा था ,’’ तुम तो बिलकुल गधे हो | भला इतनी देर
पांडे के घर रुकने की क्या जरुरत थी ? तुम वहां उसके भाई की मातमपुर्सी करने गए थे
या कुम्भ स्नान करने ?’’
सुनील
कुमार ‘’सजल’’