लघुव्यंग्य
– पैसा
बिजली
संकट चल रहा था |पत्नी कई दिनी से जिद कर रही थी
| इनवर्टर खरीद लाओ | लेकिन ठंडी
सिकुड़ी जेब के कारण हर माह मिलाने वाले वेतन के दौर में भी मैं सोच कर रह
जाता |
एक दिन
पत्नी मुझसे से कहा-‘’ बाबूजी के लिए हर माह सात-आठ रुपये की दवाएं तो आती होगीं
|’’
‘’हाँ
क्यों नहीं |’’
‘यहाँ कि
दुकानों में नकली दवाएं तो मिलाती होंगी |’’
‘’
हाँ...क्यों नहीं वह तो पूरे देश में बिक रहीं हैं | मगर यह सब क्यों पूंछ रही हो
?’’
‘’ मैं
सोच रही थी .. इनवर्टर किस्तों में उठा लेते और बाबूजी के लिए उतनी नकाक्ली दवाएं
ला दिया करते उनसे जो पैसे बचते उससे इनवर्टर की क़िस्त जमा हो जाती और बाबू जी को
हर माह दवा मिलाने की सांत्वना रहती |हमें इनवर्टर पाने की ख़ुशी ....|’’
सुनील कुमार ‘सजल’’