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रविवार, 21 जनवरी 2018

लघु व्यंग्य कथा - प्यार

लघु व्यंग्य कथा-प्यार
प्यार का इजहार करते हुए उसने एक सुन्दर सा फूलों का गुलद्दास्ता देते हुए बोला-" मेरा प्यार तुम्हारे लिए इन फूलों की तरह कोमल,खुशबूदार व रंगीन है ...।"
  "ये फूल तो एक न एक दिन तो सूखेंगे,टूटेंगे और खुशबुएँ भी उड़ जायेंगीं ।फिर.....।" एक कुटिलता भरी मुस्कान उसके होठों पर फ़ैल गयी। और वह निराश हो गया।निराश होता चला गया ।एक दिन प्यार...फूल...खुशबुएँ ..जाने कहाँ बिखर गए। और वह ? पता नहीं ...।

शनिवार, 20 जनवरी 2018

लघुव्यंग्य -टाइम पास

लघुव्यंग्य- टाइम पास
"तू उससे जितना प्यार करती है, ।क्या वह भी  तुझसे उतना ही प्यार करता है ।"
"क्यों नहीं?"देखती नहीं ,रोज मेरे व्हाटस अप में लव मैसेज, फोटो,शेरो- शायरी भेजता है । रोज ब रोज प्यार भरी बातें भी ...। वह अधूरा सा वाक्य बोलते हुए मुस्काई ।
"पहली बार कब और  कहाँ मिली थी उससे ।"
"मिस्ड कॉल के जरिए जुड़ गए । फिर क्या था व्हाट्स अप पर लव चल रहा है ।"
"यानी अभी तक नहीं मिली उससे...। सहेली का आश्चर्य भहरा प्रश्न ।
"नहीं....।"
"कैसी पगली है , उसे देखा न सुना और प्यार कर बैठी । हो न हो, वह तेरी मासूमियत को पहचान कर  टाइम पास गेम की तरह  तेरी भावनाओं से खेल रहा हो ।"
"मैं कौन -सा अपना सब कुछ उस पर  न्यौछावर कर दी । मैं भी तो वही कर रही हूँ । "
"तू तो बड़ी चालाक लोमड़ी निकली रे । प्यार के बहाने टाइम पास....।"
" आजकल प्यार -व्यार में मर-मिटने  का    टाइम किसके पास  है ..। सब टाइम पास है ...। और वह खिलखिलाकर हंस पड़ी । अब सहेली के पास पूछने के लिए कुछ भी शेष नहीं था ।
          - सुनील कुमार सजल

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

व्यंग्य- सखी, प्यार और.......

व्यंग्य- सखी, प्यार और.......


इन दिनों सखी परेशान है |बेहताशा |अपनी सखी के सामने दर्द उगल नहीं पा रही है| उसकी सखी उअसे पूछ रही है |इधर से घुमाकर ,उधर सर घुमाकर |’’ बता न री , का बात है | जो तू इतनी उदास व चिंतित दिख रही है |’’ सखी चुप है |का कहे | बता नही रही | ‘’ तू इतना मुसकाती , हंसती खिलखिलाती है | मगर आज सूखे झरने की भांति खामोश है | कहीं तुझे भी प्यार का रोग तो नहीं लग गया | काहे कि तू आजकल ब्रांडेड कंपनी का फेस आइटम खूब इस्तेमाल कर रही है | ‘’ सखी ने उससे उगलाने के उद्देश्य से छेड़ा |
‘’ का पहले हम फेस आइटम इस्तेमाल नहीं करते थे |’’ वह तपाक से बोली |
‘’ वो तो तू करती थी | मगर सब लोकल मेड थर्ड क्लास |’’ सखी गंवई होते हुए भी थोड़ी बहुत अंग्रेजी बोल लेती है | वैसे ये सब शब्द कामन टाइप के हैं | सखी पुन: बोली –‘’ अच्छा तो तुझे प्यार हो गया है न |’’
वह मुस्कुरा दी | सखी समझ गयी | उम्र का असर इस पर घुमड़ रहा है | एक मुस्कान ही काफी हिती है प्यार के संकेत को स्पष्ट करने के लिए |’’ अच्छा , चल बता कौन है तेरा वो ?’’
वह खोयी –खोयी मुस्कान के साथ चुप | सखी शब्दों से झिझोंडी-‘’ बोल न री का हमसे शर्माना |’’
‘’ हैं तो वो ....पास के गाँव के |’’
‘’ कौन हैं वो ....नाम गाँव पता तो होगा उसका |’’
‘’ हम वो न बताएँगे ....|’’ वह पुन: उदास – सी खामोश बनी रही |
‘’ अच्छा.. बता तू बोलते-बोलते खामोश होकर उदास कटों हो जाती है | कहीं उसने तेरे अन्तरंग सम्बन्ध का एस.एम्.एस तो नहीं बना लिया है | और उसे सार्वजनिक करने की धमकी देकर तुझे ब्लेकमेल तो नहीं कर रहा है |’’
‘’वो ऐसा काहे करेंगे | हमें जीजान से प्यार करते हैं | पहली बात यह है कि हमारे बीच ऐसे कोई सम्बन्ध बने ही नहीं | जिसका एस.एम.एस. बनाया जा सके |’’ वह बोली |
‘’ फिर तू काहे उदास हो जाती है | कुछ छिपा रही है तू | कहीं ऐसा तो नहीं तेरा लवलेटर ...|’’
‘’ आजकल कोई लवलेटर लिखता है | फोन से काम चल जाता है जब |’’
‘’ क्या वि तुझे त्याग देने की धमकी दे रहा है ? ‘’
‘’ नहीं री , तू अपशगुन की बातें कराती है | काहे त्यागें |’’
‘’ देख री, आजकल के प्रेमी बड़े हरामी टाइप के होते हैं | इधर भी मुंह मारते हैं | उधर भी | प्रेमी यानी कुत्ता की जात |’’
‘’ नहीं , वे न कुत्ता हैं न हरामी |’’
‘’ फिर तू काहे उदास दिखाती है |’’
‘’ सच बताऊँ |’’
‘’ बता न ,,,कब से तुझसे पूछ रही हूँ | अपना प्राइवेट एफ.एम्. स्टेशन चालू कर | ‘’
‘’ ‘’ जब से हमने गाना सूना है रंग शर्बतों का तू मीठे घाट  का पानी ... वाला | तब से हमारा मन खराब हो गया है |’’
‘’ इसमें मन खराब होने वाली कौन सी बात है | वो तो गाना है |’’
‘’ तू का जाने प्यार में घाट  कित्ता महत्त्व होता है | हमें दु:ख है कि हम मीठे घाट  का पानी काहे नहीं बने | वो तो रंग शर्बतों का बनने को तैयार थे | आजकल खूब गाते हैं ये वाला गाना वो |’’
‘’अरी पगली घाट -पानी तो निर्जीव चीज है तू तो जीवित है | फिर वो शरवत बनाकर बोतल में पैक हो जायेंगे क्या ?’’
‘’ निर्जीव हुआ तो क्या हुआ | पुराने जमाने में प्रेमी लोग प्यार का इजहार करने घाट  ही जाते थे | दोनों साथ डुबकी लगाते थे | दांत साफ़ करने के बहाने नशीला मंजन दांतों पर रगड़ते हुए गप्पे मारते | प्यार की बातें करते | मुस्कराते | प्रेमिका इसी बात को पूरा करने कपडे धोने के बहाने घाट  पर जाती | कितना नेचुरल था | उस वक्त का प्यार | आजकल तो प्यार का सारा माहौल बनावटी हो गया , आधुनिकता के मध्य जीकर | हर काम जल्द्वाजी में |’’ इन सब बातों को गोली मार | असली समस्या  बता अपने प्यार की|’’
‘’ भगवान् हमें मीठे घाट  का पानी बना दे और उन्हें रंग शर्बतों का |’’
‘’ क्या पगली बोतल में पैक होकर बाजार में बिकोगे |’’
‘’ तू का जाने | प्यार में क्या- क्या नहीं बनाना पड़ता |’’
‘’ देख री तू गाने के बोल पर मत जा | आजकल ऐसे ही बिना सेंस वाले उलटे – सीधे गाने चल रहे हैं | गीतकार पानी को नानी, नानी को कानी कहकर गीत लिख देते हैं | तुकबंदी का ज़माना है | इसलिए तू रंग पानी का चक्कर छोड़ | जैसा प्यार होता है , वैसा कर | न तो तू कभी मीठे घाट का पानी बन पाएगी और वो न रंग शर्बतों का | और दोनों ख्याब देखते हुए कहीं ब्याह दिए जाओगे | फिर गाते रहना – दिल के टुकड़े-टुकड़े करके मुस्कुराते चल दिए |’’

                सुनील कुमार ‘’सजल’’

शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

व्यंग्य – प्यार में चाँद

व्यंग्य – प्यार में चाँद

 वो ज़माना गुजर गया साब | जब प्रेमी लोग चाँद के पार जाने की सोचते थे | भले ही मुंह जुबानी |कल्पनाओं के पंख लगाकर ही सही |पर चाँद या चाँद के पार से कम बात नहीं होती थी | प्रेमिका भी इन्हीं कल्पनाओं के आकाश की बात सुनकर फूले नहीं समाती थी | ऐसे लट्टू हो जाती थी | मानो चाँद पर खडी है | चाँद का धरातल तो देखा नहीं | बस सूना है चाँद के बारे में | वहां गड्ढे खाई होती हैं | चाँद पर नहीं गए तो क्या | अपने गाँव के बंजर क्षेत्र में बनी ऊबड़-खाबड़ , सड़कें और उसके आजू- बाजू खाईयां गड्ढे , उड़ती धूल सचमुच चाँद की याद दिला देती हैं | यहाँ खड़े होकर चाँद की कल्पाना की जा सकती है |
  प्यार को बढाने व प्रेमिका पर गिरफ्त बढाने के लिए कुछ अलटप्पू टाइप बातें तो होनी चाहिए न |
  आपने वह पुराना गीत तो सूना होगा | चलो दिलदार चलो , चाँद के पार चलो | उस जमाने में प्यार की बातें तो होती थी | प्रेमी – प्रेमिका भले ही चाँद पर नहीं पहुचे पर वैज्ञानिक पहुंचे | वहां की जो बातें बतायी | वे प्रेमी- प्रेमिका के बीच प्यार को चटपटा बनाने के काम आयी | सो प्रेमी – प्रमिका दो कदम और आगे बढे | सपनों की दुनिया | अब कहने लगे | तू काहे तो तेरे कदमों में चाँद – सितारों को लाकर रख दूं | मानो पड़ोसी के बगीचे से चम्पा- चमेली या गुलाब चुराकर प्रेमिका के बालों में खोसने वाली बात हो | ऎसी ही बातें होती थी | पहले प्यार के नाम पर | ईस्टमेन कलर वाली फिल्म की तरह |
   अब दुनिया बदल चुकी है | चाँद- सितारों वाली बातें मायने नहीं रखती | अब तो प्रेमी- प्रेमिका किसी बड़े शहर की और फरार होकर अपने प्यार को अंजाम देते हैं | इसका कारण यह भी हो सकता है कि चाँद पर जाने के लिए अरबों रुपये चाहिए | एक सामान्य भारतीय की इतनी औकात नहीं कि वह चाँद पर जाने की कल्पना भी कर सके | यहाँ तो कई बार चौपाटी पर मसाला चाट वा पानी- पूरी खाने के लिए भी जुगाड़ लगाना पड़ता है |
   फिर और क्या करते हैं प्रेमी ? शहरी विकास प्राधिकरण के पार्कों में मिल-जुलकर या टाइम पास कर स्वर्ग से सुन्दर स्थलों की कल्पना कर देते हैं | एक दिन ऐसे ही गाँव से भागकर आए प्रेमी जोड़े शहर में निवासरत हुए प्रेमिका ने कहा – ‘ कभी तो कोई अच्छी  जगह घुमा दिया करो | एक जगह रहते हुए जी ऊबता है |’’
  ‘’ यार कहाँ घुमा दें | दूसरों की चाकरी करके तो पेट भर रहे हैं | बस इत्ता समझों कि हमने प्यार किया और वह सफल हो गया | वरना गाँव  में एक दूसरे की शक्ल देखना भी गुनाह हो गया था | प्रेमी ने कहा |
‘’ पर ऐसे  प्यार से  क्या होता है | प्यार का मतलब तो ऐश करना होता है न | ‘’ प्रेमिका में  शहरी आवो-हवा व टी.वी. सीरियल्स देखकर आधुनिक सोच के अंकुर फूटे थे |
‘’ यार, कुछ दिन तो कमाई कर लेने दो | फिर तुम्हें ऊंटी, कुल्लू मनाली , गोवा जहां कहोगी वहां घुमाने ले जाऊंगा | प्रेमी ने सांत्वना देने की कोशिश की |
  साब आज के दौर में ऐसी ही बातों का खूब चलन है प्यार की पंचायत में | जैसे कि पहले चाँद पर जाने वाली बातें अच्छी लगती थी | इधर विवाहित जोड़ों में नई संकल्पना विक्सित हुई है | पति महोदय को अपने –अपने पैतृक स्थान से बेहतर ससुराल अच्छी लगती है | अब चाँद के पार को यूँ गुनगुनाते हैं | ‘ चलो दिलदार चलो ,ससुराल( पत्नी का मायका) चलो |


               सुनील कुमार ‘सजल’’