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बुधवार, 3 मई 2017

लघुव्यंग्य- मन

लघुव्यंग्य- मन
मुझे माध्यमिक शिक्षा मंडल की ओर से हाई स्कूल की प्रायोगिक विज्ञान परीक्षा संपन्न कराने हेतु बाह्य परीक्षक के रूप में जंगल के बीच बसे हाई स्कूल में जाने का आदेश प्राप्त हुआ था, जहां मात्र दो शिक्षक थे और जिस गाँव में घर भी बामुश्किल भी आठ- दस ही थे |
परीक्षा संपन्न कराने के उपरांत मैंने एक शिक्षक से पूछ ही लिया- ‘’ भाई , आप लोग इस घनघोर जंगल के बीच बने स्कूल में बड़े कष्ट में जीवन गुजारते होंगें ...जहां मात्र ८-१० घर ही हैं और जहां के लोग रोटी की तलाश में दिनभर जंगलों में भटकते रहते हैं| कैसे मन लगता होगा आप लोगों का ऎसी जगह ....? आपकी जगह अगर हम होते तो दूसरे दिन यहाँ से रवाना हो गए होते ....!’’

मेरी बात सुनकर वह मुस्कराते हुए बोले ,’’ जहां आसानी से शराब , शबाब और मुर्गे की उपलब्धता हो जाए तो जंगल के बीच बने इस स्कूल में तो क्या , इससे भी बदतर जगह में भी हमारा मन आसानी से रम जाता है सर !’’

मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

व्यंग्य-मन की भड़ास निकालिए जरूर

   
व्यंग्य-मन की भड़ास  निकालिए जरूर


कुछ दिन पूर्व मैंने एक शोध समाचार पढ़ा कि आदमी को अपने मन में उपजी भड़ास को अवश्य निकालना चाहिए | इससे दिमाग का तनाव कम होता है और तनाव से जुडी बीमारियाँ भी |शोधकर्ता ने भड़ास निकालने के उपाय भी सुझाए जैसे घर में तोड़फोड़ करें |
  वैसे भड़ास निकालने के लिए लोगों के पास अपने-अपने तरीके होते हैं , जैसे राजनीति के लोग यानी नेता विधायक व सांसद एक दूसरे को जलील कर मन कि भड़ास निकालते हैं | इसके तहत वे एक-दूसरे को ह्त्या, बलात्कार, हवाला अपहरण जैसे कांडों में फंसाकर राहत कि सांस लेते हैं |
मेरे पड़ोस के मित्र दल-बदल के मामलों में कमजोर हैं इसलिए मन की भड़ास निकालने के लिए व्यंग्य कवितायें लिखते  हैं |कहते हैं व्यंग्य कि मार तलवार या घूंसे की मार से कष्टदायी होती है | घायल आदमी उफ़ तक नहीं कर पाता |
पिछले माह राह चलते हमारी मुलाक़ात हमारे इलाके के डाकिया महोदय से हो गयी | हमें डाक पकडाते हुए वह बोला –‘’ हाँ  तो मास्टर जी, चाय-पानी का खर्चा निकालो | कई दिन ही गए आपने हमारे लिए कुछ नहीं सोचा | हमने ताल मटोल करने का प्रयास किया |’’ अभी हमारे पास चिल्लर नहीं है | बाद में आपको संतुष्ट कर देंगे |’’
‘’ आपको कितने रुपये की  चिल्लर चाहिए | हम देते हैं |’’ फिर भी हमने उनकी बात को काटने का प्रयास किया तो वह  अपनी भड़ास हमसे यूँ निकाल रहा है कि सप्ताह में चार- पांच डाक आती थी, आज महीना भर से हमारे हाथ नहीं लगी है |
फारेस्ट विभाग में कार्यरत वर्मा जी जब पौधारोपण योजना के तहत रेंजर साहब ने उन्हें कमीशन नहीं दिया तो वे अपने अन्दर कि भड़ास उगलते हुए बोले –‘ देखता हूँ कैसे पौधे पनपते हैं , कैसे इनकी योजना सफल होती है | दर्जन भर गाय-बकरियों से सारे पौधे न चारा दिए तो मेरा नाम भी धूमकेतु वर्मा नहीं |’’ उन्होंने अपनी सफ़ेद पद चुकी गुच्छेदार मूंछ पर हाथ फेरते हुए कहा |
प्रकृति भी अपनी भड़ास निकालती हैं उसके साथ छेड़छाड़ कि जाए तो | कभी कडाके की सर्दी ऐसी पड़ती है कि लोग गरम कपड़ो से लादे होने के बावजूद कंपकपाते रहते हैं |वहीँ गरमी भी पिछले कई सालों के रिकार्ड को ध्वस्त कराती नजर आती है , और बरसात ? सूखा |
  जब जबरदस्त गरमी का कहर होता है तब बिजली विभाग वाले भी अन्दर की भड़ास प्रकृति के साथ उगलते हुए कटौती प्लान का चिट्ठा जनता के सामने पटकते हुए कहते- ‘’ बेटा खूब बिजली चोरी करते हो , बिल जमा करने से मुंह चुराते हो तो लो , अब हमारा भी डंडा कम प्रहार वाला नहीं होता | तुम दाल-दाल तो हम पात-पात |
इस तरह भड़ास निकालने के सब के पास अपने- अपने तरीके होते हैं | आप अपने अन्दर कि भडास किस प्रकार निकालते है यह तो मैं नहीं जानता पर जब भी मन में भड़ास कुलबुलाये उसे अवश्य निकालिए वरना क्या होगा , अपन नहीं जानते |

   सुनील कुमार ‘’ सजल’’   

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

व्यंग्य - राजा के '' मन के बोल'

व्यंग्य - राजा के '' मन के बोल'

हर राजा की ईच्छा होती है कि जनता उसकी बातों को सुने और उसकी प्रशंसा करे |राजा भी ऐसे ही किसी प्रयास में है | उसने अपने सभासदों से तरकीब निकालने का हुक्म दिया | लोगो ने अपने- अपने विचार रखे | एक सभासद का विचार उसे पसंद आया | ‘’ महाराज, आपके मन के शब्दों को राज्य के दूर- दराज तक के हिस्से में पहुचाया जाए |’’
‘’ यह कैसे संभव है ?’’
‘संभव है , महाराज | पूरा मीडिया तो आपके नमक पर पलता है | उन्हें आदेशित करने का कष्ट करें कि वह आपके प्रत्येक जन प्रभावी कार्यक्रमों को ज्यादा से जयादा कवरेज कर प्रसारित करे |
  राजा खुश हुआ | मगर राजा का बोले ? जो जनता को पसंद आये | क्योंकि मन में कई बार ऐसे विचार भी आ जाते हैं जो शायद जनता को पसंद न आयें| या जनहित में नहीं होते |
 इसका भी उपाय निकाल लिया गया | राज्य के कला संस्थानों में राजा की कृपा से पल रहे कुछ बेचारे टाइप लेखकों से आलेख तैयार  करवाए गए | जिनमे राज्य हित की मस्केबाजी, जनता को राज्य के अन्दर हो रहे  घपले घोटाले, लूटमार , हत्याएं , बलात्कार जैसी घटनाओं  से ध्यान भटकाने की कोशिश की गयी | बस राजा को इसे देखकर पढ़ना था |
 राजा भी यही चाहता है , जनता उसकी लफ्फाजी , काली करतूतों पर ध्यान न दे |
   राज्य में  मन के बोल  कार्यक्रम का संचार माध्यमों  से प्रसारण  प्रारम्भ हो गया | राज्य के कर्मचारियों को सुनना अनिवार्य कर दिया गया ताकि जनता उनसे प्रभावित होकर सुनने में रूचि  दिखाए |
  राजा भी चतुर प्राणी होता है | वह अपने मन के बोल को छुट्टी के दिन प्रसारित करवाता | ताकि कामचोर कर्मचारी कार्यक्रम सुनने के बहाने दफ्तर दिवस में दफ्तर  से गोल न मारें |जनता अवकाश के दिन फुर्सत में रहती है | सो वह इत्मीनान से उसके बोल को सुने |
  राज्य चाहे जितना भी शालीन रहे पर वहां आलोचकों की पैदाइश हो ही जाती है | राजा के राज्य में भी उसके विपक्षी उसके महान आलोचक हैं जो उसकी काली करतूतों को अपने तरीके से जनता के सामने पटकते रहते हैं | उसकी करतूतों का पोस्टमार्टम करते रहते हैं | इस घटनाक्रम के चलते राज्य में कई बार हल्ला-बोल जैसी रैलियाँ निकल चुकी हैं | तख्ता पलट होते-हुए बचा है |
  लोकतांत्रिक राज्य में राजा ही सर्व शक्तिमान नहीं होता | विपक्षी भी हैसियत रखते हैं | इसलिए रजा डरता है | सोच समझ कर अपने बोल बोलता है |
  राजा के ‘’ मन के बोल ‘’ कार्यक्रम के कई बार प्रसारण के बाद |


किसी ने एक नागरिक से सवाल किया| ‘’ राजा जी ने आज तक के ‘’मन के बोल ‘’ बोले | कार्यक्रम कैसा लगा |’’
‘’ वो तो राजा का कम है अपने प्रशंसा के लिए कुछ भी कार्यक्रम चलाये | पर राज्य की समस्या के विरुद्ध कुछ करे तो जाने राजा कि राजा के मन के बोल मन से निकले हैं | यह तो राजा  का टाइम पास कार्यक्रम है सो टाइम पास के लिए कभी –कभी सुन लेते हैं |’’
   कार्यक्रम को प्रसारित होना है | वह तो होता रहेगा |
 चम्मच टाइप मीडिया , सत्तापक्ष तारीफ़ के पुल बाँध रहा है | ‘’ सरकार जनता आपसे बेहद खुश है |आपके कार्यक्रम को सुनने के लिए बेकाबू रहती है |कहें तो फोटोग्राफ्स , रिकार्डिंग इत्यादि आपको दिखा दें |
 राजा फूलकर कुप्प है | राजा तो चाहता है कि अंधे को मिली दो आँख की तरह उसके चम्मचों की संख्या में वृद्धि हो |
   जनता के मन पर मन के बोल कितना प्रभाव डाल रहे हैं |इसका जानकारी  तो चंद महीनों बाद मिलेगी | | जब जनता विपक्षियों के साथ मिलकर राजा को उखाड़ फेंकने की कोई साजिश न रचे |

                          सुनील कुमार सजल