किसान लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
किसान लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 11 फ़रवरी 2018

लघुकथा -संतुष्ट सोच

लघुकथा - संतुष्ट सोच 
नगर के करीब ही सड़क से सटे पेड़ पर एक व्यक्ति की लटकती लाश मिली । देखने वालों की भीड़ लग गयी ।लोगों की जुबान पर तर्कों का सिलसिला शुरू हो गया ।
किसी ने कहा-"लगता है साला प्यार- व्यार  के चक्कर में लटक गया ।"
"मुझे तो गरीब दिखता है ।आर्थिक परेशानी के चलते....।" 
"किसी ने मारकर  लटका दिया ,लगता है ।"
"अरे यार कहाँ की बकवास में लगे हो ।किसान होगा ।कर्ज के बोझ से परेशान होकर लगा लिया फांसी ..।अखबारों में नहीं पढते क्या ...आजकल यही लोग ज्यादातर आत्महत्या कर रहे हैं ।"
भीड़ में खड़े एक शख्स ने एक ही तर्क से सबको संतुष्ट कर दिया ।
-सुनील कुमार "सजल"

सोमवार, 9 नवंबर 2015

व्यंग्य- किसान रोज मरता है.....

व्यंग्य- किसान रोज मरता है.....


किसान रोज मरता है | किस्तों वालों मौत | कभी प्राकृतिक आपदा से, कर्ज से, शासन-प्रशासन की अनदेखी से |
हाल की खबरें हैं-किसान मर रहे हैं रोजाना | सब को पता है | गाँव से राजधानी तक गूँज किसानों की मौत की | मीडिया की मुख्य खबरें |बहस , समाचारों के लंबे कार्यक्रम |किसान मर रहे हैं और सरकार ध्यान नहीं दे रही | तरह –तरह की बयानबाजियां  | पक्ष- विपक्ष बयानबाजियों से एक दूसरे की खिचाई करने में व्यस्त | राजनेता सत्ता व राजनीति का मरहम लिए किसान के दरवाजे पर घडियाली आंसू की धार बहाते नजर आरहे हैं |
 राजनीती में बयानबाजियों का दौर चालू है |बयान  भी ऐसे  खम्बा नोचने वाले बिल्ली की तरह | ‘’कई दिनों से बीमार था हल्कू , | दरअसल इसलिए आत्महत्या कर लिया | सरकार इसकी जांच करा रही है |
सरकार हमेशा जांच कराती है मौत पर जिसकी रपट कम से कम दो से तीन माह में आती है | जब तक दो चार किसान और आत्महत्या कर सरकार के लिए जांच का अवसर गढ़ देते हैं |
‘’ यार फसल बर्बाद होने से मरा था न हल्कू | कर्ज का कित्ता बोझ था उस पर | मगर यार पानी तो बरसा था | फिर .. आत्महत्या ? शंकाएं , उलटे-सीधे सोच,बुजदिली की संज्ञा देते लोग ,किसान की मौत पर |  अपनी मौत से भयानक मौत बयानों के फंदे में उलझ कर मर रहे हैं किसान |
सरकार कहती है चिन्ता न करें किसान |वह उसके साथ है | जितनी बड़ी हो सकेगी ,उतनी बड़ी सहायता देगी सरकार | मगर कब ? यह सरकार को खुद पता नहीं | आदेशों की लाइने रोजाना छप रही हैं कागजों पर | आदेश दौड़ रहे हैं पूरी गति से राजधानी से होते हुए कलेक्टर,तहसीलदार से होते हुए पटवारी तक | फसल के नुकसान का आकलन करवा रही है सरकार |पटवारी के जिम्मे है फसल आकलन का काम | पटवारी है कि चतुर प्राणी है राजस्व तंत्र का |गाँव की राजस्व सत्ता उसके हाथ में | जमीन-जायदाद गाँव में उसकी चलती है |वह कब किसके बाप को भूमि के पट्टे में दूसरे का बाप बना दे |और असली बाप का बेटा हाथ मलता रह जाए |
किसान पटवारी के दरवाजे में निरीह प्राणी की तरह खडा है | हाथ जोड़कर – ‘’ पटवारी साब , हमारी बरबाद फसल का तनिक ऐसी रपट देना मालिक कि अच्छा मुआवजा बन जाए |’’
‘’यार , तुम लोग का पटवारी को खेत में लगी मूली समझ रखे हो | पटवारी को ऐसे सिखा रहे हो जैसे वह कुछ जानता ही नहीं | हमें खुदई पता है ,तुम्हारे खेत में कित्ती फसल लगी थी और कित्ती खराब हुई  है |समझे |’’ पटवारी पूरे साहबी अंदाज में बोला |
‘’ का है कि पटवारी साब आपकी कलम में खूब ताकत है , अगर आप अच्छा लिख दोगे तो अच्छा मुआवजा मिल जाएगा | पूरा नहीं तो कुछ तो खाद बीज का कर्जा  उतर जाएगा |’’
‘’ यार देखो हमारा दिमाग मत खाओ | का हम सरकार से गद्दारी करे , तुम्हारे कारण | तुम लोग बस अपना उल्लू सीधा करना चाहते हो | ये नहीं जानते कि सरकार कहाँ से मुआवजा की व्यवस्था करेगी | और तुम्हे देगी | तनिक सरकार की तरफ भी सोचो |’’
‘’ सरकार हम अपनी मारी किससे कहें | हमने जो सरकारी बीज ख़रीदे  थे मालिक उनमें सही अंकुरण नहीं हुआ |ऊपर से सूखा पड़ गया |’’
‘’यार तुम लोग न बस सरकार के भरोसे जीते हो | खेती का करते हो खाद, पानी बिजली सब सरकार  दे |ऊपर से फसल खराब हो गयी तो मुआवजा भी |तुम्हारे खीसा (जेब) में इतनी भी पूँजी नहीं है ..|’’
‘’ मालिक का बताएं ... कित्ते जतन से फसल उगाये थे , | मगर फसल नई आयी | मालिक कृपा कर तनिक हमारे मुआवजे के लाने सोच लो मालिक ...|’’
‘’ अब तुम कहते हो तो सोच लेते हैं | मगर ये बताओ अपनी अंटी में कुछ रख के लाए हो ...|
‘’का मालिक ?’’
‘’अब इत्ता भी नहीं मालूम...पटवारी साहब से मिलने पर क्या लाना पड़ता है |’’
‘’ खाता – बही मालिक ...|’’
‘ अरे यार ,.. तुम लोग न भोलू चंद हो ...खर्चा पानी .. समझे |’’
‘’ मालिक मुआवजा मिल जाने दो ... या फिर थोड़ी बहुत जो फसल है बिक जाने दो हम खुद दे देंगे | उसकी चिन्ता मत करो मालिक ....आप तो हमारी सरकार हैं  |’’
‘’ तुम लोग न जैसे खेती-बाड़ी उधारी में माल बटोर कर लेते हो न वैसई सरकारी काम को भी समझ लेते हो .....भैया सरकारी काम कोई बनिया की दुकान नहीं है |जब ईच्छा हुई मांग लाये उधारी |जाओ पहले व्यवस्था करो | फिर आना | जैसा तुम्हारा दिया खर्चा , वैसा बनेगी तुम्हारी सूखी फसल की रपट | समझे भोलू ...|
   किसान क्या समझे | उसकी समझ में यह नहीं आ रहा है कि सरकार उसके साथ है या उसके घूसखोर कर्मचारी | हताश है बेचारा किसान | क्या  बेच दे , क्या नहीं ..और पटवारी साब को खुश करे | बेचारा न घर की इज्ज़त बेच सकता और न ही कर्ज में फंसी जमीन | बेचारे के पास हताशा से बचने का और रास्ता ही क्या है ....यह तो आप अखबारों की सुर्ख़ियों में पढ़ रहे हैं |
सरकार भले ही अपने विज्ञापन में कह रही है –‘’ खुशहाल किसान ,खुशहाल देश |मगर कौन खुश है यह तो आपको भी पता है और सरकार को भी ....|फिर भी बहस जारी किसान की किस्तों वाली मौत पर , सरकार किसानो के साथ है |

               सुनील कुमार ‘’सजल’’