व्यंग्य- नववर्ष की शुभकामना पार्टी
नववर्ष आने की खुशी अलग होती है | सब एक दूजे
को बधाई देते नजर आते हैं | तरह-तरह की शुभकामनाएं | तरह-तरह से शब्दों का संयोजन
|
साब, शुभकामनाएं देने में क्या हर्ज है | अब
सामने वाले के साथ कितना शुभ होता है वे जाने | दे दो, जैसी चाहो वैसी दे दो | यार
, मुंह में जीभ ही तो पटकनी है | आखिर घंटों गप्पबाजी या बहस में भी तो जीभ पटकते
हैं | दो शब्दों के बोल से प्रेम उमड़े तो क्या बुराई | वैसे शुभकामना ख़ास पर्व पर
देने के लिए ही नहीं होती | बल्कि अपना उल्लू सीधा करना हो तो भी दी जा सकती है |
जो न पते , उसे उसके कार्य के प्रति शुभकामना देकर पटाओ | जो आकडे उसे , शुभकामना
देकर झुकाओ |
सेठ रामदयाल किराना वाले अपने ग्राहकों को प्रत्येक
बड़े पर्व पर शुभकामना पत्र भेजकर पटाए रखते हैं | ताकि महँगा बेचकर ग्राहक न बिदके
|
अपन तो मोबाइल से एस.एम्.एस. भेजते हैं |
शुभकामना देने का ये अपना अर्थशास्त्र है |सस्ते में ज्यादा लोगो को सन्देश भेजते
हैं |मंहगाई का दौर है | शुभकामना पात्र वै९से भी महंगे हैं | एक कार्ड के खर्च पर
दर्जन भर से ज्यादा लोगो को निपटाओ | ठीक हैं न , यह अपना बचत का फंदा |
साब, अबकी बार अपने कंजूस सरपंच जी बेहद खुश
हैं | यूं तो वे कंजूस के बाप हैं | नेतागिरी के पूरे गुण हैं उनमें |यानी दूसरों
की जेब का खाओ , अपनी को हाथ न लगाओ |इसी नीति के आधार पर वे राजनीति करते हैं |
पर इस बार नामालूम क्यों उनमें इतनी दिलेरी आ गयी | कल कह रहे थे –‘’ मास्टरों ,
अबके नववर्ष पर हम आपको पार्टी देंगे |’’
उनका ये एलान हमें शंका से भर दिया | बात –
बात पर स्कूल में आकर सरपंची झाड़ने वाला इस बार अपनी जेब ढीली करने को कैसे सोच
लिया ? हम लोगों के मन में उपजा खतरनाक प्रश्न था | कहीं कोई चाल तो नहीं चल रहा ?
या फिर मनारेगा के कार्य में मुरदों के नाम राशि डकार लिया हो | और उस राशि से
हमें खिलाकर अपने पाप का क्रियाकर्म करना चाह रहा हो | वैसे भी उसने जो गाँव में
खेल-मैदान तैयार करवाया है |उसकी पोल ज़रा सी बरसात खोल देती है |
ये
भी हो सकता है , इन दिनों उनके घपलों की खबर हर जुबान पर है | पेंशन योजना , तालाब
निर्माण , सड़क निर्माण व भवन निर्माण में जो वारा न्यारा किया है | वह तो कई
अखबारों में छाप चुका है | हो सकता ग्राम के आंतरिक विरोध से बचने के लिए हम जैसे
मास्टर यानी निरीह प्राणी बनाम बुद्धिजीवीयों का समर्थन चाह रहे हों | ताकि हम
उनका नमक खाकर नमक हलाल बने | उनकी जय-जयकार करते नजर आयें | काहे कि आज भी गाँव
में शिक्षकों का सम्मान पचास परसेंट तो बरकरार है ही |
तो साब , नववर्ष का प्रथम दिवस निकट है |
हमारे स्कूल के सभी टीचर्स खुश हैं | इस बार सरपंच मेहरबान है | वे सुबह संस्था
में आए थे – ‘’ यारों इस बार पार्टी अच्छी होगी | इसलिए रूपरेखा आप लोग तैयार करो
| खर्च हम करेंगे |’’
‘’ पार्टी सिर्फ शिक्षकों के लिए ...या फिर
बच्चे भी उसमें ...| ‘’ शिक्षक मित्र ने कहा |
‘’ बच्चों को... |’’ वे अटकते हुए बोले | फिर
बोले –‘’ चलो कहते हो तो एक-एक रुपये वाली सोंनपपड़ी उन्हें भी बंटवा देंगे |’’
इस बार उनका स्वर एहसान में डूब कर पूर्ण
गर्व से निकला था | थोड़ी देर चुप्पी | फिर इधर –उधर की बात | इसी बीच सरपंच बोले- ‘’
कही , खाने – पीने में क्या आयटम रखे जाएँ |’’
बीच में एक शिक्षक ने होटल की मंहगी मिठाई के
नाम गिनाये तो वे हँसे |बोले-‘’ क्या मिठाई पर चीते की तरह टूटे जा रहे हो | कुछ
अच्छा सुझाव | ताकि पार्टी रंगीन हो जाए |’’
‘’ पार्टी रंगीन बनाने के उपाय तो शर्मा सर
ही बता सकते हैं | हमने कहा |
‘’ हम क्या बताएं | अपन ठहरे छोटी तनख्वाह
बनाम औकात वाले आदमी |उसी के अन्दर बता सकते हैं |’’ शर्मा जी बोले |
‘’ यार आप अपनी औकात नहीं , बल्कि हमारी
देखकर बताओ |’’ सरपंचजी बीच में टप से बोले | इसी बीच शर्मा जी क्या सूझा | बोल
पड़े ‘’ खीर पूरी |’’
‘’ यार पंडित तुम मर कर भी नहीं सुधारे | ज़माना
बीत गया खीर-पूरी दही-पेड़ा खाते | फिर भी नहीं अघाये |’’ सरपंच जी ने उनकी बात
काटकर मुंह बनाते हुए कहा |
‘’ अच्छा , सरपंचजी , आप ही सुझाएँ |’’ अन्य
शिक्षक ने कहा |
‘’ ‘’यार हमारी इच्छा है | दारू-मुर्गा की
पार्टी रख ली जाए | देशी मुर्गे मंगवाए हैं हमने | उलटे पंख वाले |’’ सरपंच जी ने
मुर्गे की विशेषता के साथ अपना प्रस्ताव रखा |
हम साब अकबक होकर एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे
| यह क्या , आए दिन स्कूल में नशे के खिलाफ सरपंच भाषण झाड़ता है |स्कूल में
तम्बाकू – सिगरेट का नशा लेना दूभर हो गया है | पके फोड़े की चिलकन – सी तलब को
कलेजे में दबाए रखना पड़ता है स्कूल में | पिछले बरस दारू पीकर स्कूल में आए यादव
मास्साब की ऊपर शिकायत कर इसी सरपंच ने सस्पेण्ड करवाया था | और आज खुद हम लोगों
से...| पट्ठा कहीं किसी षडयंत्र का खलनायक तो नहीं बन रहा है ‘’|
‘’ अरे भाई घबराओ नहीं |’ सरपंच जी ने शायद
हमारे चेहरों को पढ़ लिया था | मुसकाते हुए कह रहे थे –‘’ हम किसी से शिकायत नहीं
करेंगे | न गाँव वालों को हवा लगाने देंगे | जो भी होगा गुपचुप होगा | नववर्ष में
यह सब चलता है | इससे दिमागी टेंशन व आपसी बुराईयाँ दूर होती हैं | नौकरी के समय
नौकरी , दोस्ती के समय दोस्ती भली लगाती है तो क्यों न सारे ग़मों को भूलकर ऐश करें
|’’
साब जो होगा देखा जाएगा | और जो होता है भले
के लिए होता है के दर्शन के साथ हमने सरपंच जी के हाँ में हाँ मिला दी है |
अब देखते आज नववर्ष का प्रथम दिवस है | सरपंच जी की शुभकामना पार्टी में
कितना ऐश कर पाते हैं | फिलहाल ख़ुशी का माहौल है |
सुनील कुमार ‘’सजल’’
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