व्यंग्य -मोटे को मोटा कहना
व्यंग्य - मोटे को मोटा कहनाइन दिनों , साब हमारे मोहल्ले में मोटापा घटाने मौसम आया है। लोगों को छत या आँगन में सुबह -सुबह पसीने बहाने वाली कसरत करते देखा जा सकता है। उल्टा-सीधे हाथ- पाँव घुमाते लोग। धुकनी की तरह चलती सांसे।
कोई बाबा श्याम देव का अनुयायी तो कोई योगानंद का। योग गुरुओं की योगा क्लास। सुसज्जित कक्षों में। आकर्षक नाक -नक्श वाले गुरु। तन पर आधुनिक फैशनेबुल लिबास।हल्का मधुर संगीत। म्यूजिक आधारित योग। इधर हाथ हिलाओ ,उधर टाँग पटको। पर मोटापा?
''यार ये मोटापा कम कैसे होगा ?लगता है जान के साथ ही जायेगा। ''योग से थके -हारे लोगों का दर्द।
''आप तो टेकानन्द जी की कक्षा अटेंड कर रहे हैं न। वह भी छह माह से। ''
''देख तो रहे हो ,छह किलो वजन नहीं घटा,ऊपर से उपवास ,अरुचि कर भोजन। ''
''वो क्या कहते हैं आपकी समस्या पर। ''
''कहते हैं करते रहो। और ऊपर से कबीर का ''करत -करत अभ्यास के …''वाला दोहा सुनाने लगते हैं। उन्हें कहें भी तो का। फीस देकर भी हम वहीँ खड़े हैं। ''
''हमने समझाया- ''धैर्य रखो , सफलता मिलेगी '
'कब तक धैर्य रखें ?लोग कहते हैं ,धनी लोगों को मोटापा घेरता है। इधर तो मोटापा घटाने के फेर में कंगाल हुए जा रहे हैं। ''वे दर्द में डूब कर बोले। हम खामोश।
मेरे एक मित्र हैं। यूँ तो वे मोटे हैं। इतने मोटे की चार कदम चलें तो हांफने लगते हैं दया भी आती है उन पर ,गुस्सा भी। दया इसलिए की मोटापा उन्हें भारी तकलीफ़ देता है। गुस्सा इसलिए की हराम का खाने को मिला तो चक्की की तरह उनका मुंह हमेशा खुला रहता है। यूँ भी हराम का खाने को ज्यादा तकते हैं। कहते हैं -''कोई प्यार से खिलाये तो खाने खाने में क्या तकलीफ़ है। सामने आई थाली को लात मारना यानि अन्नपूर्णा माँ को नाराज़ करना है। इसलिए भैया अपन डकार हैं। '''
वे डकारते भी ऐसे नहीं कि थोड़ा बहुत खाकर मुंह जूठा कर लिया। पेट का कोई हिस्सा खाली न रहे ,ऐसा ठूंसते हैं।
एक बार हमने उनसे कहा -''दोस्त थोड़ा कम खाया करो। मोटापे पर अंतर आएगा इसकी तकलीफों से राहत मिलेगी।''
''यार तुम्हें क्यों तकलीफ़ होती है। हमारे खाने से खिलाने वाले अपने को बहुत मौजूद हैं। वे आह नहीं करते खिलाते हुए ,आप क्यों हैं। '
यूँ तो वे दफ्तर के बड़े बाबू हैं। स्वाभाविक है ,उन्हें खिलने वाले बहुत हैं। कुछ लोग यह कहकर भी खिला देते हैं। ''बेटा अभी जिता खाना है खा ले। जब ब्लड प्रेशर व डायबिटीज़ हाई लेबल पर पहुंचेगा। उस दिन खाया हुआ सारा याद आएगा। जब डॉक्टर को खिलायेगा।
एक बार एक नया व्यक्ति दफ्तर आया। शायद उसे उनका नाम नहीं मालूम था। एक से पूछ बैठा -''वो साब कहां बैठते हैं ?''
''कौन साब। ''
''वो जो मोटे है। ''उसका इतना बोलना था कि पीछे से मोटे साब यानि यादव जी आ टपके सुन लिया। उन्होंने उसकी बात को।
''क्या बात है ?''एक कड़क आवाज़ के साथ जी।
''सर !आपसे ही काम था। ''
'' तुम मुझे मोटा साब कह रहे थे। ''
''सर ,दरअसल आपका मुझे आपका नाम नहीं मालूम था। ''
''नाम नहीं मालूम तो कुछ भी कह दोगे।
''क्षमा करें सर। ''
''क्या क्षमा करें। ''यादव जी अपने साथियों के तरफ मुखातिब हुए। बोले -'' ऐसे ही बेहूदे लोगों के कारण मेरा मोटापा बढ़ा है। ''
''ये क्या कह रहे हैं यादव जी ,आपके मोटापे के साथ उस बेचारे का क्या सम्बन्ध है। ये तो आपको जानता तक नहीं। ''
''जानता नहीं इसलिए दोषी है। ''
''मतलब। ''
''नाम नहीं मालूम तो कह दिए मोटे। इन लोगों को कैसे समझाएं की मोटे लोगों को मोटा कहना कितनी बड़ी भूल है। असभ्यता है। कितना बड़ा नुक्सान है इससे। ''
''नुकसान तो समझ में नहीं आता ,बदनामी ज़रूर होती है। ''प्रणव जी ने कहा।
''बदनामी गयी घास चरने। ''
''असल में आप क्या कहना चाहते हैं। ''
''हाल में एक रिसर्च सामने आया है मोटे लोगों को मोटा कहने से और बढ़ता है मोटापा। ''
'' यार रिसर्च तो कई आते रहते हैं। जैसे कोई कहता है ज्यादा खाने से मोटापा बढ़ता है,तो कोई कहता है कम खाने से। अगर आपकी बात सच हैं तो सभी भाइयों मुझे मोटा कह कर बुलाये , काहे की मैं सिगरेटिया साइज का हूँ। ताकि मैं भी थोड़ा मोटा हो जाऊं। ''
बड़कुल जी की बात यादव जी की बात पर यादव जी चिढ़ गए।
''यार बड़कुल ज्यादा न बनों ,वरना हम बिगड़ गए तो…… बनना भूल जाओगे। '' लोगों ने इशारा किया। वे समझ गए कि यादव जी को बुरा लगा है।
समझाने पर यादव जी भी खामोश हो गए।
मगर ऐसे रिसर्च को क्या कहें जब वे कहते है चित भी मेरा पट भी .... ।
सुनील कुमार 'सजल'