व्यंग्य- किसान रोज मरता है.....
किसान रोज मरता है | किस्तों वालों मौत | कभी
प्राकृतिक आपदा से, कर्ज से, शासन-प्रशासन की अनदेखी से |
हाल की खबरें हैं-किसान मर रहे हैं रोजाना |
सब को पता है | गाँव से राजधानी तक गूँज किसानों की मौत की | मीडिया की मुख्य
खबरें |बहस , समाचारों के लंबे कार्यक्रम |किसान मर रहे हैं और सरकार ध्यान नहीं
दे रही | तरह –तरह की बयानबाजियां | पक्ष-
विपक्ष बयानबाजियों से एक दूसरे की खिचाई करने में व्यस्त | राजनेता सत्ता व
राजनीति का मरहम लिए किसान के दरवाजे पर घडियाली आंसू की धार बहाते नजर आरहे हैं |
राजनीती में बयानबाजियों का दौर चालू है
|बयान भी ऐसे खम्बा नोचने वाले बिल्ली की तरह | ‘’कई दिनों
से बीमार था हल्कू , | दरअसल इसलिए आत्महत्या कर लिया | सरकार इसकी जांच करा रही
है |
सरकार हमेशा जांच कराती है मौत पर जिसकी रपट
कम से कम दो से तीन माह में आती है | जब तक दो चार किसान और आत्महत्या कर सरकार के
लिए जांच का अवसर गढ़ देते हैं |
‘’ यार फसल बर्बाद होने से मरा था न हल्कू |
कर्ज का कित्ता बोझ था उस पर | मगर यार पानी तो बरसा था | फिर .. आत्महत्या ?
शंकाएं , उलटे-सीधे सोच,बुजदिली की संज्ञा देते लोग ,किसान की मौत पर | अपनी मौत से भयानक मौत बयानों के फंदे में उलझ
कर मर रहे हैं किसान |
सरकार कहती है चिन्ता न करें किसान |वह उसके
साथ है | जितनी बड़ी हो सकेगी ,उतनी बड़ी सहायता देगी सरकार | मगर कब ? यह सरकार को
खुद पता नहीं | आदेशों की लाइने रोजाना छप रही हैं कागजों पर | आदेश दौड़ रहे हैं
पूरी गति से राजधानी से होते हुए कलेक्टर,तहसीलदार से होते हुए पटवारी तक | फसल के
नुकसान का आकलन करवा रही है सरकार |पटवारी के जिम्मे है फसल आकलन का काम | पटवारी
है कि चतुर प्राणी है राजस्व तंत्र का |गाँव की राजस्व सत्ता उसके हाथ में |
जमीन-जायदाद गाँव में उसकी चलती है |वह कब किसके बाप को भूमि के पट्टे में दूसरे
का बाप बना दे |और असली बाप का बेटा हाथ मलता रह जाए |
किसान पटवारी के दरवाजे में निरीह प्राणी की
तरह खडा है | हाथ जोड़कर – ‘’ पटवारी साब , हमारी बरबाद फसल का तनिक ऐसी रपट देना
मालिक कि अच्छा मुआवजा बन जाए |’’
‘’यार , तुम लोग का पटवारी को खेत में लगी
मूली समझ रखे हो | पटवारी को ऐसे सिखा रहे हो जैसे वह कुछ जानता ही नहीं | हमें
खुदई पता है ,तुम्हारे खेत में कित्ती फसल लगी थी और कित्ती खराब हुई है |समझे |’’ पटवारी पूरे साहबी अंदाज में बोला
|
‘’ का है कि पटवारी साब आपकी कलम में खूब
ताकत है , अगर आप अच्छा लिख दोगे तो अच्छा मुआवजा मिल जाएगा | पूरा नहीं तो कुछ तो
खाद बीज का कर्जा उतर जाएगा |’’
‘’ यार देखो हमारा दिमाग मत खाओ | का हम
सरकार से गद्दारी करे , तुम्हारे कारण | तुम लोग बस अपना उल्लू सीधा करना चाहते हो
| ये नहीं जानते कि सरकार कहाँ से मुआवजा की व्यवस्था करेगी | और तुम्हे देगी |
तनिक सरकार की तरफ भी सोचो |’’
‘’ सरकार हम अपनी मारी किससे कहें | हमने जो
सरकारी बीज ख़रीदे थे मालिक उनमें सही अंकुरण नहीं हुआ |ऊपर से सूखा पड़ गया |’’
‘’यार तुम लोग न बस सरकार के भरोसे जीते हो |
खेती का करते हो खाद, पानी बिजली सब सरकार दे |ऊपर से फसल खराब हो गयी तो मुआवजा भी
|तुम्हारे खीसा (जेब) में इतनी भी पूँजी नहीं है ..|’’
‘’ मालिक का बताएं ... कित्ते जतन से फसल
उगाये थे , | मगर फसल नई आयी | मालिक कृपा कर तनिक हमारे मुआवजे के लाने सोच लो
मालिक ...|’’
‘’ अब तुम कहते हो तो सोच लेते हैं | मगर ये
बताओ अपनी अंटी में कुछ रख के लाए हो ...|
‘’का मालिक ?’’
‘’अब इत्ता भी नहीं मालूम...पटवारी साहब से मिलने पर क्या लाना पड़ता है |’’
‘’ खाता – बही मालिक ...|’’
‘ अरे यार ,.. तुम लोग न भोलू चंद हो
...खर्चा पानी .. समझे |’’
‘’ मालिक मुआवजा मिल जाने दो ... या फिर थोड़ी
बहुत जो फसल है बिक जाने दो हम खुद दे देंगे | उसकी चिन्ता मत करो मालिक ....आप तो
हमारी सरकार हैं |’’
‘’ तुम लोग न जैसे खेती-बाड़ी उधारी में माल
बटोर कर लेते हो न वैसई सरकारी काम को भी समझ लेते हो .....भैया सरकारी काम कोई बनिया की
दुकान नहीं है |जब ईच्छा हुई मांग लाये उधारी |जाओ पहले व्यवस्था करो | फिर आना |
जैसा तुम्हारा दिया खर्चा , वैसा बनेगी तुम्हारी सूखी फसल की रपट | समझे भोलू ...|
किसान क्या समझे | उसकी समझ में यह नहीं आ रहा है कि सरकार उसके साथ है या
उसके घूसखोर कर्मचारी | हताश है बेचारा किसान | क्या बेच दे , क्या नहीं ..और पटवारी साब को खुश करे
| बेचारा न घर की इज्ज़त बेच सकता और न ही कर्ज में फंसी जमीन | बेचारे के पास
हताशा से बचने का और रास्ता ही क्या है ....यह तो आप अखबारों की सुर्ख़ियों में पढ़
रहे हैं |
सरकार भले ही अपने विज्ञापन में कह रही है –‘’
खुशहाल किसान ,खुशहाल देश |मगर कौन खुश है यह तो आपको भी पता है और सरकार को भी
....|फिर भी बहस जारी किसान की किस्तों वाली मौत पर , सरकार किसानो के साथ है |
सुनील कुमार ‘’सजल’’