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रविवार, 14 जून 2015

व्यंग्य – बड़ी देर कर दी आपने



व्यंग्य  – बड़ी देर कर दी आपने 

 हुजुर को पता है कि वे हुजुर हैं |हुजुर बनने के लिए बड़े पापड बेले उन्होंने | तब कहीं जाकर हूजूर बने हैं | हूजूर बनने के बाद उन्हें यह भी अच्छी तरह पता है कि हुजुर लोग समय पर कहीं नहीं पहुचते | इसलिए वे हमेश सभा हो या पार्टी की मीटिंग देर से पहुचते हैं |चमचों को भी पता है हुजुर अपने या उनके दिए समय पर कभी नहीं आयेंगे | सो, वे निश्चिन्त रहते हैं | भीड़ इकट्ठी करने में लगे रहते हैं | उन्हें यह भी पता ऐसा वे हुजुर बनने के बाद कर रहे हैं | इसके पहले जब वे उनके जैसे थे समय के दो घंटे पहले पहुँच जाते थे | मगर अब पद बढ़ गया है |पद बढ़ने से रुतवा भी बढ़ गया है | अब वे छुटभैये  नहीं रहे हैं | इसलिए देर से आते हैं |
  हुजुर को पता है जल्दी या समय पर जाने वाले नेता की कद्र नहीं होती | लोग यह समझ बैठते हैं कि हुजुर की  जरुर इस समय मिटटी पलीद होने की स्थिति  बन रही है इसलिए हुजुर जल्दी चले आये | ताकि दूसरा उनकी जगह न ले बैठे |
 एक दिन हुजुर की पत्नी ने उनसे कहा –‘’ आप नौ बजे खा -पीकर फुर्सत बैठे पर अभी  ग्यारह बज रहें | और आप अभी तक सभा की ओर नहीं बढ़ें है | दूर शहर में बैठी जनता बेचारी आपका इंतज़ार  कर परेशान हो रही होगी |तनिक उनका भी और समय का ख्याल रखा करो |’
 देखो तुम फटे में टांग मत घुसेड़ा करो | मैं जनता का ख्याल रखकर ही देर से जा रहा हूँ | तुम भले राजनेता की पत्नी हो पर तुममें अभी राजनीति की समझ नहीं जगी है |इसलिए कहता हूँ रूचि लेकर किसी छोटे –मोटे संगठन में घुसकर एकात पद हथिया लो | ताकि तुम,में भी राजनीति  की समझ पैदा हो | घर के भीतर बैठ कर राजनीति  की बातें करने व रसोई घर में ताक-झाँक करने से राजनीति की  समझ पैदा नहीं होती |’’ नेता जी ने पत्नी को फटकारा | ‘
‘’ ठीक है | मैंने तो आपका इंतज़ार  कर रही जनता की परेशानी को भांप कर आपसे कहा था |’’
‘’ अभी तुम राजनीति के मामलों में कच्चा घडा हो |इसलिए चूल्हा चौके से बाहर कि बात नहीं सोचती | पहले हम भी अपने आकाओं को देर करने पर कोसते थे | पर आज खुद आका बनने के बाद समझ आया कि देर से गंतव्य की  ओर पहुचने का मतलब क्या है | ‘
 हुजुर जानबूझकर देर से जाते हैं, अपने जनसभाओं.में  |कहते इंतज़ार  का फल मीठा होता है | हुजुर भी अपने आपको जनता के बीच  मीठा फल साबित करने में लगे हैं |
  आज  उनकी चिलमन चौक में सभा है | जनता सभा स्थल  में बैठी उनका इंतज़ार  कर रही है | दिन के बारह बज चुके हैं |भैया जी अभी भी घर में  बैठे टी.वी. पर तमाशा देख रहें हैं | पत्नी उन्हें बारह बजने का एलर्ट देती है मगर वे खुद में मशगूल हैं |पत्नी चुप रहती है | जानती ज्यादा कुछ कहा तो सभा का सारा भाषण वे यहीं उड़ेल देंगे |

 बड़ी मुश्किल से वे एक बजे घर से  रवाना हुए | दो बजे सभा स्थल पर पहुंचे | और भाषण में बोले- ‘’आपको मेरे इंतज़ार में जो कष्ट हुआ उसके लिए क्षमा चाहता हूँ | क्या करूँ  पार्टी के कुछ ऐसे काम आ गए थे जिन्हें निपटाना जरुरी था | चमचे की तालियाँ पिटने लगी | जनता भी तालियाँ बजाने में जुट गयी | भाषण /आश्वासन /योजनायें बांटी गयी |वैसे नेताओं का सभा स्थल पर देर से  पहुँचना लोकतंत्र में एक बीमारी है  | जिसका ईलाज आज तक नहीं खोजा जा सका |
 सभा समाप्त |अब पार्टी की बैठक |अचानक पार्टी की बैठक के बीच एक चमचे ने कह उठा – भैया जी आज आप काफी लेट हो गए थे | बड़ी मुश्किल से जनता को बांधकर रखा हमने |’’
 हुजुर ने तत्काल फटकार लगायी –‘’ राजनीति  करते हो या बनिया की दुकान में चाकरी |’’ वह वहीं खामोश हो गया | वैसे भी चमचे हुजुर लोगों के आगे पालतू  कुत्ते की भाँती कुई –कुई करते दुम हिलाते नजर आते हैं | दुम हिलाना कूँ- कूँ  करना छोटे लोगों की परम्परा है |
हुजुर बड़े नेता हैं | इसलिए वे बड़ी देर से प्रत्यके कम या सभा में जाते हैं  |लोकतंत्र में सिर्फ जनता के पास फालतू समय होता ई |जब तक जनता के  पास समय है | हुजुर के पास इंतज़ार  कराने के साधन हैं |
                                 सुनील कुमार सजल