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शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

व्यंग्य – प्यार में चाँद

व्यंग्य – प्यार में चाँद

 वो ज़माना गुजर गया साब | जब प्रेमी लोग चाँद के पार जाने की सोचते थे | भले ही मुंह जुबानी |कल्पनाओं के पंख लगाकर ही सही |पर चाँद या चाँद के पार से कम बात नहीं होती थी | प्रेमिका भी इन्हीं कल्पनाओं के आकाश की बात सुनकर फूले नहीं समाती थी | ऐसे लट्टू हो जाती थी | मानो चाँद पर खडी है | चाँद का धरातल तो देखा नहीं | बस सूना है चाँद के बारे में | वहां गड्ढे खाई होती हैं | चाँद पर नहीं गए तो क्या | अपने गाँव के बंजर क्षेत्र में बनी ऊबड़-खाबड़ , सड़कें और उसके आजू- बाजू खाईयां गड्ढे , उड़ती धूल सचमुच चाँद की याद दिला देती हैं | यहाँ खड़े होकर चाँद की कल्पाना की जा सकती है |
  प्यार को बढाने व प्रेमिका पर गिरफ्त बढाने के लिए कुछ अलटप्पू टाइप बातें तो होनी चाहिए न |
  आपने वह पुराना गीत तो सूना होगा | चलो दिलदार चलो , चाँद के पार चलो | उस जमाने में प्यार की बातें तो होती थी | प्रेमी – प्रेमिका भले ही चाँद पर नहीं पहुचे पर वैज्ञानिक पहुंचे | वहां की जो बातें बतायी | वे प्रेमी- प्रेमिका के बीच प्यार को चटपटा बनाने के काम आयी | सो प्रेमी – प्रमिका दो कदम और आगे बढे | सपनों की दुनिया | अब कहने लगे | तू काहे तो तेरे कदमों में चाँद – सितारों को लाकर रख दूं | मानो पड़ोसी के बगीचे से चम्पा- चमेली या गुलाब चुराकर प्रेमिका के बालों में खोसने वाली बात हो | ऎसी ही बातें होती थी | पहले प्यार के नाम पर | ईस्टमेन कलर वाली फिल्म की तरह |
   अब दुनिया बदल चुकी है | चाँद- सितारों वाली बातें मायने नहीं रखती | अब तो प्रेमी- प्रेमिका किसी बड़े शहर की और फरार होकर अपने प्यार को अंजाम देते हैं | इसका कारण यह भी हो सकता है कि चाँद पर जाने के लिए अरबों रुपये चाहिए | एक सामान्य भारतीय की इतनी औकात नहीं कि वह चाँद पर जाने की कल्पना भी कर सके | यहाँ तो कई बार चौपाटी पर मसाला चाट वा पानी- पूरी खाने के लिए भी जुगाड़ लगाना पड़ता है |
   फिर और क्या करते हैं प्रेमी ? शहरी विकास प्राधिकरण के पार्कों में मिल-जुलकर या टाइम पास कर स्वर्ग से सुन्दर स्थलों की कल्पना कर देते हैं | एक दिन ऐसे ही गाँव से भागकर आए प्रेमी जोड़े शहर में निवासरत हुए प्रेमिका ने कहा – ‘ कभी तो कोई अच्छी  जगह घुमा दिया करो | एक जगह रहते हुए जी ऊबता है |’’
  ‘’ यार कहाँ घुमा दें | दूसरों की चाकरी करके तो पेट भर रहे हैं | बस इत्ता समझों कि हमने प्यार किया और वह सफल हो गया | वरना गाँव  में एक दूसरे की शक्ल देखना भी गुनाह हो गया था | प्रेमी ने कहा |
‘’ पर ऐसे  प्यार से  क्या होता है | प्यार का मतलब तो ऐश करना होता है न | ‘’ प्रेमिका में  शहरी आवो-हवा व टी.वी. सीरियल्स देखकर आधुनिक सोच के अंकुर फूटे थे |
‘’ यार, कुछ दिन तो कमाई कर लेने दो | फिर तुम्हें ऊंटी, कुल्लू मनाली , गोवा जहां कहोगी वहां घुमाने ले जाऊंगा | प्रेमी ने सांत्वना देने की कोशिश की |
  साब आज के दौर में ऐसी ही बातों का खूब चलन है प्यार की पंचायत में | जैसे कि पहले चाँद पर जाने वाली बातें अच्छी लगती थी | इधर विवाहित जोड़ों में नई संकल्पना विक्सित हुई है | पति महोदय को अपने –अपने पैतृक स्थान से बेहतर ससुराल अच्छी लगती है | अब चाँद के पार को यूँ गुनगुनाते हैं | ‘ चलो दिलदार चलो ,ससुराल( पत्नी का मायका) चलो |


               सुनील कुमार ‘सजल’’