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मंगलवार, 22 सितंबर 2015

व्यंग्य - राजा के '' मन के बोल'

व्यंग्य - राजा के '' मन के बोल'

हर राजा की ईच्छा होती है कि जनता उसकी बातों को सुने और उसकी प्रशंसा करे |राजा भी ऐसे ही किसी प्रयास में है | उसने अपने सभासदों से तरकीब निकालने का हुक्म दिया | लोगो ने अपने- अपने विचार रखे | एक सभासद का विचार उसे पसंद आया | ‘’ महाराज, आपके मन के शब्दों को राज्य के दूर- दराज तक के हिस्से में पहुचाया जाए |’’
‘’ यह कैसे संभव है ?’’
‘संभव है , महाराज | पूरा मीडिया तो आपके नमक पर पलता है | उन्हें आदेशित करने का कष्ट करें कि वह आपके प्रत्येक जन प्रभावी कार्यक्रमों को ज्यादा से जयादा कवरेज कर प्रसारित करे |
  राजा खुश हुआ | मगर राजा का बोले ? जो जनता को पसंद आये | क्योंकि मन में कई बार ऐसे विचार भी आ जाते हैं जो शायद जनता को पसंद न आयें| या जनहित में नहीं होते |
 इसका भी उपाय निकाल लिया गया | राज्य के कला संस्थानों में राजा की कृपा से पल रहे कुछ बेचारे टाइप लेखकों से आलेख तैयार  करवाए गए | जिनमे राज्य हित की मस्केबाजी, जनता को राज्य के अन्दर हो रहे  घपले घोटाले, लूटमार , हत्याएं , बलात्कार जैसी घटनाओं  से ध्यान भटकाने की कोशिश की गयी | बस राजा को इसे देखकर पढ़ना था |
 राजा भी यही चाहता है , जनता उसकी लफ्फाजी , काली करतूतों पर ध्यान न दे |
   राज्य में  मन के बोल  कार्यक्रम का संचार माध्यमों  से प्रसारण  प्रारम्भ हो गया | राज्य के कर्मचारियों को सुनना अनिवार्य कर दिया गया ताकि जनता उनसे प्रभावित होकर सुनने में रूचि  दिखाए |
  राजा भी चतुर प्राणी होता है | वह अपने मन के बोल को छुट्टी के दिन प्रसारित करवाता | ताकि कामचोर कर्मचारी कार्यक्रम सुनने के बहाने दफ्तर दिवस में दफ्तर  से गोल न मारें |जनता अवकाश के दिन फुर्सत में रहती है | सो वह इत्मीनान से उसके बोल को सुने |
  राज्य चाहे जितना भी शालीन रहे पर वहां आलोचकों की पैदाइश हो ही जाती है | राजा के राज्य में भी उसके विपक्षी उसके महान आलोचक हैं जो उसकी काली करतूतों को अपने तरीके से जनता के सामने पटकते रहते हैं | उसकी करतूतों का पोस्टमार्टम करते रहते हैं | इस घटनाक्रम के चलते राज्य में कई बार हल्ला-बोल जैसी रैलियाँ निकल चुकी हैं | तख्ता पलट होते-हुए बचा है |
  लोकतांत्रिक राज्य में राजा ही सर्व शक्तिमान नहीं होता | विपक्षी भी हैसियत रखते हैं | इसलिए रजा डरता है | सोच समझ कर अपने बोल बोलता है |
  राजा के ‘’ मन के बोल ‘’ कार्यक्रम के कई बार प्रसारण के बाद |


किसी ने एक नागरिक से सवाल किया| ‘’ राजा जी ने आज तक के ‘’मन के बोल ‘’ बोले | कार्यक्रम कैसा लगा |’’
‘’ वो तो राजा का कम है अपने प्रशंसा के लिए कुछ भी कार्यक्रम चलाये | पर राज्य की समस्या के विरुद्ध कुछ करे तो जाने राजा कि राजा के मन के बोल मन से निकले हैं | यह तो राजा  का टाइम पास कार्यक्रम है सो टाइम पास के लिए कभी –कभी सुन लेते हैं |’’
   कार्यक्रम को प्रसारित होना है | वह तो होता रहेगा |
 चम्मच टाइप मीडिया , सत्तापक्ष तारीफ़ के पुल बाँध रहा है | ‘’ सरकार जनता आपसे बेहद खुश है |आपके कार्यक्रम को सुनने के लिए बेकाबू रहती है |कहें तो फोटोग्राफ्स , रिकार्डिंग इत्यादि आपको दिखा दें |
 राजा फूलकर कुप्प है | राजा तो चाहता है कि अंधे को मिली दो आँख की तरह उसके चम्मचों की संख्या में वृद्धि हो |
   जनता के मन पर मन के बोल कितना प्रभाव डाल रहे हैं |इसका जानकारी  तो चंद महीनों बाद मिलेगी | | जब जनता विपक्षियों के साथ मिलकर राजा को उखाड़ फेंकने की कोई साजिश न रचे |

                          सुनील कुमार सजल 

रविवार, 28 जून 2015

व्यंग्य = झाडू को लेकर राजा की चिन्ता


व्यंग्य = झाडू को लेकर राजा  की चिन्ता



इन दिनों प्रजा अनोखे ढंग से पेश आ रही है |हाथों में झाडू दिख रही है |पिछले दिनों रजा राज्य भ्रमण पर निकले थे |उन्होंने देखा कि जनता के हाथों में तीर है न कमान, तमंचा ,लाठी ,बल्लम तलवार ,फरसा |हर जगह झाडू है | राजा  निराश हुए | गुप्त यात्रा से लौटकर महल में आए | मंत्रियों को बुलाया बैठक ली |पूछा –‘क्या बात है हमारे राज्य की जनता की मति घूम गयी है |हाथ में हथियार की जगह झाडू लिए फिर रही है |जबकि सबको मालूम है, हमारा राज्य दुश्मन के प्रदेशों से घिरा है |कभी भी हम पर हमला कर सकता है |राज्य के अन्दर दुश्मनी के परिणाम स्वरूप आतंकी घटनाएं जब-तब घटती रहती है | इतना जानने के बावजूद ना समझ जनता हाथ में हथियार की जगह झाडू लिए हुए है |
मंत्री ने समझाया | बोला- ‘महाराज जनता की सोच है कि समाज की कुरातियों का सफाया किया जाए | राज्य को स्वच्छ बनाने का सपना देख रहे हैं |’
‘ इससे क्या होगा ? दुश्मन दर जायेंगे ?’राजा  तनिक चिढ़कर बोले |
‘’ डरेंगे नहीं |पर राज्य  में स्वच्छता ,भाईचारा का वातावरण पैदा होगा | ‘ मंत्री ने धैर्य से उत्तर दिया |
‘’ यार ये स्वच्छता ,सदाचार से देश नहीं चलता | देखा नहीं है क्या ? पड़ोसी राज्यों में कितनी गंदगी है | वहां की गन्दगी यहाँ प्रवाहित हो रही है फिर भी क्या लोग नहीं जी रहे हैं |’’ राजा बोले |
‘’’महाराज, बात यह है कि सरकार का धन का बहुत बड़ा हिस्सा स्वच्छता के मायने समझाने में चला जाता है |जो व्यर्थ का खर्च है |अगर जनता स्वप्रेरना से स्वच्छाता के प्रति जागृत हो रही है तो क्या बुरा है |’’ मंत्री बोला |
‘’ यार उन्हें झाडू की जगह हथियार पकडाओ |’ मंत्री की बात पर राजा चिढ गया | आगे बोला-‘ इधर पड़ोसी राज्यों की बेजा हरकतों से नींद हराम है | हम ऐशोआराम नहीं कर पा रहे हैं |चिंताएं हमें पानी में शक्कर की तरह घोल रही है | तुम्हें स्वच्छता की पड़ी है |’’
‘’ महाराज क्या है कि जनता की सोच ठीक है | वह भ्रष्टाचार , रिश्वत, खोरी मक्कारी , लूटपाट ,अपहरण , बलात्कार जैसी गन्दगी के खिलाफ है | इसलिए जनता को अपना काम करने दें | अपना –अपना काम करें | ‘’मंत्री ने पुन: जनता के पक्ष में अपनी बात रखी |
‘’ देखो मंत्री जी, फालतू टाइप बात न करो | हमारी सुनो | किसी भी राज्य में थोड़ी बहुत अराजकता होना आवश्यक है | तभी दुश्मन दरकार रहता है | सीधे-सादे नैतिकवादी लोगों पर हर कोई हमला कर देता है | पड़ोसी राज्यों में फैली अराजकता को आप भी जानते हो |जिसका परिणाम हम भुगत रहे हैं |पड़ोसी राज्यों में फैली अराजकता को आप भी जानते हो |जिसका परिणाम आप  भुगत रहे हैं |अगर वैसी अराजकता अपने राज्य में रहेगी उअसका असर उनके राज्य तक भी जाएगा न | ‘’ राजा ने अपनी सोच स्पष्ट की |
 वैसे भी अधिकतर राज्यों में रजा की मति हमेशा उलटी ही काम कराती है | उसके गुरुर के अंधेर का असर पूरे राज्य पर होता है |रजा को अपना स्वार्थ पहले दीखता है उसका मानना है , उसके कर्मचारियों में भ्रष्टाचार ,बलात्कार , रिश्वतखोरी , लूटमार वाले गुण होंगे तो उसका असर जनता पर पडेगा | नतीजन जनता आन्दोलन पर उतारेगी | शासन उन्हें बन्दूक की नोक से दबाएगा | जनता में भय का वातावरण फैलेगा | सर्कार अपने ढंग से शासन करेगी | अपने आदेशों का सख्ती से पालन करवाएगी | रजा का भय यह भी मानना होता है कि भीरु व सीढ़ी साडी जनता राज्य के लिए  घातक है |वह चाहे जैसे भी आक्रमण हों , मन से आतंकवादी नहीं बन सकती | विदेशी भूमि में आंतक नहीं फैला सकती |बल्कि भय व्याप्त होकर राजमहल की तरफ आसरा व रक्षा क्र लिए दौड़ लगा देगी | फिर रजा की सरकार किस-किस की रक्षा करेगी | खुद की? परिवार की या फिर जनता की ? झाडू पकड़ने वाले हाथ कतई हथियार संचालित नहीं कर सकते | अत: जनता के हाथों से झाडू –माडू  को अलग कर हथियार साधना आना चाहिए |
 मंत्री परेशान है | राजा  को कैसे समझाएं | जनता हथियार की बजाय झाडू पकड़कर खुश होती है | उसे झाडू लगाने में ज्यादा आनंद आता है | मीडिया वाले भी झाडू लगानेके  कार्यक्रम पर ज्यादा कवरेज करने पर उत्साहित नजर आते हैं | यहाँ उन पर घातक हमला हिने का खतरा कम रहता है |वे हथियार वाले हाथो की खबरों को दिखाकर जनता का बेवजह का समय बर्वाद करते हैं | ऐसा जनता का मानना है |
राजा मंत्री की हर समझाइश को नकार रहा है | वह राजा है |वह आदेश पर आदेश प्रसारित कर रहा है | जनताके हाथों से झाडू छुडाओ हथियार पकडाओ |आजकलसत्ता  हथियार के दम पर चलती है
सुनील कुमार ‘’ सजल