व्यंग्य –सरकारी
अस्पताल में नववर्ष
सरकारी
अस्पताल में नववर्ष आगमन का जोशो-जूनून है | अस्पताल का प्रतेक कर्मचारी रोगियों
को शीघ्र स्वस्थ होने की बधाई नहीं बल्कि अपने सहकर्मी मित्रो को अपने बदनुमा दाग
कारनामों में सफल रहने की नववर्ष की बधाई देने की तैयारी में हैं |
अस्पताल
की व्यवस्थाएं शराब पीये शराबी की तरह लड़खड़ा रही है | मगर रोगीगण मुंह खोलने की
हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं | इसका कारण यह रहा है कि पिछले माह जब लोगो का मुंह
खुला था तो अस्पताल का स्टॉप हड़ताल में चला गया था | नतीजा , इस बीच कई रोगियों ने
या तो घिसटते हुए दिन काटे या फिर कुछ ने स्वर्ग का रास्ता पकड़ लिया |
हम उस
दिन अस्पताल में मौजूद थे | अपने एक सगे सम्बन्धी को इलाज कराने हेतु ले गए थे |
इस बीच हमें अस्पताल घूमने का अवसर प्राप्त हुआ और इस अवसर से जो दृश्य देखने को
मिले वहकाबिल्र तारीफ़ है | क्योंकि नववर्ष आगमन में चंद घंटे ही तो शेष हैं |
आईये , सबसे पहले बाह्य रोगी कक्ष में चलें |
लम्बी कतार में लगी टेबिल कुर्सी पर डॉक्टर विराजमान हैं | सबके चहरे पर नववर्ष की
ख़ुशी अलग ही खिल रही है जैसे कीचड़ में कमल खिलकर मुसकाता है | इस बीच रोगी भी अपना
इलाज करवा रहे हैं | चंद चित्र आप भी देखिए|
डॉक्टर
रोगी से –‘’ हां क्या हुआ ?’’
रोगी-‘’
डॉक्टर साब , सर में , हाथपांव में दर्द है ‘’ रोगी अपनी पीड़ा बता रहा है | डॉक्टर
अपनी सहयोगी डॉ. शर्मा से – ‘’ हां तो मदम आप नववर्ष पर पिकनिक मनाने कहाँ जा रही
हैं |’’
मरीज की
बात अनसुनी करते हुए डाक्टर साब पर्ची पर कलम चलाते हुए दवा लिख रहे हैं | बातचीत
डॉ. शर्मा से जारी है | अंत में –‘’ दवा ले लेना , खा लेना | मरीज आश्चर्य में है
, उसे डाक्टर ने न नजर भर देखा , न छूकर | इलाज लिख दिया | पर बेचारा क्या बोले |
ज्यादा बोलता है तो क्जिदकी मिलेगी | कारण कियह सरकारी अस्पताल है | प्राइवेट
अस्पताल थोड़ी न है जहां फीस वसूल कर घोड़े को पुचकारने के तर्ज पर पुचकारा जाता है
इसी तरह की कुछ मिलती-जुलती हरकत डॉ. शालिनी ,
डॉ सुदेश , डॉरीना भी कर रही हैं | डॉक्टरों के बीच ‘ नववर्ष कैसे बेहतर मनाएं ‘
नामक विषय को लेकर गहन चर्चा चल रही है | कुछ सूना – कुछ नहीं सूना के बीच इलाज
करने का क्रम भी | दवा कक्ष भी नववर्ष की ख़ुशी में भीगा जा रहा है | कर्मचारी आपसी
चर्चा में इतने मशगूल हैं कि दवा देकर आगे मरीज से बात करना उन्हें बुरा लग रहा है
|
एक मरीज दवा मिलने के बाद बोला- ‘’ साब दवाई
कौन-कौन से समय पर खाना है ? कम्पाउंडर अपने सहकर्मी से बातचीत करते हुए मरीज
बोला- ‘’ दो दिन की दवा है | कुल खुराक में दो का भाग देकर जो भागफल प्राप्त हो
उतने में एक समय में जीतनी खुराक आए , खा लेना |’’
‘’
साफ़-साफ़ बताइये न , साब |’’
‘’ अनपढ़
हो का ? साक्षरता के मामले में अपना जिला नंबर वन पर है , इतनी सी बात नहीं समझ
सके | नाक कटवाओगे का ?’’
रोगी
बुदबुदाता हुआ, बहस किये बगैर आगे बढ़ गया | अभी कुछ और मरीजों को दवा वितरकों के
साथ बहस सुनाई दे रही थी |
इस समय
पर हम इंजेक्शन कक्ष में थे | तीन नर्से वहां मौजूद थी |
एक- ‘’
और न्यू इयर किस प्रकार सेलिब्रेट करने जा रही हो दीदी ?’’
दूसरी – ‘’
मैं तो गहने खरीदूगीं और पहनूगीं |’
तीसरी- ‘’
मरीज के इंजेक्शन लगाने जा रही नर्स से कहती है –‘’ देख पर्ची पढ़कर ही इंजेक्शन
लगा रही है न ? वरना दादा का न्यू इयर की जगह लास्ट इयर हो जाएगा |’
‘’ हां
,हां दीदी .... और इनके बूढ़े शारीर में वैसे भी एक सौ एक प्रकार के मर्ज होगें |
अगर दूसरा इंजेक्शन लग भी गया तो उससे कोई दूसरा रोग ठीक हो जाएगा | क्यों दादा ,
ठीक कहा न ?’’
बूढा
देहाती मरीज अकबक होकर उनका मुंह देखता रह जाता है | चर्चा जारी है नववर्ष को लेकर
| इंजेक्शन लगनेका काम भी जारी रहता है | लापरवाही भी चालू आहे |
मलेरिया स्लाइड जांच कक्ष या पैथोलाजी कक्ष में
एक टेक्नीशियन अपने साथी को समझा रहा है –‘’ अबे इतना ईमानदार बनाकर कब तक
स्लाइडों पर आँख गडाता रहेगा | अगर ऐसा करने बैठा न तो समझ ले | कल तक तेरा काम
पूरा नहीं होने वाला | एक काम कर | अलग कर माइक्रोस्कोप | जितने नाम की स्लाइडें
आयी है उनके नाम के आगे सबको पीवीटी लिखाकर इतिश्री का काम कर | कल नववर्ष पर ‘’
तरच डेम ‘’ जाना है कि नहीं ? सहकर्मी समझदार है | वह उसकी बात को अच्छी तरह समझ
गया | मुस्काता हुआ रजिस्टर में जानकारी फिलअप करने में जुट जाता है |
आंतरिक
रोगी कक्ष के मरीज डॉक्टर साब राउंड पर आए तो अपना दर्द बताये | बड़े इन्तजार के
बाद डॉक्टर साब कक्ष में पधारते हैं | रोगियों के चहरे खिलते हैं | वे उनसे कुछ
कहने की मुद्रा में सावधान होते हैं | पर डॉक्टर साब उन तक पहुँचाने के पहले वार्ड
ड्यूटी में तैनात नर्स को हिदायत देने के बाद कहते हैं – मिस शर्मा मैं कान्हा
नॅशनल पार्क जा रहा हूँ | कल नववर्ष है इसलिए परसों तक वापस हो सकूंगा |’’ इस बीच
वे नर्स को कुछ और समझा कर विदा हो जाते हैं | मरीज उन्हें ताकते रह जाते हैं | अब
पूरा वार्ड खुर्राट नर्स के कब्जे में है | उसका रोल मरीजों से किसी आतंकवादी से
कम नहीं है | बात –बात पर डांट-फटकार,चिड़चिड़ाहट और ज्यादा हुआ तो गाली भी | ‘’ जी
हां यह सरकारी अस्पताल है | यहाँ मुंह बंद कर रहने में भला है | ऐसा भुक्तभोगी
मरीज कहते हैं |
इस तरह
अलग-अलग वार्ड में अलग-अलग तरीके से नववर्ष की ख़ुशी व्याप्त है |एक मरीज हैं जो
ख़ुशी को भूल शारीर की चिंता में .... बिमारी की चिंता में घुले जा रहे हैं |
सुनील कुमार ‘’सजल’’