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शनिवार, 13 जनवरी 2018

लघुव्यंग्य - वह

लघुव्यंग्य-वह

" देख तो बे उसे, साली जब इधर से गुजरती है मेरी नजर उसके  कूल्हे पर ही टिक जाती है।"
" अबे वह कूल्हे नहीं मटकाती बल्कि उसके पाँव में तकलीफ है इसलिए वह ऐसा चलती है..।"
" अबे तू ऐसे बता रहा है ,जैसे तेरा और उसका परिचय हो...।"
"परिचय की बात नहीं है ,कल मैं जिस क्लीनिक में इलाज कराने गया था वह भी आयी थी अपने पाँव का इलाज कराने समझा..।"

रविवार, 5 जुलाई 2015

व्यंग्य -मोटे को मोटा कहना


व्यंग्य -मोटे को मोटा कहना
व्यंग्य - मोटे को मोटा कहना

इन दिनों , साब हमारे मोहल्ले में मोटापा घटाने मौसम आया है। लोगों को छत या आँगन में सुबह -सुबह पसीने बहाने वाली कसरत करते देखा जा सकता है। उल्टा-सीधे हाथ- पाँव घुमाते लोग। धुकनी की तरह चलती सांसे। 
कोई बाबा श्याम देव का अनुयायी तो कोई योगानंद का। योग गुरुओं की योगा क्लास। सुसज्जित कक्षों में। आकर्षक नाक -नक्श वाले गुरु। तन पर आधुनिक फैशनेबुल लिबास।हल्का मधुर संगीत। म्यूजिक आधारित योग। इधर हाथ हिलाओ ,उधर टाँग पटको। पर मोटापा?
''यार ये मोटापा कम कैसे होगा ?लगता है जान के साथ ही जायेगा। ''योग से थके -हारे लोगों का दर्द। 
''आप तो टेकानन्द जी की कक्षा अटेंड कर रहे हैं न। वह भी छह माह से। ''
''देख तो रहे हो ,छह किलो वजन नहीं घटा,ऊपर से उपवास ,अरुचि कर भोजन। ''
''वो क्या कहते हैं आपकी समस्या पर। ''
''कहते हैं करते रहो। और ऊपर से कबीर का ''करत -करत अभ्यास के …''वाला दोहा सुनाने लगते हैं। उन्हें कहें भी तो का। फीस देकर भी हम वहीँ खड़े हैं। '' 
''हमने समझाया- ''धैर्य रखो , सफलता मिलेगी ' 
'कब तक धैर्य रखें ?लोग कहते हैं ,धनी लोगों को मोटापा घेरता है। इधर तो मोटापा घटाने के फेर में कंगाल हुए जा रहे हैं। ''वे दर्द में डूब कर बोले। हम खामोश। 
मेरे एक मित्र हैं। यूँ तो वे मोटे हैं। इतने मोटे की चार कदम चलें तो हांफने लगते हैं दया भी आती है उन पर ,गुस्सा भी। दया इसलिए की मोटापा उन्हें भारी तकलीफ़ देता है। गुस्सा इसलिए की हराम का खाने को मिला तो चक्की की तरह उनका मुंह हमेशा खुला रहता है। यूँ भी हराम का खाने को ज्यादा तकते हैं। कहते हैं -''कोई प्यार से खिलाये तो खाने खाने में क्या तकलीफ़ है। सामने आई थाली को लात मारना यानि अन्नपूर्णा माँ को नाराज़ करना है। इसलिए भैया अपन डकार हैं। '''
वे डकारते भी ऐसे नहीं कि थोड़ा बहुत खाकर मुंह जूठा कर लिया। पेट का कोई हिस्सा खाली न रहे ,ऐसा ठूंसते हैं। 
एक बार हमने उनसे कहा -''दोस्त थोड़ा कम खाया करो। मोटापे पर अंतर आएगा इसकी तकलीफों से राहत मिलेगी।''
''यार तुम्हें क्यों तकलीफ़ होती है। हमारे खाने से खिलाने वाले अपने को बहुत मौजूद हैं। वे आह नहीं करते खिलाते हुए ,आप क्यों हैं। '
यूँ तो वे दफ्तर के बड़े बाबू हैं। स्वाभाविक है ,उन्हें खिलने वाले बहुत हैं। कुछ लोग यह कहकर भी खिला देते हैं। ''बेटा अभी जिता खाना है खा ले। जब ब्लड प्रेशर व डायबिटीज़ हाई लेबल पर पहुंचेगा। उस दिन खाया हुआ सारा याद आएगा। जब डॉक्टर को खिलायेगा। 
एक बार एक नया व्यक्ति दफ्तर आया। शायद उसे उनका नाम नहीं मालूम था। एक से पूछ बैठा -''वो साब कहां बैठते हैं ?''
''कौन साब। ''
''वो जो मोटे है। ''उसका इतना बोलना था कि पीछे से मोटे साब यानि यादव जी आ टपके सुन लिया। उन्होंने उसकी बात को। 
''क्या बात है ?''एक कड़क आवाज़ के साथ जी। 
''सर !आपसे ही काम था। ''
'' तुम मुझे मोटा साब कह रहे थे। ''
''सर ,दरअसल आपका मुझे आपका नाम नहीं मालूम था। ''
''नाम नहीं मालूम तो कुछ भी कह दोगे।
''क्षमा करें सर। ''
''क्या क्षमा करें। ''यादव जी अपने साथियों के तरफ मुखातिब हुए। बोले -'' ऐसे ही बेहूदे लोगों के कारण मेरा मोटापा बढ़ा है। ''
''ये क्या कह रहे हैं यादव जी ,आपके मोटापे के साथ उस बेचारे का क्या सम्बन्ध है। ये तो आपको जानता तक नहीं। ''
''जानता नहीं इसलिए दोषी है। ''
''मतलब। ''
''नाम नहीं मालूम तो कह दिए मोटे। इन लोगों को कैसे समझाएं की मोटे लोगों को मोटा कहना कितनी बड़ी भूल है। असभ्यता है। कितना बड़ा नुक्सान है इससे। ''
''नुकसान तो समझ में नहीं आता ,बदनामी ज़रूर होती है। ''प्रणव जी ने कहा। 
''बदनामी गयी घास चरने। ''
''असल में आप क्या कहना चाहते हैं। ''
''हाल में एक रिसर्च सामने आया है मोटे लोगों को मोटा कहने से और बढ़ता है मोटापा। ''
'' यार रिसर्च तो कई आते रहते हैं। जैसे कोई कहता है ज्यादा खाने से मोटापा बढ़ता है,तो कोई कहता है कम खाने से। अगर आपकी बात सच हैं तो सभी भाइयों मुझे मोटा कह कर बुलाये , काहे की मैं सिगरेटिया साइज का हूँ। ताकि मैं भी थोड़ा मोटा हो जाऊं। ''
बड़कुल जी की बात यादव जी की बात पर यादव जी चिढ़ गए। 
''यार बड़कुल ज्यादा न बनों ,वरना हम बिगड़ गए तो…… बनना भूल जाओगे। '' लोगों ने इशारा किया। वे समझ गए कि यादव जी को बुरा लगा है। 
समझाने पर यादव जी भी खामोश हो गए। 
मगर ऐसे रिसर्च को क्या कहें जब वे कहते है चित भी मेरा पट भी .... । 
सुनील कुमार 'सजल'

मंगलवार, 9 जून 2015

व्यंग्य- उल्लू का दर्द


व्यंग्य- उल्लू का दर्द




 सरकार की पेंदी दो दिशाओं में लुडकती है | पहली दिशा में वह चुनाव जीतकर सत्ता में बैठने के बाद | और दूसरी दिशा में चुनाव के करीब आने के संकेत पर |
  अभी पिछले दिनों सरकार की पेंदी जिस दिशा में लुढ़की थी | वह चुनाव करीब आने का संकेत था | दूसरी दिशा में सर्कार का लुढ़कना जनता के हित में होता है | वह इस वक्त जनता की होती है |
  फिलहाल सरकार जनता की हो चुकी थी | भ्रष्टकर्मियों पर आफत आ पड़ी थी | हालांकि वे सतर्क थे | पर शासन या प्रशासन में चूक का महत्त्व होता है | आखिर वे भी तो इंसान हैं और इंसान गलतियों का पुतला होता है | पुतला तो अंगुली के इशारे पर चलता था | अभी तक वह सरकार की अंगुली पर था |
  भ्रष्टकर्मियों पर आफत आयी तो उसकी काली कमाई पर छापे पड़ने लगे , जो अभी तक जनता के लिए आफत बने थे | सर्कार जनता के साथ थी | इसलिए वह भ्रष्टाचार निरोधक व्यवस्था से छापे डलवा रही थी | बदनाम सरकारें छवि का कालिख ऐसे ही कर्मों से साफ़ करती है | साथ ही जनता की आवाज पर ध्यान देती है | जो विपक्षियों के संग मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ नारेबाजी कर रही होती है | सोयी सरकार को जागना पड़ता है | ऐसी चीख पुकार से | जनता के संग सुर मिलाने वाले विपक्षी सोते कहाँ हैं | विपक्ष में बैठने पर वैसे भी आँखों की नींद व दिल का चैन गायब रहते हैं | अब क्या करें विपक्षी ? ट्रस्ट जनता के संग हो लेते हैं | अपनी त्रासदी उगलने के लिए |
जनता को भी जरुरत होती है हाथ में लाठी व माइक लिए नेतृत्वकी | सो, वह उसके पीछे –पीछे भेड़की तरह चलती है | जनता की किस्मत अच्छी है कि उसे ऐसा नेतृत्व चुनाव के वक्त तो मिल जाता है |
 भ्रष्टाचार के खिलाफ स्वर तेज थे | भ्रष्टाचार के खिलाफ छापे पद रहे थे | रिश्वत खोर पकडे जा रहे थे | छवि का कमाल देखी | अदना –सा कर्मचारी भी करोडपति निकल रहा था | जिसने सरकारी खजाने के पेंच ढीले कर रखे थे | हालांकि पिछले वर्षों में सरकार के पास धन की कमी नहीं थी | वह योजनाओं के लिए धन पानी की तरह बहा रही थी | योजनायें कागजी नाव थी | इस बहाव में बह रही थी | या कहें जनता के आँखों के सामने डूब रही थी | सरकार अपने मुंह मिट्ठू बन रही थी | होर्डिंग / विज्ञापन / पोस्टर / प्रचार फिल्मों में सरकार योजनाओं के साथ मुसकरा रही थी | जनता रो रही थी ढूंढ रही थी योजनाओं को | वह आपस में पूछती –‘’ कहीं देखा आपने अमुक योजना को |’’ अपनों से जवाब मिलता –‘’ कहीं तो होगी | तभी तो विज्ञापनी गुणगान जारी है |’’ पड़ते छापों की भी अपनी विशेषता थी | बिना विशेषता के शायद सरकारी काम काज नहीं होते | विशेषता भोली जनता के बाहर थे | जनता भोली होती है , इसलिए वह जनता होती है |
   छापे केवल सरकारी कर्मियों के कुकर्मों पर पड़ रहे थे | जनता वास्तव में भोली है | उसे इतनी भी समझ नहीं भ्रष्टाचार का खेल केवल क्या अर्कारी कर्मचारी ही खेलते हैं ? वे नहीं खेलते जो उनके सिर पर अपने राजनैतिक हस्त की छात्र छाया बनाकर रखते हैं |
    जनता भूल भुलैया में थी | छपे की खबरें चटकारें लेकर पढ़ रही थी | ‘’ अच्छा काम कर रही सरकार | भ्रष्टाचार ऐसे में ही समाप्त होगा | भ्रष्ट लोगों को सजा मिलनी चाहिए | जनता की नजर में सरकारी कार्मीन भ्रष्ट है | सत्ता के राजनैतिक साधक ईमानदार हैं | क्योंकि वे भ्रष्टता  के खिलाफ चल रहे थे |
   जनता इतनी नासमझ है | उसने सोचा तक नहीं भ्रष्टाचार की शुरुआत की नींव कहाँ है | किसके इशारे पर प्रशासन की बेलगाम बनाते हैं |
  जनता को सरकार ने योजनाओं का सब्ज बाग़ दिखाया नहीं कि वह सरकार की हो जाती है | जनता को क्या चाहिए दवा दारु , सस्ता अनाज और आश्वासन | सो इत्ता काम सरकार कर देती है | अत: वर्त्तमान माहौल में जनता सरकार के लिए थी और सरकार जनता के लिए |
  मैंने आम आदमी से पूछा | जो लोकतंत्र में जनता की परिभाषा होता है |
  ‘’ सरकार की चाल समझ में आयी तुम्हें ?’’
  ‘’कैसी चाल ?’’
 ‘’ सरकार का निशाना प्रशासन के कर्मियों पर है | छपे उनके घर पर पद रहें हैं | जबकि स्वयं उनके कई मंत्री-नेता  भ्रष्टाचार में लिप्त हैं | वे सुरक्षित हैं | ‘’
  ‘’ असली भ्रष्टाचार तो कर्मीं  अपनाते हैं |’’
  ‘’ राजनीति उन्हें करवाती है |’’
  ‘’ वे नकारते क्यों नहीं |’’
 ‘’ उन्हें नौकरी करनी हैं | राजनीति हर किसी को सीधा करना जानती है और टेढा भी | आम आदमी खामोश हो चुका था | बहस से दूर होकर उसके दिमाग में सिर्फ एक जूनून था | किसी तरह भ्रष्टाचार मिटे | अत: भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलनरत था जनता की मंशा को कुछ हद तक सफलता से जोड़ने के लिए सरकार अपना तरिका अपना रही थी विपक्षी अपना | जनता रूपी उल्लू की टाँगे एक-एक दोनों पकडे बैठे थे | अब देखना था सीधा करने में किसे सफलता मिलाती | फिलहाल उल्लू छटपटा रहा है | दर्द से कराह रहा है | सरकार और विपक्षी मुस्कुरा रहे थे |