व्यंग्य-मन की भड़ास निकालिए जरूर
कुछ दिन पूर्व मैंने एक शोध समाचार पढ़ा कि
आदमी को अपने मन में उपजी भड़ास को अवश्य निकालना चाहिए | इससे दिमाग का तनाव कम
होता है और तनाव से जुडी बीमारियाँ भी |शोधकर्ता ने भड़ास निकालने के उपाय भी सुझाए
जैसे घर में तोड़फोड़ करें |
वैसे भड़ास निकालने के लिए लोगों के पास अपने-अपने तरीके होते हैं , जैसे
राजनीति के लोग यानी नेता विधायक व सांसद एक दूसरे को जलील कर मन कि भड़ास निकालते
हैं | इसके तहत वे एक-दूसरे को ह्त्या, बलात्कार, हवाला अपहरण जैसे कांडों में
फंसाकर राहत कि सांस लेते हैं |
मेरे पड़ोस के मित्र दल-बदल के मामलों में
कमजोर हैं इसलिए मन की भड़ास निकालने के लिए व्यंग्य कवितायें लिखते हैं |कहते हैं व्यंग्य कि मार तलवार या घूंसे की
मार से कष्टदायी होती है | घायल आदमी उफ़ तक नहीं कर पाता |
पिछले माह राह चलते हमारी मुलाक़ात हमारे
इलाके के डाकिया महोदय से हो गयी | हमें डाक पकडाते हुए वह बोला –‘’ हाँ तो मास्टर जी, चाय-पानी का खर्चा निकालो | कई
दिन ही गए आपने हमारे लिए कुछ नहीं सोचा | हमने ताल मटोल करने का प्रयास किया |’’
अभी हमारे पास चिल्लर नहीं है | बाद में आपको संतुष्ट कर देंगे |’’
‘’ आपको कितने रुपये की चिल्लर चाहिए | हम देते हैं |’’ फिर भी हमने
उनकी बात को काटने का प्रयास किया तो वह
अपनी भड़ास हमसे यूँ निकाल रहा है कि सप्ताह में चार- पांच डाक आती थी, आज महीना
भर से हमारे हाथ नहीं लगी है |
फारेस्ट विभाग में कार्यरत वर्मा जी जब पौधारोपण योजना के तहत
रेंजर साहब ने उन्हें कमीशन नहीं दिया तो वे अपने अन्दर कि भड़ास उगलते हुए बोले –‘
देखता हूँ कैसे पौधे पनपते हैं , कैसे इनकी योजना सफल होती है | दर्जन भर
गाय-बकरियों से सारे पौधे न चारा दिए तो मेरा नाम भी धूमकेतु वर्मा नहीं |’’
उन्होंने अपनी सफ़ेद पद चुकी गुच्छेदार मूंछ पर हाथ फेरते हुए कहा |
प्रकृति भी अपनी भड़ास निकालती हैं उसके साथ
छेड़छाड़ कि जाए तो | कभी कडाके की सर्दी ऐसी पड़ती है कि लोग गरम कपड़ो से लादे होने
के बावजूद कंपकपाते रहते हैं |वहीँ गरमी भी पिछले कई सालों के रिकार्ड को ध्वस्त
कराती नजर आती है , और बरसात ? सूखा |
जब
जबरदस्त गरमी का कहर होता है तब बिजली विभाग वाले भी अन्दर की भड़ास प्रकृति के साथ
उगलते हुए कटौती प्लान का चिट्ठा जनता के सामने पटकते हुए कहते- ‘’ बेटा खूब बिजली
चोरी करते हो , बिल जमा करने से मुंह चुराते हो तो लो , अब हमारा भी डंडा कम
प्रहार वाला नहीं होता | तुम दाल-दाल तो हम पात-पात |
इस तरह भड़ास निकालने के सब के पास अपने- अपने
तरीके होते हैं | आप अपने अन्दर कि भडास किस प्रकार निकालते है यह तो मैं नहीं
जानता पर जब भी मन में भड़ास कुलबुलाये उसे अवश्य निकालिए वरना क्या होगा , अपन
नहीं जानते |
सुनील कुमार ‘’ सजल’’